पूजा में तांबे के कलश का उपयोग है जरूरी , क्यों ?
जिन नई तकनीकों का हवाला आज वैज्ञानिक देते हैं, वह सब कुछ युगों पहले हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में अपनी जगह बना चुके थे। फर्क सिर्फ इतना है कि किसी कारण वश वह जानकारी समय रहते सब तक पहुंच नहीं पाई। लेकिन वैज्ञानिक भी वेदों में दी गई रचनाओं को देख हैरान हो जाते हैं। कुछ इसी तरह का आविष्कार था ‘बैक्टीरिया’ का।
बैक्टीरिया यानी की कीटाणुओं का हमारे आसपास मौजूद होने का दावा आयुर्वेद द्वारा आधुनिक विज्ञान से बहुत पहले ही अपनी रचनाओं में किया गया था। इस बात को साबित करने का सबसे पहला उदाहरण है आयुर्वेद द्वारा तांबे के बर्तन में पानी पीने का महत्व।
मनुष्य के स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण समझते हुए आयुर्वेद ने तांबे के बर्तन में ही पानी पीने की सलाह दी है। आयुर्वेद का मानना है कि पानी में विभिन्न प्रकार के कीटाणु होते हैं जो तांबे से बने हुए बर्तन में पानी को डालने से मर जाते हैं। यही खोज वर्षों बाद विज्ञान द्वारा भी की गई थी।
केवल पानी पीने के लिए ही क्यों, युगों से तांबे से बने बर्तनों का प्रयोग बेहद पवित्र रूप से किया जा रहा है। यदि आपने कभी ध्यान दिया हो तो किसी भी पूजा अथवा हवन या फिर किसी भी भगवान की आराधना में जिन बर्तनों का हम प्रयोग करते हैं वह तांबे के ही बने होते हैं।
यहां तक कि सूर्य नमन करते समय भी इस्तेमाल किया जाने वाला ग्लास तांबे का ही होता है। हिन्दू धर्म में सूर्य नमन या फिर सरल भाषा में कहें तो सूर्य को पानी देने का बहुत बड़ा महत्व है। हिन्दू धर्म में सुबह उठने के बाद साफ-सुथरे ढंग से नहाने के पश्चात् सबसे पहले सूर्य भगवान को जल चढ़ाने की मान्यता है।
बच्चे हों या बूढ़े या फिर जवान, सभी सूर्य भगवान को जल अर्पित करने को अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। लेकिन यूं ही अपने तरीके से सूर्य भगवान का नमन नहीं किया जाता। इसे करने के बकायदा कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं। जिसमें नहा कर, साफ कपड़े पहनकर तांबे के बर्तन में जल भर कर सूर्य नमन किया जाता है।
तांबे के ही बर्तन द्वारा जल अर्पित करना अनिवार्य है। सूर्य नमन के अलावा हर प्रकार की पूजा में भी तांबे से बना हुआ ही कलश इस्तेमाल किया जाता है। इसके पीछे एक अहम कारण छिपा है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार संसार में मौजूद सभी धातुओं में से सबसे पवित्र धातु ‘तांबा’ ही है।
केवल हिन्दू मान्यताएं ही नहीं, बल्कि विज्ञान का भी यह कहना है कि तांबे का बर्तन सबसे शुद्ध होता है। क्योंकि उसे बनाने के लिए किसी भी अन्य धातु का प्रयोग नहीं होता। इसी शुद्धता को तवज्जो देते हुए हिन्दू धर्म में तांबे के प्रयोग पर ज़ोर दिया जाता है।
धार्मिक पहलू के अलावा चिकित्सिकीय संदर्भ से भी तांबे से बने बर्तन को इस्तेमाल करने का बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि यदि रात को तांबे के पात्र में पानी रख दें और सुबह इस पानी को पीयें तो अनेक फायदे होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह पानी शरीर के कई दोषों को शांत करता है।
तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी उसमें घंटों तक रखने से साफ हो जाता है। उसके अंदर के सारे कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही यह पानी पीने से व्यक्ति के भीतर मौजूद कीटाणु एवं जहरीले तत्व बाहर निकल जाते हैं।
डॉक्टर की सलाह मानें तो रात को तांबे के बर्तन में पानी भर कर रख देना चाहिए। इसे कम से कम 8 घंटे तक रखना चाहिए नहीं तो इसका उच्चत्तम लाभ पाना कठिन है। सुबह उठने पर इस पानी के कम से कम तीन गिलास पीना चाहिए और इसे पीने के बाद 45 मिनटों तक कुछ भी खाना नहीं चाहिए।
ऐसा करने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं जिसमें से पहला है पाचन शक्ति का मजबूत होना। कम से कम आठ घंटों तक तांबे के बर्तन में रखे हुए पानी का जब सेवन किया जाता है तो वह हमारे अंदर से एसिडिटी या गैस या पेट की किसी भी प्रकार की समस्या को कम करता है। यह पानी धीरे-धीरे शरीर के अंदर के कीटाणुओं को नष्ट करता है।
