Sunday 15 November 2015

The 8 lines of the palm of your hand says wealth Lakshmi Yoga

                     हथेली की ये 8 रेखाएं बताती हैं आपके हाथों धन लक्ष्मी में योग




हर व्यक्त‌ि चाहता है क‌ि मां लक्ष्मी की कृपा उस पर हो जाए और घर धन-धान्य से भर जाए। शास्‍त्रों में बताया गया है क‌ि जो भी व्यक्त‌ि श्रद्धा पूर्वक देवी लक्ष्मी की साधना और आराधना करते हैं माता उस पर कृपा करती है। लेक‌िन हथेल‌ी में 8 ऐसी रेखाएं मौजूद हैं तो लक्ष्‍मी की कृपा आप पर सबसे ज्यादा रहगी। आप न‌िश्च‌ित रुप से धनवान और मालामाल होते रहेंगे।


1. - आपकी हथेली में अगर शन‌ि पर्वत यानी मध्यमा उंगली और बुध पर्वत यानी छोटी उंगली के पास एक वलय यानी र‌िंग बना हो। यह वलय एक रेखा से जुड़ा हो तो आपकी हथेली में लक्ष्मी योग बनता है। ऐसे व्यक्त‌ि चतुर और बोल-चाल की कला में न‌िपुण होते हैं। यह अपने व्यक्त‌ित्व से प्रशंसा और ख्यात‌ि पाते हैं। धन के मामले भी यह संपन्न होते हैं।


2. - अगर आपकी हथेली में मण‌िबंध यानी हथेली के अंत‌िम स‌िरे शुरु होकर कोई रेखा सीधे शन‌ि पर्वत तक पहुंचे साथ ही चन्द्र पर्वत से शुरु होकर एक रेखा सूर्य पर्वत यानी अनाम‌िका उंगली तक आए तो यह महालक्ष्मी योग बनाता है। ऐसी रेखा बहुत ही दुर्लभ होती है। ज‌िनकी हथेली में पायी जाती है वह धनवान और हर प्रकार के सुख-साधनों को पाने वाले होते हैं।


3. - आपकी हथेली में गुरु, चन्द्रमा, शुक्र और बुध पर्वत उन्नत एवं लाल‌िमा ल‌िए हो तो आप राजलक्ष्मी योग वाले व्यक्त‌ि हैं। अपने नाम के अनुसार यह योग व्यक्त‌ि को राजा के समान सुख और वैभव द‌िलाता है।


4. - आपकी हथेली मण‌िबंध रेखा से भाग्य रेखा, सूर्य रेखा और बुध रेखा न‌िकल रही है तो आप नवलक्ष्मी योग वाले व्यक्त‌ि हैं। ऐसे व्यक्त‌ि शुरू में तो खूब पर‌िश्रम करते हैं लेक‌िन उम्र बढ़ने के साथ अपार धन के स्वामी बन जाते हैं।



5. - हथेली में तराजू का च‌िन्ह श्रीमहालक्ष्मी योग कहलाता है। ऐसे व्यक्त‌ि आर्थ‌िक रूप से समृद्ध‌ होने के साथ ही प्रस‌िद्ध और धार्म‌िक व‌िचारों वाले होते हैं। इनमें न्याय की भावना होती है। ऐसे व्यक्त‌ि व्यवसाय में बहुत ही सफल होते हैं।



6. - हथेली में भाग्य रेखा साफ और स्पष्ट रूप से आकर सूर्य पर्वत पर आकर ठहरती है तो इसे भाग्य योग और भाग्य लक्ष्‍मी योग कहते हैं। ऐसे व्यक्त‌ि बचपन से ही धन और वैभव में जीवन बीताते हैं।



7. - हथेली में भाग्यरेखा शन‌ि पर्वत से आगे बढ़कर मध्यमा के दूसरे पोर तक पहुंचती हैं वह भाग्योदय योग वाले व्यक्त‌ि होते हैं। ऐसे व्यक्त‌ि का भाग्योदय बचपन में ही हो जाता है और पूरा जीवन धन धान्य से भरपूर होता है।



