Wednesday, 11 November 2015

Why are lit lamp Know Now

क्यों जलाए जातें हैं दीपक , जानें अभी




ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो हम पायेंगे कि इस समय सूर्य नारायण जो कि समस्त ब्राहमण्ड के राजा हैं और आत्मकारक कहे जाते हैं, वे इस समय अपनी नीच राशि तुला पर गोचर कर रहे होते हैं। सूर्य जब नीच राशि पर गोचर करते हैं तो संसार में भी अद्भुत परिवर्तन करने की ताकत रखते हैं। शायद हमारे ऋषियों ने यह जाना होगा कि इस समय सूर्य पृथ्वी से अत्यधिक विपरीत परिस्थितियों में होते हैं !
जबकि पृथ्वी पर रहने वाले लोगों को सूर्य का प्रकाश व उस प्रकाश में निहित शक्तियां विपरीत क्रम में प्राप्त होती है इसलिए किसी विशेष प्रकाश रूपी अग्नि तव की जातकों को आवश्यकता प़ड सकती है। ऋषियों ने यह भी जान लिया था कि इस समय चंद्र, सूर्य से समुचित मात्रा में प्रकाश का ग्रहण नहीं कर पाते होंगे इसलिए भी रात्रि में दीप जलाने की प्रथा प्रारम्भ की होगी। कार्तिक मास पूरा का पूरा और उसका प्रत्येक दिन भारतीय परम्परा के अनुसार दीप प्रज्ज्वलन का होता है।
भारत देश में विशेष तौर पर उत्तरी भारत में कार्तिक स्नान की परम्परा अत्यधिक व्याप्त है। इस मास में सूर्य उदय से चार घटी पूर्व शैय्या त्याग का विधान है। स्त्री व पुरूष दोनों ही, विशेष रूप से स्त्रयां इस मास में सूर्य उदय से पूर्व स्नान करती हैं और कार्तिक मास पुराण का श्रवण करती हैं। उस पुराण का महत्व बहुत अधिक है। उसकी कथाओं में प्रत्येक दिन किसी न किसी रूप में भोर से पूर्व व सांझ होने के समय दीपक जलाने का महत्व है और इन पौराणिक कथाओं से भाव-विभोर होकर के पूरी श्रद्धा के साथ सद्गृहस्थों की गृहणियां दीप प्रज्ज्वलित करती हैं। दीपावली को अत्यधिक मात्रा में दीपक जलाने की आवश्यकता ऋषियों ने बतायी क्योंकि अमावस्या की रात्रि होती है जो घोर अंधकार से व्याप्त होती है। चंद्र दर्शन के अभाव से भी यह और अंधियारी हो जाती है।
एक तो पूरे में मास ही सूर्य के नीच राशि में गोचर के कारण प्रकाश की विशेष कमी होना, उसमें भी यदि अमावस्या तिथि हो तो प्रकाश की कमी की कल्पना ही की जा सकती है। ऎसे में प्रकृति से संतुलन बनाए रखने के लिए विशेष प्रकाश शक्ति प्राप्त करने हेतु अत्यधिक मात्रा में दीप जलाये जाते हैं। शायद दीपावली के इस पर्व को मनाने व इसमें अत्यधिक दीपक जलाने, रोशनी करने, फूलझ्डी, पटाखे जलाने के पीछे रहस्य यही रहा होगा। भारतीय मान्यताओं के अनुसार दीपावली को लेकर विविध
प्रकार की कथाओं का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है लेकिन उक्त प्रमाण भी इस पर्व की प्रारम्भिक अवस्थाओं को लेकर सिद्ध प्रतीत होता है। इसलिए दीप प्रज्ज्वलन को मात्र एक परम्परा या रूढि मानकर के नहीं औषधीय रूप में भी लेना चाहिए और अपने-अपने परिवार व इस जगत के कल्याण व सुख-समृद्धि हेतु अवश्यमेव पूरी श्रद्धा के साथ इस त्यौहार को सविधि मनाकर दीप प्रज्ज्वलन करना चाहिए।
