Tuesday, 15 December 2015

क्या हैं हनुमान चालीसा चौपाइयों के अर्थ ?




हनुमानजी की स्तुति हनुमान चालीसा से हम सभी परिचित हैं। हनुमान चालीसा की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी। हिंदू धर्म ग्रंथों में उल्लेखित है कि बाल्यकाल में जब हनुमानजी ने सूर्य को मुंह में रख लिया तब सूर्य को मुक्त कराने के लिए देवराज इंद्र ने हनुमानजी पर शस्त्र से प्रहार किया। इसके बाद हनुमान जी मूर्छित हो गए।


हनुमानजी के मूर्छित होने की बात जब वायु देव को पता चली तो काफी नाराज हुए। लेकिन जब सभी देवताओं को पता चला कि हनुमानजी भगवान शिव के रुद्र अवतार हैं, तब सभी देवताओं ने हनुमानजी को कई शक्तियां दीं। देवताओं ने जिन मंत्रों और हनुमानजी की विशेषताओं को बताते हुए उन्हें शक्ति प्रदान की थी, उन्हीं मंत्रों के सार को गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा में वर्णित किया है।


हनुमान चालीसा में मंत्र नहीं हैं लेकिन हनुमानजी की पराक्रम की विशेषताएं बताई गईं हैं। हनुमान चालीसा में ही ऐसी चौपाईयां हैं, जिनका यदि नियमित सच्चे मन से वाचन किया जाए तो यह परम फलदायी सिद्ध होती हैं। हनुमान चालीसा का वाचन मंगलवार या शनिवार करना शुभ होता है। ध्यान रखें हनुमान चालीसा की इन चौपाइयों को पढ़ते समय उच्चारण की त्रुटि न करें।


1. भूत-पिशाच निकट नहीं आवे।


महावीर जब नाम सुनावे।।


उपाय- यदि व्यक्ति को किसी भी प्रकार का भय सताता है तो नित्य रोज प्रातः और सायंकाल में 108 बार इस चौपाई का जाप किया जाये तो सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है।


2. नासै रोग हरै सब पीरा।


जपत निरंतर हनुमत बल बीरा।।


उपाय- यदि व्यक्ति बीमारियों से घिरा रहता है तो निरंतर सुबह-शाम 108 बार जप करके तथा मंगलवार को हनुमान जी की मूर्ति के सामने पूरी हनुमान चालीसा के पाठ से रोगों की पीड़ा खत्म हो जाती है।


3. अष्ट-सिद्धि नवनिधि के दाता।


अस बर दीन जानकी माता।।


उपाय- यदि जीवन में व्यक्ति को शक्तियों की प्राप्ति करनी है ताकि जीवन निर्वाह में मुश्किलों का कम सामना करना पड़े तो नित्य रोज, ब्रह्म मुहूर्त में आधा घंटा इन पंक्तियों के जप से लाभ प्राप्त हो सकता है।


4. विद्यावान गुनी अति चातुर।


रामकाज करीबे को आतुर।।


उपाय- यदि किसी व्यक्ति को विद्या और धन चाहिए तो इन पंक्तियों के जप से हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है। प्रतिदिन 108 बार ध्यानपूर्वक जप करने से व्यक्ति के धन सम्बंधित दुःख दूर हो जाते हैं।


5. भीम रूप धरि असुर संहारे।


रामचंद्रजी के काज संवारे।।


उपाय- यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं से परेशान हैं या व्यक्ति के कार्य नहीं बन पा रहे हैं तो हनुमान चालीसा की इस चौपाई का कम से कम 108 बार जप करना चाहिए।


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holly hindu book gita line meaning in hindi

जाने अभी : क्या है गीता सार





1.खाली हाथ अाए अौर खाली हाथ चले। जो अाज तुम्हारा है, कल अौर किसी का था, परसों किसी अौर का होगा। इसीलिए, जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल।

2.क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? अात्मा ना पैदा होती है, न मरती है।

3.जो हुअा, वह अच्छा हुअा, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।

4.तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर अाए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।

5.खाली हाथ अाए अौर खाली हाथ चले। जो अाज तुम्हारा है, कल अौर किसी का था, परसों किसी अौर का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।

6.परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।

7.न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, अाकाश से बना है अौर इसी में मिल जायेगा। परन्तु अात्मा स्थिर है – फिर तुम क्या हो?

8.तुम अपने अापको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।

9.जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का अानंन्द अनुभव करेगा।


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Tuesday, 8 December 2015

कैसे प्राप्त करे हनुमान जी की कृपा



1.सबसे आसान उपाय हनुमान जी के कृपा पाने का , राम नाम का जप करे
2.बजरंग बाण

बजरंग बाण
भौतिक मनोकामनाओं की पुर्ति के लिये बजरंग बाण का अमोघ विलक्षण प्रयोग

अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए मंगल अथवा शनिवार का दिन चुन लें। हनुमानजी का एक चित्र या मूर्ति जप करते समय सामने रख लें। ऊनी अथवा कुशासन बैठने के लिए प्रयोग करें। अनुष्ठान के लिये शुद्ध स्थान तथा शान्त वातावरण आवश्यक है। घर में यदि यह सुलभ न हो तो कहीं एकान्त स्थान अथवा एकान्त में स्थित हनुमानजी के मन्दिर में प्रयोग करें।
हनुमान जी के अनुष्ठान मे अथवा पूजा आदि में दीपदान का विशेष महत्त्व होता है। पाँच अनाजों (गेहूँ, चावल, मूँग, उड़द और काले तिल) को अनुष्ठान से पूर्व एक-एक मुट्ठी प्रमाण में लेकर शुद्ध गंगाजल में भिगो दें। अनुष्ठान वाले दिन इन अनाजों को पीसकर उनका दीया बनाएँ। बत्ती के लिए अपनी लम्बाई के बराबर कलावे का एक तार लें अथवा एक कच्चे सूत को लम्बाई के बराबर काटकर लाल रंग में रंग लें। इस धागे को पाँच बार मोड़ लें। इस प्रकार के धागे की बत्ती को सुगन्धित तिल के तेल में डालकर प्रयोग करें। समस्त पूजा काल में यह दिया जलता रहना चाहिए। हनुमानजी के लिये गूगुल की धूनी की भी व्यवस्था रखें।

