Tuesday 28 June 2016

Swimming Lessons for kids on youtube

How To Dive Correctly Into The River !!


Watch Indian Kids Talent At Narmada River and learn, How To Learn Swimming Faster . This Swimming video shows The Best dive into water.



Backflip video youtube ( How to make a backflip in the water)

This video shows backflip competition in the river . These water diver kids showing backflip tricks in water .If you want to learn all steps of water diving and backflip , watch and try all these steps of back flip in the water .



The Best Water Diving Tricks (Best diving board tricks)



Narmada the holy river of India ,Near River Narmada , These kids are "The best water divers in the world" . This video showsue us "THE MOST AMAZING WATER DIVING KIDS" . These Kids are "The best swimmer kids in the world" . In this video these kids are teaching , How to jump in water without holding nose . hats off to these swimmer kids to teach us water safety jump .








Friday 6 May 2016

Bull with big horns in India at Mahakal city Ujjain

नंदी भगवान आज भी हैं इस अनोखे बैल के रूप में महाकाल की नगरी में, जानें अभी


                                                                  Nandi Bull at Ujjain city

मध्यप्रदेश के उज्जैन में शिप्रा के तट के निकट भगवान शिव ‘महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग’ के रूप में विराजमान हैं। उज्जैन मे महाकाल मंदिर के पास एक विशाल बैल दिखाई देता है। इस बैल के सिंग अति विशाल और दुर्लब हैं, यह बैल दिखने मे तो डरावना लगता है किंतु यह बड़ा ही शांत है. लोग इस बैल को नंदी भगवान का रूप समझ कर पूझते है और लोग इस नंदी देव को अपने हांतों से रोटी भी खिलाते हैं ।


                                                                    Biggest Bull in India

उज्जैन  के लोगो से पता चला की ये नंदी बैल बहुत समय से महाकाल मंदिर के पास है पहले ये और तगड़ा हुआ करता था पर अब कमज़ोर दिखाई देने लगा है । अब आप सोचिए की पहले ये और तगड़ा था तो कैसा दिखता होगा। तो जब आप उज्जैन जाएँ तो महाकाल मंदिर के बाहर या आस-पास साक्षात नंदी बैल के दर्शन करना ना भूलें। आप इस अदभुत बैल या ये कहें की आज के इस नंदी बैल को रोटी खिला कर आशीर्वाद भी पा सकते हैं ।

Nandi bull video -

https://www.youtube.com/watch?v=P5HIxdcpal0












Sunday 24 April 2016

Black Orlov Diamond Is Eye of Brahma in Hindi

ब्लैक ओर्लोव डायमंड कहलाने वाला ये हीरा भगवान ब्रह्मा की आंख कहा जाता है , जो चोरी हो विदेश गया 


                                                             Black Orlov Diamond Curse

ब्लैक ओर्लोव डायमंड दुनिया भर में ऐसे कई गहने एवं रत्न में से हैं, जो मनुष्य के लिए श्राप के समान हैं। इन सभी रत्नों में से एक है ‘भगवान ब्रह्मा की आंख’ कहलाने वाला ब्लैक ओर्लोव डायमंड।

कहते हैं ये हीरा पुडुचेरी के एक मंदिर से चोरी हुआ था, जहां इसे ब्रह्मा जी की मूर्ति से निकाला गया।इसे ब्रह्मा की तीसरी आंख के रूप में मूर्ति में लगाया गया था।

यही कारण है कि इसे ब्रह्मा की आंख कहा जाता है। मंदिर से हीरे को चुराने के बाद चोरों ने इसे किसी तरह से यूरोप पहुंचा दिया ।

इसे कई लोगों ने अपने पास रखा, लेकिन जिसके पास भी यह हीरा गया वह उसे लंबे समय तक नहीं रख सका। क्योंकि इस हीरे को जो भी अपने पास रखता, उसकी अकाल मौत हो जाती थी।

इस हीरे को अपने पास सबसे पहले 1932 में जे डब्ल्यू पेरिस ने किसी अमेरिकी व्यक्ति से खरीदा था। उसने इस हीरे को अपने पास काफी समय तक रखा लेकिन एक दिन खबर आई कि उसने न्यूयॉर्क की एक बिल्डिंग से कूदकर आत्महत्या कर ली।

इसके बाद रूस की राजकुमारियों लिओनिला गैलिस्टाइन और नादिया वाइजिन ओर्लो ने भी इसे खरीदा था। और उन दोनों ने भी वर्ष 1940 में एक ऊंची बिल्डिंग से कूदकर जान दे दी। दोनों राजकुमारियों का हीरे से संबंध होने के कारण ही इसका नाम ब्लैक ओर्लोव पड़ा।

इसके बाद इसे चार्ल्स एफ. विंसन ने खरीदा और इस हीरे का खौफनाक असर कम करने के लिए इसे तीन हिस्सों में कटवाकर तरशवाया। इसके बाद उन्होंने इसे 108 हीरों के गुच्छों के साथ हार में जड़वा दिया।

बाद में इसे 2004 में अमेरिका से पेंसिलवेनिया के हीरा व्यापारी डेनिस पेट्मिजास ने खरीद लिया। उसने इस हीरे को कई प्रदर्शनियों का हिस्सा भी बनाया। कहते हैं आज भी यह हीरा बेहद भयानक असर देता है इसलिए कोई भी इसे बिना दस्ताने पहने हाथ नहीं लगाता।









Friday 22 April 2016

cursed diamonds in history in hindi

भारत से चोरी किए गये ये सभी बेशक़ीमती हीरे हर बार विनाशकारी साबित होते हैं !


                                                             cursed diamonds in history

कभी सोचा है कि जो हीरा किसी की खूबसूरती को उभारने के लिए धारण किए जाता हैं, वही हीरा उसके लिए अभिशाप भी बन सकते हैं , केवल एक हार किसी की जान ले सकता है यह बेहद अचंभित करने वाली बात है। लेकिन यह महज मनगढ़ंत कहानियां नहीं हैं।

कोहिनूर हीरा - 

कोहिनूर हीरा एक समय पर भारत की शान हुआ करता था जिसे अंग्रेज भारत से दूर लंदन ले गए थे। लेकिन इसके पीछे की कहानी बहुत कम लोग जानते हैं।

दरअसल कोहिनूर अपनी सुंदरता के साथ-साथ व्यक्ति का बुरा नसीब एवं मौत भी लेकर आता है। यह हीरा उसे धारण करने वाले को धीरे-धीरे बर्बाद करके मौत के अंधेरे तक ले जाता है। 

वर्तमान आंध्र-प्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित एक खदान में से यह बेशकीमती हीरा खोजा गया था। लेकिन बाबरनामा में उल्लेखित वर्णन के मुताबिक यह हीरा सबसे पहले सन 1294 में ग्वालियर के एक अनाम राजा के पास देखा गया था।

कहा जाता है कि यह हीरा जिस भी पुरुष राजा के पास रहता, उसके लिए श्राप बन जाता। एक-एक करके इस हीरे ने अनेकों राजा-महाराजाओं के शासन को बर्बाद किया। आखिरी बार यह हीरा पंजाब के राजा रणजीत सिंह के पास पाया गया था।

इसे धारण करने के कुछ ही समय बाद राजा की मृत्यु हो गई। इसका असर इतना गहरा था कि राजा की मृत्यु के बाद उसके पुत्र गद्दी पर बैठ ना सके। 

बाद में यह हीरा अंग्रेजों के हाथ लग गया। तब तक अंग्रेज समझ चुके थे कि यदि यह हीरा किसी पुरुष द्वारा धारण किया जाए तो श्रापित साबित होता है। 

इसीलिए 1936 में इस हीरे को किंग जॉर्ज षष्टम की पत्नी क्वीन एलिजाबेथ के क्राउन में जड़वा दिया गया और तब से लेकर अब तक यह हीरा ब्रिटिश राजघराने की महिलाओं के ही सिर की शोभा बढ़ा रहा है। यही कारण है कि आज यह भारतीय हीरा अपने देश से मीलों दूर विदेशी देश की शान बढ़ा रहा है।

दिल्ली पर्पल सैफायर - 

द दिल्ली पर्पल सैफायर नाम से मशहूर यह हीरा आज से वर्षों पहले 1857 के विद्रोह के समय इंद्र के एक मंदिर से चुराया गया था। 

हीरा मंदिर से चुरा तो लिया गया लेकिन भगवान इंद्र का प्रकोप इस हीरे पर है, यह कोई नहीं जानता था। कहते हैं यह हीरा एक घुड़सवार कर्नल डब्ल्यू फेरिस द्वारा लंदन ले जाया गया था। 

यह हीरा उसे कैसे मिला यह कोई नहीं जानता। इसके बाद यह हीरा एडवर्ड नामक एक लेखक के पास पहुंच गया। कहते हैं कि कुछ ही समय में हीरे ने एडवर्ड की ज़िंदगी पर असर दिखाया और वह दिवालिया हो गया।

बाद में एडवर्ड ने इस हीरे को सात तरह के डिब्बों में विभिन्न चीजों से घेर कर हमेशा के लिए बंद कर दिया और उस पर लिख दिया ‘जो भी इस हीरे को खोलेगा, वह इसे खोलने से पहले यह चेतावनी जरूर पढ़ ले। 

मेरी इस डिब्बे को खोलने वाले को एक ही सलाह है कि कृपया हीरे को बाहर निकालने के बाद समुद्र में फेंक दे’। आज के समय में यह हीरा लंदन के ‘नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम’ में प्रदर्शित किया गया है।

होप डायमंड -

श्रापित हीरों की कतार में होप डायमंड का नाम भी काफी मशहूर है। होप डायमंड नाम का यह खूबसूरत हीरा 45 कैरेट का है और अपने आप में अदभुत है।

कहते हैं यह हीरा आंध्र प्रदेश के ही गोलकुंडा खानों में पाया गया था। यह हीरा श्रीराम की पत्नी मां सीता की मूर्ति की आंख से चुराया गया था। कहते हैं कि इस हीरे को भी एक श्राप ने घेर रखा है।

यह हीरा जिस भी राजा के पास गया, इसने उसे बर्बाद कर के रख दिया। इस हीरे को धारण करने वाला शख्स दुर्घटना का शिकार हो जाता है। फिलहाल यह हीरा स्मिथसोनियन संग्रहालय में है।

ब्लैक ओर्लोव डायमंड - 

दुनिया भर में ऐसे कई गहने एवं रत्न हैं, जो मनुष्य के लिए श्राप के समान हैं। इन सभी रत्नों में से एक है ‘भगवान ब्रह्मा की आंख’ कहलाने वाला ब्लैक ओर्लोव डायमंड। 

कहते हैं ये हीरा पुडुचेरी के एक मंदिर से चोरी हुआ था, जहां इसे ब्रह्मा जी की मूर्ति से निकाला गया।इसे ब्रह्मा की तीसरी आंख के रूप में मूर्ति में लगाया गया था। 

यही कारण है कि इसे ब्रह्मा की आंख कहा जाता है। मंदिर से हीरे को चुराने के बाद चोरों ने इसे किसी तरह से यूरोप पहुंचा दिया । 

इसे कई लोगों ने अपने पास रखा, लेकिन जिसके पास भी यह हीरा गया वह उसे लंबे समय तक नहीं रख सका। क्योंकि इस हीरे को जो भी अपने पास रखता, उसकी अकाल मौत हो जाती थी। 

इस हीरे को अपने पास सबसे पहले 1932 में जे डब्ल्यू पेरिस ने किसी अमेरिकी व्यक्ति से खरीदा था। उसने इस हीरे को अपने पास काफी समय तक रखा लेकिन एक दिन खबर आई कि उसने न्यूयॉर्क की एक बिल्डिंग से कूदकर आत्महत्या कर ली।

इसके बाद रूस की राजकुमारियों लिओनिला गैलिस्टाइन और नादिया वाइजिन ओर्लो ने भी इसे खरीदा था। और उन दोनों ने भी वर्ष 1940 में एक ऊंची बिल्डिंग से कूदकर जान दे दी। दोनों राजकुमारियों का हीरे से संबंध होने के कारण ही इसका नाम ब्लैक ओर्लोव पड़ा।

इसके बाद इसे चार्ल्स एफ. विंसन ने खरीदा और इस हीरे का खौफनाक असर कम करने के लिए इसे तीन हिस्सों में कटवाकर तरशवाया। इसके बाद उन्होंने इसे 108 हीरों के गुच्छों के साथ हार में जड़वा दिया। 

बाद में इसे 2004 में अमेरिका से पेंसिलवेनिया के हीरा व्यापारी डेनिस पेट्मिजास ने खरीद लिया। उसने इस हीरे को कई प्रदर्शनियों का हिस्सा भी बनाया। कहते हैं आज भी यह हीरा बेहद भयानक असर देता है इसलिए कोई भी इसे बिना दस्ताने पहने हाथ नहीं लगाता।









Tuesday 19 April 2016

why we put sindoor on hanuman ji

हनुमान जी को क्यों चढ़ाते हैं सिन्दूर का चोला ? इसके पीछे का कारण जानें अभी !



