Thursday 31 March 2016

Gupteshwar Dham Bihar in Hindi

बिहार में स्थित भगवान शिव की इस प्राचीन गुफा मे लिखे ये लेख क्या कहते है ?


भगवान शिव सनातन-हिन्दू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं , भगवान शिव की अनेक गुफाँए हैं पर यह गुफा बहुत रहस्यमयी है, इस प्राचीन गुफा के बारे में माना जाता है कि इसे इंसानो ने नहीं बल्कि खुद प्रकृति ने बनाया है।

बिहार के प्राचीन शिवलिंगों में शुमार रोहतास जिले के गुप्तेश्वर धाम गुफा स्थित शिवलिंग की महिमा का बखान आदिकाल से ही होता आ रहा है। माना जाता है कि इस गुफा में जलाभिषेक करने के बाद भक्तों की सभी मन्नतें पूरी हो जाती हैं।

पुराणो में वर्णित भगवान शंकर व भस्मासुर से जुड़ी कथा को जीवंत रखे हुए ऐतिहासिक गुप्तेश्वरनाथ महादेव का गुफा मंदिर आज भी रहस्यमय बना हुआ है।

रोहतास में  विंध्य शृंखला की कैमूर पहाड़ी के जंगलों से घिरे गुप्ताधाम गुफा की प्राचीनता के बारे में कोई प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।

इसकी बनावट को देखकर पुरातत्वविद अब तक यही तय नहीं कर पाए हैं कि यह गुफा मानव निर्मित है या प्राकृतिक।

श्याम सुंदर तिवारी जो कई इतिहास की पुस्तकों को लिख चुके हैं वे कहते हैं कि गुफा के नाचघर व घुड़दौड़ मैदान के बगल में स्थित पाताल गंगा के पास दीवार पर उत्कीर्ण शिलालेख, जिसे श्रद्धालु ब्रह्मा के लेख के नाम से जानते हैं, को पढ़ने से संभव है, इस गुफा के कई रहस्य खुल जाएं।

इस गुफा में गहन अंधेरा होता है, बिना कृत्रिम प्रकाश के भीतर जाना संभव नहीं है। पहाड़ी पर स्थित इस गुफा का द्वार 18 फीट चौड़ा एवं 12 फीट ऊंचा मेहराबनुमा है। इस गुफा में लगभग 365 फीट अंदर जाने पर बहुत बड़ा गड्ढा है,जिसमें साल भर पानी रहता है। श्रद्धालु इसे पाताल गंगा कहते हैं।

इस गुफा के अंदर प्राचीन काल के दुर्लभ शैलचित्र आज भी मौजूद हैं। इसके कुछ आगे जाने के बाद शिवलिंग के दर्शन होते हैं। गुफा के अंदर अवस्थित प्राकृतिक शिवलिंग पर हमेशा ऊपर से पानी टपकता है। इस पानी को श्रद्धालु प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

इस स्थान पर सावन के महीने के अलावा सरस्वती पूजा और महाशिवरात्रि के मौके पर मेला लगता है। लोगो के बताए अनुसार कैलाश पर्वत पर मां पार्वती के साथ विराजमान भगवान शिव ने जब भस्मासुर की तपस्या से खुश होकर उसे किसी के सिर पर हाथ रखते ही भस्म करने की शक्ति का वरदान दिया था।

भस्मासुर मां पार्वती के सौंदर्य पर मोहित होकर शिव से मिले वरदान की परीक्षा लेने के लिए उन्हीं के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा। वहां से भागकर भोले यहां की गुफा के गुप्त स्थान में छुपे थे।

भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर का नाश किया। उसके बाद गुफा के अंदर छुपे भोले बाहर निकले।

सासाराम के वरिष्ठ पत्रकार विनोद तिवारी कहते हैं शाहाबाद गजेटियर में दर्ज फ्रांसिस बुकानन नामक अंग्रेज विद्वान की टिप्पणियों के अनुसार, गुफा में जलने के कारण उसका आधा हिस्सा काला होने के सबूत आज भी देखने को मिलते हैं।

उपन्यासकार देवकी नंदन खत्री ने अपने चर्चित उपन्यास चंद्रकांता में विंध्य पर्वत, शृंखला की जिन तिलस्मी गुफाओं का जिक्र किया है, संभवतः उन्हीं गुफाओं में गुप्ताधाम की यह रहस्यमयी गुफा भी है।

वहां धर्मशाला व कुछ कमरे अवश्य बने हैं, परंतु अधिकांश जर्जर हो चुके हैं। गुप्ताधाम गुफा के अंदर ऑक्सीजन की कमी से वर्ष 1989 में हुई आधा दर्जन से अधिक श्रद्धालुओं की मौत की घटना को याद कर आज भी लोग सिहर उठते हैं।

बैरिया गांव में लोगो ने बताया की प्रशासन की ओर से यहां कुछ ऑक्सीजन सिलेंडर भेजे जाने लगे थे। प्रशासन की ओर से चिकित्सा शिविर भी लगता था, परंतु वन विभाग द्वारा इस क्षेत्र को अभयारण्य घोषित किए जाने के बाद प्रशासनिक स्तर पर दी जा रही सुविधा बंद कर दी गई हैं।

अब समाजसेवियों के सहारे ही इतना बड़ा मेला चलता है। जिला मुख्यालय सासाराम से करीब 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस गुफा में पहुंचने के लिए रेहल, पनारी घाट और उगहनी घाट से तीन रास्ते हैं जो अतिविकट व दुर्गम हैं। दुर्गावती नदी को पांच बार पार कर पांच पहाडियों की यात्रा करने के बाद लोग यहां पहुंचते हैं।

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Wednesday 30 March 2016

Padmanabhaswamy temple secrets in hindi

पद्मनाभस्वामी मंदिर और तहख़ाने के खजाने का ये रहस्य जान आप चौक जाएँगे 

                                                       Padmanabhaswamy temple story

पद्मनाभस्वामी मंदिर भारत के केरल राज्य के 'तिरुअनन्तपुरम' में स्थित भगवान विष्णु का प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल यह ऐतिहासिक मंदिर तिरुअनंतपुरम के अनेक पर्यटन स्थलों में से एक है।

केरल की राजधानी तिरूअनंतपुरम में स्थित पद्मनाभ स्वामी मंदिर के पास अकूत संपत्ति है।तिरुअनंतपुरम नाम भगवान के 'अनंत' नामक नाग के नाम पर ही रखा गया है। यहाँ पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को 'पद्मनाभ' कहा जाता है ।

माना जाता है कि इस मंदिर के पास 2 लाख करोड़ रुपए की दौलत है।  2011 में कैग की निगरानी में पद्मनाभस्वामी मंदिर से करीब एक लाख करोड़ रुपए मूल्य का खजाना निकाला जा चुका है। अभी मंदिर का एक तहखाना खुलना बाकी है।

Padmanabhaswamy temple sixth snake door

कैग ने कहा था , मंदिर की कहानियां झूठी :-

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूर्व नियंत्रक लेखा महापरीक्षक (CAG) विनोद राय ने मंदिर के तहखानों की कहानियों को खारिज किया था। 2011 में कैग की निगरानी में पद्मनाभस्वामी मंदिर से करीब एक लाख करोड़ रुपए मूल्य का खजाना निकाला गया था।

हालांकि उस वक्त कई प्रचलित कहानियों के चलते मंदिर के छठे तहखाने को नहीं खोला गया था। कहानी के मुताबिक मंदिर के तहखानों में कोबरा जैसे जहरीले सांप मौजूद हैं, जो इस खजाने की रक्षा करते हैं और किसी को तहखाने में जाने की इजाजत नहीं है।

पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुडी है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा प्राप्त हुई थी जिसके बाद उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया है। 1733 ई. में इस मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावनकोर के महाराजा मार्तड वर्मा ने करवाया था।

                                             Treasure Temple  Padmanabhaswamy , Kerala

मंदिर से जुड़ी मान्यता  :-

मंदिर हजारों साल पुराना है। इसकी स्थापना कब हुई थी, इस बारे में एकराय नहीं है। कहा जाता है कि यह मंदिर दो हजार साल पुराना है। वहीं त्रावणकोर के इतिहासकार डॉ. एलए रवि वर्मा का दावा है कि इस मंदिर की स्थापना कलियुग के पहले दिन में हुई थी। यह भी माना जाता है कि मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ती की स्थापना कलियुग के 950 वें साल में हुई थी।