जप के प्रारम्भ में यह संकल्प अवश्य लें कि आपका कार्य जब भी होगा, हनुमानजी के निमित्त नियमित कुछ भी करते रहेंगे। अब शुद्ध उच्चारण से हनुमान जी की छवि पर ध्यान केन्द्रित करके बजरंग बाण का जाप प्रारम्भ करें। “श्रीराम–” से लेकर “–सिद्ध करैं हनुमान” तक एक बैठक में ही इसकी एक माला जप करनी है।

गूगुल की सुगन्धि देकर जिस घर में बगरंग बाण का नियमित पाठ होता है, वहाँ दुर्भाग्य, दारिद्रय, भूत-प्रेत का प्रकोप और असाध्य शारीरिक कष्ट आ ही नहीं पाते। समयाभाव में जो व्यक्ति नित्य पाठ करने में असमर्थ हो, उन्हें कम से कम प्रत्येक मंगलवार को यह जप अवश्य करना चाहिए।
3.श्री बाला जी महाराज जी के बारह नाम एवं इनकी महिमा
1-हनुमान
2-अंजनी सुत
3-वायु पुत्र
4-महाबल

5-रामेष्ट
6- फ़ाल्गुण सखा
7-पिंगाक्ष
8-अमित विक्रम
9-उदधिक्रमण
10-सीता शोक विनायक
11-लक्ष्मण प्राण दाता
12-दशग्रीव दर्पहा
 प्रातःकाल सोकर उठते ही उसी अवस्था में इन बारह नामों को 11 बार लेने वाला व्यक्ति दीर्यायु होता है।
॥ दोपहर में नाम लेने वाला व्यक्ति धनवान होता है। संध्या के समय नाम लेने वाला व्यक्ति पारिवारिक सुखों से तृप्त होता है।


॥ रात्रि को सोते समय नाम लेने वाला व्यक्ति शत्रु पर विजयी होता है।


॥ उपरोक्त समय के अतिरिक्त इन बारह नामों का निरन्तर जाप करने वाले व्यक्ति की श्री हनुमान जी दसों दिशाओं एवं आकाश-पाताल में भी रक्षा करते हैं।


॥ यात्रा के समय एवं न्यायालय में पड़े विवाद के लिये ये बारह नाम अपना चमत्कार दिखायेगें।
॥ लाल स्याही में मंगलवार को भोज-पत्र पर ये बारह नाम लिखकर मंगलवार के ही दिन ताबीज बांधने से कभी सिर दर्द नहीं होगा। गले या बाजू में ताबें का ताबीज ज्यादा उत्तम है। भोज-पत्र पर लिखने के काम आने वाला पैन या साईन पैन नया होना चाहिये।
4.सुन्दर काण्ड  , का पाठ यदि हर दिन किया जाए , अगर ना संभव को तो कर मंगलवार एवम शनिवार को किया जाए तो हनुमान जी के कृपा प्राप्त होती हे

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Tuesday, 1 December 2015

Ghazni shocked to see Hanging of the temple statue in the air

हवा में लटकती इस मंदिर की मूर्ति देख हैरान हो गया गजनवी



सोमनाथ वह पवित्र स्थान है जहाँ आदि ज्योर्तिलिंग स्थापित हुआ था. भक्तों के बीच सोमनाथ की मिट्टी इसलिये भी पवित्र मानी जाती है क्योंकि भगवान श्री कृष्ण उसी भूमि से निजधाम की ओर अपनी अंतिम यात्रा पर गये थे.

सोमनाथ का मंदिर अरब सागर के तट पर अवस्थित है. समुद्र की लहरे इस मंदिर को छू कर गुजरती थी. यहाँ स्थापित सोमनाथ की मूर्ति स्थापत्य कला की उत्कृष्ट मानी जाती रही है. यह मूर्ति मंदिर के मध्य बिना किसी सहारे के खड़ी थी. बिना आधार की इस मूर्ति को ऊपर से सहारा देने के लिये भी कुछ नहीं था.

इसे हवा में तैरते हुए देखने पर दर्शकों के आश्चर्य की सीमा नहीं रहती. यह मंदिर शीशा जड़ी सागवान की लकड़ी के छप्पन स्तम्भों पर खड़ा था. मूर्ति का पूजागृह में अंधेरा हुआ करता था. उसके समीप ही एक सोने की जंजीर टँगी होती थी. इसका वजन करीब दो सौ मन था. हिंदू भक्तों का हुजूम चंद्रग्रहण के अवसर पर इस मंदिर में जमा होता था.

उस जंजीर का प्रयोग पहर की समाप्ति पर ब्राह्मणों के दूसरे दल को जगाने के लिये किया जाता था. यह मान्यता रही कि मनुष्यों की आत्मायें अपने शरीर से अलग होकर वहाँ जमा होती थीं. इसके बाद यह मूर्ति इन आत्माओं को अपनी इच्छानुसार दूसरे शरीरों में प्रविष्ट करा देती थीं. ज्वार भाटे को समुद्र द्वारा मूर्ति की पूजा-अर्चना समझा जाता था. कहा जाता है कि वहाँ गंगा नदी के पानी से मंदिर को धोया जाता था. उस समय मंदिर को करीब दस हजार गाँव दान में प्राप्त हुए थे.

सन 1025 के दिसम्बर के मध्य गज़नी का तुर्क सरदार महमूद यहाँ आया था. उसके लिये भी मूर्ति का बिना किसी सहारे के खड़े होना अचरज की बात थी. उसने अपने सेवकों से इसका कारण पूछा जिसका उसे तुरंत संतोषजनक उत्तर नहीं मिला. यह मूर्ति किसी गुप्त वस्तु के सहारे खड़ी है ऐसा अधिकांश सेवकों का विश्वास था. यह जानकर उसने मूर्ति के चारों ओर भाला घुमाकर सेवकों से रहस्य का पता लगाने को कहा.

सभी सेवकों ने उसके आदेश का पालन किया. हालांकि, उन्हें ऐसी कोई वस्तु नहीं मिली जो भाले में अटके. महमूद मायूस हुआ. फिर उसे किसी सेवक ने बताया कि मंदिर का मंडप चुम्बक जड़ित है जबकि मूर्ति लोहे की बनी है. उसने इसे किसी कुशल कारीगर की कारीगरी करार दी जिसने यह व्यवस्था की थी. चुम्बक इस तरह व्यवस्थित रखी गयी कि किसी ओर अधिक दबाव न पड़े.




इस राय को सुनने के बाद महमूद ने मंडप की छत से कुछ पत्थर निकालने का आदेश दिया. आदेश के पालन के दौरान मूर्ति एक ओर झुक गयी. सारे पत्थर निकाल लेने पर मूर्ति जमीन पर गिर पड़ी. इस तरह सोमनाथ मंदिर में रखी गयी मूर्ति के पीछे की स्थापत्य कला की जानकारी आम लोगों को हुई.