इसके अलावा त्वचा को चमकदार बनाने में भी लाभकारी है तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीना। बाज़ार में मिलने वाले किसी भी कॉस्मेटिक क्रीम या फिर फेस पैक से बेहतर काम करता है तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी। हो सकता है कि बाज़ारू क्रीम लगाने से आपके चेहरे पर चमक आ जाए, लेकिन तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने से पूरी शरीर की त्वचा पर चमक आ जाती है।
इस पानी को पीने से स्किन पर ग्लो आता है व साथ ही अनचाही झुर्रियों से भी छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही स्किन का ढीलापन कम होता है और साथ ही डेड स्किन भी निकल जाती है। स्किन के अलावा किसी प्रकार के शारीरिक रोग को भी दूर करके फायदा देता है यह खास पानी।
यदि नियमित रूप से तांबे के पात्र में रखे हुए पानी का सेवन किया जाए तो खांसी जैसी दिक्कत होना असंभव है। इस पानी में रात को तुलसी डाल दी जाए और सुबह पी लिया जाए तो खांसी छूमंतर हो जाती है। इसके साथ ही आजकल हर किसी को अपनी चपेट में ले चुकी थायराइड की दिक्कत भी कम हो जाती है।
शरीर में उत्पन्न होने वाले थायराक्सिन हार्मोन के असंतुलन के कारण ही थायराइड की बीमारी होती है। इन्हीं हार्मोन को नियंत्रण करता है कॉपर के स्पर्श वाला पानी। थायराइड के साथ गठिये की दिक्कत को भी दूर करता है तांबे के पात्र में रखा हुआ पानी।
गठिया एक ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति के शरीर को धीरे-धीरे जकड़ लेती है। शरीर में जिन स्थानों पर जोड़ मौजूद होते हैं, जैसे कि कलाई एवं हाथ का जोड़, घुटने, आदि जगहों पर गांठ बनने लगती है। यह बीमारी शरीर में एक प्रकार के एसिड जिसे यूरिक एसिड कहा जाता है, इसके बनने से होती है।
तांबे के बर्तन की सहायता से यही यूरिक एसिड कम किया जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि तांबे से बनी धातु यूरिक एसिड को काटने का काम करती है। परिणाम स्वरूप यदि ऐसे बर्तन में रखा हुआ पानी पिया जाए तो यह शरीर के अंदर से यूरिक एसिड को बाहर निकालता है।
पानी शरीर में खून की कमी को दूर करता है। इसे पीने वालों को कभी हृदय रोग नहीं होता तथा साथ ही कैंसर से लड़ने में भी सहायक है तांबे के पात्र में रखा हुआ पानी। इसके साथ ही यदि किसी का वजन तमाम कोशिशों के बाद भी कम नहीं हो रहा तो आज से ही तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीना अवश्य शुरू कर दें।
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जिन नई तकनीकों का हवाला आज वैज्ञानिक देते हैं, वह सब कुछ युगों पहले हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में अपनी जगह बना चुके थे। फर्क सिर्फ इतना है कि किसी कारण वश वह जानकारी समय रहते सब तक पहुंच नहीं पाई। लेकिन वैज्ञानिक भी वेदों में दी गई रचनाओं को देख हैरान हो जाते हैं। कुछ इसी तरह का आविष्कार था ‘बैक्टीरिया’ का।
बैक्टीरिया यानी की कीटाणुओं का हमारे आसपास मौजूद होने का दावा आयुर्वेद द्वारा आधुनिक विज्ञान से बहुत पहले ही अपनी रचनाओं में किया गया था। इस बात को साबित करने का सबसे पहला उदाहरण है आयुर्वेद द्वारा तांबे के बर्तन में पानी पीने का महत्व।
मनुष्य के स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण समझते हुए आयुर्वेद ने तांबे के बर्तन में ही पानी पीने की सलाह दी है। आयुर्वेद का मानना है कि पानी में विभिन्न प्रकार के कीटाणु होते हैं जो तांबे से बने हुए बर्तन में पानी को डालने से मर जाते हैं। यही खोज वर्षों बाद विज्ञान द्वारा भी की गई थी।
केवल पानी पीने के लिए ही क्यों, युगों से तांबे से बने बर्तनों का प्रयोग बेहद पवित्र रूप से किया जा रहा है। यदि आपने कभी ध्यान दिया हो तो किसी भी पूजा अथवा हवन या फिर किसी भी भगवान की आराधना में जिन बर्तनों का हम प्रयोग करते हैं वह तांबे के ही बने होते हैं।
यहां तक कि सूर्य नमन करते समय भी इस्तेमाल किया जाने वाला ग्लास तांबे का ही होता है। हिन्दू धर्म में सूर्य नमन या फिर सरल भाषा में कहें तो सूर्य को पानी देने का बहुत बड़ा महत्व है। हिन्दू धर्म में सुबह उठने के बाद साफ-सुथरे ढंग से नहाने के पश्चात् सबसे पहले सूर्य भगवान को जल चढ़ाने की मान्यता है।
बच्चे हों या बूढ़े या फिर जवान, सभी सूर्य भगवान को जल अर्पित करने को अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। लेकिन यूं ही अपने तरीके से सूर्य भगवान का नमन नहीं किया जाता। इसे करने के बकायदा कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं। जिसमें नहा कर, साफ कपड़े पहनकर तांबे के बर्तन में जल भर कर सूर्य नमन किया जाता है।