8. - सूर्य पर्वत का स्‍थान उठा हुआ हो और सूर्य रेखा हथेली के मध्य में आकर शुक्र की ओर मुड़ रही है तो आप राजराजेश्वर योग वाले व्यक्त‌ि हैं। आपका जीवन सुख-संपत्त‌ि और धन-धान्य से पूर्ण होगा।


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Saturday 14 November 2015

padmanabhaswamy temple is located in Kerala capital Thiruvananthapuram

                     कलियुग के पहले दिन हुई थी इस मंदिर की स्थापना


केरल की राजधानी तिरूअनंतपुरम में स्थित पद्मनाभ स्वामी मंदिर के पास अकूत संपत्ति है। माना जाता है कि इस मंदिर के पास 2 लाख करोड़ रुपए की दौलत है। 2011 में कैग की निगरानी में पद्मनाभस्वामी मंदिर से करीब एक लाख करोड़ रुपए मूल्य का खजाना निकाला जा चुका है। अभी मंदिर का एक तहखाना खुलना बाकी है। इसीलिए इसे भारत का सबसे अमीर मंदिर कहा जाता है।
क्या है मंदिर से जुड़ी मान्यता?
मंदिर हजारों साल पुराना है। इसकी स्थापना कब हुई थी, इस बारे में एकराय नहीं है। कहा जाता है कि यह मंदिर दो हजार साल पुराना है। वहीं त्रावणकोर के इतिहासकार डॉ. एलए रवि वर्मा का दावा है कि इस मंदिर की स्थापना कलियुग के पहले दिन में हुई थी। यह भी माना जाता है कि मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ती की स्थापना कलियुग के 950वें साल में हुई थी।


त्रावणकोर राजघराने से क्या है संबंध?
मंदिर का मौजूद स्वरूप त्रावणकाेर के राजाओं ने बनवाया। कहा जाता है कि 1750 में त्रावणकाेर के महाराजा मार्तण्ड वर्मा ने खुद को पद्मनाभ स्वामी का दास बताया था, इसके बाद पूरा शाही खानदान मंदिर की सेवा में लग गया था। यह भी माना जाता है कि मंदिर में मौजूद अकूत संपत्ति त्रावणकोर शाही खानदान की ही है। 1947 में जब भारत सरकार हैदराबाद के निजाम की संपत्तिअपने अधीन कर रही थी, तो त्रावणकोर राजघराने ने अपनी दौलत मंदिर में रख दी। उस वक्त त्रावणकोर रियासत का तो भारत में विलय हो गया। उस वक्त रियासत की संपत्ति भारत सरकार ने अपने अधीन की, लेकिन मंदिर शाही खानदान के पास ही रहा। इस तरह राजघराने ने अपनी संपत्ती बचा ली, लेकिन इस कहानी का कोई प्रमाण अब तक सामने नहीं आया है। अब यह मंदिर शाही खानदान द्वारा बनाया गया ट्रस्ट चलाता है।


टीपू सुल्तान कर चुका है हमला
टीपू सुल्तान ने इस मंदिर पर हमला भी किया था। कहा जाता है कि 1790 में टीपू सुल्तान ने मंदिर पर कब्जे के लिए हमला किया था, लेकिन कोच्चि के पास उसे हरा दिया गया।

कैग ने कहा था- मंदिर की कहानियां झूठी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूर्व नियंत्रक लेखा महापरीक्षक (CAG) विनोद राय ने मंदिर के तहखानों की कहानियों को खारिज किया था। 2011 में कैग की निगरानी में पद्मनाभस्वामी मंदिर से करीब एक लाख करोड़ रुपए मूल्य का खजाना निकाला गया था। हालांकि उस वक्त कई प्रचलित कहानियों के चलते मंदिर के छठे तहखाने को नहीं खोला गया था। एस कहानी के मुताबिक मंदिर के तहखानों में कोबरा जैसे जहरीले सांप मौजूद हैं, जो इस खजाने की रक्षा करते हैं और किसी को तहखाने में जाने की इजाजत नहीं है।