हिन्दू धर्म में सिन्दूर के महत्त्व से भला कौन परिचित नहीं है ? एक विवाहित स्त्री के लिए सिन्दूर न केवल उसके विवाहित होने का प्रमाण है बल्कि एक प्रकार से गहना है । पूजा-पाठ में भी सिन्दूर की ख़ास एहमियत है। 
जहाँ अक्सर सभी देवी-देवताओं को सिन्दूर का तिलक लगाया जाता है, हनुमान जी को सिन्दूर का चोला चढ़ाया जाता है । इसके पीछे एक कारण है जिसका वर्णन रामचरितमानस में है ।

चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके जब श्री राम, सीता और लक्ष्मण के साथ वापस अयोध्या आए तो एक दिन हनुमान ने माता सीता को अपनी मांग में सिन्दूर लगाते देखा । 

एक वानर के लिए ये कुछ अजब सी चीज़ थी तो उन्होंने माता सीता से सिन्दूर के बारे में पूछा । माता सीता ने कहा कि सिन्दूर लगाने से उन्हें श्री राम का स्नेह प्राप्त होगा और इस तरह ये सौभाग्य का प्रतीक है । 

अब हनुमान तो ठहरे राम भक्त और ऊपर से अत्यंत भोले, तो उन्होंने अपने पूरे शरीर को सिन्दूर से रंग लिया यह सोचकर कि यदि वे सिर्फ माँग नहीं बल्कि पूरे शरीर पर सिन्दूर लगा लेंगे तो उन्हें भगवान् राम का ख़ूब प्रेम प्राप्त होगा और उनके स्वामी कि उम्र भी लम्बी होगी । 

हनुमान इसी अवस्था में सभा में चले गए । श्री राम ने जब हनुमान को सिन्दूर से रंगा देखा तो उन्होंने हनुमान से इसका कारण पूछा । हनुमान ने भी बेझिझक कह दिया कि उन्होंने ये सिर्फ भगवान् राम का स्नेह प्राप्त करने के लिए किया था । 

उस वक्त राम इतने प्रसन्न हुए कि हनुमान को गले लगा लिया। बस तभी से हनुमान को प्रसन्न करने के लिए उनकी मूरत को सिन्दूर से रंगा जाता है । इससे हनुमान का तेज और बढ़ जाता है और भक्तों में आस्था बढ़ जाती है ।



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Thursday 14 April 2016

Peepal Tree Health Benefits in Hindi

पीपल के पेड़ के औषधीय गुण और उपयोग, जाने अभी!

                                                                   Peepal Tree Benefits

पीपल का पेड़ औषधि का खजाना माना गया है। इस खजाने में हमारे शरीर को निरोग बनाने की कई प्राकृतिक नुस्खे मौजूद हैं। पीपल वृक्ष भारतीय उपमहाद्वीप के मूल निवासी है। यह भी रूप में अच्छी तरह से तिब्बत और चीन में देखा जा सकता है।

यह 30 मीटर की दूरी पर ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है, जो एक बड़े सदाबहार पेड़ है। पेड़ के तने व्यास में ऊपर से 3 मीटर की दूरी पर हो सकता है। पत्तियों हृदयाकार के हैं और फल 1 सेमी, जो छोटे अंजीर हैं।

पीपल का पेड़ भगवान विष्णु को समर्पित है और हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे पवित्र वृक्ष है। पीपल के कई औषधीय गुण है और यह विभिन्न संक्रमण, घावों के उपचार के इलाज के प्रजनन क्षमता में सुधार और विषाक्तता के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है।

पीपल पेड़ भारत में पूजा जाता है। आयुर्वेद में पीपल का हर भाग जैसे तना, पत्ते, छाल और फल सभी चिकित्सा में काम आते हैं, इनसे कई गंभीर रोगों का इलाज संभव है ।

पीपल के औषधीय उपयोग :-


1.  पीपल की ताजी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी होती है ।

2.  इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुषत्व में वृद्धि होती है ।

3.  यदि किसी व्यक्ति को सांप ने काट लिया हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच 3-4 बार पिलाएं, विष का प्रभाव कम होगा ।

4  इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है ।

5  पीलिया होने पर इसके 3-4 नए पत्तों के रस को मिश्री मिलाकर शरबत पिलाएं।

6.  इसके पके फलों के चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से वाणी में सुधार होता है ।

7.  पीपल के ताजे पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता है ।

8  इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आंख में लगाने से आंख का दर्द ठीक हो जाता है ।

9.  हाथ-पांव कटने-फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाएं. इससे फटने वाली जगह धीरे-धीरे भर जाएगी ।

10. चोट के घावों को जल्दी भरने के लिए पीपल के पत्तों को गर्म कर लें और चोट की वजह से होने वाले घावों पर लगा दें।

11. पीपल के पांच पत्तों को दूध में उबालकर चीनी या खांड डालकर दिन में दो बार, सुबह-शाम पीने से जुकाम, खांसी और दमा में बहुत आराम होता है ।

12. दमा के रोगीयों के लिए पीपल एक महत्वपूर्ण दवा का काम करता है। पीपल के पेड़ की छाल के अंदर के हिस्से को निकाल लें और इसे सुखा लें। सूखने के बाद इसका बारीक चूर्ण बना लें और पानी के साथ दमा रोगी को दें।

13. दाद और खाज दूर करने के लिए पीपल के 4 पत्तों को चबाकर सेवन करें। यदि एैसा नहीं कर सकते हो तो पीपल के पेड़ की छाल का काढ़ा बना लें और इसे दाद व खुजली वाली जगह पर लगाएं।

14 .पीपल की जड़ों को काट लें और उसे पानी में अच्छे से भिगोकर इसका पेस्ट बना लें। और इस पेस्ट को नियमित चेहरे पर लगाएं। झुर्रियों को खत्म करने के लिए पीपल एक अहम भूमिका निभाता है। यह बढ़ती हुई उम्र की वजह से चेहरे पर झुर्रियां रोक देता है।

15 .दांतों की बदबू, दांतों का हिलना और मसूड़ों का दर्द व सड़न को दूर करने के लिए 2 ग्राम काली मिर्च, 10 ग्राम पीपल की छाल और कत्था को बारीक पीसकर उसका पाउडर बना लें। और इससे दांतों को साफ करें। आपको इन रोगों से मुक्ति मिलेगी।

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Tuesday 12 April 2016

Mahabharat Proof in Hindi

महाभारत सत्य था , ये प्रमाण साबित करते हैं कि महाभारत काल्पनिक नहीं है !



सनातन पथ इन्फो ब्लॉग आज आपको बताने जा रहा है की महाभारत की हर घटना सच क्यो है और महाभारत को कथा या कल्पना कहने वाले झूठे हैं या अज्ञानी हैं । महाभारत की कथा पूरी दुनिया को हैरानी में डालती है। न केवल हिंदुस्तानी बल्कि विदेशी भी इससे बेहद प्रभावित हैं। फिर भी ये एक सवाल उठता है कि इसे वास्तविक इतिहास समझा जाए या फिर कल्पना ?

महाभारत को इतिहास या कल्पना में से एक मानने के अपने-अपने तर्क हैं। फिर भी इसके विशुद्ध इतिहास होने के पीछे कई ऐसे तर्क मौज़ूद हैं, जिन पर गौर करना चाहिए।

जहां तक हमारा स्वयं का मानना है कि महाभारत की घटना कुरुक्षेत्र की समरभूमि पर अवश्य घटित हुई और आधुनिक पुरातत्वशास्त्री भी इस तथ्य से इनकार नहीं कर पा रहे हैं। 

यहां तक कि कई वैज्ञानिक शोधों ने इस बात को ही अधिक प्रमाणित किया है कि महाभारत की घटना एक सच्चाई है न कि कोई मिथक या कथा।

ये जानना आवश्यक है कि आखिर कौन से ऐसे तथ्य हैं जो महाभारत को इतिहास सिद्ध करते हैं। आज हम इसी मुद्दे के विस्तार में जाना चाहेंगे  : - 

कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश महाभारत युद्ध के दौरान दिया था, जिसमे कलयुग (जिसे आज का वक़्त कहा जाता है) का सारा बखान है. आज जो घटित हो रहा है वो गीता में पहले से लिखा है, ये कोई काल्पनिक घटना नहीं हो सकती ।

महाभारत के एक महत्वपूर्ण पात्र जरासंध थे, जिसका वध भीम के हाथों हुआ था. जरासंध मगध देश का राजा थे. पुरातत्व विभाग को बिहार के एक जिले राजगीर में जरासंध का अखाड़ा मिला है, जहां भीम ने उसे मौत के घाट उतारा था. आज पर्यटकों के बीच ये आकर्षण का केंद्र है ।

महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ था. हरियाणा के इस जिले में वो मैदान आज भी है जहां ये युद्ध हुआ था. कहा जाता है कि युद्ध में बहे खून की वजह से यहां की मिट्टी का रंग लाल हुआ था. आज भी वहां की मिट्टी का रंग लाल है ।

Mahabharat Real Proof - video


दुष्यंत और शकुंतला के बेटे भरत के नाम पर भारत देश का नाम पड़ा और भरत के वंश का विवरण महाभारत में है. पांडु और धृतराष्ट इन्हीं के वंशज हैं. भारत देश का होना ही महाभारत का सबसे बड़ा प्रमाण है ।

रामायण और महाभारत दो अलग-अलग वक़्त में दो अलग-अगल लोगों द्वारा लिखी गई है और दोनों किताबों में लिखी गई बात के कई प्रमाण मिले हैं. अगर ये किताबें काल्पनिक होतीं तो इन दोनों किताबों में इतनी समानता नहीं होतीं ।