दीपावली के दिन दीप प्रज्ज्वलन का सर्वश्रेष्ठ समय सायं सूर्यास्त के गोचर के कारण प्रकाश की विशेष कमी होना, उसमें भी यदि अमावस्या तिथि हो तो प्रकाश की कमी की कल्पना ही की जा सकती है। ऎसे में प्रकृति से संतुलन बनाए रखने के लिए विशेष प्रकाश शक्ति प्राप्त करने हेतु अत्यधिक मात्रा में दीप जलाये जाते हैं। शायद दीपावली के इस पर्व को मनाने व इसमें अत्यधिक दीपक जलाने, रोशनी करने, फूलझ्डी, पटाखे जलाने के पीछे रहस्य यही रहा होगा। भारतीय मान्यताओं के अनुसार दीपावली को लेकर विविध
प्रकार की कथाओं का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है लेकिन उक्त प्रमाण भी इस पर्व की प्रारम्भिक अवस्थाओं को लेकर सिद्ध प्रतीत होता है। इसलिए दीप प्रज्ज्वलन को मात्र एक परम्परा या रूढि मानकर के नहीं औषधीय रूप में भी लेना चाहिए और अपने-अपने परिवार व इस जगत के कल्याण व सुख-समृद्धि हेतु अवश्यमेव पूरी श्रद्धा के साथ इस त्यौहार को सविधि मनाकर दीप प्रज्ज्वलन करना चाहिए। दीपावली के दिन दीप प्रज्ज्वलन का सर्वश्रेष्ठ समय सायं सूर्यास्त के पश्चात् का होता है जबकि प्रदोषकाल होता है।
प्रदोषकाल के साथ-साथ स्थिर लग्न व चतुर्घटिका मुहूर्त भी शुद्ध हो तो सर्वश्रेष्ठ होता है। गृहस्थ में गृहलक्ष्मी का पूजन करने हेतु प्रदोषकाल व शुभ, लाभ, अमृत के चतुर्घटिका मुहूर्त जब प्राप्त हा , उसी समय सर्वप्रथम दीप प्रज्ज्वलन करके ही पराशक्ति श्री महालक्ष्मी की पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए। इस प्रकार से पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती हैं, परिवार की वृद्धि होती है, धन-धान्य की वृद्धि होती है,
परिवार मे सुख-शांति आती है। कहा जाता है कि घर की प्रधान सौभाग्यशाली सुहागिनी जो स्त्री होती है वह दीपावली की अर्द्धरात्रि में अपने घर की झ़ाडू लगाएं, आंगन की झाडू लगाएं और अर्द्धरात्रि होने से कुछ पूर्व ही घर के सारे कचरे को बाहर भवन से नैऋत्य में डाल दें। पश्चात् घर के प्रधान आंगन में हो सके तो गाय का गोबर लेकर उसको वर्गाकार लीपें। उस पर आटा, हल्दी, गुलाल आदि के द्वारा रंगोली बनाएं और एक बडा दीपक प्रज्ज्वलित करें।
जिस घर में यह दीपक जलता है उस घर में महालक्ष्मी नारायण भगवान के साथ गरूड पर बैठकर के श्री गणेश जी अर्थात् सद्बुद्धि के साथ एवं महा सरस्वती रूपी श्रेष्ठ वाणी एवं महाकाली रूपी आलस्य नाशिनी शक्ति के रूप में घर में प्रवेश करती हैं और परिवार को समृद्ध करती हैं। अलक्ष्मी के दोष का निवारण व शुभलक्ष्मी की प्राप्ति और उस प्राप्ति की चिरकाल तक स्थापना घर में अथवा व्यापार में करने के लिए निश्चित रूप से पूरी श्रद्धा के साथ दीपावली पर्व को दीप प्रज्ज्वलनोत्सव के रूप में मनाएं और सुख-समृद्धि पाएं।

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