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Wednesday 11 November 2015

Why are lit lamp Know Now

क्यों जलाए जातें हैं दीपक , जानें अभी




ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो हम पायेंगे कि इस समय सूर्य नारायण जो कि समस्त ब्राहमण्ड के राजा हैं और आत्मकारक कहे जाते हैं, वे इस समय अपनी नीच राशि तुला पर गोचर कर रहे होते हैं। सूर्य जब नीच राशि पर गोचर करते हैं तो संसार में भी अद्भुत परिवर्तन करने की ताकत रखते हैं। शायद हमारे ऋषियों ने यह जाना होगा कि इस समय सूर्य पृथ्वी से अत्यधिक विपरीत परिस्थितियों में होते हैं !
जबकि पृथ्वी पर रहने वाले लोगों को सूर्य का प्रकाश व उस प्रकाश में निहित शक्तियां विपरीत क्रम में प्राप्त होती है इसलिए किसी विशेष प्रकाश रूपी अग्नि तव की जातकों को आवश्यकता प़ड सकती है। ऋषियों ने यह भी जान लिया था कि इस समय चंद्र, सूर्य से समुचित मात्रा में प्रकाश का ग्रहण नहीं कर पाते होंगे इसलिए भी रात्रि में दीप जलाने की प्रथा प्रारम्भ की होगी। कार्तिक मास पूरा का पूरा और उसका प्रत्येक दिन भारतीय परम्परा के अनुसार दीप प्रज्ज्वलन का होता है।
भारत देश में विशेष तौर पर उत्तरी भारत में कार्तिक स्नान की परम्परा अत्यधिक व्याप्त है। इस मास में सूर्य उदय से चार घटी पूर्व शैय्या त्याग का विधान है। स्त्री व पुरूष दोनों ही, विशेष रूप से स्त्रयां इस मास में सूर्य उदय से पूर्व स्नान करती हैं और कार्तिक मास पुराण का श्रवण करती हैं। उस पुराण का महत्व बहुत अधिक है। उसकी कथाओं में प्रत्येक दिन किसी न किसी रूप में भोर से पूर्व व सांझ होने के समय दीपक जलाने का महत्व है और इन पौराणिक कथाओं से भाव-विभोर होकर के पूरी श्रद्धा के साथ सद्गृहस्थों की गृहणियां दीप प्रज्ज्वलित करती हैं। दीपावली को अत्यधिक मात्रा में दीपक जलाने की आवश्यकता ऋषियों ने बतायी क्योंकि अमावस्या की रात्रि होती है जो घोर अंधकार से व्याप्त होती है। चंद्र दर्शन के अभाव से भी यह और अंधियारी हो जाती है।
एक तो पूरे में मास ही सूर्य के नीच राशि में गोचर के कारण प्रकाश की विशेष कमी होना, उसमें भी यदि अमावस्या तिथि हो तो प्रकाश की कमी की कल्पना ही की जा सकती है। ऎसे में प्रकृति से संतुलन बनाए रखने के लिए विशेष प्रकाश शक्ति प्राप्त करने हेतु अत्यधिक मात्रा में दीप जलाये जाते हैं। शायद दीपावली के इस पर्व को मनाने व इसमें अत्यधिक दीपक जलाने, रोशनी करने, फूलझ्डी, पटाखे जलाने के पीछे रहस्य यही रहा होगा। भारतीय मान्यताओं के अनुसार दीपावली को लेकर विविध
प्रकार की कथाओं का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है लेकिन उक्त प्रमाण भी इस पर्व की प्रारम्भिक अवस्थाओं को लेकर सिद्ध प्रतीत होता है। इसलिए दीप प्रज्ज्वलन को मात्र एक परम्परा या रूढि मानकर के नहीं औषधीय रूप में भी लेना चाहिए और अपने-अपने परिवार व इस जगत के कल्याण व सुख-समृद्धि हेतु अवश्यमेव पूरी श्रद्धा के साथ इस त्यौहार को सविधि मनाकर दीप प्रज्ज्वलन करना चाहिए।