महाभारत को कल्पना सिद्ध करने के पीछे सबसे पहला सवाल इसकी काव्यात्मक शैली को लेकर उठाया जाता है। कहा जाता है कि ऐसी शैली में कोई इतिहास कैसे लिखा जा सकता है जबकि ऐतिहासिक वृत्तांत के लिए गद्यात्मक शैली होना जरूरी है। महाभारत को कल्पना सिद्ध करने के लिए ये सबसे ज्यादा गलत तर्क है।

भारतीय साहित्य की प्राचीनता वैदिक युगीन साहित्य तक मानी जाएगी। वेदों की ऋचाएं स्वयं मंत्रोक्त व काव्यात्मक गेय शैली में रची गईं, जिनमें भौतिक जीवन के अनेकानेक आवश्यक उपांगों को व्याख्यायित किया गया है। 

सांसारिक जीवन की नश्वरता की बजाय जीवन को जीवंतता से जीने के लिए वेद कई आयाम को उद्घाटित करते हैं। अनेक प्राकृतिक शक्तियों की उपासना भी इसी दृष्टिकोण का महत्वपूर्ण भाग है।

हम कल्हण की राजतरंगिणि को देखें तो ये बात प्रमाणित हो जाती है। तत्कालीन भारतीय इतिहास का निर्माण गेय काव्यात्मक शैली में ही किया जाता था और सल्तनत युगीन भारत से पद्यात्मक की बजाय गद्यात्मक शैली में ऐतिहासिक रचनाएं की जाने लगीं। 

तुर्क और यूरोपियन इतिहासकार गद्य शैली में ही इतिहास लिखते थे तो महाभारत की ऐतिहासिकता को केवल इस बात से नकार देना न्यायसंगत नहीं होगा।

इसके बाद आते हैं वंशावलियों का विस्तारपूर्वक वर्णन तथा महाभारत व इससे पहले रची गई रामायण के कई पात्रों के समान होने के आश्चर्यजनक साम्य पर। ये कोई मात्र संयोग नहीं हो सकता कि वेदव्यास ने उस समय की दुनिया और भारतवर्ष के अनेक सम्राटों व उनकी राजधानियों और राज्यों का सविस्तार उल्लेख किया। 



कुरुक्षेत्र के युद्ध में जिस तरह हज़ारों राजाओं ने अपनी विशाल सेनाओं के साथ भाग लिया तथा अंतिम रूप से कुछ चुनिंदा योद्धा ही बचे उससे इस महायुद्ध की भयावहता का अनुमान लगाया जा सकता है।

यदि ये केवल काल्पनिक उपक्रम होता तो कथानक को सशक्त बनाने के लिए महज़ कुछ ही पात्रों की आवश्यकता होती किंतु एक इतिहासकार ऐसा नहीं कर सकता है। उसे तो तत्कालीन घटना का पूरा-पूरा विवरण देना होता है ताकि कहीं भी वास्तविक घटना से अन्याय न हो सके। 

वेदव्यास ने महायुद्ध के पूर्व और पश्चात की सभी घटनाओं को उकेरने की कोशिश की जिससे इसकी ऐतिहासिकता पर सवाल न उठ सके। इसके अलावा महाभारत में तत्कालीन ग्रह-नक्षत्रों व उनकी स्थितियों सहित शुभ लग्न-मुहूर्त आदि का वर्णन भी मिलता है। 

आखिर ऐसा क्यों किया गया होगा ये सोचने का विषय है। अगर महाभारत केवल काल्पनिक रचना होती तो ऐसा प्रयास करने का अर्थ क्या था? कहीं न कहीं ये बात इसकी ऐतिहासिकता को साबित करती नज़र आती हैं। तत्कालीन परिस्थितियों में कौन से ग्रह-नक्षत्र आदि किस अवस्था में थे, इसका ज़िक्र केवल इतिहास में होता है।

उस समय के कई महानगरों का उल्लेख जैसे द्वारका, इंद्रप्रस्थ आदि का उल्लेख भी अनैतिहासिक नहीं है। ये बात आधुनिक खोजों के द्वारा पूर्णतया प्रमाणित हो चुकी है महाभारत कालीन द्वारका का अस्तित्व था इसके अतिरिक्त कंबोज, गांधार, इंद्रप्रस्थ, हस्तिनापुर आदि का भी वास्तविक समीकरण स्थापित किया जा चुका है।

कुछ ऐसे आधार हैं जिनके लिए इसे पूर्णतया काल्पनिक रचना करार दिया जाता है। जैसे तत्कालीन परिस्थितियों में अत्याधुनिक विनाशक शस्त्रों के प्रयोग सहित दिव्यदृष्टि आदि का वर्णन। ये कहना युक्तिसंगत नहीं होगा कि उस समय ऐसी तकनीक कैसे हो सकती थी ।

किंतु जरा विचार कीजिए कि क्या इतनी उन्नत तकनीक की उपलब्धता के बिना उसकी कल्पना उस काल में संभव हो सकती थी? अवश्य नहीं, ऐसा केवल तभी संभव था जबकि ऐसी तकनीकें मौज़ूद रही हों किंतु इस विनाशक युद्ध के पश्चात सभ्यता और नगरीकरण का पतन अवश्यंभावी था और जो कि हुआ भी.

स्वयं वेदव्यास ने इस महान रचना के लिए “इतिहास” शब्द का ज़िक्र किया। अगर ये केवल कवि कल्पना मात्र होती तो वेदव्यास ऐसा क्यों करते? ध्यान दें महाभारत के सभी श्लोक इसकी ऐतिहासिकता को सिद्ध करते नज़र आते हैं क्योंकि इनमें जिस तरह से घटनाओं व चरित्रों सहित कई स्थानों का उल्लेख है, वे केवल एक ऐतिहासिक विवरण में ही संभव है !!

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Monday 11 April 2016

Spiritual uses of Turmeric in Hinduism in Hindi

हल्दी को सनातन हिंदू धर्म में क्यों समझते हैं पवित्र , क्यो होता है हल्दी का पूजा मे उपयोग ?




सनातन पथ इन्फो ब्लॉग आज आपको बताने जा रहा है हल्दी का हमारे सनातन हिंदू धर्म में महत्व ।कोई भी मंगल कार्य हो, हल्दी की उपयोगिता बरकरार रहती है। विवाह हो या फिर कोई धार्मिक कार्यक्रम,  हल्दी का प्रयोग जरूर किया जाता है। ऐसा क्या है हल्दी में जो धार्मिक रूप से इसे इतना महत्वपूर्ण बनाया गया है।

आपने देखा होगा कि जब भी घर में कोई शुभ या विशेष अवसर आता है तो हल्दी का प्रयोग अवश्य किया जाता है। विवाह में तो हल्दी की अपनी एक अलग रस्म भी होती है। रंगोली जैसे शुभ काम में भी पीले रंग के स्थान पर हल्दी का प्रयोग करना उपयुक्त माना जाता है।

पिछली कई शताब्दियों से सनातन हिंदू परंपरा में हल्दी को पवित्र माना गया है। काल और समाज भले ही बदलता गया हो, आज के मॉडर्न युग में भी हल्दी की पवित्रता को हर कोई भली प्रकार समझता है।

क्या हल्दी को इतनी प्रमुखता देना मात्र एक धार्मिक अंधविश्वास की वजह से है या फिर हल्दी के गुणों के पीछे कोई वैज्ञानिक कारण भी है? भारतीय परिवारों में हल्दी को पवित्र समझा जाता है, लेकिन हल्दी के औषधीय गुणों को समझते हुए विज्ञान भी इसकी जरूरतों को स्वीकार करता है।

छोटे स्तर से हल्दी के महत्व की शुरुआत करें तो घर में खाना बनाते समय भोजन में हल्दी को अवश्य डाला जाता है। मान्यता के अनुसार इससे भोजन का रंग निखर जाता है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि हल्दी एक एंटी बायोटिक की तरह काम करती है, जो भोजन के भीतर मौजूद किसी भी प्रकार के बैक्टीरिया का सफाया करती है।

अनेक देशों में हुए अध्ययनों के आधार पर यह प्रमाणित किया गया है कि हल्दी के भीतर ऐसे तत्व होते हैं जो फेफड़े से जुड़ी समस्याओं को हल करने के साथ शरीर को स्वस्थ भी रखते हैं।

भारतीय महिलाएं हल्दी को अपने चेहरे और पांव पर लगाती हैं, इसके पीछे धार्मिक मान्यता हो सकती है लेकिन वैज्ञानिक तौर पर यह प्रमाणित है कि चेहरे या त्वचा पर हल्दी लगाने से स्किन कैंसर नहीं होता। साथ ही इसका प्रयोग पांव पर करने से पांव की फटी एड़ियां भी ठीक हो जाती हैं।

अमेरिकन केमिकल सोसाइटी के अनुसार हल्दी के भीतर विभिन्न प्रकार के एंटी ऑक्सिडेंट्स होते हैं। इसके अलावा हल्दी के अंदर प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम विटामिन ई, सी और के, सोडियम, जिंक, आयरन के अलावा पोटैशियम, कॉपर भी होता है। हल्दी के अंदर शरीर की बहुत सी समस्याओं से लड़ने का भी प्राकृतिक गुण होता है।

इन सबके अलावा हल्दी का एक बड़ा गुण यह है कि वह किसी भी प्रकार के मधुमेह से लड़ने में, उसे नियंत्रित रखने में कारगर साबित होती है, साथ ही कॉलेस्ट्रॉल कम करने में भी बड़ी भूमिका निभाती है।

हल्दी शरीर के भीतर रोग-प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाकर व्यक्ति के शरीर को स्वस्थ रखती है, उसे विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाती है। जख्म वाले स्थान पर हल्दी का लेप लगाने से घाव अपेक्षाकृत जल्दी भर जाता है और वहां किसी प्रकार का संक्रमण नहीं फैलता।

बहुत से लोगों की याद्दाश्त बहुत कमजोर होती है। ऐसे लोग अगर रोजाना हल्दी का सेवन करें तो इससे उनकी याद्दाश्त में काफी सुधार देखा जा सकता है।

अगर आपके शरीर का पाचन तंत्र सही प्रकार से कार्यरत नहीं है तो ऐसे में भी हल्दी का पर्याप्त मात्रा में सेवन करना आपके अंदरूनी तंत्रों को सुचारू रूप से चला पाने में सक्षम होगा।

अब हल्दी के इतने गुण, इतने फायदे हैं। इन फायदों को पौराणिक समय में ही पहचान लिया गया था, तभी तो हमारे पूर्वजों ने हल्दी को पवित्र माना ।

सनातन धर्म मे विज्ञान पूर्ण रूप से समाया हुआ है और विज्ञान की कसोटी पर सनातन धर्म के सारे कर्म खरे साबित हुए हैं । अब तो बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी हमारे सनातन पथ पर चलने लगे हैं औट ले सनातन ब्लॉग सनातन पथ को सवारने मे अग्रसर है ।

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Sunday 10 April 2016

Bhuteshwar Nath Shivling Story in Hindi

भूतेश्वर नाथ के नाम से प्रसिद्ध बढ़ने वाला अदभुत चमत्कारिक प्राकर्तिक शिवलिंग !


छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के मरौदा गांव में घने जंगलों बीच एक प्राकर्तिक शिवलिंग है जो की भूतेश्वर नाथ के नाम से प्रसिद्ध है। यह विशव का सबसे बड़ा प्राकर्तिक शिवलिंग है।

सबसे बड़ी आश्चर्य की बात यह है की यह शिवलिंग अपने आप बड़ा और मोटा होता जा रहा है। यह जमीन से लगभग 18 फीट उंचा एवं 20 फीट गोलाकार है। राजस्व विभाग व्दारा प्रतिवर्ष इसकी उचांई नापी जाती है जो लगातार 6 से 8 इंच बढ रही है।

इस भूतेश्वर नाथ शिवलिंग के बारे में बताया जाता है कि आज से सैकडो वर्ष पूर्व जमीदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार की यहां पर खेती बाडी थी।

शोभा सिंह शाम को जब अपने खेत मे घुमने जाता था तो उसे खेत के पास एक विशेष आकृति नुमा टीले से सांड के हुंकारने (चिल्लानें) एवं शेर के दहाडनें की आवाज आती थी। अनेक बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभासिंह ने उक्त बात ग्रामवासियों को बताई।

ग्राम वासियो ने भी शाम को उक्त आवाजे अनेक बार सुनी। तथा आवाज करने वाले सांड अथवा शेर की आसपास खोज की। परतु दूर दूर तक किसी जानवर के नहीं मिलने पर इस टीले के प्रति लोगो की श्रद्वा बढने लगी, और लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में मानने लगे।

इस बारे में पारा गावं के लोग बताते है कि पहले यह टीला छोटे रूप में था। धीरे धीरे इसकी उचाई एवं गोलाई बढती गई। जो आज भी जारी है। इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है। जो धीरे धीरे जमीन के उपर आती जा रही है।

घने जंगलों के बीच स्तिथ होने के बावजूद यहाँ पर सावन में कावड़ियों का हुजूम उमड़ता है। इसके अलावा शिवरात्री पर भी यहाँ विशाल मेला भरता है। यहीं स्थान भुतेश्वरनाथ, भकुरा महादेव के नाम से जाना जाता है।

इस शिवलिंग का पौराणिक महत्व सन 1959 में गोरखपुर से प्रकाषित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक के पृष्ट क्रमांक 408 में उल्लेखित है जिसमें इसे विश्व का एक अनोखा महान एवं विशाल शिवलिंग बताया गया है।

यह भी किंवदंती है कि इनकी पूजा बिंदनवागढ़ के छुरा नरेश के पूर्वजों द्वारा की जाती थी। दंत कथा है कि भगवान शंकर-पार्वती ऋषि मुनियों के आश्रमों में भ्रमण करने आए थे, तभी यहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए।



Friday 8 April 2016

Famous Mata Temples top of the hill in hindi

माता मंदिरों के पहाड़ों या उँचे स्थान पर ही होने का क्या रहस्य है ? जानें


माता मंदिरों के पहाड़ों पर ही होने का रहस्य आपके मन में भी आता होगा तो सनातन पथ ब्लॉग आज आपको बताने जा रहा इसका कारण । पहाड़ों पर ऐसा क्या है , जो समतल जमीन पर नहीं है, इस संबंध में जानकार लोग कहते हैं कि पहले और आज भी इन स्थानों को साधना केंद्र के रूप में जाना जाता था। पहले ऋषि-मुनि ऐसे स्थानों पर सालों तपस्या करके सिद्धि प्राप्त करते थे ।

पहाड़ों पर एकांत होता है। एकांत ने ही देवी मंदिरों के लिए पहाड़ों को महत्व दिया है। पहाड़ों पर मन एकाग्र आसानी से हो जाता है। मौन, ध्यान एवं जप आदि कार्यों के लिए एकांत की जरूरत होती है और इसके लिए पहाड़ों से अच्छा कोई स्थान नहीं हो सकता।

पहाड़ी क्षेत्रों पर इंसानों का आना-जाना कम ही रहता है, जिससे वहां का प्राकृतिक सौन्दर्य अपने असली रुप में जीवित रह पाता है। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि सौन्दर्य इंसान को स्फूर्ति और ताजगी प्रदान करता है। कई बार लोगों को डॉक्टर भी पहाड़ी इलाके में कुछ दिन बिताने की सलाह देते हैं।

निचले स्थानों की बजाय अधिक ऊंचाई पर इंसान का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। लगातार ऊंचे स्थान पर रहने से जमीन पर होने वाली बीमारियां खत्म हो जाती हैं। ऐसे में पहाड़ी स्थानों पर इंसान की धार्मिक और आध्यात्मिक भावनाओं का विकास जल्दी होता है।

पहाड़ों पर दैवीय स्थल होने की वजह यह है कि देवी राजा हिमाचल की पुत्री हैं। इन्ही के नाम पर अब हिमाचल प्रदेश है। इस स्थान को देवभूमि भी कहा जाता है। देवी का जन्म यहीं हुआ इसी कारण से इन्हें पहाड़ों वाली माता कहा जाता है। देखा जाए तो देवी राक्षसों के नाश के लिए अवतरित हुईं थीं। राक्षस मैदानी इलाके से आते थे और देवी पहाड़ों से उनको देख उनका वध कर देती थीं। इसलिए भी देव स्थान ऊंचे पहाड़ों पर हैं।

माता वैष्णो देवी  -


वैष्णो देवी माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं। ये मंदिर जम्मू और कश्मीर के जम्मू जिले में कटरा नगर में त्रिकुटा पहाड़ियों पर है। ये मंदिर 5,200 फीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर है। हर साल लाखों तीर्थयात्री मंदिर का दर्शन करते हैं। माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार, माता वैष्णो के भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया।

मैहर माता मंदिर  -


मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित मैहर माता मंदिर के बारे में श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां रात 2 से 5 बजे के बीच रुकने से मौत हो सकती है? दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को 1,063 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। मंदिर में एक प्राचीन शिलालेख भी लगा हुआ है। यहां भगवान नृसिंह की प्राचीन मूर्ति विराजमान हैं ,  जिसे साल 502 में लगवाया गया था। साथ ही, दो महान योद्धाओं आल्हा तथा ऊदल का भी दर्शन कर उनकी वीरता और महानता की वंदना करते हैं। आल्हा व ऊदल मां के बहुत समर्पित भक्त थे। उन्होंने 1182 में पृथ्वीराज चैहान से युद्ध भी किया था। आज भी लोकगीतों में उनकी वीरता और मां के प्रति भक्ति का उल्लेख किया जाता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि दोनों भाइयों पर मां की असीम कृपा थी। उनका भी मां के प्रति अनुराग था। यहां तक कि वे आज भी मां के दर्शन करने आते हैं। मंदिर के पास ही आल्हा की स्मृति में एक सुंदर तालाब है। कहा जाता है कि इस इलाके में दोनों भाई जोर-आजमाइश के लिए कुश्ती का अभ्यास करते थे। आज भी वे अखाड़े उन वीरों की गाथा कहते हैं और लोग इन्हें दूर-दूर से देखने आते हैं। मां शारदा के मंदिर को रात 2 से 5 बजे के बीच बंद कर दिया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि इसी अवधि में ये दोनों भाई मां के दर्शन करने आते हैं। दोनों भाई मां के दर्शन, पूजन के साथ ही उनका श्रृंगार भी करते हैं। इसलिए रात को 2 से 5 बजे के बीच यहां कोई नहीं ठहरता। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि जो हठपूर्वक यहां रुकने की कोशिश करता है, उसकी मौत हो सकती है।

नैना देवी मंदिर  -


ये मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में है। यह शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियों पर स्थित है। यह समुद्र तल से 11000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकषर्ण का केन्द्र है जो कि अनेकों शताब्दी पुराना है। मुख्य द्वार के पार करने के पश्चात आपको दो शेर की प्रतिमाएं दिखाई देगी। दाईं तरफ माता काली की, मध्य में नैना देवी की और बाईं ओर भगवान गणेश की प्रतिमा है। पास ही में पवित्र जल का तालाब है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। मंदिर के समीप ही में एक गुफा है जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है। पहले मंदिर तक पहुंचने के लिए 1.25 कि॰मी॰ की पैदल यात्रा कि जाती थी परन्तु अब मंदिर प्रशासन द्वारा मंदिर तक पहुंचने के लिए उड़़नखटोले का प्रबंध किया गया है।


मनसा देवी मंदिर  -


मनसा देवी का मंदिर हरिद्वार में हरकी पौड़ी के पास गंगा किनारे पहाड़ी पर है। दुर्गम पहाड़ियों और पवित्र गंगा के किनारे स्थित मनसा देवी का उल्लेख पुराणों में है। 'मनसा' शब्द का प्रचलित अर्थ इच्छा है। मान्यता है कि मनसा देवी का जन्म संत कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है। उन्हें नाग राजा वासुकी की पत्नी भी माना जाता है। हरिद्वार के चंडी देवी और माया देवी के साथ मनसा देवी को भी सिद्ध पीठों में प्रमुख माना जाता है। मनसा भगवान शंकर की कठोर तपस्या करके वेदों का अध्ययन किया और कृष्ण मंत्र प्राप्त किया, जो कल्पतरु मंत्र कहलाता है। इसके बाद देवी ने कई युगों तक पुष्कर में तप किया। भगवान कृष्ण ने दर्शन देकर वरदान दिया कि तीनों लोकों में तुम्हारी पूजा होगी।


मां बम्लेश्वरी मंदिर  -


छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में स्थित है मां बम्लेश्वरी मंदिर। इसे कामाख्या नगरी भी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ के इतिहास में कामकंदला और माधवानल की प्रेम कहानी बेहद लोकप्रिय है। लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व कामाख्या नगरी में राजा वीरसेन का शासन था। वे नि:संतान थे। संतान की कामना के लिए उन्होंने भगवती दुर्गा और शिवजी की उपासना की। इसके फलस्वरूप उन्हें एक साल के अंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। वीरसेन ने पुत्र का नाम मदनसेन रखा। मां भगवती और भगवान शिव के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए राजा ने मां बम्लेश्वरी का मंदिर बनवाया।

सलकनपुर देवी मंदिर  -


मध्य प्रदेश के सीहोर सलकनपुर में विराजी मां विजयासन दर्शन देकर भक्तों का हर दुख हर लेती हैं। 14 सौ सीढ़ियों का सफर तय कर भक्त माता के दरबार पहुंचते हैं। सलकनपुर में विराजी सिद्धेश्वरी मां विजयासन की ये स्वयंभू प्रतिमा माता पार्वती की है जो वात्सल्य भाव से अपनी गोद में भगवान गणेश को लिए हुए बैठी हैं। इसी मंदिर में महालक्ष्मी, महासरस्वती और भगवान भैरव भी विराजमान हैं। पुराणों के अनुसार, देवी विजयासन माता पार्वती का ही अवतार हैं, जिन्होंने देवताओं के आग्रह पर रक्तबीज नामक राक्षस का वध कर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की थी। देवी विजयासन को कई भक्त कुल देवी के रूप में पूजते हैं।

पावागढ़ शक्तिपीठ  -


काली माता का यह प्रसिद्ध मंदिर शक्तिपीठों में से एक है। शक्तिपीठ उन पूजा स्थलों को कहा जाता है, जहां सती के अंग गिरे थे। पावागढ़ में मां के वक्षस्थल गिरे थे। इसी तरह पावागढ़ के नाम के पीछे भी एक कहानी है। कहा जाता है कि इस दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई लगभग असंभव काम था। चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहां हवा का वेग भी चहुंतरफा था, इसलिए इसे पावागढ़ अर्थात ऐसी जगह कहा गया जहां पवन का वास हो। यह मंदिर गुजरात की प्राचीन राजधानी चंपारण के पास स्थित है, जो वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। पावागढ़ मंदिर ऊँची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। काफी ऊँचाई पर बने इस दुर्गम मंदिर की चढ़ाई बेहद कठिन है।

