Sunday, 28 February 2016

Healthy Eating Tips According to Sanatan Dharma in Hindi

            भोजन करते वक्त इन बातों का ध्यान रखना जरूरी



भोजन समय पूर्व पांच अंगों (दोनों हाथ, दोनों पैर और मुख) को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए। इसके बाद ही भोजन करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि भीगे हुए पैरों के साथ भोजन ग्रहण करना बहुत शुभ माना जाता है। भीगे हुए पैर शरीर के तापमान को नियंत्रित करते हैं, इससे हमारे पाचनतंत्र की समस्त ऊर्जा भोजन को पचाने में लगती है। पैर भिगोने से शरीर की अतिरिक्त गर्माहट कम होती है, जो गैस और एसिडिटी की संभावनाओं को समाप्त कर देती है। इससे स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होते हैं। इससे आयु में वृद्धि होती है।

भोजन बनने वाले व्यक्ति को स्नान करके और पूरी तरह से पवित्र होकर भी भोजन बनाना चाहिए। खाना बनाते समय मन शांत रखना चाहिए। साथ ही, इस दौरान किसी की बुराई भी ना करें। शुद्ध मन से भोजन बनाएंगे तो खाना स्वादिष्ट बनेगा और अन्न की कमी भी नहीं होगी। भोजन बनाना प्रारंभ करने से पहले इष्टदेव का ध्यान करना चाहिए। किसी देवी-देवता के मंत्र का जप भी किया जा सकता है। पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुंह करके भोजन ग्रहण करना चाहिए। इस उपाय से हमारे शरीर को भोजन से मिलने वाली ऊर्जा पूर्ण रूप से प्राप्त होती है। दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके भोजन ग्रहण करना अशुभ माना गया है। पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके भोजन करने से रोगों की वृद्धि होती है।



कभी भी परोसे हुए भोजन की निंदा नहीं करना चाहिए। इससे अन्न का अपमान होता है। भोजन ग्रहण करने से पहले अन्न देवता, अन्नपूर्णा माता का स्मरण करना चाहिए। देवी-देवताओं को भोजन के धन्यवाद देते हुए खाना ग्रहण करें। साथ ही, भगवान से ये प्रार्थना भी करें कि सभी भूखों को भोजन प्राप्त हो जाए। थाली को किसी लकड़ी की पाटे पर रखकर भोजन करना चाहिए। खाने बर्तन साफ होने चाहिए। टूटे-फूटे बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए। कभी भी बिस्तर पर बैठकर भोजन नहीं करना चाहिए। खाने की थाली को हाथ में लेकर भोजन नहीं करना चाहिए। भोजन बैठकर ग्रहण करना चाहिए।

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Sunday, 21 February 2016

secrets of lord shiva in hindi

क्या आप जानते हैं भगवान शिव से जुड़े ऎसे रहस्य ?


परमेश्वर शिव त्रिकाल दृष्टा, त्रिनेत्र, आशुतोष, अवढरदानी, जगतपिता आदि अनेक नामों से जानें जाते हैं। भगवान शिव जितने रहस्यमयी हैं, उनकी वेश-भूषा व उनसे जुड़े तथ्य उतने ही विचित्र हैं। क्या आप जानते हैं भगवान शिव हाथ में डमरू क्यों रखते हैं, उन्होंने गले में सर्पो का हार क्यों धारण किया है,और  उनके तीन नेत्र क्यों हैं ? 

जानिए भगवान शिव से जुड़े ऎसे ही कुछ रहस्य।

त्रिनेत्र
शिव के तीन नेत्र हैं। यूं तो उन्होंने पूरा ब्र±मांड रचा है लेकिन वे समय के भी रचयिता हैं और काल से भी परे हैं। वे नेत्रों से भूत, भविष्य और वर्तमान को प्रत्यक्ष देख सकते हैं। जगत की आंखें जिस सत्य का दर्शन नहीं कर सकतीं, वह सत्य शिव के नेत्रों से कभी ओझल नहीं हो सकता, क्योंकि वह उन्हीं की एक रचना है।

सर्प
भगवान शिव गले में सर्पो का हार धारण करते हैं। सामान्यत: देवगण पुष्पों का हार पहनते हैं लेकिन शिव उनसे न्यारे हैं। सर्प धारण करने का अर्थ है जिन्हें संसार पसंद नहीं करता, भगवान शिव उसे भी गले से लगाते हैं। उनके मन में हर जीव के लिए प्रेम है। फिर चाहे वह सर्प ही क्यों न हो।