दीपावली के दिन दीप प्रज्ज्वलन का सर्वश्रेष्ठ समय सायं सूर्यास्त के गोचर के कारण प्रकाश की विशेष कमी होना, उसमें भी यदि अमावस्या तिथि हो तो प्रकाश की कमी की कल्पना ही की जा सकती है। ऎसे में प्रकृति से संतुलन बनाए रखने के लिए विशेष प्रकाश शक्ति प्राप्त करने हेतु अत्यधिक मात्रा में दीप जलाये जाते हैं। शायद दीपावली के इस पर्व को मनाने व इसमें अत्यधिक दीपक जलाने, रोशनी करने, फूलझ्डी, पटाखे जलाने के पीछे रहस्य यही रहा होगा। भारतीय मान्यताओं के अनुसार दीपावली को लेकर विविध
प्रकार की कथाओं का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है लेकिन उक्त प्रमाण भी इस पर्व की प्रारम्भिक अवस्थाओं को लेकर सिद्ध प्रतीत होता है। इसलिए दीप प्रज्ज्वलन को मात्र एक परम्परा या रूढि मानकर के नहीं औषधीय रूप में भी लेना चाहिए और अपने-अपने परिवार व इस जगत के कल्याण व सुख-समृद्धि हेतु अवश्यमेव पूरी श्रद्धा के साथ इस त्यौहार को सविधि मनाकर दीप प्रज्ज्वलन करना चाहिए। दीपावली के दिन दीप प्रज्ज्वलन का सर्वश्रेष्ठ समय सायं सूर्यास्त के पश्चात् का होता है जबकि प्रदोषकाल होता है।
प्रदोषकाल के साथ-साथ स्थिर लग्न व चतुर्घटिका मुहूर्त भी शुद्ध हो तो सर्वश्रेष्ठ होता है। गृहस्थ में गृहलक्ष्मी का पूजन करने हेतु प्रदोषकाल व शुभ, लाभ, अमृत के चतुर्घटिका मुहूर्त जब प्राप्त हा , उसी समय सर्वप्रथम दीप प्रज्ज्वलन करके ही पराशक्ति श्री महालक्ष्मी की पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए। इस प्रकार से पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती हैं, परिवार की वृद्धि होती है, धन-धान्य की वृद्धि होती है,
परिवार मे सुख-शांति आती है। कहा जाता है कि घर की प्रधान सौभाग्यशाली सुहागिनी जो स्त्री होती है वह दीपावली की अर्द्धरात्रि में अपने घर की झ़ाडू लगाएं, आंगन की झाडू लगाएं और अर्द्धरात्रि होने से कुछ पूर्व ही घर के सारे कचरे को बाहर भवन से नैऋत्य में डाल दें। पश्चात् घर के प्रधान आंगन में हो सके तो गाय का गोबर लेकर उसको वर्गाकार लीपें। उस पर आटा, हल्दी, गुलाल आदि के द्वारा रंगोली बनाएं और एक बडा दीपक प्रज्ज्वलित करें।
जिस घर में यह दीपक जलता है उस घर में महालक्ष्मी नारायण भगवान के साथ गरूड पर बैठकर के श्री गणेश जी अर्थात् सद्बुद्धि के साथ एवं महा सरस्वती रूपी श्रेष्ठ वाणी एवं महाकाली रूपी आलस्य नाशिनी शक्ति के रूप में घर में प्रवेश करती हैं और परिवार को समृद्ध करती हैं। अलक्ष्मी के दोष का निवारण व शुभलक्ष्मी की प्राप्ति और उस प्राप्ति की चिरकाल तक स्थापना घर में अथवा व्यापार में करने के लिए निश्चित रूप से पूरी श्रद्धा के साथ दीपावली पर्व को दीप प्रज्ज्वलनोत्सव के रूप में मनाएं और सुख-समृद्धि पाएं।

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Tuesday 10 November 2015

Why is prayer important in the use of copper urn

पूजा में तांबे के कलश का उपयोग है जरूरी , क्यों ?



