why we should never eat food in kadai in hindi
शास्त्रों के अनुसार कभी भी "कड़ाही में खाना नहीं खाना चाहिए", क्यों!
देश-देशांतर घूमिए तो आपको कई हैरान करने वाली बातें नज़र आती हैं। कुछ
रीति-रिवाज अचंभित करते हैं तो कुछ मान्यताएं भी चौंकाती हैं। कई ऐसी भी
मान्यताएं होती हैं, जिनका कोई तार्किक प्रमाण नहीं मिलता। कुछ के पीछे
खालिश परंपराएं होती हैं वहीं कुछ ऐसी भी मान्यताएं होती हैं जिन्होंने
अपनी जड़ मजबूती से जमा रखी होती है। आज ऐसी ही एक बात याद आ गई जिसे हम
बचपन में अक्सर सुना करते थे। “कड़ाही में खाने” से जुड़ी ये बात आज भी काफी
हद तक कस्बाई क्षेत्रों सहित गांवों में सुनने को मिल ही जाती है। कहते
हैं कि यदि किसी भी लड़की या लड़के ने कड़ाही यानि फ्राइंग पैन में भूल से भी
खाना खा लिया तो उसके विवाह में अवश्य ही बारिश और उत्पात होते हैं। कितनी
सच है ऐसी मान्यता, इस बारे में कुछ भी खास अनुभव तो हमें नहीं मिला किंतु
जिस तरह से इस बारे में सुना जाता है, लोगों का भरोसा है इस पर, वो जरूर
सोचने को बाध्य करती है।
छानबीन करने पर ये ज्ञात होता है कि इससे हाइजीन का मुद्दा अधिक जुड़ा है।
प्राचीन काल में अक्सर खाना बनाने वाले भण्डारी या रसोइए सबसे बाद में खाते
थे। महिलाएं भी सबको खिला देने के बाद ही आखिर में बचा-कुचा खाती थीं। ऐसे
में वे पहले ही थकी होती थीं इसलिए जल्दबाजी में कड़ाही में ही सब कुछ मिला
कर खा लेती थीं। रसोइए भी ज्यादातर ऐसा ही करते थी, जिससे हाइजीन की
प्रॉब्लम पैदा होती थी। कड़ाही लोहे की बनती थी, जिसको पूरी तरह साफ करना
पहले उतना आसान नहीं था। जिस तरह से आज कई ऐसे डिश वाशिंग पाउडर या लिक्विड
उत्पाद उपलब्ध हैं और उनसे बड़ी आसानी से कड़ाही साफ हो जाती है, वैसा पहले
होना मुमकिन नहीं था। पहले सामान्यतः पुआल और राख का इस्तेमाल बर्तन धुलने
के लिए होता था। कई जगहों पर कोयले का भी प्रयोग किया जाता था। लेकिन जूठी
लोहे की कड़ाही बाहर से भले ही साफ दिखे, अंदर से यानि आंतरिक रूप से स्वच्छ
नहीं हो पाती थी। ऐसे में ये बात एक समस्या बन कर उभरी होगी कि कैसे कड़ाही
में खाने से रोका जाए।
एक बात हम सभी जानते हैं कि किसी भी निषेध
को तभी लागू किया जा सकता है जबकि उसके पीछे कोई कानून, मान्यता, धार्मिक
संस्कार या भय जोड़ दिया जाए अन्यथा की स्थिति में उसको अनुपालित करवा सकना
बेहद मुश्किल कार्य है। इसीलिए कई ऐसे स्वास्थ्य विषयक नियम लागू करवाने के
लिए किसी न किसी मान्यता या धर्म का सहारा लिया गया। कुछ यही बात कड़ाही
में खाने से भी जुड़ी मालूम होती है।
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