त्रावणकोर राजघराने से संबंध :-

मंदिर का मौजूद स्वरूप त्रावणकाेर के राजाओं ने बनवाया। कहा जाता है कि 1750 में त्रावणकाेर के महाराजा मार्तण्ड वर्मा ने खुद को पद्मनाभ स्वामी का दास बताया था, इसके बाद पूरा शाही खानदान मंदिर की सेवा में लग गया था। यह भी माना जाता है कि मंदिर में मौजूद अकूत संपत्ति त्रावणकोर शाही खानदान की ही है।

1947 में जब भारत सरकार हैदराबाद के निजाम की संपत्ति अपने अधीन कर रही थी, तो त्रावणकोर राजघराने ने अपनी दौलत मंदिर में रख दी। उस वक्त त्रावणकोर रियासत का तो भारत में विलय हो गया। उस वक्त रियासत की संपत्ति भारत सरकार ने अपने अधीन की, लेकिन मंदिर शाही खानदान के पास ही रहा।

इस तरह राजघराने ने अपनी संपत्ती बचा ली, लेकिन इस कहानी का कोई प्रमाण अब तक सामने नहीं आया है। अब यह मंदिर शाही खानदान द्वारा बनाया गया ट्रस्ट चलाता है।

टीपू सुल्तान का हमला  :-


टीपू सुल्तान ने इस मंदिर पर हमला भी किया था। कहा जाता है कि 1790 में टीपू सुल्तान ने मंदिर पर कब्जे के लिए हमला किया था, लेकिन कोच्चि के पास उसे हरा दिया गया।


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Tuesday 29 March 2016

Guru Gorakhnath History

गुरु गोरखनाथ कथा सिद्ध करती है की बाबा अमर और चारों युगों में मोजूद हैं   



सनातन पथ ब्लॉग आज आपको बताने जा रहा है, एक ऐसे योगी की अमर कथा जिससे प्रभु राम और श्रीकृष्ण भी चमत्कृत थे । देवता किसी भी समय किसी भी स्थान, किसी भी काल में उपस्थित हो सकते हैं। लेकिन क्या मनुष्य के लिए हर युग में रहना संभव है? कहते हैं मानव शरीर नश्वर होता है लेकिन क्या इस नश्वर शरीर के बावजूद वह मौत को जीतकर हर युग में उपस्थित रह सकता है?

हठयोग के प्रवर्तक बाबा गोरक्षनाथ (सामान्यजन की भाषा में गोरखनाथ) के विषय में ऐसा ही कहा जाता है कि मनुष्य होने के बावजूद उन्होंने चारों युग में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई है। नाथ परंपरा को सुव्यवस्थित तरीके से प्रचारित कर इसका विस्तार करने वाले बाबा गोरखनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य और स्वयं शिव के अवतार थे।

बाबा गोरखनाथ को शिव का अवतार भी कहा जाता है, जिससे जुड़ी एक कथा प्रचलित है। कहते हैं एक बार गोरखनाथ तप में लीन थे। उन्हें देखकर देवी पार्वती ने शिव से उनके विषय में पूछा। पार्वती से वार्तालाप करते हुए शिव ने उन्हें कहा कि धरती पर योग के प्रसार के लिए उन्होंने ही गोरक्षनाथ के रूप में अवतार लिया है।

गुरु गोरखनाथ को गोरक्षनाथ भी कहा जाता है। इनके नाम पर एक नगर का नाम गोरखपुर है। गोरखनाथ नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखपंथी साहित्य के अनुसार आदिनाथ स्वयं भगवान शिव को माना जाता है। शिव की परम्परा को सही रूप में आगे बढ़ाने वाले गुरु मत्स्येन्द्रनाथ हुए। ऐसा नाथ सम्प्रदाय में माना जाता है।

गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणीधान को अधिक महत्व दिया है। इनके माध्‍यम से ही उन्होंने हठयोग का उपदेश दिया। गोरखनाथ शरीर और मन के साथ नए-नए प्रयोग करते थे।

गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ पर परम शक्ति का अनुभव होता है। 


गोरखनाथ का जीवन अपने आप में अद्भुत था। उन्हें हर युग में देखा गया और संबंधित घटनाओं के साथ उनके रिश्तों को भी जोड़ा गया। सर्वप्रथम सतयुग में उन्होंने पंजाब में तपस्या की थी, उसके बाद त्रेतायुग में उन्होंने उत्तर प्रदेश के एक स्थान गोरखपुर में रहकर ही साधना की, जहां उन्हें राम के राज्याभिषेक के लिए भी निमंत्रण भेजा गया था। लेकिन उस दौरान वे तपस्या में लीन थे इसलिए वह खुद तो ना पहुंच सके हालांकि अपना आशीर्वाद राम के लिए भेजा था।

द्वापरयुग में जूनागढ़, गुजरात में स्थित गोरखमढ़ी में गोरखनाथ ने तप किया था। इसी स्थान पर रुक्मिणी और कृष्ण का विवाह भी संपन्न हुआ था। इस अलौकिक विवाह में देवताओं के आग्रह के बाद गोरखनाथ ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी।

जब धर्मराज युद्धिष्ठिर द्वारा किया जा रहा राजसूय यज्ञ संपन्न होने जा रहा था तब स्वयं भीम उन्हें आमंत्रित करने के लिए गए थे। जब भीम वहां पहुंचे तब गोरखनाथ तप में लीन थे, इसलिए भीम को काफी लंबे समय तक उनका इन्तजार करना पड़ा।

कहते हैं जिस स्थान पर विश्राम करते हुए भीम ने गोरखनाथ का इंतजार किया था, धरती का वह भाग भीम के भार की वजह से दबकर सरोवर बन गया था। आज भी मंदिर के प्रांगण में वह सरोवर मौजूद है। प्रतीक के रूप में उस स्थान पर भीम की विश्राम करती हुई मूर्ति को भी स्थापित किया गया है।

गोरखनाथ जी ने नेपाल और पाकिस्तान में भी योग साधना की। पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में स्थित गोरख पर्वत का विकास एक पर्यटन स्थल के रूप में किया जा रहा है। इसके निकट ही झेलम नदी के किनारे राँझा ने गोरखनाथ से योग दीक्षा ली थी। नेपाल में भी गोरखनाथ से सम्बंधित कई तीर्थ स्थल हैं। उत्तरप्रदेश के गोरखपुर शहर का नाम गोरखनाथ जी के नाम पर ही पड़ा है। यहाँ पर स्थित गोरखनाथ जी का मंदिर दर्शनीय है।

बंगाल से  पश्चिमी भारत तक और सिंध से पंजाब में गोपीचंद, रानी पिंगला और भर्तृहरि से जुड़ी एक और मान्यता भी है। इसके अनुसार गोपीचंद की माता मानवती को भर्तृहरि की बहन माना जाता है। भर्तृहरि ने अपनी पत्नी रानी पिंगला की मृत्यु के पश्चात् अपनी राजगद्दी अपने भाई उज्जैन के विक्रमादित्य के नाम 
कर दी थी। भर्तृहरि बाद में गोरक्षनाथी बन गये थे।

एक अन्य कथा के अनुसार एक बार राजकुमार बप्पा रावल, किशोरावस्था में अपने दोस्तों और साथियों के साथ शिकार पर गए। जब वे जंगल पहुंचे तो उन्हें गोरखनाथ तप में लीन अवस्था में दिखे। उन्होंने वहीं रहकर गोरखनाथ की सेवा करनी शुरू कर दी। जब गोरखनाथ अपने ध्यान से जागे तब उन्होंने बप्पा रावल को देखा और उनकी सेवा से वे बहुत प्रसन्न हुए। गोरखनाथ ने बप्पा को एक तलवार भेंट की, जिसके बल पर चित्तौड़ राज्य की स्थापना हुई

