Tuesday, 12 April 2016

Mahabharat Proof in Hindi

महाभारत सत्य था , ये प्रमाण साबित करते हैं कि महाभारत काल्पनिक नहीं है !



सनातन पथ इन्फो ब्लॉग आज आपको बताने जा रहा है की महाभारत की हर घटना सच क्यो है और महाभारत को कथा या कल्पना कहने वाले झूठे हैं या अज्ञानी हैं । महाभारत की कथा पूरी दुनिया को हैरानी में डालती है। न केवल हिंदुस्तानी बल्कि विदेशी भी इससे बेहद प्रभावित हैं। फिर भी ये एक सवाल उठता है कि इसे वास्तविक इतिहास समझा जाए या फिर कल्पना ?

महाभारत को इतिहास या कल्पना में से एक मानने के अपने-अपने तर्क हैं। फिर भी इसके विशुद्ध इतिहास होने के पीछे कई ऐसे तर्क मौज़ूद हैं, जिन पर गौर करना चाहिए।

जहां तक हमारा स्वयं का मानना है कि महाभारत की घटना कुरुक्षेत्र की समरभूमि पर अवश्य घटित हुई और आधुनिक पुरातत्वशास्त्री भी इस तथ्य से इनकार नहीं कर पा रहे हैं। 

यहां तक कि कई वैज्ञानिक शोधों ने इस बात को ही अधिक प्रमाणित किया है कि महाभारत की घटना एक सच्चाई है न कि कोई मिथक या कथा।

ये जानना आवश्यक है कि आखिर कौन से ऐसे तथ्य हैं जो महाभारत को इतिहास सिद्ध करते हैं। आज हम इसी मुद्दे के विस्तार में जाना चाहेंगे  : - 

कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश महाभारत युद्ध के दौरान दिया था, जिसमे कलयुग (जिसे आज का वक़्त कहा जाता है) का सारा बखान है. आज जो घटित हो रहा है वो गीता में पहले से लिखा है, ये कोई काल्पनिक घटना नहीं हो सकती ।

महाभारत के एक महत्वपूर्ण पात्र जरासंध थे, जिसका वध भीम के हाथों हुआ था. जरासंध मगध देश का राजा थे. पुरातत्व विभाग को बिहार के एक जिले राजगीर में जरासंध का अखाड़ा मिला है, जहां भीम ने उसे मौत के घाट उतारा था. आज पर्यटकों के बीच ये आकर्षण का केंद्र है ।

महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ था. हरियाणा के इस जिले में वो मैदान आज भी है जहां ये युद्ध हुआ था. कहा जाता है कि युद्ध में बहे खून की वजह से यहां की मिट्टी का रंग लाल हुआ था. आज भी वहां की मिट्टी का रंग लाल है ।

Mahabharat Real Proof - video


दुष्यंत और शकुंतला के बेटे भरत के नाम पर भारत देश का नाम पड़ा और भरत के वंश का विवरण महाभारत में है. पांडु और धृतराष्ट इन्हीं के वंशज हैं. भारत देश का होना ही महाभारत का सबसे बड़ा प्रमाण है ।

रामायण और महाभारत दो अलग-अलग वक़्त में दो अलग-अगल लोगों द्वारा लिखी गई है और दोनों किताबों में लिखी गई बात के कई प्रमाण मिले हैं. अगर ये किताबें काल्पनिक होतीं तो इन दोनों किताबों में इतनी समानता नहीं होतीं ।

महाभारत को कल्पना सिद्ध करने के पीछे सबसे पहला सवाल इसकी काव्यात्मक शैली को लेकर उठाया जाता है। कहा जाता है कि ऐसी शैली में कोई इतिहास कैसे लिखा जा सकता है जबकि ऐतिहासिक वृत्तांत के लिए गद्यात्मक शैली होना जरूरी है। महाभारत को कल्पना सिद्ध करने के लिए ये सबसे ज्यादा गलत तर्क है।

भारतीय साहित्य की प्राचीनता वैदिक युगीन साहित्य तक मानी जाएगी। वेदों की ऋचाएं स्वयं मंत्रोक्त व काव्यात्मक गेय शैली में रची गईं, जिनमें भौतिक जीवन के अनेकानेक आवश्यक उपांगों को व्याख्यायित किया गया है। 

सांसारिक जीवन की नश्वरता की बजाय जीवन को जीवंतता से जीने के लिए वेद कई आयाम को उद्घाटित करते हैं। अनेक प्राकृतिक शक्तियों की उपासना भी इसी दृष्टिकोण का महत्वपूर्ण भाग है।