तांबे के ही बर्तन द्वारा जल अर्पित करना अनिवार्य है। सूर्य नमन के अलावा हर प्रकार की पूजा में भी तांबे से बना हुआ ही कलश इस्तेमाल किया जाता है। इसके पीछे एक अहम कारण छिपा है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार संसार में मौजूद सभी धातुओं में से सबसे पवित्र धातु ‘तांबा’ ही है।
केवल हिन्दू मान्यताएं ही नहीं, बल्कि विज्ञान का भी यह कहना है कि तांबे का बर्तन सबसे शुद्ध होता है। क्योंकि उसे बनाने के लिए किसी भी अन्य धातु का प्रयोग नहीं होता। इसी शुद्धता को तवज्जो देते हुए हिन्दू धर्म में तांबे के प्रयोग पर ज़ोर दिया जाता है।
धार्मिक पहलू के अलावा चिकित्सिकीय संदर्भ से भी तांबे से बने बर्तन को इस्तेमाल करने का बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि यदि रात को तांबे के पात्र में पानी रख दें और सुबह इस पानी को पीयें तो अनेक फायदे होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह पानी शरीर के कई दोषों को शांत करता है।
तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी उसमें घंटों तक रखने से साफ हो जाता है। उसके अंदर के सारे कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही यह पानी पीने से व्यक्ति के भीतर मौजूद कीटाणु एवं जहरीले तत्व बाहर निकल जाते हैं।
डॉक्टर की सलाह मानें तो रात को तांबे के बर्तन में पानी भर कर रख देना चाहिए। इसे कम से कम 8 घंटे तक रखना चाहिए नहीं तो इसका उच्चत्तम लाभ पाना कठिन है। सुबह उठने पर इस पानी के कम से कम तीन गिलास पीना चाहिए और इसे पीने के बाद 45 मिनटों तक कुछ भी खाना नहीं चाहिए।
ऐसा करने से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं जिसमें से पहला है पाचन शक्ति का मजबूत होना। कम से कम आठ घंटों तक तांबे के बर्तन में रखे हुए पानी का जब सेवन किया जाता है तो वह हमारे अंदर से एसिडिटी या गैस या पेट की किसी भी प्रकार की समस्या को कम करता है। यह पानी धीरे-धीरे शरीर के अंदर के कीटाणुओं को नष्ट करता है।
इसके अलावा त्वचा को चमकदार बनाने में भी लाभकारी है तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीना। बाज़ार में मिलने वाले किसी भी कॉस्मेटिक क्रीम या फिर फेस पैक से बेहतर काम करता है तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी। हो सकता है कि बाज़ारू क्रीम लगाने से आपके चेहरे पर चमक आ जाए, लेकिन तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने से पूरी शरीर की त्वचा पर चमक आ जाती है।
इस पानी को पीने से स्किन पर ग्लो आता है व साथ ही अनचाही झुर्रियों से भी छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही स्किन का ढीलापन कम होता है और साथ ही डेड स्किन भी निकल जाती है। स्किन के अलावा किसी प्रकार के शारीरिक रोग को भी दूर करके फायदा देता है यह खास पानी।
यदि नियमित रूप से तांबे के पात्र में रखे हुए पानी का सेवन किया जाए तो खांसी जैसी दिक्कत होना असंभव है। इस पानी में रात को तुलसी डाल दी जाए और सुबह पी लिया जाए तो खांसी छूमंतर हो जाती है। इसके साथ ही आजकल हर किसी को अपनी चपेट में ले चुकी थायराइड की दिक्कत भी कम हो जाती है।
गठिया एक ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति के शरीर को धीरे-धीरे जकड़ लेती है। शरीर में जिन स्थानों पर जोड़ मौजूद होते हैं, जैसे कि कलाई एवं हाथ का जोड़, घुटने, आदि जगहों पर गांठ बनने लगती है। यह बीमारी शरीर में एक प्रकार के एसिड जिसे यूरिक एसिड कहा जाता है, इसके बनने से होती है।
तांबे के बर्तन की सहायता से यही यूरिक एसिड कम किया जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि तांबे से बनी धातु यूरिक एसिड को काटने का काम करती है। परिणाम स्वरूप यदि ऐसे बर्तन में रखा हुआ पानी पिया जाए तो यह शरीर के अंदर से यूरिक एसिड को बाहर निकालता है।
पानी शरीर में खून की कमी को दूर करता है। इसे पीने वालों को कभी हृदय रोग नहीं होता तथा साथ ही कैंसर से लड़ने में भी सहायक है तांबे के पात्र में रखा हुआ पानी। इसके साथ ही यदि किसी का वजन तमाम कोशिशों के बाद भी कम नहीं हो रहा तो आज से ही तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीना अवश्य शुरू कर दें।
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