डमरू
शिव जितने महान योगी हैं, उतने ही संगीत के भी ज्ञाता हैं। शिव के डमरू से निकली ध्वनि के माध्यम से ही संस्कृत के व्याकरण की रचना हुई है। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी और ज्ञान-विज्ञान का आधार है। इस प्रकार शिव के डमरू से ही विज्ञान, तकनीकी, चिकित्सा विज्ञान, सभ्यता और संस्कृति का उदय हुआ है।
त्रिशूल
शिव एक हाथ से भक्तों को वरदान देते हैं तो दूसरे से दुष्टों को दंड भी देते हैं। इसीलिए वे त्रिशूल धारण करते हैं। उन्होंने कई असुरों का इससे संहार किया है। वास्तव में त्रिशूल के तीनों शूल मनुष्य के जीवन से तीन प्रकार के पाप (भौतिक, दैहिक, दैविक) नष्ट कर उसे सुखमय बनाते हैं।

नंदी
भगवान शिव इस पर सवारी करते हैं और यह अपने स्वामी को अत्यंत प्रिय है। यूं तो नंदी के अनेक अर्थ हैं जो भगवान शिव के दयालु व शीघ्र प्रसन्न होने के बारे में बताते हैं, लेकिन इसका सबसे गहन अर्थ नंदी के चरणों से जुड़ा है। नंदी के चार चरण हैं जिनसे यह भगवान शिव को एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर यात्रा करवाता है। ये चारों चरण मनुष्य जीवन की चार अवस्थाओं (ब्र±मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ व संन्यास) और चार पुरूषार्थो (धर्म, अर्थ,  काम और मोक्ष) के प्रतीक हैं। भगवान शिव के पूजन से ये सुख और सफलता देते हैं।

भस्म
शिव अपने तन पर भस्म रमाते हैं। इससे सिद्ध होता है कि मनुष्य का जन्म शिव की कृपा से ही होता है और अंत में वह शिव में ही समा जाता है। भस्म का तात्पर्य संसार के नाशवान होने और शिव के ही अमर होने का प्रतीक है।

चंद्रमा
शिव के श्ृंगार को और सुंदर बनाता है उनके मस्तक पर विराजमान चंद्रमा। ज्योतिष में चंद्रमा मन का कारक है और यह नए विचारों को उत्पन्न करता है। नियंत्रण और सदुपयोग से मन मनुष्य को प्रगति की ओर लेकर जाता है तो अनियंत्रण से पतन की ओर। शिव ने इसे मस्तक पर धारण किया है। इसका मतलब है, उनका मन पर पूरा नियंत्रण है। स्वयं के मन पर भी और संसार के मन पर भी।



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Friday, 19 February 2016

How to pray and seek lord Shiva blessings in Hindi ?

                शिव पूजन से पूरी करे अपनी मानोकामनाए



आदि देव भगवान शिव के शंकर, शंभु, रुद्र, महादेव, भोले नाथ आदि विभिन्न रूपों की उपासना की जाती है। भगवान शिव की उपासना तंत्रों में भी वर्णित है। पंचदेवोपासना में प्रमुख शिव, विष्णु, सूर्य, शक्ति एवं गणेश जी की पूजा का विधान है। शिव भगवान पंच मुख एवं त्रिनेत्र रूप में प्रसिद्ध हैं। उनके एक मुख और एकादशमुख रूप का पूजन भी किया जाता है।



ध्यान मंत्र:
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीति हस्तं प्रसन्नम्। पद्मासीनं समन्तात्स्तुतम मरगण् ौव्र्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्ववाद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्।

मंत्र: ¬ नमो हराय। ¬ नमो महेशाय। ¬ नमः शूलपाणये। ¬ नमः पिनाकिने। ¬ नमः पशुपतये। ¬ नमः शिवाय। ¬ नमो महादेवाय। मिट्टी की 7 पिंडियां बना कर उनका पूजन एक साथ ऊपर वर्णित सातों मंत्र से करें। इसके बाद प्रत्येक का पूजन पंचोपचार विधि से करते हुए सातों का अभिषेक करें। फिर बालगणेश्वर एवं कुमार कार्तिकेय का भी पूजन करें। पूजन के बाद पिंडियों का विसर्जन किसी नदी, नहर या तालाब में कर दें। 