पंजाब में एक मान्यता के अनुसार राजा रसालु और उनके सौतेले भाई पुरान भगत भी गोरक्षनाथ से संबंधित थे। रसालु का यश अफगानिस्तान से लेकर बंगाल तक फैला हुआ था और पुरान पंजाब के एक प्रसिद्ध संत थे। ये दोनों ही गोरक्षनाथ जी के शिष्य बने और पुरान तो एक प्रसिद्ध योगी बने। जिस कुँए के पास पुरान वर्षो तक रहे, वह आज भी सियालकोट में विराजमान है। रसालु सियालकोट के प्रसिद्ध सालवाहन के पुत्र थे।

गोरखनाथ के चमत्कारों से जुड़ी भी कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनके अनुसार राजस्थान के प्रख्यात गोगाजी का जन्म भी गोरखनाथ जी द्वारा दिए गए वरदान से ही हुआ था। गोरखनाथ ने उन्हें गूगल नामक फल प्रसाद के तौर पर दिया जिसे ग्रहण करने के बाद वे गर्भवती हो गईं। गूगल फल से ही उनका नाम गोगाजी पड़ा, जो आगे चलकर राजस्थान के ख्याति प्राप्त राजा बने।

गोगामेडी में गोगा जी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिदनुमा बना हुआ है,  इसकी मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती हैं। कहा जाता है कि फिरोजशाह तुगलक सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरे थे। रात के समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रही है। 

तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया। तुगलक की सेना के साथ आए धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई महान सिद्ध है जो प्रकट होना चाहता है। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद आते समय गोगामेडी में मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया। यहाँ सभी धर्मो के भक्तगण गोगा मजार के दर्शनों हेतु भादौं (भाद्रपद) मास में उमड़ पडते हैं।

कुछ ऐसी भी कथाएं हैं जो बाबा गोरखनाथ के जीवनकाल को बहुत पहले और बहुत बाद में भी प्रदर्शित करती हैं। ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार तेरहवीं शताब्दी में गोरखपुर स्थित मठ को ढहा दिया गया। यह इस बात का प्रमाण है कि गोरखनाथ तेरहवीं शताब्दी से भी बहुत पहले उपस्थित थे। लेकिन फिर संत कबीर और गुरुनानक देव के साथ उनका संवाद यह प्रमाणित करता है कि वे बहुत बाद में भी थे।

कलियुग में तो उनके अनेक स्थानों पर प्रकट होकर योग साधकों को दर्शन देने जैसी घटनाएं सुनी जाती रही हैं। कलियुग में सौराष्ट्र के काठियावाड़ जिले के गोरखमढ़ी स्थान को उन्होंने तप कर धन्य किया है। इन सब घटनाओं के आधार पर गोरखनाथ को चिरंजीवी मान लिया गया है।

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Monday 28 March 2016

bijli mahadev temple story in hindi

बिजली महादेव प्राचीन शिव मंदिर पर हर 12 साल में बिजली गिरने का रहस्य , जाने अभी


                                                               Bijli Mahadev Temple Story

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्तिथ बिजली महादेव। कुल्लू का पूरा इतिहास बिजली महादेव से जुड़ा हुआ है। कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है। - See more at: http://www.ajabgjab.com/2015/02/bijli-mahdev-kullu-history.html#sthash.TdoQkxmU.dpuf
सनातन पथ इन्फो ब्लॉग आज आपको एक अदभुत मंदिर के बारे में बताने जा रहा है ! बिजली महादेव मंदिर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में है ! कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है !

कुल्लू का पूरा इतिहास बिजली महादेव से जुड़ा हुआ है ! यह जगह समुद्र स्तर 2460 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और शीत काल में यहाँ भारी बर्फबारी होती है ! हर मौसम में यहाँ श्रद्धालु महादेव के इस अद्भुत मंदिर के दर्शन को आते है!


कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है ! कुल्लू घाटी में मान्यता है की यह घाटी एक विशालकाय सांप का एक रूप है जिसका वध भगवान शिव ने किया था !

यहाँ पर जिस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की गई है वहाँ हर साल बिजली गिरती है, बिजली गिरने से इस मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है! इस खंडित शिवलिंग को मंदिर के पुजारी एकत्रित करके मक्खन से वापस जोड़ देते है, कुछ माह बाद यह शिवलिंग ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है !

                                                             Bijli Mahadev Temple History

इस मंदिर में हर साल क्यों गिरती है बिजली , इसके पीछे एक रोचक कथा है ! एक बार कुलान्त नामक दैत्य अजगर का विशाल रूप धारण कर कुल्लू के मथान गाव में आया ! दैत्य रूपी अजगर कुंडली मारकर व्यास नदी के पानी को रोक कर इस जगह को डुबोना चाहता था जिससे यहाँ के सारे जीव-जंतु मारे जाये !

भगवान शिव ने जब कुलान्त के यह इच्छा जानी तो वे उसके निकट आये और कहा की तुम्हारे पुंछ में आग लगी है, यह सुनते ही जब कुलान्त पीछे अपनी पुंछ को देखने मुड़ा ,शिव ने अपने त्रिशूल से उस के सिर पर वार कर दिया !

इस तरह कुलान्त मारा गया और उसका शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया जहाँ उसका शरीर फैला था वहाँ घाटी का निर्माण हुआ | तब भगवान शिव ने इंद्र का आह्वान किया तथा उन्हें इस जगह पर हर साल में बिजली गिराने को कहा !

शिव नही चाहते थे की जब बिजली गिरे तो इससे जन धन को हानि हो अतः शिवजी वहाँ शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए ! जब वहाँ बिजली गिरती है तो शिवजी उसे अपने ऊपर ले लेते है इसलिए यहाँ के लोग भगवान शिव के इस शिवलिंग को बिजली महादेव कहते है !


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हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्तिथ बिजली महादेव। कुल्लू का पूरा इतिहास बिजली महादेव से जुड़ा हुआ है। कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है। - See more at: http://www.ajabgjab.com/2015/02/bijli-mahdev-kullu-history.html#sthash.TdoQkxmU.dpuf
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्तिथ बिजली महादेव। कुल्लू का पूरा इतिहास बिजली महादेव से जुड़ा हुआ है। कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है। - See more at: http://www.ajabgjab.com/2015/02/bijli-mahdev-kullu-history.html#sthash.TdoQkxmU.dpuf
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में स्तिथ बिजली महादेव। कुल्लू का पूरा इतिहास बिजली महादेव से जुड़ा हुआ है। कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है। - See more at: http://www.ajabgjab.com/2015/02/bijli-mahdev-kullu-history.html#sthash.TdoQkxmU.dpuf

Sunday 27 March 2016

How to impress lord Hanuman ji in hindi

                             हनुमानजी की कृपा पाने के सबसे आसान उपाय




यदि आप हनुमानजी के भक्त हैं और समस्याओं से मुक्ति पाना चाहते हैं। तो स्त्री हो या पुरुष दोनों ही कुछ सामान्य नियमों का पालन करते हुए यह उपाय कर सकते हैं।


1. सबसे आसान उपाय हनुमान जी के कृपा पाने का , राम नाम का जप करे। श्रीराम के मंत्रों का जप करने वाले भक्त पर हनुमानजी अति प्रसन्न होते हैं और सदैव कृपा बनाए रखते हैं। हनुमानजी को हर मंगलवार या शनिवार सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित करना चाहिए। सिंदूर बजरंगबली को अति प्रिय है और जो भक्त उन्हें सिंदूर अर्पित करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।


2. हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवी-देवताओं में से एक हैं। हनुमान चालीसा को प्रसन्न करने का पाठ सबसे सरल उपाय है हर रोज या हर मंगलवार और शनिवार को चालीसा का पाठ करना चाहिए। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस के सुंदरकांड का पाठ करने से हनुमानजी बहुत जल्द शुभ फल प्रदान करते हैं।


3. हर मंगलवार या शनिवार के दिन बजरंग बली को बना हुआ बनारसी पान चढ़ाना चाहिए। बनारसी पत्ते का बना हुआ पान चढ़ाने से भी हनुमानजी की कृपा प्राप्त होती है। जो भक्त रामायण या श्रीरामचरित मानस का पाठ करते हैं या इनके दोहे प्रतिदिन पढ़ते हैं तो उन्हें हनुमानजी का विशेष स्नेह प्राप्त होता है।


