गुरु गोरखनाथ कथा सिद्ध करती है की बाबा अमर और चारों युगों में मोजूद हैं
सनातन पथ ब्लॉग आज आपको बताने जा रहा है, एक ऐसे योगी की अमर कथा जिससे प्रभु राम और श्रीकृष्ण भी चमत्कृत थे । देवता किसी भी समय किसी भी स्थान, किसी भी काल में उपस्थित हो सकते हैं। लेकिन क्या मनुष्य के लिए हर युग में रहना संभव है? कहते हैं मानव शरीर नश्वर होता है लेकिन क्या इस नश्वर शरीर के बावजूद वह मौत को जीतकर हर युग में उपस्थित रह सकता है?
बाबा गोरखनाथ को शिव का अवतार भी कहा जाता है, जिससे जुड़ी एक कथा प्रचलित है। कहते हैं एक बार गोरखनाथ तप में लीन थे। उन्हें देखकर देवी पार्वती ने शिव से उनके विषय में पूछा। पार्वती से वार्तालाप करते हुए शिव ने उन्हें कहा कि धरती पर योग के प्रसार के लिए उन्होंने ही गोरक्षनाथ के रूप में अवतार लिया है।
गोरखनाथ का जीवन अपने आप में अद्भुत था। उन्हें हर युग में देखा गया और संबंधित घटनाओं के साथ उनके रिश्तों को भी जोड़ा गया। सर्वप्रथम सतयुग में उन्होंने पंजाब में तपस्या की थी, उसके बाद त्रेतायुग में उन्होंने उत्तर प्रदेश के एक स्थान गोरखपुर में रहकर ही साधना की, जहां उन्हें राम के राज्याभिषेक के लिए भी निमंत्रण भेजा गया था। लेकिन उस दौरान वे तपस्या में लीन थे इसलिए वह खुद तो ना पहुंच सके हालांकि अपना आशीर्वाद राम के लिए भेजा था।
गुरु गोरखनाथ को गोरक्षनाथ भी कहा जाता है। इनके नाम पर एक नगर का नाम
गोरखपुर है। गोरखनाथ नाथ साहित्य के आरम्भकर्ता माने जाते हैं। गोरखपंथी
साहित्य के अनुसार आदिनाथ स्वयं भगवान शिव को माना जाता है। शिव की परम्परा
को सही रूप में आगे बढ़ाने वाले गुरु मत्स्येन्द्रनाथ हुए। ऐसा नाथ
सम्प्रदाय में माना जाता है।
गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं तथा साधना में योग के अंग क्रिया-योग अर्थात तप,
स्वाध्याय और ईश्वर प्रणीधान को अधिक महत्व दिया है। इनके माध्यम से ही
उन्होंने हठयोग का उपदेश दिया। गोरखनाथ शरीर और मन के साथ नए-नए प्रयोग
करते थे।
गोरखनाथ का मानना था कि सिद्धियों के पार जाकर शून्य समाधि में स्थित होना
ही योगी का परम लक्ष्य होना चाहिए। शून्य समाधि अर्थात समाधि से मुक्त हो
जाना और उस परम शिव के समान स्वयं को स्थापित कर ब्रह्मलीन हो जाना, जहाँ
पर परम शक्ति का अनुभव होता है।
गोरखनाथ जी ने नेपाल और पाकिस्तान में भी योग साधना की। पाकिस्तान के सिंध
प्रान्त में स्थित गोरख पर्वत का विकास एक पर्यटन स्थल के रूप में किया जा
रहा है। इसके निकट ही झेलम नदी के किनारे राँझा ने गोरखनाथ से योग दीक्षा
ली थी। नेपाल में भी गोरखनाथ से सम्बंधित कई तीर्थ स्थल हैं। उत्तरप्रदेश
के गोरखपुर शहर का नाम गोरखनाथ जी के नाम पर ही पड़ा है। यहाँ पर स्थित
गोरखनाथ जी का मंदिर दर्शनीय है।
बंगाल से पश्चिमी भारत तक और सिंध से पंजाब में गोपीचंद, रानी पिंगला
और भर्तृहरि से जुड़ी एक और मान्यता भी है। इसके अनुसार गोपीचंद की माता
मानवती को भर्तृहरि की बहन माना जाता है। भर्तृहरि ने अपनी पत्नी रानी
पिंगला की मृत्यु के पश्चात् अपनी राजगद्दी अपने भाई उज्जैन के
विक्रमादित्य के नाम
कर दी थी। भर्तृहरि बाद में
गोरक्षनाथी बन गये थे।
पंजाब में एक मान्यता के अनुसार राजा रसालु और उनके सौतेले भाई
पुरान भगत भी गोरक्षनाथ से संबंधित थे। रसालु का यश अफगानिस्तान से लेकर
बंगाल तक फैला हुआ था और पुरान पंजाब के एक प्रसिद्ध संत थे। ये दोनों ही
गोरक्षनाथ जी के शिष्य बने और पुरान तो एक प्रसिद्ध योगी बने। जिस कुँए के
पास पुरान वर्षो तक रहे, वह आज भी सियालकोट में विराजमान है। रसालु
सियालकोट के प्रसिद्ध सालवाहन के पुत्र थे।
गोरखनाथ के चमत्कारों से जुड़ी भी कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनके अनुसार राजस्थान के प्रख्यात गोगाजी का जन्म भी गोरखनाथ जी द्वारा दिए गए वरदान से ही हुआ था। गोरखनाथ ने उन्हें गूगल नामक फल प्रसाद के तौर पर दिया जिसे ग्रहण करने के बाद वे गर्भवती हो गईं। गूगल फल से ही उनका नाम गोगाजी पड़ा, जो आगे चलकर राजस्थान के ख्याति प्राप्त राजा बने।
कुछ ऐसी भी कथाएं हैं जो बाबा गोरखनाथ के जीवनकाल को बहुत पहले और बहुत बाद में भी प्रदर्शित करती हैं। ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार तेरहवीं शताब्दी में गोरखपुर स्थित मठ को ढहा दिया गया। यह इस बात का प्रमाण है कि गोरखनाथ तेरहवीं शताब्दी से भी बहुत पहले उपस्थित थे। लेकिन फिर संत कबीर और गुरुनानक देव के साथ उनका संवाद यह प्रमाणित करता है कि वे बहुत बाद में भी थे।
कलियुग में तो उनके अनेक स्थानों पर प्रकट होकर योग साधकों को दर्शन देने जैसी घटनाएं सुनी जाती रही हैं। कलियुग में सौराष्ट्र के काठियावाड़ जिले के गोरखमढ़ी स्थान को उन्होंने तप कर धन्य किया है। इन सब घटनाओं के आधार पर गोरखनाथ को चिरंजीवी मान लिया गया है।
गोगामेडी में गोगा जी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिदनुमा बना हुआ है, इसकी
मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती हैं। कहा जाता है कि फिरोजशाह
तुगलक सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरे थे। रात के
समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए
घोड़ों पर सेना आ रही है।
तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया। तुगलक की सेना
के साथ आए धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई महान सिद्ध है जो प्रकट
होना चाहता है। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद आते समय गोगामेडी में
मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया। यहाँ सभी धर्मो के भक्तगण गोगा मजार
के दर्शनों हेतु भादौं (भाद्रपद) मास में उमड़ पडते हैं।
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