Sunday, 13 September 2015

Where should we setup puja ghar at home


            वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में किस स्थान पर करनी चाहिए मंदिर की स्थापना


 अपने इष्ट देव से संवाद साधने और उन तक अपनी बात पहुंचाने के उद्देश्य से पूजा स्थल बहुत उपयोगी माना गया है। घर छोटा हो या बड़ा, हिन्दू धर्म के अनुसार सभी में मंदिर की स्थापना अवश्य करनी चाहिए।
मंदिर की स्थापना करना जितना जरूरी है, उससे भी कहीं ज्यादा जरूरी है सही दिशा और स्थान पर भगवान को स्थान देना। वास्तुशास्त्र के अंतर्गत जीवन को सुखी और सकारात्मक बनाने के अनेक टिप्स मौजूद हैं। घर में पूजा स्थल कहां बनवाना चाहिए, उन्हीं में से एक है।


हालांकि आजकल लोग फेंगशुई और वास्तुशास्त्र को ध्यान में रखकर ही किसी नई बिल्डिंग या इमारत का निर्माण करवाते हैं। लेकिन अगर आप मौजूदा घर में ही वास्तुशास्त्र के कुछ बदलाव करना चाहते हैं तो हम आपको बताते हैं कि घर में पूजास्थल के स्थापना कहां और किस दिशा में करना परिवारजनों में खुशहाली लाता है।
घर में मंदिर की स्थापना करते समय वास्तुशास्त्र से जुड़ी कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। ऐसा करने से घर में शांति भी रहती हैं और साथ-साथ घर में रहने वाले लोग एक अजीब सी सकारात्मक ऊर्जा का भी अनुभव करते हैं।


घर में पूजा स्थल की स्थापना हमेशा उत्तर, पूर्वी या उत्तर-पूर्वी दिशा में ही करनी चाहिए। पूजा करते समय भी हमारा मुख पूर्वी या उत्तरी दिशा में ही होना चाहिए। चूंकि ईश्वरीय शक्ति ईशान कोण (उत्तर-पूर्वी) से प्रवेश कर नैऋत्य कोण (पश्चिम-दक्षिण) से बाहर निकलती है, इसलिए उत्तर-पूर्वी दिशा में मंदिर होना शुभ कहा जाता है।
वास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा की तरफ मुख कर के पूजा करना या दक्षिण दिशा में मंदिर की स्थापना करना पूर्णत: वर्जित है।


पूजाघर कभी भी रसोई में स्थापित नहीं करना चाहिए। क्योंकि रसोई में मंगल का वास होता है और मंगल को उग्र ग्रह माना जाता है। रसोईघर में मंदिर की स्थापना करने की वजह से पूओजा करने वाला व्यक्ति कभी भी शांति का अनुभव नहीं कर सकता।
पूजा घर में गणेश जी, लक्ष्मी जी और सरस्वती जी की मूर्तियां कभी भी खड़ी नहीं होनी चाहिए। इसे अशुभ माना जाता है।


घर के जिस स्थान पर आपने पूजाघर की स्थापना की है उसके ऊपर या नीचे की मंजिल पर कभी शौचालय या रसोईघर की स्थापना नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा सीढ़ियों के नीचे कभी भी पूजा का कमरा नहीं बनवाना चाहिए।
मंदिर के नीचे अग्नि से संबंधित कोई भी वस्तु जैसे इन्वर्टर या बिजली से चलने वाली मोटर नहीं होना चाहिए। इसके विपरीत इस स्थान का उपयोग मंदिर से जुड़े सामान, जैसे पूजन सामग्री, धार्मिक पुस्तकों आदि को रखने के लिए किया जाना चाहिए।


पूजा स्थल को कभी भी अंधकार में ना रखें और न ही इस स्थान पर सीलन आने दें। अगर इस बात की ओर ध्यान ना दिया जाए तो इससे घर में अशांति फैलती है और साथ ही साथ मस्तिष्क भी चिंताग्रस्त रहने लगता है।
जिस कमरे में आपने मंदिर की स्थापना की है, उस कमरे का रंग अगर हरा, हलका पीला, सफेद हलका नीला है तो यह बहुत शुभ कहा जाएगा।


मंदिर के कमरे का दरवाजा और खिड़की उत्तर या फिर पूर्वी दिशा में स्थित होना चाहिए। दरवाजा टीन या लोहे का ना हो तो अच्छा है।


पूजा घर में विष्णु, लक्ष्मी, राम-सीता, कृष्ण और बालाजी आदि सात्विक एवं शांत देवी देवताओं से जुड़ा यंत्र, उनकी तस्वीर या मूर्ति शुभ है। एक बात जरूर ध्यान रखनी चाहिए कि पूजा घर में मूर्तियां एक दूसरे की ओर मुख करके न हों।


पूजाघर में भारी भरकम मूर्तियां या तस्वीरें नहीं रखनी चाहिए। सभी मूर्तियों की दिशा पूर्व, पश्चिम, उत्तर की तरफ होनी चाहिए। दक्षिण दिशा की तरफ कभी भी मूर्ति की स्थापना नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा मंदिर में रखी गईं भगवान की मूर्तियों का चेहरा किसी भी वस्तु से ढका हुआ नहीं होना चाहिए, चाहे वे फूल और माला ही क्यों न हों।



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