हम कल्हण की राजतरंगिणि को देखें तो ये बात प्रमाणित हो जाती है। तत्कालीन भारतीय इतिहास का निर्माण गेय काव्यात्मक शैली में ही किया जाता था और सल्तनत युगीन भारत से पद्यात्मक की बजाय गद्यात्मक शैली में ऐतिहासिक रचनाएं की जाने लगीं। 

तुर्क और यूरोपियन इतिहासकार गद्य शैली में ही इतिहास लिखते थे तो महाभारत की ऐतिहासिकता को केवल इस बात से नकार देना न्यायसंगत नहीं होगा।

इसके बाद आते हैं वंशावलियों का विस्तारपूर्वक वर्णन तथा महाभारत व इससे पहले रची गई रामायण के कई पात्रों के समान होने के आश्चर्यजनक साम्य पर। ये कोई मात्र संयोग नहीं हो सकता कि वेदव्यास ने उस समय की दुनिया और भारतवर्ष के अनेक सम्राटों व उनकी राजधानियों और राज्यों का सविस्तार उल्लेख किया। 



कुरुक्षेत्र के युद्ध में जिस तरह हज़ारों राजाओं ने अपनी विशाल सेनाओं के साथ भाग लिया तथा अंतिम रूप से कुछ चुनिंदा योद्धा ही बचे उससे इस महायुद्ध की भयावहता का अनुमान लगाया जा सकता है।

यदि ये केवल काल्पनिक उपक्रम होता तो कथानक को सशक्त बनाने के लिए महज़ कुछ ही पात्रों की आवश्यकता होती किंतु एक इतिहासकार ऐसा नहीं कर सकता है। उसे तो तत्कालीन घटना का पूरा-पूरा विवरण देना होता है ताकि कहीं भी वास्तविक घटना से अन्याय न हो सके। 

वेदव्यास ने महायुद्ध के पूर्व और पश्चात की सभी घटनाओं को उकेरने की कोशिश की जिससे इसकी ऐतिहासिकता पर सवाल न उठ सके। इसके अलावा महाभारत में तत्कालीन ग्रह-नक्षत्रों व उनकी स्थितियों सहित शुभ लग्न-मुहूर्त आदि का वर्णन भी मिलता है। 

आखिर ऐसा क्यों किया गया होगा ये सोचने का विषय है। अगर महाभारत केवल काल्पनिक रचना होती तो ऐसा प्रयास करने का अर्थ क्या था? कहीं न कहीं ये बात इसकी ऐतिहासिकता को साबित करती नज़र आती हैं। तत्कालीन परिस्थितियों में कौन से ग्रह-नक्षत्र आदि किस अवस्था में थे, इसका ज़िक्र केवल इतिहास में होता है।

उस समय के कई महानगरों का उल्लेख जैसे द्वारका, इंद्रप्रस्थ आदि का उल्लेख भी अनैतिहासिक नहीं है। ये बात आधुनिक खोजों के द्वारा पूर्णतया प्रमाणित हो चुकी है महाभारत कालीन द्वारका का अस्तित्व था इसके अतिरिक्त कंबोज, गांधार, इंद्रप्रस्थ, हस्तिनापुर आदि का भी वास्तविक समीकरण स्थापित किया जा चुका है।

कुछ ऐसे आधार हैं जिनके लिए इसे पूर्णतया काल्पनिक रचना करार दिया जाता है। जैसे तत्कालीन परिस्थितियों में अत्याधुनिक विनाशक शस्त्रों के प्रयोग सहित दिव्यदृष्टि आदि का वर्णन। ये कहना युक्तिसंगत नहीं होगा कि उस समय ऐसी तकनीक कैसे हो सकती थी ।

किंतु जरा विचार कीजिए कि क्या इतनी उन्नत तकनीक की उपलब्धता के बिना उसकी कल्पना उस काल में संभव हो सकती थी? अवश्य नहीं, ऐसा केवल तभी संभव था जबकि ऐसी तकनीकें मौज़ूद रही हों किंतु इस विनाशक युद्ध के पश्चात सभ्यता और नगरीकरण का पतन अवश्यंभावी था और जो कि हुआ भी.

स्वयं वेदव्यास ने इस महान रचना के लिए “इतिहास” शब्द का ज़िक्र किया। अगर ये केवल कवि कल्पना मात्र होती तो वेदव्यास ऐसा क्यों करते? ध्यान दें महाभारत के सभी श्लोक इसकी ऐतिहासिकता को सिद्ध करते नज़र आते हैं क्योंकि इनमें जिस तरह से घटनाओं व चरित्रों सहित कई स्थानों का उल्लेख है, वे केवल एक ऐतिहासिक विवरण में ही संभव है !!

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