Tuesday, 29 September 2015

Instinctively how to achieve in hindi

सहज बोध कैसे हासिल हो




आप कहेंगे कि बिना किसी सोच-विचार के हाथ पर हाथ धरे बैठना ही सहज होना है तो आप गलत हैं। सहज होना चित्त और मन की वह अवस्था है, जहां आप निर्विचार हो जाते हैं। जब आप अपने मन की सभी ग्रंथियों से मुक्त होकर बोध की अवस्था में जाग्रत होते हैं, आपकी सभी इंद्रियां गतिविधि शून्य होकर एकाकार हो जाती हैं, आप स्वयं का साक्षात्कार कर रहे होते हैं, चित्त के सभी भ्रम अदृश्य हो जाएं तो फिर सहज भाव का आविर्भाव होता है।

 


यहां अभी हम बात कर रहे हैं ध्यान के सहज प्रयोगों की यानि सहज बोध को प्राप्त करने के लिए ध्यान को एक उपकरण की भांति इस्तेमाल करने की. किंतु ये दुर्लभ है...दुर्गम्य है, अतएव अलंघ्य है। ख्याल रहे कि सहज बोध के लिए चित्त का सरल होना आवश्यक है जैसे कि महावीर का चित्त। महावीर जब साधना से उठे तो उनके शरीर से वस्त्र गिर गए, वे अनावृत हो गए। उन्हें इसका ख्याल ही नहीं रहा कि उनको वस्त्रों की आवश्यकता है. वे निर्विकार थे बस बढ़ते गए। उन्हें इसकी फिक्र क्यों होने लगी कि समाज क्या कहेगा? आखिर उन्हें फिज़ूल की व्यर्थ बातें उलझा कैसे सकती थीं। यानि महावीर का नग्न होना कोई महान घटना नहीं थी उनके लिए हां, दुनिया के लिए ज़रूर क्रांतिकारी घटना बन गयी ये बात। सचमुच क्रांतिकारी, आंदोलित करने वाली बात जो थी कि एक राजकुमार जो पहले फकीर बना और आखिरकार विक्षिप्त हो गया कि उसे अपने तन का भी होश नहीं रहा. आखिर पागलों जैसे वेश में खुद को संन्यासी समझता हुआ इधर-उधर विचरण कर रहा है।

 


किंतु सहज हो गए तत्वदर्शियों के लिए महावीर की नग्नता एक क्रांतिकारी परिघटना थी. उन्हें महावीर में संभावना नज़र आ गयी और वे आखिरकार महावीर की शरण में चले गए। तो पहले वाली बात पर वापस आते हैं. सहज कैसे बनें जबकि हजारों-हज़ार वर्षों से संस्कारों की परतें मन और चित्त को घेरे हुए हैं , बाकायदा हमारे चारो ओर एक कड़ा पहरा है, जिससे बाहर निकलने की हर कोशिश व्यर्थ साबित हो जाती है। 

 


यहां हमारी मदद काफी हद तक सहज ध्यान कर सकता है. चित्त की निर्विकार अवस्था को पाने के लिए हमें मन से लड़ाई करने की जरूरत नहीं क्योंकि लड़ाई एक द्वंद पैदा करती है, संघर्ष की अवस्था तनावयुक्त है. इससे जो स्ट्रेस जन्म लेता है, वह सहज ध्यान में सबसे बड़ी बाधा है ,इसके लिए चिंता मुक्त मन, अपेक्षा रहित चित्त की जरूरत है तभी ध्यान के भविष्यगामी प्रयोग सफल होंगे।

 

                                                                      sanatan path
                                                                www.sanatanpath.com
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