जिन नई तकनीकों का हवाला आज वैज्ञानिक देते हैं, वह सब कुछ युगों पहले हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में अपनी जगह बना चुके थे। फर्क सिर्फ इतना है कि किसी कारण वश वह जानकारी समय रहते सब तक पहुंच नहीं पाई। लेकिन वैज्ञानिक भी वेदों में दी गई रचनाओं को देख हैरान हो जाते हैं। कुछ इसी तरह का आविष्कार था ‘बैक्टीरिया’ का।

बैक्टीरिया यानी की कीटाणुओं का हमारे आसपास मौजूद होने का दावा आयुर्वेद द्वारा आधुनिक विज्ञान से बहुत पहले ही अपनी रचनाओं में किया गया था। इस बात को साबित करने का सबसे पहला उदाहरण है आयुर्वेद द्वारा तांबे के बर्तन में पानी पीने का महत्व।


मनुष्य के स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण समझते हुए आयुर्वेद ने तांबे के बर्तन में ही पानी पीने की सलाह दी है। आयुर्वेद का मानना है कि पानी में विभिन्न प्रकार के कीटाणु होते हैं जो तांबे से बने हुए बर्तन में पानी को डालने से मर जाते हैं। यही खोज वर्षों बाद विज्ञान द्वारा भी की गई थी।


केवल पानी पीने के लिए ही क्यों, युगों से तांबे से बने बर्तनों का प्रयोग बेहद पवित्र रूप से किया जा रहा है। यदि आपने कभी ध्यान दिया हो तो किसी भी पूजा अथवा हवन या फिर किसी भी भगवान की आराधना में जिन बर्तनों का हम प्रयोग करते हैं वह तांबे के ही बने होते हैं।

यहां तक कि सूर्य नमन करते समय भी इस्तेमाल किया जाने वाला ग्लास तांबे का ही होता है। हिन्दू धर्म में सूर्य नमन या फिर सरल भाषा में कहें तो सूर्य को पानी देने का बहुत बड़ा महत्व है। हिन्दू धर्म में सुबह उठने के बाद साफ-सुथरे ढंग से नहाने के पश्चात् सबसे पहले सूर्य भगवान को जल चढ़ाने की मान्यता है।

बच्चे हों या बूढ़े या फिर जवान, सभी सूर्य भगवान को जल अर्पित करने को अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। लेकिन यूं ही अपने तरीके से सूर्य भगवान का नमन नहीं किया जाता। इसे करने के बकायदा कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं। जिसमें नहा कर, साफ कपड़े पहनकर तांबे के बर्तन में जल भर कर सूर्य नमन किया जाता है।


तांबे के ही बर्तन द्वारा जल अर्पित करना अनिवार्य है। सूर्य नमन के अलावा हर प्रकार की पूजा में भी तांबे से बना हुआ ही कलश इस्तेमाल किया जाता है। इसके पीछे एक अहम कारण छिपा है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार संसार में मौजूद सभी धातुओं में से सबसे पवित्र धातु ‘तांबा’ ही है।

केवल हिन्दू मान्यताएं ही नहीं, बल्कि विज्ञान का भी यह कहना है कि तांबे का बर्तन सबसे शुद्ध होता है। क्योंकि उसे बनाने के लिए किसी भी अन्य धातु का प्रयोग नहीं होता। इसी शुद्धता को तवज्जो देते हुए हिन्दू धर्म में तांबे के प्रयोग पर ज़ोर दिया जाता है।

धार्मिक पहलू के अलावा चिकित्सिकीय संदर्भ से भी तांबे से बने बर्तन को इस्तेमाल करने का बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि यदि रात को तांबे के पात्र में पानी रख दें और सुबह इस पानी को पीयें तो अनेक फायदे होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह पानी शरीर के कई दोषों को शांत करता है।


तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी उसमें घंटों तक रखने से साफ हो जाता है। उसके अंदर के सारे कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही यह पानी पीने से व्यक्ति के भीतर मौजूद कीटाणु एवं जहरीले तत्व बाहर निकल जाते हैं।

