Friday 4 March 2016

भगवान कल्कि कब कहां और कैसे लेंगे अवतार

            भगवान कल्कि कब कहां और कैसे लेंगे अवतार 





‘‘ यदा यदा हिधर्मस्य ग्लार्निभवति भारतः
अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम,
परित्राणय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्, धर्म
संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।’’     ....................{भागवत पुराण (स्कंध 12, अध्याय 2)}




पौराणिक मान्यता के अनुसार जब धरती पर पाप की सीमा बढ़ जाएगी तब दुष्टो के विनाश के लिए भगवान कल्कि का अवतार होगा जो विष्णु जी के अवतारों में से एक है । जब लोग धर्म का अनुसरण करना छोड़ देंगे तब ये अवतार होगा ।

कल्कि को विष्णु का भावी और अंतिम अवतार माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार पृथ्वी पर पाप की सीमा पार होने लगेगी तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह अवतार प्रकट होगा। भागवत पुराण में कल्कि अवतार की कथा है।

कथा के अनुसार सम्भल ग्राम में कल्कि का जन्म होगा। अपने माता पिता की पांचवीं संतान कल्कि यथा समय देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर तलवार से दुष्टों का संहार करेंगे। तब सतयुग का प्रारंभ होगा। कल्कि अवतार का स्वरूप और आख्यानों पर अक्सर चर्चा हुई है।

इस अभिव्यक्ति की सघनता और विरलता के अनुसार ही अवतारी शक्तियों के स्तर या कलाएं तय की जाती है। बुद्ध से पहले कृष्ण को सोलह कलाओं का अवतार माना गया। सभी अवतारों नें अपनी तरह से दुष्टों का और उनकी दुष्टता का दलन किया। अब जिस अवतार का इंतजार किया जा रहा है, वह निष्कलंक होगा। कला, कांति, शौर्य और दैवी गुणों में उत्कट।

भागवत में कल्कि का संक्षिप्त विवरण है। उनके चरित और जीवन का विशद वर्णन ‘भागवत पुराण’ में है। अध्येताओं के अनुसार भागवत और कल्किपुराण में अंतिम अवतार के बारे में जो उल्लेख किए गए हैं, वे आलंकारिक हैं।

पुराण के अनुसार कल्कि के पिता का नाम विष्णुयश और माता का नाम सुमति होगा। पिता विष्णुयश का अर्थ हुआ, जो सर्वव्यापक परमात्मा की स्तुति करता लोक हितैषी है। सुमति का अर्थ है अच्छे विचार रखने और वेद, पुराण और विद्याओं को जानने वाली महिला।

कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। भगवान का स्वरूप दिव्य होता है। दिव्य अर्थात दैवीय गुणों से संपन्न। वे श्वेत अश्व पर सवार हैं। भगवान का रंग गोरा है, परन्तु क्रोध में काला भी हो जाता है। वे पीले वस्त्र धारण किए हैं।

प्रभु के हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि है। स्वयं उनका मुख पूर्व की ओर है तथा अश्व दक्षिण में देखता प्रतीत होता है। यह चित्रण कल्कि की सक्रियता और गति की ओर संकेत करता है। युद्ध के समय उनके हाथों में दो तलवारें होती हैं।

कल्कि के इस स्वरूप की विवेचना में कहा है कि कल्कि सफेद रंग के घोड़े पर सवार हो कर आततायियों पर प्रहार करते हैं। इसका अर्थ उनके आक्रमण में शांति (श्वेत रंग), शक्ति (अश्व) और परिष्कार (युद्ध) लगे हुए हैं। तलवार और धनुष को हथियारों के रूप में उपयोग करने का अर्थ है कि आसपास की और दूरगामी दोनों तरह की दुष्ट प्रवृत्तियों का निवारण।

कल्कि की यह रणनीति समाज के विचारों, मान्यताओँ और गतिविधियों की दिशाधारा में बदलाव का प्रतीक ही है। इस बार अवतार असुरों या दुष्टों के संहार के बजाय उनके मन मानस को अपने विधान से बदलने की नीति पर आमादा है। 

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