ज्वाला देवी मंदिर  -


ये मंदिर हिमाचल प्रदेश की कांगडा घाटी से 30 दूर पहाड़ी पर है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठों में शामिल है। उन्हें जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है। उन्हीं के द्वारा इस पवित्र धार्मिक स्थल की खोज हुई थी। इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। इस मंदिर में माता के दर्शन ज्योति रूप में होते है। ज्वालामुखी मंदिर के समीप में ही बाबा गोरा नाथ का मंदिर है। जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया। मंदिर के अंदर माता की नौ ज्योतियां है जिन्हें, महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजी देवी के नाम से जाना जाता है।

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Tuesday 5 April 2016

punar janam ki kahani in hindi

जानिए पुनर्जन्म का रहस्य और देश-विदेश के पुनर्जन्म के कुछ सच्चे क़िस्से

                      

पुनर्जन्म अर्थात मरने के बाद फिर से नया जन्म होता है या नहीं, इस बारे में विज्ञान तो किसी एक नतीजे पर पहुंच ही नहीं पाया है हिंदू धर्म का कहना है, पुनर्जन्म, कर्म के कानून से संचालित है।

भारतीय मूल के सभी धर्म दर्शन पुनर्जन्म को मानते हैं, यहां तक कि आत्मा के अजर अमर अस्तित्व को ले कर मौन रहने वाले बौद्ध और जैन दर्शन भी पुनर्जन्म की संभावना को निश्चित मानते हैं।

फिर से जन्म लेने की तकनीक पर भले ही मतभेद हों, पर दोबारा जन्म की बात को किसी न किसी रूप में सभी मान रहे हैं। विज्ञान दूसरी तरह से मानता है कि शरीर या जीवन का अंत नहीं होता। उसका रूप बदलता रहता है क्योंकि पदार्थ और शक्ति का कभी नाश नहीं होता।

हालांकि नया जन्म लेने के बाद पिछले जन्म कि याद बहुत हि कम लोगो को रह पाती है। इसलिए ऐसी घटनाएं कभी कभार ही सामने आती है। पुनर्जन्म की घटनाएं भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों मे सुनने को मिलती है। पुनर्जन्म के कुछ देश और विदेश के सच्चे क़िस्से हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे है : -

1 - यह घटना 1970 की है, जब गाजियाबाद में ब्रजबिहारी लाल सिंघला नाम के एक आयकर अधिकारी पोस्टेड थे। उनका छोटा बेटा अचानक अपने परिजनों से कहने लगा कि वह पिछले जन्म में मुसलमान था और लखनऊ का एक बड़ा रईस हुआ करता था।

इस्लाम में पूर्व जन्म की कोई मान्यता नहीं है। उस बच्चे का नाम सुभाषचन्द्र रखा गया, लेकिन परिजन उसे बाले के नाम से बुलाते थे। इस लड़के को पूर्व जन्म की घटनाएं याद आने का किस्सा दिलचस्प है।

एक दिन उस लड़के के बड़े भाई का जन्मदिन था। इस अवसर पर घरवालों ने उसे कैरम बोर्ड उपहार स्वरूप दिया। इसी कैरम बोर्ड पर दोनों भाई एक दिन खले रहे थे कि अचानक दोनों के बीच किसी बात पर झगड़ा हो गया।

इस पर बाले ने कैरम बोर्ड को उठाकर एक तरफ फेंक दिया और बोला कि ‘मैं कोई गरीब नहीं हूं, रख अपना कैरम बोर्ड मेरे लखनऊ वाले घर में नब्बे हजार रुपए गड़े हुए हैं। मैं उनसे हजारों कैरम बोर्ड खरीद सकता हूं।’

यह सुनकर लोगों ने उसके इस व्यवहार को बाल सुलभ मानते हुए नजर अंदाज कर दिया। इसके बाद भी बाले अपनी पूर्व जन्म की घटनाएं बताने लगा। जब उससे पूछा गया कि पूर्व जन्म में वह कौन था?

इस पर बाले ने बताया कि उसका पूर्व जन्म का नाम जान मोहम्मद खान था और वह बहुत राईस था। लखनऊ में वह कैसरबाग में रहा करता था। उसके ससुर दिलदार खां बहुत बड़े रईस थे, उनकी सिर्फ लड़कियां ही लड़कियां थीं।

शादी के बाद ससुर ने उसे घर जमाई बना लिया और उसे अपनी संपत्ति का मालिक बना दिया। आगे उसने बताया कि उसकी बेगम का नाम शाफियाखानम था। उनसे उसके चार बेटे और दो लडकियां हुईं।

दो लड़के उस्मानिया यूनिवर्सिटी में पढ़ा करते थे। सबसे बड़े लड़के का नाम अब्दुल गफूर खां था। बड़ी बेटी लखनऊ में ब्याही थी और छोटी वाली का ब्याह इलाहबाद में हुआ था। आड़े वक़्त के लिए 90 हजार रूपए एक गुप्त स्थान पर गाड़कर रखे थे।

इनकम टैक्स के डर से अपनी बीवी शाफीयाखानम के नाम से स्टेट बैंक में अकाउंट खोल रखा था। उसके पास तिमंजिला मकान और बढ़िया कार भी थी। वह 5 वक़्त का नमाजी था।

यह पूछने पर कि जान मोहम्मद खान की मौत कैसे हुई तो उसने बताया कि वह तिमंजिले माकन की छत पर खड़ा था, तभी एक बन्दर ने उसके ऊपर हमला कर दिया। बन्दर से बचने के चक्कर में वह तिमंजिले मकान से गिर पड़ा और मौत हो गई।

उसके बाद धीरे-धीरे बाले घर में वैसे ही नमाज पढ़ने लगा जैसे कि मौलवी नमाज पढ़ते हैं। उसका यह रुख देखकर लोग उसे बाले खां बुलाने लगे। जैसे-जैसे वह बड़ा होने लगा, अपनी बीवी शाफियाखानम के नाम पत्र लिखवाने लगा।

जिसे घरवाले लिखते तो थे, लेकिन उस पते पर पोस्ट नहीं करते थे। उधर बाले पत्र लिखने के बाद जवाब का बेसब्री से इन्तजार किया करता था। घरवालों ने जब बाले द्वारा गए विवरण गाजियाबाद से लखनऊ जाकर पता कगाया तो आश्चर्यजनक तरीके से सभी बातें सच साबित हुईं।

साभार :दैनिक भास्कर

2 - यह घटना आगरा की है। यहां किसी समय पोस्ट मास्टर पी.एन. भार्गव रहा करते थे। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम मंजु था। मंजु ने ढाई साल की उम्र में ही यह कहना शुरु कर दिया कि उसके दो घर हैं। मंजु ने उस घर के बारे में अपने परिवार वालों को भी बताया।

पहले तो किसी ने मंजु की उन बातों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन जब कभी मंजु धुलियागंज, आगरा के एक विशेष मकान के सामने से निकलती तो कहा करती थी- यही मेरा घर है।

एक दिन मंजु को उस घर में ले जाया गया। उस मकान के मालिक प्रतापसिंह चतुर्वेदी थे। वहां मंजु ने कई ऐसी बातें बताई जो उस घर में रहने वाले लोग ही जानते थे।

बाद में भेद चला कि श्रीचतुर्वेदी की चाची (फिरोजाबाद स्थित चौबे का मुहल्ला निवासी श्रीविश्वेश्वरनाथ चतुर्वेदी की पत्नी) का निधन सन 1952 में हो गया था। अनुमान यह लगाया गया कि उन्हीं का पुनर्जन्म मंजु के रूप में हुआ है।


3 - यह घटना न्यूयार्क की है। न्यूयार्क में रहने वाली क्यूबा निवासी 26 वर्षीया राचाले ग्राण्ड को यह अलौकिक अनुभूति हुआ करती थी कि वह अपने पूर्व जन्म में एक डांसर थीं और यूरोप में रहती थी।

उसे अपने पहले जन्म के नाम की स्मृति थी। खोज करने पर पता चला कि यूरोप में आज से 60 वर्ष पूर्व स्पेन में उसके विवरण की एक डांसर रहती थी।

राचाले की कहानी में सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि जिसमें उसने कहा था कि उसके वर्तमान जन्म में भी वह जन्मजात नर्तकी की है और उसने बिना किसी के मार्गदर्शन अथवा अभ्यास के हाव-भावयुक्त डांस सीख लिया था।


4 - यह घटना थाईलैंड की है। थाईलैंड में स्याम नाम के स्थान पर रहने वाली एक लड़की को अपने पूर्वजन्म के बारे में ज्ञात होने का वर्णन मिलता है। एक दिन उस लड़की ने अपने परिवार वालों को बताया कि उसके पिछले जन्म के मां-बाप चीन में रहते हैं और वह उनके पास जाना चाहती है।

उस लड़की को चीनी भाषा का अच्छा ज्ञान भी था। जब उस लड़की की पूर्वजन्म की मां को यह पता चला तो वह उस लड़की से मिलने के लिए स्याम आ गई। लड़की ने अपनी पूर्वजन्म की मां को देखते ही पहचान लिया।

बाद में उस लड़की को उस जगह ले जाया गया, जहां वह पिछले जन्म में रहती थी। उससे पूर्वजन्म से जुड़े कई ऐसे सवाल पूछे गए। हर बार उस लड़की ने सही जवाब दिया।

लड़की ने अपने पूर्व जन्म के पिता को भी पहचान लिया। पुनर्जन्म लेने वाले दूसरे व्यक्तियों की तरह इस लड़की को भी मृत्यु और पुनर्जन्म की अवस्थाओं के बीच की स्थिति की स्मृति थी।

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Monday 4 April 2016

Bhimashankar Jyotirlinga story in hindi

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण कथा में यह वर्णित है


यह ज्योतिर्लिंग पुणे से लगभग 100 किलोमिटर दूर सेह्याद्री की पहाड़ी पर स्थित है। इसे भीमाशंकर भी कहते हैं। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में शिवपुराण में यह कथा वर्णित है -

प्राचीनकाल में भीम नामक एक महाप्रतापी राक्षस था। वह कामरूप प्रदेश में अपनी माँ के साथ रहता था। वह महाबली राक्षस, राक्षसराज रावण के छोटे भाई कुंभकर्ण का पुत्र था। लेकिन उसने अपने पिता को कभी देखा न था।

उसके होश संभालने के पूर्व ही भगवान्‌ राम के द्वारा कुंभकर्ण का वध कर दिया गया था। जब वह युवावस्था को प्राप्त हुआ तब उसकी माता ने उससे सारी बातें बताईं।

भगवान्‌ विष्णु के अवतार श्रीरामचंद्रजी द्वारा अपने पिता के वध की बात सुनकर वह महाबली राक्षस अत्यंत संतप्त और क्रुद्ध हो उठा। अब वह निरंतर भगवान्‌ श्री हरि के वध का उपाय सोचने लगा।

उसने अपने अभीष्ट की प्राप्ति के लिए एक हजार वर्ष तक कठिन तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे लोक विजयी होने का वर दे दिया।

अब तो वह राक्षस ब्रह्माजी के उस वर के प्रभाव से सारे प्राणियों को पीड़ित करने लगा। उसने देवलोक पर आक्रमण करके इंद्र आदि सारे देवताओं को वहाँ से बाहर निकाल दिया।

