किसी धर्म की महानता एवं सम्पूर्णता केवल उस धर्म से जुड़े ग्रंथों एवं गुरुओं से नहीं होती, बल्कि उस विशेष धर्म से जुड़े लोग भी उसे महान बनाते हैं। जो अपने धार्मिक कार्यों से दुनिया भर में अपने धर्म का उच्चतम दर्जे पर प्रतिनिधित्व करते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है हिन्दू धर्म के रीति रिवाज़।
यह धर्म समय-समय पर अपने संस्कारों से धर्म की महान छवि को दर्शाता है। इन्हीं संस्कारों में से एक है एकादशी का व्रत। एकादशी को हिन्दू धर्म में एक महान दिन के रूप में माना जाता है। यह दिन आध्यात्मिक दृष्टि से किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
इसके महत्वपूर्ण स्थान को देखते हुए ही शास्त्रों में इस दिन व्रत रखने का प्रावधान है। आमतौर पर हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की 11वीं चंद्रमा तिथि को एकादशी का दिन माना जाता है। हर एक माह में दो एकादशियां होती हैं।
एकादशी कब आती है इसके पीछे भी काफी रोचक तथ्य हैं। कुछ गहराई में समझें तो हिन्दू पंचांग के अनुसार हर माह में दो एकादशियां होती हैं। हिन्दू पंचांग के प्रत्येक माह को दो पक्षों में विभाजित किया जाता है – कृष्ण पक्ष तथा शुक्ल पक्ष।
प्रत्येक पक्ष 15 दिनों के लिए होता है। कृष्ण पक्ष की समाप्ति जहां पूर्णिमा पर होती है, वहीं दूसरी ओर शुक्ल पक्ष का 15वां दिन अमावस्या का माना जाता है।
इस तथ्यों को उदाहरण सहित समझाएं तो हिन्दू पंचांग के 12 महीनों में से एक है ज्येष्ठ माह। यह माह शुरू ही कृष्ण पक्ष से होता है। और इसके आरंभ होने के बाद 11वां दिन एकादशी का माना जाता है। इसी तरह से कृष्ण पक्ष का 11वां दिन भी एकादशी का होता है।
यही कारण है कि हर माह में दो तथा पूरे वर्ष में कुल मिलाकर 24 एकादशियां होती हैं। इन सभी एकादशियों में से बेहद खास मानी जाती है ‘भीमसेनी एकादशी’। यह खास प्रकार की एकादशी वर्ष के ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में 11वें दिन को मनायी जाती है।
आम लोगों में यह एकादशी ‘निर्जला एकादशी’ के नाम से भी प्रसिद्ध है, लेकिन महाभारत युग के वीर योद्धा तथा बलशाली पाण्डु पुत्र ‘भीमसेन’ से जुड़े होने के कारण यह एकादशी भीमसेनी एकादशी भी कहलाती है।
कहते हैं भीमसेन के कारण ही यह एकादशी आम से खास बनी तथा इसकी महत्ता और भी बढ़ गई। यह मान्यता हमें महाभारत काल की एक कथा से जोड़ती है, जिसके अनुसार एक बार राजकुमार भीम को भी व्रत रखने की इच्छा हुई।
लेकिन हरदम भूख से तड़पने वाले भीमसेन आखिर व्रत कैसे रखते। पांच पाण्डु पुत्रों में से भीमसेन को छोड़कर अन्य चार भाई तथा उनकी पत्नी द्रौपदी द्वारा हमेशा हर वर्ष 24 एकादशियों का व्रत रखा जाता था। लेकिन अकेले भीम ही थे जो किसी भी प्रकार का व्रत नहीं रख सकते थे।
उनके पेट में 'वृक' नाम की अग्नि उन्हें थोड़े-थोड़े समय बाद ही भोजन करने के लिए मजबूर करती थी। लेकिन उस दिन महर्षि वेदव्यासजी द्वारा जब सभी पांडवों को चारों पुरुषार्थ - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया गया तो भीम दुविधा में पड़ गए।
वेदव्यासजी मुख पर हल्की सी मुस्कुराहट लेते हुए ध्यानपूर्वक भीमसेन की बात सुनते रहे। वे आगे बोले, “पितामह! आप भली-भांति जानते हैं कि मेरे पेट में ‘वृक’ नाम की जो अग्नि है, वह मुझे दिन में एक या दो बार नहीं बल्कि बार-बार भोजन करने पर मजबूर करती है।“
इस अग्नि को शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। यही कारण है कि मैं एक दिन तो क्या कुछ पल के लिए भी भूखा नहीं रह सकता पितामह। तो आप ही बताइए कि मैं कैसे एकादशी जैसा पुण्यव्रत रखूं?
वेदव्यासजी पहले से ही जानते थे कि भीमसेन ऐसी बात का जिक्र अवश्य करेंगे। वह भीमसेन की इस दुविधा को समझते थे। इसीलिए उन्होंने भीम की समस्या का निदान करते हुए उन्हें एक ऐसा मार्ग दिखाया, जिसने भीमसेन की हर एक चिंता को दूर कर दिया।
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