4. सुन्दर काण्ड , का पाठ यदि हर दिन किया जाए , अगर ना संभव को तो कर मंगलवार एवम शनिवार को किया जाए तो हनुमान जी के कृपा प्राप्त होती हे


5. 1-हनुमान


2-अंजनी सुत

3-वायु पुत्र

4-महाबल

5-रामेष्ट

6- फ़ाल्गुण सखा

7-पिंगाक्ष

8-अमित विक्रम

9-उदधिक्रमण

10-सीता शोक विनायक

11-लक्ष्मण प्राण दाता

12-दशग्रीव दर्पहा


प्रातःकाल सोकर उठते ही उसी अवस्था में इन बारह नामों को 11 बार लेने वाला व्यक्ति दीर्यायु होता है। दोपहर में नाम लेने वाला व्यक्ति धनवान होता है।

संध्या के समय नाम लेने वाला व्यक्ति पारिवारिक सुखों से तृप्त होता है। रात्रि को सोते समय नाम लेने वाला व्यक्ति शत्रु पर विजयी होता है।

उपरोक्त समय के अतिरिक्त इन बारह नामों का निरन्तर जाप करने वाले व्यक्ति की श्री हनुमान जी दसों दिशाओं एवं आकाश-पाताल में भी रक्षा करते हैं।

यात्रा के समय एवं न्यायालय में पड़े विवाद के लिये ये बारह नाम अपना चमत्कार दिखायेगें।

लाल स्याही में मंगलवार को भोज-पत्र पर ये बारह नाम लिखकर मंगलवार के ही दिन ताबीज बांधने से कभी सिर दर्द नहीं होगा। गले या बाजू में ताबें का ताबीज ज्यादा उत्तम है। भोज-पत्र पर लिखने के काम आने वाला पैन या साईन पैन नया होना चाहिये।

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Saturday 26 March 2016

Kidney Stone Home Treatment Tips in Hindi

किडनी स्टोन या पथरी का आसान उपचार है हमारे सनातन धर्म में ! पढ़े ऑर घर पर उपचार करें ! 


गुर्दे की पथरी एक आम बीमारी है जो अक्सर गलत खान पान की वजह से होती है। जरुरत से कम पानी पीने से भी गुर्दे की पथरी का निर्माण होता है। किसी भी रोग का हमारे शरीर में प्रवेश होना अच्छा नहीं होता है, हमारे मन और शरीर दोनों पर रोग का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। हम रोग का सही सें उपचार ना करें तो वह बहुत दुखदाई बन जाते हैं।

पथरी (Stone)  रोग अब आम रोग बन गया है। गलत- खानपान और दिनचर्या इस रोग को पैदा करती है। कई बार किडनी में मौजूद मैग्नीशियम,फास्फेट,कार्बोनेट,कैल्श‍ियम के कारण अपने आप पथरी की समस्या हो जाती है या फिर पानी के कारण भी ऐसा होता है।


लक्षण -


पेशाब में जलन, मूत्र विसर्जन के समय अक्सर पीड़ा का एहसास होना , चक्कर आना, भूख मिटना, पेशाब में बदबू, पेशाब में खून  के अंश का पाया जाना इत्यादि गुर्दे की पथरी होने के कुछ आम लक्षण हैं। जिन महिलाएं को मासिक धर्म के दौरान पेट (उदर)  के निचले भाग में अक्सर दर्द की शिकायत रहती हो उन्हें भी अपनी डाक्टरी जांच अवश्य करवानी चाहिए क्योंकि यह भी गुर्दे की पथरी होने का संकेत हो सकता है।



गुर्दे की पथरी के इलाज के लिए अक्सर लोग कोई ऐसा समाधान चाहते हैं जिसका कोई कुप्रभाव न हो। ऐसा ही एक उपाय है प्राकृतिक उपाय जो गुर्दे की पथरी को दूर करने में बहुत ही कारगर साबित होता है साथ हीं साथ शरीर पर इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता। कुछ ऐसे उपाय, जो पथरी की समस्या से आपको छुटकारा दिला सकते हैं –



1. नींबू और जैतून का तेल- 

                         नींबू के रस में बराबर मात्रा में जैतून का तेल मिलाकर, दिन में दो या तीन बार लेने से पथरी में लाभ होता है। नींबू में मौजूद साइट्रि‍क एसिड पथरी को गलाने में मदद करता है।



2. पुदीना – 

                         पथरी में पुदीने का सेवन बहुत अच्छा होता है। इसमें उपस्थित टेरपेन पथरी को गलाने में सहायक होता है। पुदीने का रस या पुदीने की चाय पीने से लाभ मिलता है।यह पित्त प्रवाह को बेहतर कर, पाचक रसों को उत्तेजित करता है।


3. सेब का सिरका-  
                          यह एक ऐसा उपाय है, जो आपको स्टोन के दर्द से भी तुरंत निजात दिलाता है। प्रतिदिन सेब के सिरके का प्रयोग करने से इसमें पाया जाने वाला मेलिक ऐसिड धीरे-धीरे स्टोन को गला देता है।

4  सलाद –  
                          पथरी की समस्या होने पर सलाद का भरपूर सेवन करना बेहद लाभदायक होता है। इसमें खास तौर से गाजर, खीरा और चुकंदर का प्रयोग काफी अच्छा होता है। शिमला मिर्च खाने से भी पथरी में लाभ होता है।

5.  नींबूपानी – 
                          नींबू के रस में सेंधा नमकर मिलाकर दिन में 3 से 4 बार पीने से हर तरह की पथरी गलकर, शरीर से बाहर निकल जाती है।

6.  नाशपाती व अनार – 
                          नाशपाती का सेवन पथरी में बेहद कारगर है। इसमें पेक्टिन पाया जाता है, जो पथरी को गलाने में मदद करता है। इसके अलावा अनार के एस्ट्रिजेंट गुण पथरी को गलाने में सहायक है।

7.  साबुत अनाज –  
                          पथरी होने पर साबुत भीगे हुए अनाज खाने पर कफी फायदा मिलता है। मूंग, चना, सेब आदि रात को भिगो कर रख दें, और सुबह अंकुरित होने पर खाएं। यह स्वास्थ्य के लिहाज से भी फायदेमंद है।

8.  गेहूं के जवारे –  
                          गेहूं के जवारों को पानी में उबालकर, उस पानी में नींबू का रस मिलाकर पीना पथरी की समस्या में बेहद लाभदायक उपाय है।

9.  प्याज   -  

                         गुर्दे की पथरी के इलाज के लिए प्याज में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। पके हुए प्याज का रस पीने से गुर्दे की पथरी में राहत मिलती है। आप दो मध्यम आकर के प्याज लेकर उन्हें अच्छी तरह से छील लें। अब एक बर्तन में एक गिलास पानी डालकर दोनों प्याज को मध्यम आंच पर पका लें। जब वे अच्छी तरह से पक जाए तो उन्हें ठंडा होने दें। अब इन्हें ग्राइंडर में डालकर अच्छे ग्राइंड कर लें। अब इस रस को छान लें और इसका तीन दिन तक सेवन करें। इसके सेवन से आपको बहुत जल्दी फायदा मिलेगा।

10.  केला - 

                       जिस व्यक्ति को पथरी की समस्या हो उसे खूब केला खाना चाहिए क्योंकि केला विटामिन बी-6 का प्रमुख स्रोत है, जो ऑक्जेलेट क्रिस्टल को बनने से रोकता है व ऑक्जेलिक अम्ल को विखंडित कर देता है। इसके आलावा नारियल पानी का सेवन करें क्योंकि यह प्राकृतिक पोटेशियम युक्त होता है, जो पथरी बनने की प्रक्रिया को रोकता है और इसमें पथरी घुलती है।

11.  करेला -

                     कहने को करेला बहुत कड़वा होता है पर पथरी में यह भी रामबाण साबित होता है। करेले में पथरी न बनने वाले तत्व मैग्नीशियम तथा फॉस्फोरस होते हैं और वह गठिया तथा मधुमेह रोगनाशक है।


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Friday 25 March 2016

Kamakhya Devi temple story in hindi

कामाख्या देवी मंदिर के ये रहस्य जान आपके होश उड़ जाएँगे



यह कामाख्या मंदिर तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करने के लिए प्रसिद्ध है। यहां तारा, धूमवती, भैरवी, कमला, बगलामुखी आदि तंत्र देवियों की मूर्तियां स्थापित हैं।

कामाख्या मंदिर नीलांचल पर्वत के बीचो-बीच स्थित  गुवाहाटी से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर प्रसिद्ध 108 शक्तिपीठों में से एक है।

इस मंदिर को सोलहवीं शताब्दी में नष्ट कर दिया गया था लेकिन बाद में कूच बिहार के राजा नर नारायण ने सत्रहवीं शताब्दी में इसका पुन: निर्माण करवाया था!