धन एवं पुत्रादि के लिए ऊपर लिखित विधि से भगवान शिव का पूजन करें। विरोधियों से संधि के लिए किसी नदी के दोनों किनारे की मिट्टी लाकर उससे शिव लिंग बनाकर उसका पूजन करें। इस प्रयोग में शंख, पù सर्प एवं शूलधारी हरिहर की मूर्ति का ध्यान करना चाहिए। 

पति एवं पत्नी में मतभेद होने पर अद्धर् नारीश्वर शिव का ध्यान कर उनकी पार्थिव पूजा करनी चाहिए जिनके चारों हाथों में क्रमशः अमृतकुंभ, पूर्णकुंभ, पाश एवं अंकुश होते हैं। एक लाख की संख्या में शिव लिंग की पूजा करने पर मोक्ष प्राप्त होता है गुड़ की पिंडी से एक लाख शिव लिंग बना कर पूजा करने पर साधक राजा के समान बन जाता है। 

जो स्त्रियां गुड़ निर्मित एक हजार शिव लिंगों की पूजा करती हैं, उन्हें पति का सुख तथा अखंड सौभाग्य और अंत में मोक्ष प्राप्त होता है। नवनीत निर्मित लिंगों का पूजन करने पर साधक को अभीष्ट की प्राप्ति होती है। यही फल भस्म, गोमय एवं बालू के बने लिंगों का पूजन करने पर भी प्राप्त होता है। 

जो साधक गोबर के बने ग्यारह लिंगों का छह मास तक प्रातः, मध्याह्न, सायं और अर्धरात्रि में पूजन करते हैं, वे धनवान एवं समृद्ध होते हैं। जो साधक तीन मास तक प्रातः काल गोमय निर्मित तीन लिंगों का पूजन करते हैं और उन पर भटकटैया तथा बिल्वपत्र चढ़ा कर गुड़ का नैवेद्य अर्पित करते हैं, वे धनवान एवं संपत्तिशाली होते हंै। 

जो साठी के चावल के पिष्ट का एकादश लिंग बनाकर एक मास तक नित्य (बिना व्यवधान के) पूजन करता है, उसे सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है। स्फटिक के शिव लिंग की पूजा से साधक के सभी पाप दूर हो जाते हैं। तांबे से बने शिवलिंग की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 

नर्मदेश्वर लिंग के पूजन से सारी सिद्धियां प्राप्त होती हैं तथा सारे दुखों का नाश होता है। इसकी पूजा नित्यप्रति करनी चाहिए। जो लोग गोबर का शिवलिंग बनाकर क्रुद्ध महेश्वर का ध्यान करते हुए नीम की पत्तियों से उसका पूजन करते हंै, उनके शत्रुओं का शमन हो जाता है। 

जो लोग भगवान शिव की भक्ति में लीन हो कर प्रतिदिन शिव लिंग का पूजन करते हंै उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। 

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Tuesday, 16 February 2016

Lets know about Panchmukhi Mahadev

                                       भगवान शिव पंचमुखी मुखी रूप मे


विभिन्न रूपों में भगवानशिव देवाधिदेव हैं। वे आशुतोष हैं- भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न हो जाने वाले। यहां उनके कुछ रूपों का वर्णन प्रस्तुत है जिनकी निष्ठापूर्वक पूजा उपासना से कामनाएं पूरी होती हैं और पाप से मुक्ति मिलती है। 

भगवान अर्धनारीश्वर शिव के इस रूप का एक भाग नर अर्थात शिव का और एक भाग नारी अर्थात माता पार्वती का है। दोनों का रूप स्पष्ट रूप से एक ही प्रतिमा में व्याप्त है। एक के ही पूजन से जगत्पिता शिव और जगन्माता पार्वती के पूजन का फल प्राप्त हो जाता है। 

पंचमुख शिव भगवान के इस रूप में पांच मुख हैं। इनमें पहला मुख उध्र्वमुख है जिसका रंग हल्का लाल है। दूसरा पूर्व मुख है जिसका रंग पीला है। तीसरा दक्षिण मुख है जिसका रंग नीला है। चैथा पश्चिम मुख है जिस का रंग भूरा है। और पांचवां उत्तर मुख है जिस का रंग पूर्ण लाल है। 