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Sunday, 15 November 2015

The 8 lines of the palm of your hand says wealth Lakshmi Yoga

                     हथेली की ये 8 रेखाएं बताती हैं आपके हाथों धन लक्ष्मी में योग




हर व्यक्त‌ि चाहता है क‌ि मां लक्ष्मी की कृपा उस पर हो जाए और घर धन-धान्य से भर जाए। शास्‍त्रों में बताया गया है क‌ि जो भी व्यक्त‌ि श्रद्धा पूर्वक देवी लक्ष्मी की साधना और आराधना करते हैं माता उस पर कृपा करती है। लेक‌िन हथेल‌ी में 8 ऐसी रेखाएं मौजूद हैं तो लक्ष्‍मी की कृपा आप पर सबसे ज्यादा रहगी। आप न‌िश्च‌ित रुप से धनवान और मालामाल होते रहेंगे।


1. - आपकी हथेली में अगर शन‌ि पर्वत यानी मध्यमा उंगली और बुध पर्वत यानी छोटी उंगली के पास एक वलय यानी र‌िंग बना हो। यह वलय एक रेखा से जुड़ा हो तो आपकी हथेली में लक्ष्मी योग बनता है। ऐसे व्यक्त‌ि चतुर और बोल-चाल की कला में न‌िपुण होते हैं। यह अपने व्यक्त‌ित्व से प्रशंसा और ख्यात‌ि पाते हैं। धन के मामले भी यह संपन्न होते हैं।


2. - अगर आपकी हथेली में मण‌िबंध यानी हथेली के अंत‌िम स‌िरे शुरु होकर कोई रेखा सीधे शन‌ि पर्वत तक पहुंचे साथ ही चन्द्र पर्वत से शुरु होकर एक रेखा सूर्य पर्वत यानी अनाम‌िका उंगली तक आए तो यह महालक्ष्मी योग बनाता है। ऐसी रेखा बहुत ही दुर्लभ होती है। ज‌िनकी हथेली में पायी जाती है वह धनवान और हर प्रकार के सुख-साधनों को पाने वाले होते हैं।


3. - आपकी हथेली में गुरु, चन्द्रमा, शुक्र और बुध पर्वत उन्नत एवं लाल‌िमा ल‌िए हो तो आप राजलक्ष्मी योग वाले व्यक्त‌ि हैं। अपने नाम के अनुसार यह योग व्यक्त‌ि को राजा के समान सुख और वैभव द‌िलाता है।


4. - आपकी हथेली मण‌िबंध रेखा से भाग्य रेखा, सूर्य रेखा और बुध रेखा न‌िकल रही है तो आप नवलक्ष्मी योग वाले व्यक्त‌ि हैं। ऐसे व्यक्त‌ि शुरू में तो खूब पर‌िश्रम करते हैं लेक‌िन उम्र बढ़ने के साथ अपार धन के स्वामी बन जाते हैं।



5. - हथेली में तराजू का च‌िन्ह श्रीमहालक्ष्मी योग कहलाता है। ऐसे व्यक्त‌ि आर्थ‌िक रूप से समृद्ध‌ होने के साथ ही प्रस‌िद्ध और धार्म‌िक व‌िचारों वाले होते हैं। इनमें न्याय की भावना होती है। ऐसे व्यक्त‌ि व्यवसाय में बहुत ही सफल होते हैं।



6. - हथेली में भाग्य रेखा साफ और स्पष्ट रूप से आकर सूर्य पर्वत पर आकर ठहरती है तो इसे भाग्य योग और भाग्य लक्ष्‍मी योग कहते हैं। ऐसे व्यक्त‌ि बचपन से ही धन और वैभव में जीवन बीताते हैं।



7. - हथेली में भाग्यरेखा शन‌ि पर्वत से आगे बढ़कर मध्यमा के दूसरे पोर तक पहुंचती हैं वह भाग्योदय योग वाले व्यक्त‌ि होते हैं। ऐसे व्यक्त‌ि का भाग्योदय बचपन में ही हो जाता है और पूरा जीवन धन धान्य से भरपूर होता है।



8. - सूर्य पर्वत का स्‍थान उठा हुआ हो और सूर्य रेखा हथेली के मध्य में आकर शुक्र की ओर मुड़ रही है तो आप राजराजेश्वर योग वाले व्यक्त‌ि हैं। आपका जीवन सुख-संपत्त‌ि और धन-धान्य से पूर्ण होगा।


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Saturday, 14 November 2015

padmanabhaswamy temple is located in Kerala capital Thiruvananthapuram

                     कलियुग के पहले दिन हुई थी इस मंदिर की स्थापना


केरल की राजधानी तिरूअनंतपुरम में स्थित पद्मनाभ स्वामी मंदिर के पास अकूत संपत्ति है। माना जाता है कि इस मंदिर के पास 2 लाख करोड़ रुपए की दौलत है। 2011 में कैग की निगरानी में पद्मनाभस्वामी मंदिर से करीब एक लाख करोड़ रुपए मूल्य का खजाना निकाला जा चुका है। अभी मंदिर का एक तहखाना खुलना बाकी है। इसीलिए इसे भारत का सबसे अमीर मंदिर कहा जाता है।
क्या है मंदिर से जुड़ी मान्यता?
मंदिर हजारों साल पुराना है। इसकी स्थापना कब हुई थी, इस बारे में एकराय नहीं है। कहा जाता है कि यह मंदिर दो हजार साल पुराना है। वहीं त्रावणकोर के इतिहासकार डॉ. एलए रवि वर्मा का दावा है कि इस मंदिर की स्थापना कलियुग के पहले दिन में हुई थी। यह भी माना जाता है कि मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ती की स्थापना कलियुग के 950वें साल में हुई थी।