माना जाता है कि पिता द्वारा किए जा रहे यज्ञ की अग्नि में कूदकर सती के आत्मदाह करने के बाद जब महादेव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे !

तब भगवान विष्णु ने उनके क्रोध को शांत करने के लिए अपना सुदर्शन चक्र छोड़कर सती के शव के टुकड़े कर दिए थे। उस समय जहां सती की योनि और गर्भ आकर गिरे थे, आज उस स्थान पर कामाख्या मंदिर स्थित है।


इस मंदिर को लेकर एक और कथा चर्चित है। कहा जाता है कि एक बार जब काम के देवता कामदेव ने अपना पुरुषत्व खो दिया था तब इस स्थान पर रखे सती के गर्भ और योनि की सहायता से ही उन्हें अपना पुरुषत्व हासिल हुआ था। 

एक और कथा यह कहती है कि इस स्थान पर ही शिव और पार्वती के बीच प्रेम की शुरुआत हुई थी। संस्कृत भाषा में प्रेम को काम कहा जाता है, जिससे कामाख्या नाम पड़ा।

इस मंदिर के पास मौजूद सीढ़ियां अधूरी हैं, इसके पीछे भी एक कथा मौजूद है। कहा जाता है एक नरका नाम का राक्षस देवी कामाख्या की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे विवाह करना चाहता था। 

परंतु देवी कामाख्या ने उसके सामने एक शर्त रख दी। कामाख्या देवी ने नरका से कहा कि अगर वह एक ही रात में नीलांचल पर्वत से मंदिर तक सीढ़ियां बना पाएगा तो ही वह उससे विवाह करेंगी। 

नरका ने देवी की बात मान ली और सीढ़ियां बनाने लगा। देवी को लगा कि नरका इस कार्य को पूरा कर लेगा इसलिए उन्होंने एक तरकीब निकाली।


उन्होंने एक कौवे को मुर्गा बनाकर उसे भोर से पहले ही बांग देने को कहा। नरका को लगा कि वह शर्त पूरी नहीं कर पाया है, परंतु जब उसे हकीकत का पता चला तो वह उस मुर्गे को मारने दौड़ा और उसकी बलि दे दी। जिस स्थान पर मुर्गे की बलि दी गई उसे कुकुराकता नाम से जाना जाता है। इस मंदिर की सीढ़ियां आज भी अधूरी हैं।


कामाख्या देवी को ‘बहते रक्त की देवी’ भी कहा जाता है, इसके पीछे मान्यता यह है कि यह देवी का एकमात्र ऐसा स्वरूप है जो नियमानुसार प्रतिवर्ष मासिक धर्म के चक्र में आता है। 

सुनकर आपको अटपटा लग सकता है लेकिन कामाख्या देवी के भक्तों का मानना है कि हर साल जून के महीने में कामाख्या देवी रजस्वला होती हैं और उनके बहते रक्त से पूरी ब्रह्मपुत्र नदी का रंग लाल हो जाता है।


इस दौरान तीन दिनों तक यह मंदिर बंद हो जाता है लेकिन मंदिर के आसपास ‘अम्बूवाची पर्व’ मनाया जाता है। इस दौरान देश-विदेश से सैलानियों के साथ तांत्रिक, अघोरी साधु और पुजारी इस मेले में शामिल होने आते हैं। 

शक्ति के उपासक, तांत्रिक और साधक नीलांचल पर्वत की विभिन्न गुफाओं में बैठकर साधना कर सिद्धियां प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।


कामाख्या मंदिर को वाममार्ग साधना के लिए सर्वोच्च पीठ का दर्जा दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी आदि जितने भी महान तंत्र साधक रहे हैं वे सभी इस स्थान पर साधना करते थे, यहीं उन्होंने अपनी साधना पूर्ण की थी।


भक्तों और स्थानीय लोगों का मानना है कि अम्बूवाची पर्व के दौरान कामाख्या देवी के गर्भगृह के दरवाजे अपने आप ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन करना निषेध माना जाता है। 

पौराणिक दस्तावेजों में भी कहा गया है कि इन तीन दिनों में कामाख्या देवी रजस्वला होती हैं और उनकी योनि से रक्त प्रवाहित होता है। 

तंत्र साधनाओं में रजस्वला स्त्री और उसके रक्त का विशेष महत्व होता है इसलिए यह पर्व या कामाख्या देवी के रजस्वला होने का यह समय तंत्र साधकों और अघोरियों के लिए सुनहरा काल होता है।


इस पर्व की शुरुआत से पूर्व गर्भगृह स्थित योनि के आकार में स्थित शिलाखंड, जिसे महामुद्रा कहा जाता है, को सफेद वस्त्र पहनाए जाते हैं, जो पूरी तरह रक्त से भीग जाते हैं। पर्व संपन्न होने के बाद पुजारियों द्वारा यह वस्त्र भक्तों में वितरित कर दिए जाते हैं।


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Wednesday 23 March 2016

Nostradamus Prediction for India in Hindi

नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी भारत और दुनिया के लिए क्या कहती हैं 



ये हम नहीं जानते ,कल हमारे साथ क्या होने वाला है , कल क्या , अगले ही पल हमारे साथ क्या घटित हो सकता है ये हम नहीं जानते। दुनिया भर में भविष्य को जान सकने के अनगिनत तरीके हैं, जो यह दावा करते हैं कि वे सटीक ही हैं। लेकिन क्या आप इन पर विश्वास करते हैं?

परन्तु आज हम जिस शख़्स के बारे में आपको बताने जा रहे हैं उन्होंने अपनी ज़िंदगी में काफी सारी भविष्यवाणियां की। और वह सभी सत्य भी हुईं, यदि उनकी भविष्यवाणी के आधार पर कदम उठाए जाते तो आज ना जाने कितनी ही जानें बच सकती थीं।

ये शख़्स हैं, महान भविष्यवक्ता ‘नास्त्रेदमस’ ! फ्रांस के एक 16वीं (1503-1566) सदी के जाने माने भविष्यवक्ता । एक ज़माने में डॉक्टर एवं शिक्षक भी रह चुके थे। ये प्लेग जैसी बीमारियों का इलाज करते थे।आपको जानकर हैरानी होगी,  नास्त्रेदमस किसी साधारण तरीके से नहीं, बल्कि अपनी कविताओं से भविष्य में होने वाली घटनाओं की ओर इशारा करते थे।

नास्त्रेदमस की सैकड़ों भविष्यवाणियों में से बहुत सी सत्य हो चुकी हैं। दुनिया भर की प्रसिद्ध हस्तियों के साथ-साथ नास्त्रेदमस ने कुछ प्रचलित भारतीय हस्तियों की भी भविष्यवाणी की थी, जो सच भी हुईं। उन्होंने राजीव गांधी की हत्या से लेकर विश्व युद्ध तक की भविष्यवाणी की, और आश्चर्य की बात यह है कि यह सभी भविष्यवाणियां सच हो गईं, लेकिन कैसे?