डॉक्टर की सलाह मानें तो रात को तांबे के बर्तन में पानी भर कर रख देना चाहिए। इसे कम से कम 8 घंटे तक रखना चाहिए नहीं तो इसका उच्चत्तम लाभ पाना कठिन है। सुबह उठने पर इस पानी के कम से कम तीन गिलास पीना चाहिए और इसे पीने के बाद 45 मिनटों तक कुछ भी खाना नहीं चाहिए।

ऐसा करने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं जिसमें से पहला है पाचन शक्ति का मजबूत होना। कम से कम आठ घंटों तक तांबे के बर्तन में रखे हुए पानी का जब सेवन किया जाता है तो वह हमारे अंदर से एसिडिटी या गैस या पेट की किसी भी प्रकार की समस्या को कम करता है। यह पानी धीरे-धीरे शरीर के अंदर के कीटाणुओं को नष्ट करता है।


इसके अलावा त्वचा को चमकदार बनाने में भी लाभकारी है तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीना। बाज़ार में मिलने वाले किसी भी कॉस्मेटिक क्रीम या फिर फेस पैक से बेहतर काम करता है तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी। हो सकता है कि बाज़ारू क्रीम लगाने से आपके चेहरे पर चमक आ जाए, लेकिन तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने से पूरी शरीर की त्वचा पर चमक आ जाती है।

इस पानी को पीने से स्किन पर ग्लो आता है व साथ ही अनचाही झुर्रियों से भी छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही स्किन का ढीलापन कम होता है और साथ ही डेड स्किन भी निकल जाती है। स्किन के अलावा किसी प्रकार के शारीरिक रोग को भी दूर करके फायदा देता है यह खास पानी।

यदि नियमित रूप से तांबे के पात्र में रखे हुए पानी का सेवन किया जाए तो खांसी जैसी दिक्कत होना असंभव है। इस पानी में रात को तुलसी डाल दी जाए और सुबह पी लिया जाए तो खांसी छूमंतर हो जाती है। इसके साथ ही आजकल हर किसी को अपनी चपेट में ले चुकी थायराइड की दिक्कत भी कम हो जाती है।



शरीर में उत्पन्न होने वाले थायराक्सिन हार्मोन के असंतुलन के कारण ही थायराइड की बीमारी होती है। इन्हीं हार्मोन को नियंत्रण करता है कॉपर के स्पर्श वाला पानी। थायराइड के साथ गठिये की दिक्कत को भी दूर करता है तांबे के पात्र में रखा हुआ पानी।

गठिया एक ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति के शरीर को धीरे-धीरे जकड़ लेती है। शरीर में जिन स्थानों पर जोड़ मौजूद होते हैं, जैसे कि कलाई एवं हाथ का जोड़, घुटने, आदि जगहों पर गांठ बनने लगती है। यह बीमारी शरीर में एक प्रकार के एसिड जिसे यूरिक एसिड कहा जाता है, इसके बनने से होती है।

तांबे के बर्तन की सहायता से यही यूरिक एसिड कम किया जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि तांबे से बनी धातु यूरिक एसिड को काटने का काम करती है। परिणाम स्वरूप यदि ऐसे बर्तन में रखा हुआ पानी पिया जाए तो यह शरीर के अंदर से यूरिक एसिड को बाहर निकालता है।



पानी शरीर में खून की कमी को दूर करता है। इसे पीने वालों को कभी हृदय रोग नहीं होता तथा साथ ही कैंसर से लड़ने में भी सहायक है तांबे के पात्र में रखा हुआ पानी। इसके साथ ही यदि किसी का वजन तमाम कोशिशों के बाद भी कम नहीं हो रहा तो आज से ही तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीना अवश्य शुरू कर दें।


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Ganesh idols are destined to make