त्रावणकोर राजघराने से क्या है संबंध?
मंदिर का मौजूद स्वरूप त्रावणकाेर के राजाओं ने बनवाया। कहा जाता है कि 1750 में त्रावणकाेर के महाराजा मार्तण्ड वर्मा ने खुद को पद्मनाभ स्वामी का दास बताया था, इसके बाद पूरा शाही खानदान मंदिर की सेवा में लग गया था। यह भी माना जाता है कि मंदिर में मौजूद अकूत संपत्ति त्रावणकोर शाही खानदान की ही है। 1947 में जब भारत सरकार हैदराबाद के निजाम की संपत्तिअपने अधीन कर रही थी, तो त्रावणकोर राजघराने ने अपनी दौलत मंदिर में रख दी। उस वक्त त्रावणकोर रियासत का तो भारत में विलय हो गया। उस वक्त रियासत की संपत्ति भारत सरकार ने अपने अधीन की, लेकिन मंदिर शाही खानदान के पास ही रहा। इस तरह राजघराने ने अपनी संपत्ती बचा ली, लेकिन इस कहानी का कोई प्रमाण अब तक सामने नहीं आया है। अब यह मंदिर शाही खानदान द्वारा बनाया गया ट्रस्ट चलाता है।


टीपू सुल्तान कर चुका है हमला
टीपू सुल्तान ने इस मंदिर पर हमला भी किया था। कहा जाता है कि 1790 में टीपू सुल्तान ने मंदिर पर कब्जे के लिए हमला किया था, लेकिन कोच्चि के पास उसे हरा दिया गया।

कैग ने कहा था- मंदिर की कहानियां झूठी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूर्व नियंत्रक लेखा महापरीक्षक (CAG) विनोद राय ने मंदिर के तहखानों की कहानियों को खारिज किया था। 2011 में कैग की निगरानी में पद्मनाभस्वामी मंदिर से करीब एक लाख करोड़ रुपए मूल्य का खजाना निकाला गया था। हालांकि उस वक्त कई प्रचलित कहानियों के चलते मंदिर के छठे तहखाने को नहीं खोला गया था। एस कहानी के मुताबिक मंदिर के तहखानों में कोबरा जैसे जहरीले सांप मौजूद हैं, जो इस खजाने की रक्षा करते हैं और किसी को तहखाने में जाने की इजाजत नहीं है।


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Wednesday, 11 November 2015

Why are lit lamp Know Now

क्यों जलाए जातें हैं दीपक , जानें अभी




ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो हम पायेंगे कि इस समय सूर्य नारायण जो कि समस्त ब्राहमण्ड के राजा हैं और आत्मकारक कहे जाते हैं, वे इस समय अपनी नीच राशि तुला पर गोचर कर रहे होते हैं। सूर्य जब नीच राशि पर गोचर करते हैं तो संसार में भी अद्भुत परिवर्तन करने की ताकत रखते हैं। शायद हमारे ऋषियों ने यह जाना होगा कि इस समय सूर्य पृथ्वी से अत्यधिक विपरीत परिस्थितियों में होते हैं !
जबकि पृथ्वी पर रहने वाले लोगों को सूर्य का प्रकाश व उस प्रकाश में निहित शक्तियां विपरीत क्रम में प्राप्त होती है इसलिए किसी विशेष प्रकाश रूपी अग्नि तव की जातकों को आवश्यकता प़ड सकती है। ऋषियों ने यह भी जान लिया था कि इस समय चंद्र, सूर्य से समुचित मात्रा में प्रकाश का ग्रहण नहीं कर पाते होंगे इसलिए भी रात्रि में दीप जलाने की प्रथा प्रारम्भ की होगी। कार्तिक मास पूरा का पूरा और उसका प्रत्येक दिन भारतीय परम्परा के अनुसार दीप प्रज्ज्वलन का होता है।
भारत देश में विशेष तौर पर उत्तरी भारत में कार्तिक स्नान की परम्परा अत्यधिक व्याप्त है। इस मास में सूर्य उदय से चार घटी पूर्व शैय्या त्याग का विधान है। स्त्री व पुरूष दोनों ही, विशेष रूप से स्त्रयां इस मास में सूर्य उदय से पूर्व स्नान करती हैं और कार्तिक मास पुराण का श्रवण करती हैं। उस पुराण का महत्व बहुत अधिक है। उसकी कथाओं में प्रत्येक दिन किसी न किसी रूप में भोर से पूर्व व सांझ होने के समय दीपक जलाने का महत्व है और इन पौराणिक कथाओं से भाव-विभोर होकर के पूरी श्रद्धा के साथ सद्गृहस्थों की गृहणियां दीप प्रज्ज्वलित करती हैं। दीपावली को अत्यधिक मात्रा में दीपक जलाने की आवश्यकता ऋषियों ने बतायी क्योंकि अमावस्या की रात्रि होती है जो घोर अंधकार से व्याप्त होती है। चंद्र दर्शन के अभाव से भी यह और अंधियारी हो जाती है।
एक तो पूरे में मास ही सूर्य के नीच राशि में गोचर के कारण प्रकाश की विशेष कमी होना, उसमें भी यदि अमावस्या तिथि हो तो प्रकाश की कमी की कल्पना ही की जा सकती है। ऎसे में प्रकृति से संतुलन बनाए रखने के लिए विशेष प्रकाश शक्ति प्राप्त करने हेतु अत्यधिक मात्रा में दीप जलाये जाते हैं। शायद दीपावली के इस पर्व को मनाने व इसमें अत्यधिक दीपक जलाने, रोशनी करने, फूलझ्डी, पटाखे जलाने के पीछे रहस्य यही रहा होगा। भारतीय मान्यताओं के अनुसार दीपावली को लेकर विविध
प्रकार की कथाओं का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है लेकिन उक्त प्रमाण भी इस पर्व की प्रारम्भिक अवस्थाओं को लेकर सिद्ध प्रतीत होता है। इसलिए दीप प्रज्ज्वलन को मात्र एक परम्परा या रूढि मानकर के नहीं औषधीय रूप में भी लेना चाहिए और अपने-अपने परिवार व इस जगत के कल्याण व सुख-समृद्धि हेतु अवश्यमेव पूरी श्रद्धा के साथ इस त्यौहार को सविधि मनाकर दीप प्रज्ज्वलन करना चाहिए।
दीपावली के दिन दीप प्रज्ज्वलन का सर्वश्रेष्ठ समय सायं सूर्यास्त के गोचर के कारण प्रकाश की विशेष कमी होना, उसमें भी यदि अमावस्या तिथि हो तो प्रकाश की कमी की कल्पना ही की जा सकती है। ऎसे में प्रकृति से संतुलन बनाए रखने के लिए विशेष प्रकाश शक्ति प्राप्त करने हेतु अत्यधिक मात्रा में दीप जलाये जाते हैं। शायद दीपावली के इस पर्व को मनाने व इसमें अत्यधिक दीपक जलाने, रोशनी करने, फूलझ्डी, पटाखे जलाने के पीछे रहस्य यही रहा होगा। भारतीय मान्यताओं के अनुसार दीपावली को लेकर विविध
प्रकार की कथाओं का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है लेकिन उक्त प्रमाण भी इस पर्व की प्रारम्भिक अवस्थाओं को लेकर सिद्ध प्रतीत होता है। इसलिए दीप प्रज्ज्वलन को मात्र एक परम्परा या रूढि मानकर के नहीं औषधीय रूप में भी लेना चाहिए और अपने-अपने परिवार व इस जगत के कल्याण व सुख-समृद्धि हेतु अवश्यमेव पूरी श्रद्धा के साथ इस त्यौहार को सविधि मनाकर दीप प्रज्ज्वलन करना चाहिए। दीपावली के दिन दीप प्रज्ज्वलन का सर्वश्रेष्ठ समय सायं सूर्यास्त के पश्चात् का होता है जबकि प्रदोषकाल होता है।
प्रदोषकाल के साथ-साथ स्थिर लग्न व चतुर्घटिका मुहूर्त भी शुद्ध हो तो सर्वश्रेष्ठ होता है। गृहस्थ में गृहलक्ष्मी का पूजन करने हेतु प्रदोषकाल व शुभ, लाभ, अमृत के चतुर्घटिका मुहूर्त जब प्राप्त हा , उसी समय सर्वप्रथम दीप प्रज्ज्वलन करके ही पराशक्ति श्री महालक्ष्मी की पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए। इस प्रकार से पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती हैं, परिवार की वृद्धि होती है, धन-धान्य की वृद्धि होती है,
परिवार मे सुख-शांति आती है। कहा जाता है कि घर की प्रधान सौभाग्यशाली सुहागिनी जो स्त्री होती है वह दीपावली की अर्द्धरात्रि में अपने घर की झ़ाडू लगाएं, आंगन की झाडू लगाएं और अर्द्धरात्रि होने से कुछ पूर्व ही घर के सारे कचरे को बाहर भवन से नैऋत्य में डाल दें। पश्चात् घर के प्रधान आंगन में हो सके तो गाय का गोबर लेकर उसको वर्गाकार लीपें। उस पर आटा, हल्दी, गुलाल आदि के द्वारा रंगोली बनाएं और एक बडा दीपक प्रज्ज्वलित करें।
जिस घर में यह दीपक जलता है उस घर में महालक्ष्मी नारायण भगवान के साथ गरूड पर बैठकर के श्री गणेश जी अर्थात् सद्बुद्धि के साथ एवं महा सरस्वती रूपी श्रेष्ठ वाणी एवं महाकाली रूपी आलस्य नाशिनी शक्ति के रूप में घर में प्रवेश करती हैं और परिवार को समृद्ध करती हैं। अलक्ष्मी के दोष का निवारण व शुभलक्ष्मी की प्राप्ति और उस प्राप्ति की चिरकाल तक स्थापना घर में अथवा व्यापार में करने के लिए निश्चित रूप से पूरी श्रद्धा के साथ दीपावली पर्व को दीप प्रज्ज्वलनोत्सव के रूप में मनाएं और सुख-समृद्धि पाएं।