आखिर नास्त्रेदमस कैसे जान पाते थे आने वाले कल को ? इस बात का खुलासा करने से पहले आज हम यहां आपको नास्त्रेदमस की उन भविष्यवाणियों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो कि सच हुई हैं और उन्होंने पूरी दुनिया को चौंका दिया है।

आश्चर्य की बात है लेकिन नास्त्रेदमस ने कई वर्ष पहले ही यह भविष्यवाणी कर दी थी कि भारत की राजनीति में एक ऐसा शख़्स आएगा जो राजनीति के संदर्भ को हिलाकर रख देगा। और यह भविष्यवाणी नरेंद्र मोदी के लिए ही थी।



नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी के जानकारों का कहना है कि मोदी के शासन में भारत बनेगा विश्व की महाशक्ति। भारत का कायापलट हो जाएगा और दुश्मन राष्ट्रों का वजूद मिट जाएगा।


बेहद अचंभित करने वाली नास्त्रेदमस की यह भविष्यवाणी भी सच हुई थी। उनकी भविष्यवाणी में लिखा गया था कि राजाज्ञा से एक उत्तम वायु चालक अपना पेशा छोड़कर देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हो जाएगा। सात सालों तक ख्याति प्राप्त करने के पश्चात उसका ऐसा अंत होगा, जो रोंगटे खड़े कर देगा।

और हुआ भी कुछ ऐसा ही, राजीव गांधी के सत्ता की कुर्सी पर विराजमान होने के बाद भारत ने अचानक तरक्की की ओर कदम बढ़या। लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने के 7 साल बाद ही वर्ष 1991 में उनकी हत्या हो गई थी।

गांधी परिवार की ही शख़्स इंदिरा गांधी की भविष्यवाणी भी नास्त्रेदमस द्वारा की गई, जिसके अनुसार ‘निष्कासित स्त्री’ फिर सत्तारूढ़ होगी। उसके बैरी उसके विरुद्ध षड़यं‍त्र करेंगे। तीन सालों के अपने यादगार कार्यकाल के बाद सत्तर की आयु के लगभग उसकी मृत्यु होगी।

यदि की गई भविष्यवाणी के आधार पर ऐतिहासिक तथ्यों पर गौर करें तो इंदिरा गांधी की भी साल 1977 के आम चुनाव में पराजय हुई थी और जनता पार्टी की सरकार बनी थी। लेकिन 1980 में प्रधानमंत्री बनने के बाद 67 साल की उम्र में उनकी हत्या कर दी गई थी।

शायद दुनिया का सबसे दुखद हादसा, लेकिन भविष्यवाणी पर गौर किया जाता तो यह हादसा टल सकता था। 9/11 वर्ल्ड ट्रेंड सेंटर पर हुए आंतकी हमले से संबंधित नास्त्रेदमस ने जो भविष्यवाणी की थी, उसके अनुसार पृथ्वी के सेंटर को दो बड़े पत्थर तबाह कर देंगे।


इस भविष्यवाणी में न्यूयॉर्क को न्यू सिटी, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को सेंटर ऑफ द अर्थ और ट्विन टॉवर को टू ग्रेट रॉक्स से जोड़ा गया है। यदि इस भविष्यवाणी का अर्थ समझ लिया जाता तो शायद यह हादसा ना होता। क्योंकि ठीक इसी तरह वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को अपहरणकर्ताओं ने दो प्लेन को हाइजैक कर ट्विन टॉवर में क्रैश करा दिया था।

अगली भविष्यवाणी जो हम आपको बताने जा रहे हैं वह फिलहाल घटी नहीं है, लेकिन जल्द ही घटित हो सकती है। और यदि इस भविष्यवाणी के अनुसार कुछ कदम उठाए जाएं तो शायद कुछ रोकथाम हो सकती है।

इस भविष्यवाणी के अनुसार तीसरे विश्वयुद्ध की भूमिका बननी शुरू हो जाएगी। मिडिल ईस्ट दुनिया की जंग का मैदान बन जाएगा, जहां दुनिया भर की ताकतें अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगी।

यहां विश्व की कट्टर विरोधी ताकतें यथा अमरीका और रूस भी मिलकर एक हो जाएंगे और दुनिया में शांति लाने के लिए आतंकवाद के खिलाफ खड़े हो जाएंगे। यह घटना साल 2015 के अंत में और साल 2016 के शुरू में होने की संभावना है।

इसके अलावा नास्त्रेदमस की एक और भविष्यवाणी के अनुसार वर्ष 2015 अमरीका के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित होगा। इस साल अमरीका को न केवल विश्व की उभरती शक्तियों यथा चीन, रूस और ईरान से चुनौती मिलेगी वरन प्राकृतिक संकटों से भी जूझना पड़ेगा।

अमरीका को इस साल भयावह भूकंप का सामना करना पड़ सकता है। इस भूकंप के फलस्वरूप अमरीका का एक हिस्सा पूरी तरह तबाह हो जाएगा। ज़ाहिर है कि इससे अमरीका को भारी नुकसान होने वाला है, लेकिन देखना यह होगा कि यह भविष्यवाणी कितनी सच होती है।

अमरीका के अलावा नास्त्रेदमस की एक अन्य भविष्यवाणी में यूरोप के लिए भी बुरी खबर है, जिसके अनुसार आने वाले समय में यह देश आर्थिक संकट में घिर जाएगा। फ्रांस, जर्मनी सहित कई बड़े यूरोपियन राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ जाएगी। देखना यह होगा कि इतने बड़े देशों की यह समस्या अन्य देशों पर कितनी असरदार होती है।


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Tuesday 22 March 2016

Battle of Saragarhi 21 Sikhs warriors story in hindi

अगर आप को इसके बारे मेँ नहीं पता तो आप भारत के इतिहास से बेखबर है



आपने ग्रीक सपार्टा और परसियन की लड़ाई के बारे मेँ सुना होगा ! इनके ऊपर "300" जैसी फिल्म भी बनी है, पर अगर आप "सारागढ़ी" के बारे मेँ पढोगे तो पता चलेगा इससे महान लड़ाई सिख लैँड मेँ हुई थी !

सन 1897, नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर स्टेट मेँ 10 हजार अफगानोँ ने हमला कर दिया ! वे गुलिस्तान और लोखार्ट के किलोँ पर कब्जा करना चाहते थे ! इन किलोँ को महाराजा रणजीत सिँघ ने बनवाया था ! इन किलोँ के पास सारागढी मेँ एक सुरक्षा चौकी थी ! जंहा पर 36 वीँ सिख रेजिमेँट के 21 जवान तैनात थे !


ये सभी जवान माझा क्षेत्र के थे और सभी सिख थे ! 36 वीँ सिख रेजिमेँट मेँ केवल साबत सूरत (जो केशधारी हों) सिख भर्ती किये जाते थे  ! ईशर सिँह के नेतृत्व मेँ तैनात इन 20 जवानोँ को पहले ही पता चल गया कि 10 हजार अफगानोँ से जिँदा बचना नामुमकिन  है!

फिर भी इन जवानोँ ने लड़ने का फैसला लिया और 12 सितम्बर 1897 को सिखलैँड की धरती पर एक ऐसी लड़ाई हुयी जो दुनिया की पांच महानतम लड़ाइयोँ मेँ शामिल हो गयी ! जहाँ एक तरफ 10 हजार अफगान थे
तो दूसरी तरफ 21 सिख !



यंहा बड़ी भीषण लड़ाई हुयी और 600-1400 अफगान मारे गये और अफगानोँ की भारी तबाही हुयी ! सिख जवान आखिरी सांस तक लड़े और महाराजा रणजीत सिँघ के इन किलोँ को बचा लिया  और अफगानोँ की हार हुयी जब ये खबर यूरोप पंहुची तो पूरी दुनिया स्तब्ध रह गयी !

ब्रिटेन की संसद मेँ सभी ने खड़ा होकर इन 21 सिख वीरोँ की बहादुरी को सलाम किया  ! इन सभी 21 सिख वीरोँ को मरणोपरांत इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट दिया गया 1 जो आज के परमवीर चक्र के बराबर था !


भारत के सैन्य इतिहास का ये युद्ध के दौरान सैनिकोँ द्वारा लिया गया सबसे विचित्र अंतिम फैसला था ! UNESCO ने इस लड़ाई को अपनी 8 महानतम लड़ाइयोँ मेँ शामिल किया   है! इस लड़ाई के आगे ग्रीक सपार्टा की बहादुरी फीकी पड़ गयी  !

