The secrets of Amaranth cave
अमरनाथ गुफा से जुडे अनजाने रहस्य
आदि देव महादेव स्वयंभू पशुपति नीलकंठ भगवान आशुतोष शंकर भोले भंडारी को सहस्त्रों नामों से स्तुति कर पुकारा जाता है। शास्त्रों में जगह-जगह पर भगवान शिव के महात्म्य का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद में भी शिवजी का गुणगान मिलता है। श्री अमरनाथ धाम एक ऐसा शिव धाम है जिसके संबंध में मान्यता है कि भगवान शिव साक्षात श्री अमरनाथ गुफा में विराजमान रहते हैं।
धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टी से अति महत्वपूर्ण श्री अमरनाथ यात्रा को कुछ शिव भक्त स्वर्ग की प्राप्ति का माध्यम बताते हैं तो कुछ लोग मोक्ष प्राप्ति का। श्री अमरनाथ यात्रा हमारी एकता का भी प्रतीक माना जता है। पावन गुफा में बर्फीली बूंदों से बनने वाला हिमशिवलिंग ऐसा दैवी चमत्कार है जिसे देखने के लिए हर कोई लालायित रहता है और जो देख लेता है वो धन्य हो जाता है।
कश्मीर घाटी में स्थित पावन श्री अमरनाथ गुफा प्राकृतिक है। यह पावन गुफा लगभग 160 फुट लम्बी, 100 फुट चौड़ी और काफी ऊंची है। कश्मीर में वैसे तो 45 शिव धाम, 60 विष्णु धाम, 3 ब्रह्मा धाम, 22 शक्ति धाम, 700 नाग धाम तथा असंख्य तीर्थ हैं पर श्री अमरनाथ धाम का सबसे अधिक महत्व है।
काशी में लिंग दर्शन एवं पूजन से दस गुणा, प्रयाग से सौ गुणा, नैमिषारण्य तथा कुरुक्षेत्र से हजार गुणा फल देने वाला श्री अमरनाथ स्वामी का पूजन है। देवताओं की हजार वर्ष तक स्वर्ण पुष्प मोती एवं पट्टआ वस्त्रों से पूजा का जो फल मिलता है, वह श्री अमरनाथ की रसलिंग पूजा से एक ही दिन में प्राप्त हो जाता है।
श्री अमरनाथ गुफा में शिव भक्त प्राकृतिक हिमशिवलिंग के साथ-साथ बर्फ से ही बनने वाले प्राकृतिक शेषनाग, श्री गणेश पीठ व माता पार्वती पीठ के भी दर्शन करते हैं। प्राकृतिक रूप से प्रति वर्ष बनने वाले हिमशिवलिंग में इतनी अधिक चमक विद्यमान होती है कि देखने वालों की आंखों को चकाचौंध कर देती है।
हिमशिवलिंग पक्की बर्फ का बनता है जबकि गुफा के बाहर मीलों तक सर्वत्र कच्ची बर्फ ही देखने को मिलती है। मान्यता यह भी है कि गुफा के ऊपर पर्वत पर श्री राम कुंड है। भगवान शिव ने माता पार्वती को सृष्टिआ की रचना इसी अमरनाथ गुफा में सुनाई थी।
इस गुफा की खोज बूटा मलिक नामक एक बहुत ही नेक और दयालु एक मुसलमान गडरिए ने की थी। वह एक दिन भेड़ें चराते-चराते बहुत दूर निकल गया। एक जंगल में पहुंचकर उसकी एक साधू से भेंट हो गई। साधू ने बूटा मलिक को कोयले से भरी एक कांगड़ी दे दी। घर पहुंचकर उसने कोयले की जगह सोना पाया तो वह बहुत हैरान हुआ।उसी समय वह साधू का धन्यवाद करने के लिए गया परन्तु वहां साधू को न पाकर एक विशाल गुफा को देखा। उसी दिन से यह स्थान एक तीर्थ बन गया।
एक बार देवर्षि नारद कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर के दर्शनार्थ पधारे। भगवान शंकर उस समय वन विहार को गए हुए थे और पार्वती जी वहां विराजमान थीं। पार्वती जी ने देवर्षि के आने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा-देवी! भगवान शंकर, जो हम दोनों से बड़े हैं, के गले में मुंडमाला क्यों है? भगवान शंकर के वहांआने पर यही प्रश्र पार्वती जी ने उनसे किया। भगवान शंकर ने कहा-हे पार्वती! जितनी बार तुम्हारा जन्म हुआ है, उतने ही मुंड मैंने धारण किए हैं।
पार्वती जी बोलीं- मेरा शरीर नाशवान है, मृत्यु को प्राप्त होता है परन्तु आप अमर हैं, इसका कारण बताने का कष्ट करें। भगवान शंकर ने कहा -यह सब अमरकथा के कारण है। इस पर पार्वती जी के हृदय में भी अमरत्व प्राप्त करने की भावना पैदा हो गई और वह भगवान से कथा सुनाने का आग्रह करने लगीं।भगवान शंकर ने बहुत वर्षों तक टालने का प्रयत्न किया परन्तु अंतत: उन्हें अमरकथा सुनाने को बाध्य होना पड़ा। अमरकथा सुनाने के लिए समस्या यह थी कि कोई अन्य जीव उस कथा को न सुने। इसलिए शिव जी पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्रि) का परित्याग करके इन पर्वत मालाओं में पहुंच गए और श्री अमरनाथ गुफा में पार्वती जी को अमरकथा सुनाई।