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Tuesday, 10 November 2015

Why is prayer important in the use of copper urn

पूजा में तांबे के कलश का उपयोग है जरूरी , क्यों ?



जिन नई तकनीकों का हवाला आज वैज्ञानिक देते हैं, वह सब कुछ युगों पहले हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में अपनी जगह बना चुके थे। फर्क सिर्फ इतना है कि किसी कारण वश वह जानकारी समय रहते सब तक पहुंच नहीं पाई। लेकिन वैज्ञानिक भी वेदों में दी गई रचनाओं को देख हैरान हो जाते हैं। कुछ इसी तरह का आविष्कार था ‘बैक्टीरिया’ का।

बैक्टीरिया यानी की कीटाणुओं का हमारे आसपास मौजूद होने का दावा आयुर्वेद द्वारा आधुनिक विज्ञान से बहुत पहले ही अपनी रचनाओं में किया गया था। इस बात को साबित करने का सबसे पहला उदाहरण है आयुर्वेद द्वारा तांबे के बर्तन में पानी पीने का महत्व।


मनुष्य के स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण समझते हुए आयुर्वेद ने तांबे के बर्तन में ही पानी पीने की सलाह दी है। आयुर्वेद का मानना है कि पानी में विभिन्न प्रकार के कीटाणु होते हैं जो तांबे से बने हुए बर्तन में पानी को डालने से मर जाते हैं। यही खोज वर्षों बाद विज्ञान द्वारा भी की गई थी।


केवल पानी पीने के लिए ही क्यों, युगों से तांबे से बने बर्तनों का प्रयोग बेहद पवित्र रूप से किया जा रहा है। यदि आपने कभी ध्यान दिया हो तो किसी भी पूजा अथवा हवन या फिर किसी भी भगवान की आराधना में जिन बर्तनों का हम प्रयोग करते हैं वह तांबे के ही बने होते हैं।

यहां तक कि सूर्य नमन करते समय भी इस्तेमाल किया जाने वाला ग्लास तांबे का ही होता है। हिन्दू धर्म में सूर्य नमन या फिर सरल भाषा में कहें तो सूर्य को पानी देने का बहुत बड़ा महत्व है। हिन्दू धर्म में सुबह उठने के बाद साफ-सुथरे ढंग से नहाने के पश्चात् सबसे पहले सूर्य भगवान को जल चढ़ाने की मान्यता है।

बच्चे हों या बूढ़े या फिर जवान, सभी सूर्य भगवान को जल अर्पित करने को अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। लेकिन यूं ही अपने तरीके से सूर्य भगवान का नमन नहीं किया जाता। इसे करने के बकायदा कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं। जिसमें नहा कर, साफ कपड़े पहनकर तांबे के बर्तन में जल भर कर सूर्य नमन किया जाता है।


तांबे के ही बर्तन द्वारा जल अर्पित करना अनिवार्य है। सूर्य नमन के अलावा हर प्रकार की पूजा में भी तांबे से बना हुआ ही कलश इस्तेमाल किया जाता है। इसके पीछे एक अहम कारण छिपा है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार संसार में मौजूद सभी धातुओं में से सबसे पवित्र धातु ‘तांबा’ ही है।

केवल हिन्दू मान्यताएं ही नहीं, बल्कि विज्ञान का भी यह कहना है कि तांबे का बर्तन सबसे शुद्ध होता है। क्योंकि उसे बनाने के लिए किसी भी अन्य धातु का प्रयोग नहीं होता। इसी शुद्धता को तवज्जो देते हुए हिन्दू धर्म में तांबे के प्रयोग पर ज़ोर दिया जाता है।

