बिहार में स्थित भगवान शिव की इस प्राचीन गुफा मे लिखे ये लेख क्या कहते है ?
भगवान शिव सनातन-हिन्दू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं , भगवान शिव की अनेक गुफाँए हैं पर यह गुफा बहुत रहस्यमयी है, इस प्राचीन गुफा के बारे में माना जाता है कि इसे इंसानो ने नहीं बल्कि खुद प्रकृति ने बनाया है।
बिहार के प्राचीन शिवलिंगों में शुमार रोहतास जिले के गुप्तेश्वर धाम गुफा स्थित शिवलिंग की महिमा का बखान आदिकाल से ही होता आ रहा है। माना जाता है कि इस गुफा में जलाभिषेक करने के बाद भक्तों की सभी मन्नतें पूरी हो जाती हैं।
पुराणो में वर्णित भगवान शंकर व भस्मासुर से जुड़ी कथा को जीवंत रखे हुए ऐतिहासिक गुप्तेश्वरनाथ महादेव का गुफा मंदिर आज भी रहस्यमय बना हुआ है।
रोहतास में विंध्य शृंखला की कैमूर पहाड़ी के जंगलों से घिरे गुप्ताधाम गुफा की प्राचीनता के बारे में कोई प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।
इसकी बनावट को देखकर पुरातत्वविद अब तक यही तय नहीं कर पाए हैं कि यह गुफा मानव निर्मित है या प्राकृतिक।
श्याम सुंदर तिवारी जो कई इतिहास की पुस्तकों को लिख चुके हैं वे कहते हैं कि गुफा के नाचघर व घुड़दौड़ मैदान के बगल में स्थित पाताल गंगा के पास दीवार पर उत्कीर्ण शिलालेख, जिसे श्रद्धालु ब्रह्मा के लेख के नाम से जानते हैं, को पढ़ने से संभव है, इस गुफा के कई रहस्य खुल जाएं।
इस गुफा में गहन अंधेरा होता है, बिना कृत्रिम प्रकाश के भीतर जाना संभव नहीं है। पहाड़ी पर स्थित इस गुफा का द्वार 18 फीट चौड़ा एवं 12 फीट ऊंचा मेहराबनुमा है। इस गुफा में लगभग 365 फीट अंदर जाने पर बहुत बड़ा गड्ढा है,जिसमें साल भर पानी रहता है। श्रद्धालु इसे पाताल गंगा कहते हैं।
इस गुफा के अंदर प्राचीन काल के दुर्लभ शैलचित्र आज भी मौजूद हैं। इसके कुछ आगे जाने के बाद शिवलिंग के दर्शन होते हैं। गुफा के अंदर अवस्थित प्राकृतिक शिवलिंग पर हमेशा ऊपर से पानी टपकता है। इस पानी को श्रद्धालु प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
इस स्थान पर सावन के महीने के अलावा सरस्वती पूजा और महाशिवरात्रि के मौके पर मेला लगता है। लोगो के बताए अनुसार कैलाश पर्वत पर मां पार्वती के साथ विराजमान भगवान शिव ने जब भस्मासुर की तपस्या से खुश होकर उसे किसी के सिर पर हाथ रखते ही भस्म करने की शक्ति का वरदान दिया था।
भस्मासुर मां पार्वती के सौंदर्य पर मोहित होकर शिव से मिले वरदान की परीक्षा लेने के लिए उन्हीं के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा। वहां से भागकर भोले यहां की गुफा के गुप्त स्थान में छुपे थे।
भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर भस्मासुर का नाश किया। उसके बाद गुफा के अंदर छुपे भोले बाहर निकले।
सासाराम के वरिष्ठ पत्रकार विनोद तिवारी कहते हैं शाहाबाद गजेटियर में दर्ज फ्रांसिस बुकानन नामक अंग्रेज विद्वान की टिप्पणियों के अनुसार, गुफा में जलने के कारण उसका आधा हिस्सा काला होने के सबूत आज भी देखने को मिलते हैं।
उपन्यासकार देवकी नंदन खत्री ने अपने चर्चित उपन्यास चंद्रकांता में विंध्य पर्वत, शृंखला की जिन तिलस्मी गुफाओं का जिक्र किया है, संभवतः उन्हीं गुफाओं में गुप्ताधाम की यह रहस्यमयी गुफा भी है।
वहां धर्मशाला व कुछ कमरे अवश्य बने हैं, परंतु अधिकांश जर्जर हो चुके हैं। गुप्ताधाम गुफा के अंदर ऑक्सीजन की कमी से वर्ष 1989 में हुई आधा दर्जन से अधिक श्रद्धालुओं की मौत की घटना को याद कर आज भी लोग सिहर उठते हैं।
बैरिया गांव में लोगो ने बताया की प्रशासन की ओर से यहां कुछ ऑक्सीजन सिलेंडर भेजे जाने लगे थे। प्रशासन की ओर से चिकित्सा शिविर भी लगता था, परंतु वन विभाग द्वारा इस क्षेत्र को अभयारण्य घोषित किए जाने के बाद प्रशासनिक स्तर पर दी जा रही सुविधा बंद कर दी गई हैं।
अब समाजसेवियों के सहारे ही इतना बड़ा मेला चलता है। जिला मुख्यालय सासाराम से करीब 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस गुफा में पहुंचने के लिए रेहल, पनारी घाट और उगहनी घाट से तीन रास्ते हैं जो अतिविकट व दुर्गम हैं। दुर्गावती नदी को पांच बार पार कर पांच पहाडियों की यात्रा करने के बाद लोग यहां पहुंचते हैं।
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