पूरे देवलोक पर अब भीम का अधिकार हो गया। इसके बाद उसने भगवान्‌ श्रीहरि को भी युद्ध में परास्त किया। श्रीहरि को पराजित करने के पश्चात उसने कामरूप के परम शिवभक्त राजा सुदक्षिण पर आक्रमण करके उन्हें मंत्रियों-अनुचरों सहित बंदी बना लिया।

इस प्रकार धीरे-धीरे उसने सारे लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। उसके अत्याचार से वेदों, पुराणों, शास्त्रों और स्मृतियों का सर्वत्र एकदम लोप हो गया। वह किसी को कोई भी धार्मिक कृत्य नहीं करने देता था। इस प्रकार यज्ञ, दान, तप, स्वाध्याय आदि के सारे काम एकदम रूक गए।

भीम के अत्याचार की भीषणता से घबराकर ऋषि-मुनि और देवगण भगवान्‌ शिव की शरण में गए और उनसे अपना तथा अन्य सारे प्राणियों का दुःख कहा।

उनकी यह प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने कहा, 'मैं शीघ्र ही उस अत्याचारी राक्षस का संहार करूँगा। उसने मेरे प्रिय भक्त, कामरूप-नरेश सुदक्षिण को भी सेवकों सहित बंदी बना लिया है।

वह अत्याचारी असुर अब और अधिक जीवित रहने का अधिकारी नहीं रह गया। भगवान्‌ शिव से यह आश्वासन पाकर ऋषि-मुनि और देवगण अपने-अपने स्थान को वापस लौट गए।

राक्षस भीम के बंदीगृह में पड़े हुए राजा सदक्षिण ने भगवान्‌ शिव का ध्यान किया। वे अपने सामने पार्थिव शिवलिंग रखकर अर्चना कर रहे थे। उन्हें ऐसा करते देख क्रोधोन्मत्त होकर राक्षस भीम ने अपनी तलवार से उस पार्थिव शिवलिंग पर प्रहार किया।

किंतु उसकी तलवार का स्पर्श उस लिंग से हो भी नहीं पाया कि उसके भीतर से साक्षात्‌ शंकरजी वहाँ प्रकट हो गए। उन्होंने अपनी हुँकार मात्र से उस राक्षस को वहीं जलाकर भस्म कर दिया।

भगवान्‌ शिवजी का यह अद्भुत कृत्य देखकर सारे ऋषि-मुनि और देवगण वहाँ एक होकर उनकी स्तुति करने लगे। उन लोगों ने भगवान्‌ शिव से प्रार्थना की कि महादेव। आप लोक-कल्याणार्थ अब सदा के लिए यहीं निवास करें। यह क्षेत्र शास्त्रों में अपवित्र बताया गया है।

आपके निवास से यह परम पवित्र पुण्य क्षेत्र बन जाएगा। भगवान्‌ शिव ने सबकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। वहाँ वह ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए निवास करने लगे। उनका यह ज्योतिर्लिंग भीमेश्वर के नाम से विख्यात हुआ।

शिवपुराण में यह कथा पूरे विस्तार से दी गई है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा अमोघ है। इसके दर्शन का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता। भक्तों की सभी मनोकामनाएँ यहाँ आकर पूर्ण हो जाती हैं।


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Sunday 3 April 2016

Hanuman chalisa benefits in hindi

हनुमान चालीसा चौपाइयों के जाप कैसे करें और क्या हैं इससे फायेदे ?


                                                           How to do Hanuman Chalisa        


हनुमान चालीसा की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी। हनुमानजी की स्तुति हनुमान चालीसा से हम सभी परिचित हैं। हिंदू धर्म ग्रंथों में उल्लेखित है कि बाल्यकाल में जब हनुमानजी ने सूर्य को मुंह में रख लिया तब सूर्य को मुक्त कराने के लिए देवराज इंद्र ने हनुमानजी पर शस्त्र से प्रहार किया। इसके बाद हनुमान जी मूर्छित हो गए।


हनुमानजी के मूर्छित होने की बात जब वायु देव को पता चली तो काफी नाराज हुए। लेकिन जब सभी देवताओं को पता चला कि हनुमानजी भगवान शिव के रुद्र अवतार हैं, तब सभी देवताओं ने हनुमानजी को कई शक्तियां दीं। देवताओं ने जिन मंत्रों और हनुमानजी की विशेषताओं को बताते हुए उन्हें शक्ति प्रदान की थी, उन्हीं मंत्रों के सार को गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा में वर्णित किया है।


हनुमान चालीसा में मंत्र नहीं हैं लेकिन हनुमानजी की पराक्रम की विशेषताएं बताई गईं हैं। हनुमान चालीसा में ही ऐसी चौपाईयां हैं, जिनका यदि नियमित सच्चे मन से वाचन किया जाए तो यह परम फलदायी सिद्ध होती हैं। हनुमान चालीसा का वाचन मंगलवार या शनिवार करना शुभ होता है। ध्यान रखें हनुमान चालीसा की इन चौपाइयों को पढ़ते समय उच्चारण की त्रुटि न करें।


1. भूत-पिशाच निकट नहीं आवे।


महावीर जब नाम सुनावे।।


यदि व्यक्ति को किसी भी प्रकार का भय सताता है तो नित्य रोज प्रातः और सायंकाल में 108 बार इस चौपाई का जाप किया जाये तो सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है।


2. नासै रोग हरै सब पीरा।


जपत निरंतर हनुमत बल बीरा।।


यदि व्यक्ति बीमारियों से घिरा रहता है तो निरंतर सुबह-शाम 108 बार जप करके तथा मंगलवार को हनुमान जी की मूर्ति के सामने पूरी हनुमान चालीसा के पाठ से रोगों की पीड़ा खत्म हो जाती है।


3. अष्ट-सिद्धि नवनिधि के दाता।


अस बर दीन जानकी माता।।


यदि जीवन में व्यक्ति को शक्तियों की प्राप्ति करनी है ताकि जीवन निर्वाह में मुश्किलों का कम सामना करना पड़े तो नित्य रोज, ब्रह्म मुहूर्त में आधा घंटा इन पंक्तियों के जप से लाभ प्राप्त हो सकता है।


4. विद्यावान गुनी अति चातुर।


रामकाज करीबे को आतुर।।


यदि किसी व्यक्ति को विद्या और धन चाहिए तो इन पंक्तियों के जप से हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है। प्रतिदिन 108 बार ध्यानपूर्वक जप करने से व्यक्ति के धन सम्बंधित दुःख दूर हो जाते हैं।


5. भीम रूप धरि असुर संहारे।


रामचंद्रजी के काज संवारे।।


यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं से परेशान हैं या व्यक्ति के कार्य नहीं बन पा रहे हैं तो हनुमान चालीसा की इस चौपाई का कम से कम 108 बार जप करना चाहिए।

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Saturday 2 April 2016

Tuti Jharna Mandir Ramgarh Jharkhand in Hindi

टूटी झरना मंदिर : यहाँ शिवजी का जलाभिषेक स्वयं माँ गंगा करती है 


Tuti Jharna Mandir Ramgarh Jharkhand


झारखंड में स्थित भगवान शिव का एक ऐसा रहस्मयी शिवमंदिर है, जिसके बारें में जानने के बाद हर श्रद्धालु इस मंदिर में एक बार जरूर जाना चाहता है।

झारखंड के रामगढ़ में एक मंदिर ऐसा है , जहां भगवान शंकर के शिव लिंग पर जलाभिषेक कोई और नहीं स्वयं माँ गंगा करती हैं।

मंदिर की खासियत यह है कि यहाँ जलाभिषेक साल के बारहो मास चौबीसो घण्टे होता है और इसे कोई और नहीं स्वयं गंगा जी द्वारा किया जाता है। यह पूजा सदियों से चली आ रही है।
कहते है इस जलाभिषेक का विवरण पुराणों में भी मिलता है। भक्त मानते हैं कि यहां सच्चे दिल से मांगी गयी मुरादे सदैव पूरी होती है।

झारखण्ड के रामगढ जिले में स्थित इस प्राचीन शिव मंदिर को लोग टूटी झरना के नाम से जानते है। मंदिर की इतिहास 1925 से ही जुडा है।कहते हैं तब अंग्रेज इस इलाके से रेलवे लाइन बिछाने का काम कर रहे थे।

पानी के लिए खुदाई के दौरान उन्हें जमीन के अन्दर कुछ गुम्बदनुमा चीज दिखाई पड़ा।कौतूहलता अंग्रेजों के मन में भी जगी लिहाजा पूरी खुदाई की गई और अंततः ये मंदिर पूरी तरह से नज़र आया।

मंदिर के अन्दर भगवान भोले का शिव लिंग मिला और उसके ठीक ऊपर माँ गंगा की सफेद रंग की प्रतिमा मिली। प्रतिमा के नाभी से आपरूपी जल निकलता रहता है जो उनके दोनों हाथों की हथेली से गुजरते हुए शिव लिंग पर गिरता है।

                                                      tuti jharna mandir ramgarh jharkhand

मंदिर के अन्दर गंगा की प्रतिमा से स्वंय पानी निकलना अपने आप में एक कौतुहल का विषय बना है। सवाल यह है कि आखिर यह पानी अपने आप कहा से आ रहा है। ये बात अभी तक रहस्य बनी हुई है।

कहा जाता है कि भगवान शंकर के शिव लिंग पर जलाभिषेक कोई और नहीं स्वयं माँ गंगा करती हैं।  यहां लगाये गए दो हैंडपंप भी रहस्यों से घिरे हुए हैं।

यहां लोगों को पानी के लिए हैंडपंप चलाने की जरूरत नहीं पड़ती है बल्कि इसमें से अपने-आप हमेशा पानी नीचे  गिरता रहता है।

वहीं मंदिर के पास से ही एक नदी गुजरती है जो सूखी हुई है लेकिन भीषण गर्मी में भी इन हैंडपंप से पानी लगातार निकलता रहता है।

मंदिर में श्रद्धालूओं का तांता लगा रहता है।लोग दूर दूर से यहां पूजा करने आते हैं।भक्त मानते हैं कि यहां सच्चे दिल से मांगी गयी मुरादे सदैव पूरी होती है। श्रद्धालुओ का कहना हैं टूटी झरना मंदिर में जो कोई भक्त भगवान के इस अदभुत रूप के दर्शन कर लेता है उसकी मुराद पूरी हो जाती है।

भक्त शिवलिंग पर गिरने वाले जल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं और इसे अपने घर ले जाकर रख लेते हैं. कहते हैं इस जल में इतनी शक्तियां समाहित हैं कि इसे ग्रहण करने के साथ ही मन शांत हो जाता है , दुखों से लड़ने की ताकत मिल जाती है।



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Friday 1 April 2016

Nostradamus Prediction Modi India

नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी : मोदी के शासन में भारत बनेगा विश्व की महाशक्ति !