धार्मिक पहलू के अलावा चिकित्सिकीय संदर्भ से भी तांबे से बने बर्तन को इस्तेमाल करने का बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि यदि रात को तांबे के पात्र में पानी रख दें और सुबह इस पानी को पीयें तो अनेक फायदे होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह पानी शरीर के कई दोषों को शांत करता है।


तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी उसमें घंटों तक रखने से साफ हो जाता है। उसके अंदर के सारे कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही यह पानी पीने से व्यक्ति के भीतर मौजूद कीटाणु एवं जहरीले तत्व बाहर निकल जाते हैं।

डॉक्टर की सलाह मानें तो रात को तांबे के बर्तन में पानी भर कर रख देना चाहिए। इसे कम से कम 8 घंटे तक रखना चाहिए नहीं तो इसका उच्चत्तम लाभ पाना कठिन है। सुबह उठने पर इस पानी के कम से कम तीन गिलास पीना चाहिए और इसे पीने के बाद 45 मिनटों तक कुछ भी खाना नहीं चाहिए।

ऐसा करने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं जिसमें से पहला है पाचन शक्ति का मजबूत होना। कम से कम आठ घंटों तक तांबे के बर्तन में रखे हुए पानी का जब सेवन किया जाता है तो वह हमारे अंदर से एसिडिटी या गैस या पेट की किसी भी प्रकार की समस्या को कम करता है। यह पानी धीरे-धीरे शरीर के अंदर के कीटाणुओं को नष्ट करता है।


इसके अलावा त्वचा को चमकदार बनाने में भी लाभकारी है तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीना। बाज़ार में मिलने वाले किसी भी कॉस्मेटिक क्रीम या फिर फेस पैक से बेहतर काम करता है तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी। हो सकता है कि बाज़ारू क्रीम लगाने से आपके चेहरे पर चमक आ जाए, लेकिन तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने से पूरी शरीर की त्वचा पर चमक आ जाती है।

इस पानी को पीने से स्किन पर ग्लो आता है व साथ ही अनचाही झुर्रियों से भी छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही स्किन का ढीलापन कम होता है और साथ ही डेड स्किन भी निकल जाती है। स्किन के अलावा किसी प्रकार के शारीरिक रोग को भी दूर करके फायदा देता है यह खास पानी।

यदि नियमित रूप से तांबे के पात्र में रखे हुए पानी का सेवन किया जाए तो खांसी जैसी दिक्कत होना असंभव है। इस पानी में रात को तुलसी डाल दी जाए और सुबह पी लिया जाए तो खांसी छूमंतर हो जाती है। इसके साथ ही आजकल हर किसी को अपनी चपेट में ले चुकी थायराइड की दिक्कत भी कम हो जाती है।



शरीर में उत्पन्न होने वाले थायराक्सिन हार्मोन के असंतुलन के कारण ही थायराइड की बीमारी होती है। इन्हीं हार्मोन को नियंत्रण करता है कॉपर के स्पर्श वाला पानी। थायराइड के साथ गठिये की दिक्कत को भी दूर करता है तांबे के पात्र में रखा हुआ पानी।

गठिया एक ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति के शरीर को धीरे-धीरे जकड़ लेती है। शरीर में जिन स्थानों पर जोड़ मौजूद होते हैं, जैसे कि कलाई एवं हाथ का जोड़, घुटने, आदि जगहों पर गांठ बनने लगती है। यह बीमारी शरीर में एक प्रकार के एसिड जिसे यूरिक एसिड कहा जाता है, इसके बनने से होती है।

तांबे के बर्तन की सहायता से यही यूरिक एसिड कम किया जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि तांबे से बनी धातु यूरिक एसिड को काटने का काम करती है। परिणाम स्वरूप यदि ऐसे बर्तन में रखा हुआ पानी पिया जाए तो यह शरीर के अंदर से यूरिक एसिड को बाहर निकालता है।



पानी शरीर में खून की कमी को दूर करता है। इसे पीने वालों को कभी हृदय रोग नहीं होता तथा साथ ही कैंसर से लड़ने में भी सहायक है तांबे के पात्र में रखा हुआ पानी। इसके साथ ही यदि किसी का वजन तमाम कोशिशों के बाद भी कम नहीं हो रहा तो आज से ही तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीना अवश्य शुरू कर दें।


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Ganesh idols are destined to make

गणेश जी की ये मूर्तियां किस्मत बना देती हैं



वास्तु शास्त्र प्योर साइंस है जो सकारात्मक तथा नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह की बात करता है। लेकिन जब लोग बिना समझ के वास्तु के उपायों को गलत तरीके से उपयोग कर लेते हैं, तब वे हताश होकर इसे अंधविश्वास करार देते हैं। लेकिन तथ्यो की मानें तो यह सच में जोड़-तोड़ का विज्ञान ही है, जो हमारे कोशिश करने से ही फलित साबित होता है।

वास्तु शास्त्र के भीतर रोग काटने, खुशी पाने, घर में सुख-शांति पाने और यहां तक कि फैमिली प्लानिंग से संबंधित उपाय भी हैं। लोग समय-समय पर इनका इस्तेमाल करके घर में सुख एवं स्मृद्धि लाते हैं, कुछ ऐसा ही एक उपाय हमारे पास है।

तो आज हम आपको गणेश जी से संबंधित एक वास्तु टिप देने जा रहे हैं, जिसके मुताबिक कुल ऐसी पांच गणेश जी की प्रतिमाएं हैं जिन्हें यदि घर में रखा जाए तो घन एवं स्मृद्धि उस घर में जरूर आती है।

यूं तो शिव के पुत्र गणेश जी हर रुप में शुभ और मंगलकारी माने जाते हैं, लेकिन फियर भी यह 5 प्रकार की गणेश कि मूर्तिु का घर में होना बहुत ही लाभकारी माना गया है। आगे की स्लाइड्स में जानें वह मूर्तियां जो यदि आप अपने घर में लाएंगे तो जरूर गणेश जी की आपार कृपा होगी।

आम, पीपल और नीम से बनी गणेश जी की मूर्ति अपने घर अवश्य लाएं और इसे घर के मुख्य दरवाजे पर लगाना चाहिरए। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है जो धन और सुख में वृद्धिर कारक मानी जाती है।