पर दुख होता है कि जो बात हर भारतीय को पता होनी चाहिए  उसके बारे मेँ कम लोग ही जानते है ! ये लड़ाई यूरोप के स्कूलो मेँ पढाई जाती है पर हमारे यहा जानते तक नहीँ !!


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Sunday 20 March 2016

Why Do We Pour Water on Shivling in hindi

सूर्य और शिवलिंग को जल चढ़ाने के पीछे छिपा है गहरा विज्ञान



आप देखेंगे कि कई ऐसी मान्यताएं केवल परंपरा के नाम पर निभाई जाती हैं किंतु यदि उनकी गहराई से छानबीन की जाए तो उनके पीछे छिपी वैज्ञानिकता को समझा जा सकता है।

हमारी लगभग सारी धार्मिक मान्यताएं कहीं न कहीं किसी साइंटिफ़िक रीजन की वजह से बनी हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि सूर्यदेव या शिवलिंग को जल चढ़ाने के पीछे प्योर साइंटिफ़िक रीजन हैं.

हम सूर्य को जल देने की बात करें तो इसके पीछे छिपा है रंगों का विज्ञान। हमारी बॉडी में रंगों का बैलेंस बिगड़ने से कई रोगों के शिकार होने का खतरा होता है। मॉर्निंग में सूर्यदेव को जल चढ़ाने से शरीर में ये रंग संतुलित हो जाते हैं, जिससे बॉडी में रज़िस्टेंस भी बढ़ता है। 


इसके अलावा सूर्य नमस्कार की योगमुद्रा से कॉंसंट्रेशन भी बढ़ता है और रीढ़ की हड्डी में आई प्रॉब्लम सहित कई बीमारियां अपने आप दूर हो जाती हैं। इससे आंखों की समस्या भी दूर होती है। इसके अलावा रेग्यूलर जल चढ़ाने से नेचर का बैलेंस भी बना रहता है क्योंकि यही जल, वेपोरेट होकर सही समय पर बारिश में योगदान देता है।



अगर हम सूर्यदेव को जल चढ़ाने की पूरी क्रियाविधि को ध्यान से देखें तो हमें कुछ बातें स्पष्ट होंगी। ताम्र पात्र में जल भरकर सूर्योदय के पश्चात सूर्य नमस्कार की विशिष्ट योग मुद्रा में जल की धार सिर से चार इंच ऊपर से स्लो मोशन में गिराते हुए जल की धार में से ही सूर्य की प्रकाश रश्मियों को एकाग्रता से देखा जाता है।


इसका लाभ ये है कि आंखों व शरीर को एंटी बैटीरियल डोज मिलने के साथ तरावट भी मिलती है और लंबी अवधि तक उनमें समस्या नहीं उत्पन्न होती। सूर्य नमस्कार की मुद्रा की अगर बात करें तो ये भी अपने आप में कई रोगों का इलाज़ है। इससे मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ने के साथ शारीरिक संतुलन सधता है और रीढ़ की हड्डियों मं विकार नहीं उत्पन्न होते।

अगर हम कुछ और गहराई में उतरें तो हमें पता चलेगा कि रंगों का ये विज्ञान ज्योतिष शास्त्र व रत्न विज्ञान के साथ कहीं अधिक जुड़ता है। रंगों के आधार पर ही रत्नों का चयन किया जाता है, जो अपने-अपने विशेष स्पेक्ट्रम और तरंग दैर्ध्य के अनुसार विशेष ग्रहों को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं। किसी भी ग्रह की निगेटिव एनर्जी को विशेष रंग के प्रयोग से परावर्तित या अपवर्तित किया जा सकता है।

अब हम बात करते हैं शिवलिंग पर जल सहित, भांग, धतूरा, बेलपत्र आदि चढ़ाने की। आपको जानकर हैरानी होगी कि शिवलिंग खुद में न्यूक्लियर रिएक्टर का सबसे बड़ा सिम्बल है। इसकी पौराणिक कथा तो ब्रह्मा और विष्णु के बीच एक शर्त से जुड़ी है। शिवलिंग ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधि है। जितने भी ज्योतिर्लिंग हैं, उनके आसपास सर्वाधिक न्यूक्लियर सक्रियता पाई जाती है।

यही कारण है कि शिवलिंग की तप्तता को शांत रखने के लिए उन पर जल सहित बेलपत्र, धतूरा जैसे रेडियो धर्मिता को अवशोषित करने वाले पदार्थों को चढ़ाया जाता है।


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Thursday 17 March 2016

पाताल भुवनेश्वर एक रहस्यमी गुफा

पाताल भुवनेश्वर गुफा में दुनिया के समाप्त होने का रहस्य छुपा  है




सनातन पथ ब्लॉग आज आपको एक ऎसी गुफा के बारे में बता रहा है जो उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में गंगोलीहाट कस्बे में है, यह एक रहस्यमयी गुफा है। इस गुफा से ऎसी  मान्यताएं जु़डी हैं, जिनका उल्लेख पुराणों में भी किया गया है। गुफा के बारे में बताया जाता है कि इसमें दुनिया के समाप्त होने का भी रहस्य छुपा है। इस गुफा को पाताल भुवनेश्वर के नाम से जाना जाता है।

पाताल भुवनेश्वर गुफा के बारे में कहा जाता है कि पाण्डवों ने इस गुफा के पास तपस्या की थी। काफी समय तक लोगों की नजरों से दूर रही  इस रहस्यमयी गुफा की खोज आदिशंकराचार्य ने की थी।

गुफा के अंदर -

 1 : - गणेश जी का सिर जो उस कथा की याद दिलाता है, जब भगवान शिव ने गणेश जी का सिर काट दिया था।

 2 : - इस गुफा में चार खंभा है जो चार युगों अर्थात सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग को दर्शाते हैं। इनमें पहले तीन आकारों में कोई परिवर्तन नही होता। कलियुग का खंभा लम्बाई में अधिक है और इसके ऊपर छत से एक पिंड नीचे लटक रहा है, मान्यता के कथानुसार 7 करोड़ वर्षों में पिंड की लम्बाई 1 ईच बढ़ती है और दोनों पिंडो के मिल जाने पर कलियुग समाप्त हो जायेगा।

 3 : - भारत का प्राचीन स्कन्द पुराण ग्रन्थ और टटोलिये मानस खण्ड के 103वें अध्याय के 273 से 288 तक के श्लोकों में इसका वर्णन मिलता है। ग्रन्थ में गुफ़ा का वर्णन पढ़ कर उपरोक्त मूर्तियां साक्षात जागृत हो जाएंगी।

स्कन्द पुराण मानसखंड 103/10-11  : -

शृण्यवन्तु मनयः सर्वे पापहरं नणाभ्‌ स्मराणत्‌ स्पर्च्चनादेव
पूजनात्‌ किं ब्रवीम्यहम्‌ सरयू रामयोर्मध्ये पातालभुवनेश्‍वर !!