नास्त्रेदमस ने भारत में भाजपा नेता नरेंद्र मोदी की जीत की भविष्यवाणी कई सौ साल पहले कर दी थी। आज से करीब 450 साल पहले ही इस बात की भविष्‍यवाणी कर दी गई थी। 

मशहूर फ्रेंच भविष्‍यवक्‍ता नास्‍त्रेदमस ने इस बारे में भविष्‍यवाणी कर दी थी कि वर्ष 2014 से 2026 तक भारत का प्रतिनिधित्‍व एक ऐसा व्यक्ति करेगा जिससे शुरुआत में लोग बहुत ही नफरत करेंगे लेकिन बाद में जनता और बाकी सभी लोग उसे उतना प्यार देंगे कि वह अगले 20 साल तक भारत का प्रधानमंत्री रहेगा।

महान भविष्यवक्ता ‘नास्त्रेदमस’ 14 दिसंबर 1503 को फ्रांस में जन्मे । नास्त्रेदमस ने अपनी भविष्यवाणियां सौ छंदों के अनेक शतकों में की हैं। ऐसे शतकों की संख्या 12 है , जिनमें से अंतिम दो शतकों के अनेक छंद उपलब्ध नहीं हैं। इन शतकों को सेंचुरी कहा गया है। 

नास्त्रेदमस की सैकड़ों भविष्यवाणियों में से बहुत सी सत्य हो चुकी हैं। दुनिया भर की प्रसिद्ध हस्तियों के साथ-साथ नास्त्रेदमस ने कुछ प्रचलित भारतीय हस्तियों की भी भविष्यवाणी की थी, जो सच भी हुईं।

नास्‍त्रेदमस ने इस बात के बारे में 450 वर्ष पहले यह भविष्‍यवाणी 1555 में अपनी एक किताब 'द प्रोफेसीज' में कर दी थी। फ्रेंच भाषा में लिखे अपने इस ग्रंथ में नास्‍त्रेदमस ने साफ लिखा है कि यह व्यक्ति भारत की दिशा और दशा बदलकर रख देगा। 

इस किताब को मराठी भाषा में महाराष्‍ट्र के मशहूर ज्‍योतिषी डॉक्‍टर श्री रामचंद्रजी जोशी ने अनुवाद किया है। नास्‍त्रेदमस के इस ग्रंथ के पेज नंबर 32-33 पर साफ-साफ लिखा है कि - - 

"एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति जो भारत का प्रतिनिधित्‍व करेगा, वह भारत के साथ ही साथ पूरी दुनिया में एक नया अध्याए लिखेगा। उसकी अगुवाई में भारत दुनिया में महाशक्तिशाली बन जाएगा।"

भविष्यवाणी : - तीन ओर घिरे समुद्र क्षेत्र में वह जन्म लेगा, उसकी प्रसंशा और प्रसिद्धि, सत्ता और शक्ति बढ़ती जाएगी और भूमि व समुद्र में उस जैसा शक्तिशाली कोई न होगा।' (सेंचुरी 1-50वां सूत्र)

तीन ओर समुद्र से तो भारत ही घिरा हुआ है। भारत में पहले भी राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, चाणक्य आदि महापुरुषों का जन्म हो चुका हैं, जिन्होंने तत्कालीन समाज को काफी प्रभावित किया था।

नास्त्रेदमस के अनुसार तीसरे महायुद्ध की स्थिति सन् 2012 से 2025 के मध्य उत्पन्न हो सकती है। इस भविष्यवाणी के अनुसार तीसरे विश्वयुद्ध की भूमिका बननी शुरू हो जाएगी। मिडिल ईस्ट दुनिया की जंग का मैदान बन जाएगा, जहां दुनिया भर की ताकतें अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगी।

तृतीय विश्वयुद्ध में भारत शांति स्थापक की भूमिका निभाएगा। सभी देश उसकी सहायता की आतुरता से प्रतीक्षा करेंगे। नास्त्रेदमस ने तीसरे विश्वयुद्ध की जो भविष्यवाणी की है उसी के साथ उसने ऐसे समय एक ऐसे महान राजनेता के जन्म की भविष्यवाणी भी की है, जो दुनिया का मुखिया होगा और विश्व में शांति लाएगा।

नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी के जानकारों का कहना है कि मोदी के शासन में भारत बनेगा विश्व की महाशक्ति। भारत का कायापलट हो जाएगा और दुश्मन राष्ट्रों का वजूद मिट जाएगा।

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Thursday 31 March 2016

Gupteshwar Dham Bihar in Hindi

बिहार में स्थित भगवान शिव की इस प्राचीन गुफा मे लिखे ये लेख क्या कहते है ?


भगवान शिव सनातन-हिन्दू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं , भगवान शिव की अनेक गुफाँए हैं पर यह गुफा बहुत रहस्यमयी है, इस प्राचीन गुफा के बारे में माना जाता है कि इसे इंसानो ने नहीं बल्कि खुद प्रकृति ने बनाया है।

बिहार के प्राचीन शिवलिंगों में शुमार रोहतास जिले के गुप्तेश्वर धाम गुफा स्थित शिवलिंग की महिमा का बखान आदिकाल से ही होता आ रहा है। माना जाता है कि इस गुफा में जलाभिषेक करने के बाद भक्तों की सभी मन्नतें पूरी हो जाती हैं।

पुराणो में वर्णित भगवान शंकर व भस्मासुर से जुड़ी कथा को जीवंत रखे हुए ऐतिहासिक गुप्तेश्वरनाथ महादेव का गुफा मंदिर आज भी रहस्यमय बना हुआ है।

रोहतास में  विंध्य शृंखला की कैमूर पहाड़ी के जंगलों से घिरे गुप्ताधाम गुफा की प्राचीनता के बारे में कोई प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।

इसकी बनावट को देखकर पुरातत्वविद अब तक यही तय नहीं कर पाए हैं कि यह गुफा मानव निर्मित है या प्राकृतिक।

श्याम सुंदर तिवारी जो कई इतिहास की पुस्तकों को लिख चुके हैं वे कहते हैं कि गुफा के नाचघर व घुड़दौड़ मैदान के बगल में स्थित पाताल गंगा के पास दीवार पर उत्कीर्ण शिलालेख, जिसे श्रद्धालु ब्रह्मा के लेख के नाम से जानते हैं, को पढ़ने से संभव है, इस गुफा के कई रहस्य खुल जाएं।

इस गुफा में गहन अंधेरा होता है, बिना कृत्रिम प्रकाश के भीतर जाना संभव नहीं है। पहाड़ी पर स्थित इस गुफा का द्वार 18 फीट चौड़ा एवं 12 फीट ऊंचा मेहराबनुमा है। इस गुफा में लगभग 365 फीट अंदर जाने पर बहुत बड़ा गड्ढा है,जिसमें साल भर पानी रहता है। श्रद्धालु इसे पाताल गंगा कहते हैं।

इस गुफा के अंदर प्राचीन काल के दुर्लभ शैलचित्र आज भी मौजूद हैं। इसके कुछ आगे जाने के बाद शिवलिंग के दर्शन होते हैं। गुफा के अंदर अवस्थित प्राकृतिक शिवलिंग पर हमेशा ऊपर से पानी टपकता है। इस पानी को श्रद्धालु प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।

इस स्थान पर सावन के महीने के अलावा सरस्वती पूजा और महाशिवरात्रि के मौके पर मेला लगता है। लोगो के बताए अनुसार कैलाश पर्वत पर मां पार्वती के साथ विराजमान भगवान शिव ने जब भस्मासुर की तपस्या से खुश होकर उसे किसी के सिर पर हाथ रखते ही भस्म करने की शक्ति का वरदान दिया था।

भस्मासुर मां पार्वती के सौंदर्य पर मोहित होकर शिव से मिले वरदान की परीक्षा लेने के लिए उन्हीं के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा। वहां से भागकर भोले यहां की गुफा के गुप्त स्थान में छुपे थे।

भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर का नाश किया। उसके बाद गुफा के अंदर छुपे भोले बाहर निकले।

सासाराम के वरिष्ठ पत्रकार विनोद तिवारी कहते हैं शाहाबाद गजेटियर में दर्ज फ्रांसिस बुकानन नामक अंग्रेज विद्वान की टिप्पणियों के अनुसार, गुफा में जलने के कारण उसका आधा हिस्सा काला होने के सबूत आज भी देखने को मिलते हैं।

उपन्यासकार देवकी नंदन खत्री ने अपने चर्चित उपन्यास चंद्रकांता में विंध्य पर्वत, शृंखला की जिन तिलस्मी गुफाओं का जिक्र किया है, संभवतः उन्हीं गुफाओं में गुप्ताधाम की यह रहस्यमयी गुफा भी है।

वहां धर्मशाला व कुछ कमरे अवश्य बने हैं, परंतु अधिकांश जर्जर हो चुके हैं। गुप्ताधाम गुफा के अंदर ऑक्सीजन की कमी से वर्ष 1989 में हुई आधा दर्जन से अधिक श्रद्धालुओं की मौत की घटना को याद कर आज भी लोग सिहर उठते हैं।

बैरिया गांव में लोगो ने बताया की प्रशासन की ओर से यहां कुछ ऑक्सीजन सिलेंडर भेजे जाने लगे थे। प्रशासन की ओर से चिकित्सा शिविर भी लगता था, परंतु वन विभाग द्वारा इस क्षेत्र को अभयारण्य घोषित किए जाने के बाद प्रशासनिक स्तर पर दी जा रही सुविधा बंद कर दी गई हैं।

अब समाजसेवियों के सहारे ही इतना बड़ा मेला चलता है। जिला मुख्यालय सासाराम से करीब 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस गुफा में पहुंचने के लिए रेहल, पनारी घाट और उगहनी घाट से तीन रास्ते हैं जो अतिविकट व दुर्गम हैं। दुर्गावती नदी को पांच बार पार कर पांच पहाडियों की यात्रा करने के बाद लोग यहां पहुंचते हैं।

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Wednesday 30 March 2016

Padmanabhaswamy temple secrets in hindi

पद्मनाभस्वामी मंदिर और तहख़ाने के खजाने का ये रहस्य जान आप चौक जाएँगे 

                                                       Padmanabhaswamy temple story

पद्मनाभस्वामी मंदिर भारत के केरल राज्य के 'तिरुअनन्तपुरम' में स्थित भगवान विष्णु का प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल यह ऐतिहासिक मंदिर तिरुअनंतपुरम के अनेक पर्यटन स्थलों में से एक है।

केरल की राजधानी तिरूअनंतपुरम में स्थित पद्मनाभ स्वामी मंदिर के पास अकूत संपत्ति है।तिरुअनंतपुरम नाम भगवान के 'अनंत' नामक नाग के नाम पर ही रखा गया है। यहाँ पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को 'पद्मनाभ' कहा जाता है ।

माना जाता है कि इस मंदिर के पास 2 लाख करोड़ रुपए की दौलत है।  2011 में कैग की निगरानी में पद्मनाभस्वामी मंदिर से करीब एक लाख करोड़ रुपए मूल्य का खजाना निकाला जा चुका है। अभी मंदिर का एक तहखाना खुलना बाकी है।

Padmanabhaswamy temple sixth snake door

कैग ने कहा था , मंदिर की कहानियां झूठी :-

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूर्व नियंत्रक लेखा महापरीक्षक (CAG) विनोद राय ने मंदिर के तहखानों की कहानियों को खारिज किया था। 2011 में कैग की निगरानी में पद्मनाभस्वामी मंदिर से करीब एक लाख करोड़ रुपए मूल्य का खजाना निकाला गया था।

हालांकि उस वक्त कई प्रचलित कहानियों के चलते मंदिर के छठे तहखाने को नहीं खोला गया था। कहानी के मुताबिक मंदिर के तहखानों में कोबरा जैसे जहरीले सांप मौजूद हैं, जो इस खजाने की रक्षा करते हैं और किसी को तहखाने में जाने की इजाजत नहीं है।

पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुडी है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा प्राप्त हुई थी जिसके बाद उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया है। 1733 ई. में इस मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावनकोर के महाराजा मार्तड वर्मा ने करवाया था।

                                             Treasure Temple  Padmanabhaswamy , Kerala

मंदिर से जुड़ी मान्यता  :-

मंदिर हजारों साल पुराना है। इसकी स्थापना कब हुई थी, इस बारे में एकराय नहीं है। कहा जाता है कि यह मंदिर दो हजार साल पुराना है। वहीं त्रावणकोर के इतिहासकार डॉ. एलए रवि वर्मा का दावा है कि इस मंदिर की स्थापना कलियुग के पहले दिन में हुई थी। यह भी माना जाता है कि मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ती की स्थापना कलियुग के 950 वें साल में हुई थी।

त्रावणकोर राजघराने से संबंध :-

मंदिर का मौजूद स्वरूप त्रावणकाेर के राजाओं ने बनवाया। कहा जाता है कि 1750 में त्रावणकाेर के महाराजा मार्तण्ड वर्मा ने खुद को पद्मनाभ स्वामी का दास बताया था, इसके बाद पूरा शाही खानदान मंदिर की सेवा में लग गया था। यह भी माना जाता है कि मंदिर में मौजूद अकूत संपत्ति त्रावणकोर शाही खानदान की ही है।

1947 में जब भारत सरकार हैदराबाद के निजाम की संपत्ति अपने अधीन कर रही थी, तो त्रावणकोर राजघराने ने अपनी दौलत मंदिर में रख दी। उस वक्त त्रावणकोर रियासत का तो भारत में विलय हो गया। उस वक्त रियासत की संपत्ति भारत सरकार ने अपने अधीन की, लेकिन मंदिर शाही खानदान के पास ही रहा।

इस तरह राजघराने ने अपनी संपत्ती बचा ली, लेकिन इस कहानी का कोई प्रमाण अब तक सामने नहीं आया है। अब यह मंदिर शाही खानदान द्वारा बनाया गया ट्रस्ट चलाता है।

टीपू सुल्तान का हमला  :-


टीपू सुल्तान ने इस मंदिर पर हमला भी किया था। कहा जाता है कि 1790 में टीपू सुल्तान ने मंदिर पर कब्जे के लिए हमला किया था, लेकिन कोच्चि के पास उसे हरा दिया गया।


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Tuesday 29 March 2016

Guru Gorakhnath History

गुरु गोरखनाथ कथा सिद्ध करती है की बाबा अमर और चारों युगों में मोजूद हैं   



सनातन पथ ब्लॉग आज आपको बताने जा रहा है, एक ऐसे योगी की अमर कथा जिससे प्रभु राम और श्रीकृष्ण भी चमत्कृत थे । देवता किसी भी समय किसी भी स्थान, किसी भी काल में उपस्थित हो सकते हैं। लेकिन क्या मनुष्य के लिए हर युग में रहना संभव है? कहते हैं मानव शरीर नश्वर होता है लेकिन क्या इस नश्वर शरीर के बावजूद वह मौत को जीतकर हर युग में उपस्थित रह सकता है?

हठयोग के प्रवर्तक बाबा गोरक्षनाथ (सामान्यजन की भाषा में गोरखनाथ) के विषय में ऐसा ही कहा जाता है कि मनुष्य होने के बावजूद उन्होंने चारों युग में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई है। नाथ परंपरा को सुव्यवस्थित तरीके से प्रचारित कर इसका विस्तार करने वाले बाबा गोरखनाथ, मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य और स्वयं शिव के अवतार थे।

बाबा गोरखनाथ को शिव का अवतार भी कहा जाता है, जिससे जुड़ी एक कथा प्रचलित है। कहते हैं एक बार गोरखनाथ तप में लीन थे। उन्हें देखकर देवी पार्वती ने शिव से उनके विषय में पूछा। पार्वती से वार्तालाप करते हुए शिव ने उन्हें कहा कि धरती पर योग के प्रसार के लिए उन्होंने ही गोरक्षनाथ के रूप में अवतार लिया है।

गुरु गोरखनाथ को गोरक्षनाथ भी कहा जाता है। इनके नाम पर एक नगर का नाम गोरखपुर है। गोरखनाथ नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखपंथी साहित्य के अनुसार आदिनाथ स्वयं भगवान शिव को माना जाता है। शिव की परम्परा को सही रूप में आगे बढ़ाने वाले गुरु मत्स्येन्द्रनाथ हुए। ऐसा नाथ सम्प्रदाय में माना जाता है।

गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणीधान को अधिक महत्व दिया है। इनके माध्‍यम से ही उन्होंने हठयोग का उपदेश दिया। गोरखनाथ शरीर और मन के साथ नए-नए प्रयोग करते थे।

गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात समाधि से मुक्त हो जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ पर परम शक्ति का अनुभव होता है। 


गोरखनाथ का जीवन अपने आप में अद्भुत था। उन्हें हर युग में देखा गया और संबंधित घटनाओं के साथ उनके रिश्तों को भी जोड़ा गया। सर्वप्रथम सतयुग में उन्होंने पंजाब में तपस्या की थी, उसके बाद त्रेतायुग में उन्होंने उत्तर प्रदेश के एक स्थान गोरखपुर में रहकर ही साधना की, जहां उन्हें राम के राज्याभिषेक के लिए भी निमंत्रण भेजा गया था। लेकिन उस दौरान वे तपस्या में लीन थे इसलिए वह खुद तो ना पहुंच सके हालांकि अपना आशीर्वाद राम के लिए भेजा था।

द्वापरयुग में जूनागढ़, गुजरात में स्थित गोरखमढ़ी में गोरखनाथ ने तप किया था। इसी स्थान पर रुक्मिणी और कृष्ण का विवाह भी संपन्न हुआ था। इस अलौकिक विवाह में देवताओं के आग्रह के बाद गोरखनाथ ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी।

जब धर्मराज युद्धिष्ठिर द्वारा किया जा रहा राजसूय यज्ञ संपन्न होने जा रहा था तब स्वयं भीम उन्हें आमंत्रित करने के लिए गए थे। जब भीम वहां पहुंचे तब गोरखनाथ तप में लीन थे, इसलिए भीम को काफी लंबे समय तक उनका इन्तजार करना पड़ा।

कहते हैं जिस स्थान पर विश्राम करते हुए भीम ने गोरखनाथ का इंतजार किया था, धरती का वह भाग भीम के भार की वजह से दबकर सरोवर बन गया था। आज भी मंदिर के प्रांगण में वह सरोवर मौजूद है। प्रतीक के रूप में उस स्थान पर भीम की विश्राम करती हुई मूर्ति को भी स्थापित किया गया है।

गोरखनाथ जी ने नेपाल और पाकिस्तान में भी योग साधना की। पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में स्थित गोरख पर्वत का विकास एक पर्यटन स्थल के रूप में किया जा रहा है। इसके निकट ही झेलम नदी के किनारे राँझा ने गोरखनाथ से योग दीक्षा ली थी। नेपाल में भी गोरखनाथ से सम्बंधित कई तीर्थ स्थल हैं। उत्तरप्रदेश के गोरखपुर शहर का नाम गोरखनाथ जी के नाम पर ही पड़ा है। यहाँ पर स्थित गोरखनाथ जी का मंदिर दर्शनीय है।

बंगाल से  पश्चिमी भारत तक और सिंध से पंजाब में गोपीचंद, रानी पिंगला और भर्तृहरि से जुड़ी एक और मान्यता भी है। इसके अनुसार गोपीचंद की माता मानवती को भर्तृहरि की बहन माना जाता है। भर्तृहरि ने अपनी पत्नी रानी पिंगला की मृत्यु के पश्चात् अपनी राजगद्दी अपने भाई उज्जैन के विक्रमादित्य के नाम 
कर दी थी। भर्तृहरि बाद में गोरक्षनाथी बन गये थे।

एक अन्य कथा के अनुसार एक बार राजकुमार बप्पा रावल, किशोरावस्था में अपने दोस्तों और साथियों के साथ शिकार पर गए। जब वे जंगल पहुंचे तो उन्हें गोरखनाथ तप में लीन अवस्था में दिखे। उन्होंने वहीं रहकर गोरखनाथ की सेवा करनी शुरू कर दी। जब गोरखनाथ अपने ध्यान से जागे तब उन्होंने बप्पा रावल को देखा और उनकी सेवा से वे बहुत प्रसन्न हुए। गोरखनाथ ने बप्पा को एक तलवार भेंट की, जिसके बल पर चित्तौड़ राज्य की स्थापना हुई

पंजाब में एक मान्यता के अनुसार राजा रसालु और उनके सौतेले भाई पुरान भगत भी गोरक्षनाथ से संबंधित थे। रसालु का यश अफगानिस्तान से लेकर बंगाल तक फैला हुआ था और पुरान पंजाब के एक प्रसिद्ध संत थे। ये दोनों ही गोरक्षनाथ जी के शिष्य बने और पुरान तो एक प्रसिद्ध योगी बने। जिस कुँए के पास पुरान वर्षो तक रहे, वह आज भी सियालकोट में विराजमान है। रसालु सियालकोट के प्रसिद्ध सालवाहन के पुत्र थे।

गोरखनाथ के चमत्कारों से जुड़ी भी कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनके अनुसार राजस्थान के प्रख्यात गोगाजी का जन्म भी गोरखनाथ जी द्वारा दिए गए वरदान से ही हुआ था। गोरखनाथ ने उन्हें गूगल नामक फल प्रसाद के तौर पर दिया जिसे ग्रहण करने के बाद वे गर्भवती हो गईं। गूगल फल से ही उनका नाम गोगाजी पड़ा, जो आगे चलकर राजस्थान के ख्याति प्राप्त राजा बने।

गोगामेडी में गोगा जी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिदनुमा बना हुआ है,  इसकी मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती हैं। कहा जाता है कि फिरोजशाह तुगलक सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरे थे। रात के समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रही है। 

तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया। तुगलक की सेना के साथ आए धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई महान सिद्ध है जो प्रकट होना चाहता है। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद आते समय गोगामेडी में मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया। यहाँ सभी धर्मो के भक्तगण गोगा मजार के दर्शनों हेतु भादौं (भाद्रपद) मास में उमड़ पडते हैं।

कुछ ऐसी भी कथाएं हैं जो बाबा गोरखनाथ के जीवनकाल को बहुत पहले और बहुत बाद में भी प्रदर्शित करती हैं। ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार तेरहवीं शताब्दी में गोरखपुर स्थित मठ को ढहा दिया गया। यह इस बात का प्रमाण है कि गोरखनाथ तेरहवीं शताब्दी से भी बहुत पहले उपस्थित थे। लेकिन फिर संत कबीर और गुरुनानक देव के साथ उनका संवाद यह प्रमाणित करता है कि वे बहुत बाद में भी थे।

कलियुग में तो उनके अनेक स्थानों पर प्रकट होकर योग साधकों को दर्शन देने जैसी घटनाएं सुनी जाती रही हैं। कलियुग में सौराष्ट्र के काठियावाड़ जिले के गोरखमढ़ी स्थान को उन्होंने तप कर धन्य किया है। इन सब घटनाओं के आधार पर गोरखनाथ को चिरंजीवी मान लिया गया है।

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