दूसरी विशेष मूर्ति वह है जो गाय के गोबर से बनी हो, मान्यताओं के आधार पर गणेश जी की ऐसी मूर्तिक धन वृद्धिबकारक मानी गई है। आप अपने घर में गणेश जी की ऐसी मूर्तिर रख सकते हैं।

अतिरिक्त लाभ के लिए रवि वार या पुष्य नक्षत्र में आप श्वेतार्क गणेश की मूर्तिघ घर लेकर आएं और निेयमिरत इनकी पूजा करें। इससे आपके सभी रुके हुए काम बन जाएंगे और साथ ही यह धन सम्पदा के लिए शुभ माना गया है। इससे जल्द ही धन लाभ होने के संकेत मिलते है।

इसके अलावा क्रििस्टल के बने गणेश जी की मूर्तिे को वास्तुदोष दूर करने में बहुत ही कारगर माना गया है। हालांकि यह मूर्ति काफी महंगी मिलती है लेकिन यदि आप इस धातु से बनी कोई छोटी सी मूर्ति भी ले लें जो आपकी पॉकेट को सूट करे तब भी यह फलित साबित होगी।

अन्य सुझावों में गणेश जी की क्रिदस्टल की मूर्ति के साथ देवी लक्ष्मी जी की भी इसी धातु की मूर्ति रखी जा सकती है। लक्ष्मी जी जो कि स्वयं धन की देवी मानी गई हैं, उनके घर में आने से धन और सौभाग्य दोनों दौड़े चले आते हैं।

लेकिन यदि आप बाज़ार से कोई मूर्ति लाने में किन्हीं कारणों से असमर्थ हैं तो आप स्वयं भी गणेश जी की एक मूर्ति बना सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे कि इसके लिए आप शुद्ध पदार्थों का ही इस्तेमाल करें।

यदि आप स्वयं मूर्ति बनाने जा रहे हैं तो ऐसे में हल्दीि के प्रयोग गणेश जी की मूर्तिस बनाएं। इसे बनाकर पूजा स्थान पर विराजमान करें और इसकी नियमित पूजा भी करें। ऐसी मान्यता है कि गणेश जी की मूर्ति बहुत ही शुभ और सुखदायक मानी जाती है।


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Friday, 30 October 2015

truth of the birth of lord ram



1 - ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,
2 - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,
3 - कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,
4 - विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था,
5 - वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की |
6 - इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,
7 - कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,
8 - विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,
9 - बाण के पुत्र अनरण्य हुए,
10- अनरण्य से पृथु हुए,
11- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,
12- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,
13- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,
14- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,
15- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,
16- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,
17- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,
18- भरत के पुत्र असित हुए,
19- असित के पुत्र सगर हुए,
20- सगर के पुत्र का नाम असमंज था,
21- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,
22- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,
23- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे |
24- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा जाता है |
25- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,
26- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,
27- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,
28- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,
29- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,
30- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,
31- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,
32- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,
33- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,
34- नहुष के पुत्र ययाति हुए,
35- ययाति के पुत्र नाभाग हुए,
36- नाभाग के पुत्र का नाम अज था,
37- अज के पुत्र दशरथ हुए,
38- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए |
इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ |


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Saturday, 24 October 2015

लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर : यहाँ पर लाख छिद्रों वाला शिवलिंग है






आज हम आपको लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के बारे में बताएँगे जो की शिवरीनारायण से 3 किलोमीटर और छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किलोमीटर दूर खरौद नगर में स्तिथ है।

कहते है की भगवन राम ने यहाँ पर खर व दूषण का वध किया था इसलिए इस जगह का नाम खरौद पड़ा।  खरौद नगर में प्राचीन कालीन अनेक मंदिरों की उपस्थिति के कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है।

लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना से जुडी एक किवदंती प्रचलित है जिसके अनुसार भगवान राम ने खर और दूषण के वध के पश्चात , भ्राता लक्ष्मण के कहने पर इस मंदिर की स्थापना की थी।

लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग है जिसके बारे में मान्यता है की इसकी स्थापना स्वयं लक्ष्मण ने की थी।  इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र है इसलिए इसे लक्षलिंग कहा जाता है।

इन लाख छिद्रों में से एक छिद्र ऐसा है जो की पातालगामी है क्योकि उसमे कितना भी जल डालो वो सब उसमे समा जाता है जबकि एक छिद्र अक्षय कुण्ड है क्योकि उसमे जल हमेशा भरा ही रहता है। लक्षलिंग पर चढ़ाया जल मंदिर के पीछे स्थित कुण्ड में चले जाने की भी मान्यता है, क्योंकि कुण्ड कभी सूखता नहीं। लक्षलिंग जमीन से करीब 30 फीट उपर है और इसे स्वयंभू लिंग भी माना जाता है।

यह मंदिर नगर के प्रमुख देव के रूप में पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख स्थित है। मंदिर में चारों ओर पत्थर की मजबूत दीवार है। इस दीवार के अंदर ११० फीट लंबा और ४८ फीट चौड़ा चबूतरा है जिसके ऊपर ४८ फुट ऊँचा और ३० फुट गोलाई लिए मंदिर स्थित है।

मंदिर के अवलोकन से पता चलता है कि पहले इस चबूतरे में बृहदाकार मंदिर के निर्माण की योजना थी, क्योंकि इसके अधोभाग स्पष्टत: मंदिर की आकृति में निर्मित है। चबूतरे के ऊपरी भाग को परिक्रमा कहते हैं। सभा मंडप के सामने के भाग में सत्यनारायण मंडप, नन्दी मंडप और भोगशाला हैं।

मंदिर के मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही सभा मंडप मिलता है। इसके दक्षिण तथा वाम भाग में एक-एक शिलालेख दीवार में लगा है। दक्षिण भाग के शिलालेख की भाषा अस्पष्ट है अत: इसे पढ़ा नहीं जा सकता। उसके अनुसार इस लेख में आठवी शताब्दी के इन्द्रबल तथा ईशानदेव नामक शासकों का उल्लेख हुआ है।

मंदिर के वाम भाग का शिलालेख संस्कृत भाषा में है। इसमें ४४ श्लोक है। चन्द्रवंशी हैहयवंश में रत्नपुर के राजाओं का जन्म हुआ था। इनके द्वारा अनेक मंदिर, मठ और तालाब आदि निर्मित कराने का उल्लेख इस शिलालेख में है।