अर्थ : -

ऐसे स्थान का वर्णन करता हूं जिसका पूजन करने के सम्बन्ध में तो कहना ही क्या, जिसका स्मरण और स्पर्श मात्र करने से ही सब पाप नष्ट हो जाते हैं वह सरयू, रामगंगा के मध्य पाताल भुवनेश्‍वर है -  वेद व्यास

पाताल भुवनेश्वर गुफा के बारे में कहा जाता है कि इसमें भगवान शिव का निवास है। सभी देवी-देवता इस गुफा में आकर भगवान शिव की पूजा करते हैं।

4 :- गुफा के अंदर जाने पर संकरे रास्ते से जमीन के अंदर आठ से दस फीट नीचे जाने पर गुफा की दीवारों पर कई ऎसी आकृतियां नजर आने लगती हैं जिसे देखकर आप हैरान रह जाएंगे। यह आकृति एक हंस की है जिसके बारे में यह माना जाता है कि यह ब्रह्मा जी का हंस है।

5 : - गुफा के अंदर हवन कुंड है। इस हवन कुंड के बारे में कहा जाता है कि इसमें जनमेजय ने नाग यज्ञ किया था जिसमें सभी सांप भष्म हो गए थे। केवल तक्षक नाग ही बच गया जिसने राजा परीक्षित को काटा था। कुंड के पास एक सांप की आकृति जिसे तक्षक नाग कहा जाता है।

6 :- पाताल भुवनेश्वर गुफा में एक साथ चार धामों के दर्शन किए जा सकते हैं । ऎसी मान्यता है कि इस गुफा में एक साथ केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ के दर्शन होते हैं। इसे दुर्लभ दर्शन माना जाता है जो किसी अन्य तीर्थ में संभव नहीं होता।

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Friday 4 March 2016

भगवान कल्कि कब कहां और कैसे लेंगे अवतार

            भगवान कल्कि कब कहां और कैसे लेंगे अवतार 





‘‘ यदा यदा हिधर्मस्य ग्लार्निभवति भारतः
अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम,
परित्राणय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्, धर्म
संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।’’     ....................{भागवत पुराण (स्कंध 12, अध्याय 2)}




पौराणिक मान्यता के अनुसार जब धरती पर पाप की सीमा बढ़ जाएगी तब दुष्टो के विनाश के लिए भगवान कल्कि का अवतार होगा जो विष्णु जी के अवतारों में से एक है । जब लोग धर्म का अनुसरण करना छोड़ देंगे तब ये अवतार होगा ।

कल्कि को विष्णु का भावी और अंतिम अवतार माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार पृथ्वी पर पाप की सीमा पार होने लगेगी तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार प्रकट होगा। भागवत पुराण में कल्कि अवतार की कथा है।

कथा के अनुसार सम्भल ग्राम में कल्कि का जन्म होगा। अपने माता पिता की पांचवीं संतान कल्कि यथा समय देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर तलवार से दुष्टों का संहार करेंगे। तब सतयुग का प्रारंभ होगा। कल्कि अवतार का स्वरूप और आख्यानों पर अक्सर चर्चा हुई है।

इस अभिव्यक्ति की सघनता और विरलता के अनुसार ही अवतारी शक्तियों के स्तर या कलाएं तय की जाती है। बुद्ध से पहले कृष्ण को सोलह कलाओं का अवतार माना गया। सभी अवतारों नें अपनी तरह से दुष्टों का और उनकी दुष्टता का दलन किया। अब जिस अवतार का इंतजार किया जा रहा है, वह निष्कलंक होगा। कला, कांति, शौर्य और दैवी गुणों में उत्कट।

भागवत में कल्कि का संक्षिप्त विवरण है। उनके चरित और जीवन का विशद वर्णन ‘भागवत पुराण’ में है। अध्येताओं के अनुसार भागवत और कल्किपुराण में अंतिम अवतार के बारे में जो उल्लेख किए गए हैं, वे आलंकारिक हैं।

पुराण के अनुसार कल्कि के पिता का नाम विष्णुयश और माता का नाम सुमति होगा। पिता विष्णुयश का अर्थ हुआ, जो सर्वव्यापक परमात्मा की स्तुति करता लोक हितैषी है। सुमति का अर्थ है अच्छे विचार रखने और वेद, पुराण और विद्याओं को जानने वाली महिला।

कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। भगवान का स्वरूप दिव्य होता है। दिव्य अर्थात दैवीय गुणों से संपन्न। वे श्वेत अश्व पर सवार हैं। भगवान का रंग गोरा है, परन्तु क्रोध में काला भी हो जाता है। वे पीले वस्त्र धारण किए हैं।

प्रभु के हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि है। स्वयं उनका मुख पूर्व की ओर है तथा अश्व दक्षिण में देखता प्रतीत होता है। यह चित्रण कल्कि की सक्रियता और गति की ओर संकेत करता है। युद्ध के समय उनके हाथों में दो तलवारें होती हैं।

कल्कि के इस स्वरूप की विवेचना में कहा है कि कल्कि सफेद रंग के घोड़े पर सवार हो कर आततायियों पर प्रहार करते हैं। इसका अर्थ उनके आक्रमण में शांति (श्वेत रंग), शक्ति (अश्व) और परिष्कार (युद्ध) लगे हुए हैं। तलवार और धनुष को हथियारों के रूप में उपयोग करने का अर्थ है कि आसपास की और दूरगामी दोनों तरह की दुष्ट प्रवृत्तियों का निवारण।

कल्कि की यह रणनीति समाज के विचारों, मान्यताओँ और गतिविधियों की दिशाधारा में बदलाव का प्रतीक ही है। इस बार अवतार असुरों या दुष्टों के संहार के बजाय उनके मन मानस को अपने विधान से बदलने की नीति पर आमादा है। 

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Wednesday 2 March 2016

8 immortals according to hindu mythology in hindi

ये आठ लोग जो अमर हैं और आज भी इस दुनिया मैं मौजूद हैं 




ये हैं वो आठ महापुरुष को आज भी जीवित हैं और अमर हैं -


1.भगवान हनुमान – अंजनी पुत्र हनुमान जी को अजर और अमर रहने के वरदान मिला है तथा इन की मौजूदगी रामायण और महाभारत दोनों जगह पर पाई गई है.रामायण में हनुमान जी ने प्रभु राम की सीता माता को रावण के कैद से छुड़वाने में मदद की थी और महाभारत में उन्होंने भीम के घमंड को तोडा था. सीता माता ने हनुमान को अशोक वाटिका में राम का संदेश सुनाने पर वरदान दिया था की वे सदेव अजर-अमर रहेंगे. अजर-अमर का अर्थ है की उनकी कभी मृत्यु नही होगी और नही वे कभी बूढ़े होंगे. माना जाता है की हनुमान जी इस धरती पर आज भी विचरण करते है.



2.अश्वत्थामा – अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचर्य के पुत्र है तथा उनके मष्तक में अमरमणि विध्यमान है. अश्वत्थामा ने सोते हुए पांडवो के पुत्रो की हत्या करी थी जिस कारण भगवान कृष्ण ने उन्हें कालांतर तक अपने पापो के प्रायश्चित के लिए इस धरती में ही भटकने का श्राप दिया था. हरियाणा के करुक्षेत्र और अन्य तीर्थ में उनके दिखाई दिए जाने के दावे किये जाते है तथा मध्यप्रदेश के बुराहनपुर में उनके दिखाई दिए जाने की घटना प्रचलित है.



3.ऋषि मार्कण्डेय – ऋषि मार्कण्डेय भगवान शिव के परम भक्त है. उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपश्या द्वारा महामृत्युंजय तप को सिद्ध कर मृत्यु पर विजयी पा ली और चिरंजीवी हो गए.




4.भगवान परशुराम -परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते है. परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि और माता का नाम रेणुका था. परशुराम ने 21 बार इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन किया था. परशुराम का पहले नाम राम था परन्तु इस शिव के परम भक्त थे. उनकी कठोर तपश्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें एक फरसा दिया जिस कारण उनका नाम परशुराम पड़ा.



5.कृपाचार्य -कृपाचार्य शरद्वान गौतम के पुत्र है. वन में शिकार खेलते हुए शांतून को दो शिशु मिले जिनका नाम उन्होंने कृपि और कृप रखा तथा उनका पालन पोषण किया. कृपाचार्य कौरवो के कुलगुरु तथा अश्वत्थामा के मामा है. उन्होंने महाभारत के युद्ध में कौरवो को साथ दिया.

6.विभीषण – विभीषण ने भगवान राम की महिमा जान कर युद्ध में अपने भाई रावण का साथ छोड़ प्रभु राम का साथ दिया. राम ने विभीषण को अजर-अमर रहने का वरदान दिया था.




7.वेद व्यास – ऋषि व्यास ने महाभारत जैसे प्रसिद्ध काव्य की रचना करी है. उनके द्वारा समस्त वेदो एवं पुराणो की रचना हुई. वेद व्यास, ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र है. ऋषि वेदव्यास भी अष्टचिरंजीवियो में सम्लित है.



8.राजा बलि – राजा बलि को महादानी के रूप में जाना जाता है. उन्होंने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया अतः भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल का राजा बनाया और अमरता का वरदान दिया. राजा बलि प्रह्लाद के वंशज है.



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