गणेश जी की ये मूर्तियां किस्मत बना देती हैं



वास्तु शास्त्र प्योर साइंस है जो सकारात्मक तथा नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह की बात करता है। लेकिन जब लोग बिना समझ के वास्तु के उपायों को गलत तरीके से उपयोग कर लेते हैं, तब वे हताश होकर इसे अंधविश्वास करार देते हैं। लेकिन तथ्यो की मानें तो यह सच में जोड़-तोड़ का विज्ञान ही है, जो हमारे कोशिश करने से ही फलित साबित होता है।

वास्तु शास्त्र के भीतर रोग काटने, खुशी पाने, घर में सुख-शांति पाने और यहां तक कि फैमिली प्लानिंग से संबंधित उपाय भी हैं। लोग समय-समय पर इनका इस्तेमाल करके घर में सुख एवं स्मृद्धि लाते हैं, कुछ ऐसा ही एक उपाय हमारे पास है।

तो आज हम आपको गणेश जी से संबंधित एक वास्तु टिप देने जा रहे हैं, जिसके मुताबिक कुल ऐसी पांच गणेश जी की प्रतिमाएं हैं जिन्हें यदि घर में रखा जाए तो घन एवं स्मृद्धि उस घर में जरूर आती है।

यूं तो शिव के पुत्र गणेश जी हर रुप में शुभ और मंगलकारी माने जाते हैं, लेकिन फियर भी यह 5 प्रकार की गणेश कि मूर्तिु का घर में होना बहुत ही लाभकारी माना गया है। आगे की स्लाइड्स में जानें वह मूर्तियां जो यदि आप अपने घर में लाएंगे तो जरूर गणेश जी की आपार कृपा होगी।

आम, पीपल और नीम से बनी गणेश जी की मूर्ति अपने घर अवश्य लाएं और इसे घर के मुख्य दरवाजे पर लगाना चाहिरए। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है जो धन और सुख में वृद्धिर कारक मानी जाती है।

दूसरी विशेष मूर्ति वह है जो गाय के गोबर से बनी हो, मान्यताओं के आधार पर गणेश जी की ऐसी मूर्तिक धन वृद्धिबकारक मानी गई है। आप अपने घर में गणेश जी की ऐसी मूर्तिर रख सकते हैं।

अतिरिक्त लाभ के लिए रवि वार या पुष्य नक्षत्र में आप श्वेतार्क गणेश की मूर्तिघ घर लेकर आएं और निेयमिरत इनकी पूजा करें। इससे आपके सभी रुके हुए काम बन जाएंगे और साथ ही यह धन सम्पदा के लिए शुभ माना गया है। इससे जल्द ही धन लाभ होने के संकेत मिलते है।

इसके अलावा क्रििस्टल के बने गणेश जी की मूर्तिे को वास्तुदोष दूर करने में बहुत ही कारगर माना गया है। हालांकि यह मूर्ति काफी महंगी मिलती है लेकिन यदि आप इस धातु से बनी कोई छोटी सी मूर्ति भी ले लें जो आपकी पॉकेट को सूट करे तब भी यह फलित साबित होगी।

अन्य सुझावों में गणेश जी की क्रिदस्टल की मूर्ति के साथ देवी लक्ष्मी जी की भी इसी धातु की मूर्ति रखी जा सकती है। लक्ष्मी जी जो कि स्वयं धन की देवी मानी गई हैं, उनके घर में आने से धन और सौभाग्य दोनों दौड़े चले आते हैं।

लेकिन यदि आप बाज़ार से कोई मूर्ति लाने में किन्हीं कारणों से असमर्थ हैं तो आप स्वयं भी गणेश जी की एक मूर्ति बना सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि इसके लिए आप शुद्ध पदार्थों का ही इस्तेमाल करें।

यदि आप स्वयं मूर्ति बनाने जा रहे हैं तो ऐसे में हल्दीि के प्रयोग गणेश जी की मूर्तिस बनाएं। इसे बनाकर पूजा स्थान पर विराजमान करें और इसकी नियमित पूजा भी करें। ऐसी मान्यता है कि गणेश जी की मूर्ति बहुत ही शुभ और सुखदायक मानी जाती है।


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