तदनुसार रत्नदेव तृतीय की राल्हा और पद्मा नाम की दो रानियाँ थीं। राल्हा से सम्प्रद और जीजाक नामक पुत्र हुए। पद्मा से सिंहतुल्य पराक्रमी पुत्र खड्गदेव हुए जो रत्नपुर के राजा भी हुए जिसने लक्ष्मणेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इससे पता चलता है कि मंदिर आठवीं शताब्दी तक जीर्ण हो चुका था जिसके उद्धार की आवश्यकता पड़ी। इस आधार पर कुछ विद्वान इसको छठी शताब्दी का मानते हैं।

मूल मंदिर के प्रवेश द्वार के उभय पार्श्व में कलाकृति से सुसज्जित दो पाषाण स्तम्भ हैं। इनमें से एक स्तम्भ में रावण द्वारा कैलासोत्तालन तथा अर्द्धनारीश्वर के दृश्य खुदे हैं। इसी प्रकार दूसरे स्तम्भ में राम चरित्र से सम्बंधित दृश्य जैसे राम-सुग्रीव मित्रता, बाली का वध, शिव तांडव और सामान्य जीवन से सम्बंधित एक बालक के साथ स्त्री-पुरूष और दंडधरी पुरुष खुदे हैं।

प्रवेश द्वार पर गंगा-यमुना की मूर्ति स्थित है। मूर्तियों में मकर और कच्छप वाहन स्पष्ट दिखाई देते हैं। उनके पार्श्व में दो नारी प्रतिमाएँ हैं। इसके नीचे प्रत्येक पार्श्व में द्वारपाल जय और विजय की मूर्ति है।


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शिवलिंग : महमूद गजनवी ने इस पर कलमा खुदवाया था


गोरखपुर से 25 किमी दूर खजनी कस्‍बे के पास एक गांव है सरया तिवारी ,  यहां  पर महादेव का एक अनोखा शिवलिंग स्‍थापित है जिसे झारखंडी शिव कहा जाता है।

मान्‍यता है कि यह शिवलिंग कई सौ साल पुराना है और यहां पर इनका स्वयं प्रादुर्भाव हुआ है। यह शिवलिंग हिंदुओं के साथ मुस्लिमों के लिए भी उतना ही पूज्‍यनीय है क्योंकि इस शिवलिंग पर एक कलमा (इस्लाम का एक पवित्र वाक्य) खुदा हुआ है।

लोगों के अनुसार महमूद गजनवी ने इसे तोड़ने की कोशिश की थी, मगर वह सफल नहीं हो पाया। इसके बाद उसने इस पर उर्दू में 'लाइलाहाइल्लललाह मोहम्मदमदुर्र् रसूलुल्लाह' लिखवा दिया ताकि हिंदू इसकी पूजा नहीं करें।

तब से आज तक इस शिवलिंग की महत्ता बढ़ती गई और हर साल सावन के महीने में यहां पर हजारों भक्‍तों द्वारा पूजा अर्चना किया जाता है।

आज यह मंदिर साम्प्रदायिक सौहार्द का एक मिसाल बन गया है क्योंकि हिन्दुओं के साथ-साथ रमजान में मुस्लिम भाई भी यहाँ पर आकर अल्लाह की इबादत करते है।

कहते है की यह एक स्वयंभू शिवलिंग है। शिव के इस दरबार में जो भी भक्‍त आकर श्रद्धा से कामना करता है, उसे भगवान शिव जरूर पूरी करते हैं।

पुजारी , शहर काजी  और श्रद्धालु  के मुताबिक इस मंदिर पर कई कोशिशों के बाद भी कभी छत नही लग पाया है। यहां के शिव खुले आसमान के नीचे रहते हैं।

मान्‍यता है कि इस मंदिर के बगल मे स्थित पोखरे के जल को छूने से एक कुष्‍ठ रोग से पीड़ित राजा ठीक हो गए थे। तभी से अपने चर्म रोगों से मुक्ति पाने के लिये लोग यहां पर पांच मंगलवार और रविवार स्‍नान करते हैं और अपने चर्म रोगों से निजात पाते हैं।


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Thursday, 22 October 2015

हजारों साल पहले मर गया रावण, श्रीलंका में आज भी मौजूद है उसकी गुफा



पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, रावण भारत से समुद्र पार लंका में रहता था। यह लंका सोने की बनी थी।
जानकर कहते हैं कि यह लंका आज का श्रीलंका है। भारत के अंतिम छोर से राम और उनकी वानर सेना समुद्र पार लंका गई थी। वहां रावण और उसकी राक्षस सेना का वध कर सीता को वापस लेकर लौटी। हालांकि, लंका महल का अब कोई अवशेष वहां नहीं दिखता, लेकिन रावण का प्राचीन मंदिर, उसकी गुफा और झरने आज भी बुलंद हैं। यह सब कुछ रावण इला में मौजूद हैं। 

यह गुफा पहाड़ की चोटी और घने जंगलों में छिपी है। इंटरनेट पर मौजूद इससे जुड़ी कुछ तस्वीरें जारी की जाती रही हैं। जानकार बताते हैं कि रावण ने यहां भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। आज यहां बौद्ध मठ है और बौद्ध भिक्षु रहते हैं।
माना जाता है कि श्रीलंका में कुछ लोग रावण की पूजा करते हैं। हालांकि, यह सच नहीं है। यहां पर रावण का एक भी मंदिर दिखाई नहीं देता। 





यहां से गुफा तक जाने का रास्ता शुरू होता है, जो पहाड़ों के बीच में है।हनुमान द्वारा अशोक वाटिका की पहचान करने के बाद रावण ने सीता को इस गुफा में भेज दिया था।  पहाड़ों के बीच में कहीं रावण की गुफा आज भी सुरक्षित हैं। 
                                                         गुफा की ओर जाने वाला रास्ता 
 प्राचीन कथाओं और स्थानीय लोगों के मुताबिक, हनुमान के लंका पर हमला करने के बाद सीता को अशोक वाटिका से इस गुफा में भेजा गया था। यहां काफी अंधेरा रहता है। अच्छे कैमरा फ्लैश भी काम नहीं करते। इसमें एक सुरंग है, जिसके सहारे अशोक वाटिका तक पहुंचा जा सकता है। 
                                          रावण का प्राचीन मंदिर। अब इसमें बौद्ध भिक्षु रहते हैं।
                                      मंदिर के अंदर चित्रकारी हजारों साल पुरानी बताई जाती हैं। 
 मंदिर की छत पर प्राचीन पेंटिंग के बचे हुए निशान, बताया जाता है कि रावण यहां बैठकर ध्यान करता था।
                                                  रावण की गुफा के पास बहता हुआ झरना 


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