श्री अमरकथा गुफा की ओर जाते हुए वह सर्वप्रथम पहलगाम पहुंचे, जहां उन्होंने अपने नंदी (बैल) का परित्याग किया। उसके बाद चंदनबाड़ी में अपनी जटा से चंद्रमा को मुक्त किया। शेषनाग नामक झील पर पहुंच कर उन्होंने गले से सर्पों को भी उतार दिया। प्रिय पुत्र श्री गणेश जी को भी उन्होंने महागुणस पर्वत पर छोड़ देने का निश्चय किया। फिर पंचतरणी नामक स्थान पर पहुंच कर शिव भगवान ने पांचों तत्वों का परित्याग किया।
इसके पश्चात ऐसी मान्यता है कि शिव-पार्वती ने इस पर्वत शृंखला में तांडव किया था। तांडव नृत्य वास्तव में सृष्टिआ के त्याग का प्रतीक माना गया। सब कुछ छोड़ अंत में भगवान शिव ने इस गुफा में प्रवेश किया और पार्वती जी को अमरकथा सुनाई। किंवदंती के अनुसार रक्षा बंधन की पूर्णिमा के दिन जो सामान्यत: अगस्त के बीच में पड़ती है, भगवान शंकर स्वयं श्री अमरनाथ गुफा में पधारते हैं।
ऐसा भी ग्रंथों में लिखा मिलता है कि भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल श्रावण की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन को श्री अमरनाथ की यात्रा को विशेष महत्व मिला। रक्षा बंधन की पूर्णिमा के दिन ही छड़ी मुबारक भी गुफा में बने हिमशिवलिंग के पास स्थापित कर दी जाती है। श्री अमरनाथ गुफा में बर्फ से बने शिवलिंग की पूजा होती है। इस सम्बन्ध में अमरेश महादेव की कथा भी मशहूर है। इसके अनुसार आदिकाल में ब्रह्म, प्रकृति, अहंकार, स्थावर (पर्वतादि) जंगल (मनुष्य) संसार की उत्पत्ति हुई। इस क्रमानुसार देवता, ऋषि, पितर, गंधर्व, राक्षस, सर्प, यक्ष, भूतगण, दानव आदि की उत्पत्ति हुई।इस तरह नए प्रकार के भूतों की सृष्टिआ हुई परन्तु इंद्रादि देवता सहित सभी मृत्यु के वश में हुए थे। देवता भगवान सदाशिव के पास आए क्योंकि उन्हें मृत्यु का भय था। भय से त्रस्त सभी देवताओं ने भगवान भोलेनाथ की स्तुति कर मृत्यु बाधा से मुक्ति का उपाय पूछा। भोलेनाथ स्वामी बोले-मैं आप लोगों की मृत्यु के भय से रक्षा करूंगा। कहते हुए सदाशिव ने अपने सिर पर से चंद्रमा की कला को उतार कर निचोड़ा और देवगणों से बोले, यह आप लोगों के मृत्युरोग की औषधि है। उस चंद्रकला के निचोडऩे से पवित्र अमृत की धारा बह निकली। चंद्रकला को निचोड़ते समय भगवान सदाशिव के शरीर से अमृत बिंबदु पृथ्वी पर गिर कर सूख गए। पावन गुफा में जो भस्म है, वह इसी अमृत ङ्क्षबदु के कण है। सदाशिव भगवान देवताओं पर प्रेम न्यौछावर करते समय स्वयं द्रवीभूत हो गए और देवताओं से कहा-देवताओ! आपने मेरा बर्फ का लिंग शरीर इस गुफा में देखा है। इस कारण मेरी कृपा से आप लोगों को मृत्यु का भय नहीं रहेगा।अब आप यहीं अमर होकर शिव रूप को प्राप्त हो जाएं। आज से मेरा यह अनादि लिंग शरीर तीनों लोकों में अमरेश के नाम से विख्यात होगा। भगवान सदाशिव देवताओं को ऐसा वर देकर उस दिन से लीन होकर गुफा में रहने लगे। भगवान सदाशिव महाराज ने देवताओं की मृत्यु का नाश किया, इसलिए तभी से उनका नाम अमरेश्वर प्रसिद्ध हुआ है।
मनुष्य श्री अमरनाथ जी की यात्रा करके शुद्धि को प्राप्त करता है तथा शिवलिंग के दर्शनों से भीतर-बाहर से शुद्ध होकर धर्म, अर्थ, काम वचन तथा मोक्ष को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। अमरनाथ धाम पहुंचना सौभाग्य की बात है। वहां भगवान शिव के दर्शन करने से सर्वसुख की प्राप्ति होती है। बाबा बर्फानी की गुफा में प्रवेश करके भगवान शिव की साक्षात उपस्थिति का एहसास होता है।
HAR HAR MAHADEV , HAR HAR MAHADEV , HAR HAR MAHADEV
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