इन सभी मुखों के ऊपर मुकुट में चंद्रमा सुशोभित हैं। इस संपूर्ण मुख मंडल से एक अद्भुत आभा फूटती है। पशुपति शिव भगवान के इस रूप को पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है। नेपाल की राजधानी काठमांडू में इस रूप का विश्व में सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिर है। 

भगवान के इस रूप में सूर्य, चंद्रमा व अग्नि को तीनों नेत्रों में स्थान मिला है। महामृत्युंजय शिव जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, भगवान का यह रूप मृत्यु को भी हराने वाला है। उनके इस रूप का ध्यान कर मृत्यु को भी जीता जा सकता है। 

इस रूप का एक विशेष मंत्र है जिसके सवा लाख जप करने या करवाने से असाध्य रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है तथा अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। नील कंठ भगवान के इस रूप में भगवान का कंठ अर्थात गला नीले रंग का है। एक बार भगवान शिव ने विषपान कर लिया था जिससे उन का समस्त कंठ नीला हो गया। 

इसीलिए उनका यह विग्रह नीलकंठ कहलाया। भगवान के इस रूप में उनके मुख में अत्यधिक तेज व्याप्त है जिसकी किसी तेज से तुलना नही के जा सकती !

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Wednesday, 10 February 2016

Why should we worship Panchmukhi Hanuman

हनुमान जी के पंचमुखी हनुमान बनने की कहानी





रामायण में वर्णित एक कथा के अनुसार श्री राम-रावण युद्ध के समय एक समय ऐसा आया जब रावण को अपनी सहायता के लिए अपने भाई अहिरावण की सहायता की आवश्यकता आन पड़ी ।

अहिरावण तंत्र-मंत्र का प्रकांड पंडित एवं मां भवानी का अनन्य भक्त था । वह अपने भाई रावण के सहायता के लिए प्रस्तुत था । उसने रावण को सुझाव दिया कि यदि श्रीराम एवं लक्ष्मण का ही अपहरण कर लिया जाए तो युद्ध तो स्वत: ही समाप्त हो जाएगा।

उसने अपनी माया से सुग्रीव का भेष बना कर राम और लक्षमण के विश्राम स्थल पर पहुच कर सोने की अवस्था में ही राम और लक्ष्मण को पातळ लोक बलि चढ़ाने के लिए ले गया ! शिविर में जब राम और लक्ष्मण नहीं मिले तो जी उनकी खोज करते २ पातळ पुरी पहुचे ! द्वार पर रक्षक के रूप में मकरध्वज (जिसका आधा शरीर मगर का तथा आधा वानर का ) से युद्ध कर और उसे हराकर जब वह पातालपुरी के महल में पहुंचे तो श्रीराम एवं लक्ष्मण जी को बंधक-अवस्था में पाया।



वहां पञ्च दिशाओं में पांच दीपक जल रहे थे और मां भवानी के सम्मुख श्रीराम एवं लक्ष्मण की बलि देने की पूरी तैयारी हो चुकी थी । तभी आकाश वाणी हुई कि अहिरावण का अंत करना है तो इन पांच दीपकों को एक साथ एक ही समय में बुझाना होगा। यह रहस्य ज्ञात होते ही हनुमान जी ने पंचमुखी हनुमान का रूप धारण किया।

उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिम्ह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। इन पांच मुखों को धारण कर उन्होंने एक साथ सारे दीपकों को बुझाकर अहिरावण का अंत किया और श्रीराम-लक्ष्मण को मुक्त किया।

माता सीता का पता लगाने जा रहे हनुमान जी का स्वेद एक मछली ने ग्रहण कर लिया और जिससे गर्भ धारण कर मकरध्वज को जन्म दिया था अत: मकरध्वज हनुमान जी का पुत्र है, ऐसा जानकर श्री राम ने मकरध्वज को पातालपुरी का राज्य सौंप दिया। हे की जब मरियल नाम का दानव भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र चुराता हे और ये बात जब हनुमान को पता लगती हे तो वो संकल्प लेते हे की वो चक्र पुनः प्राप्त कर भगवान विष्णु को सौप देंगे |

मरियल दानव इच्छाअनुसार रूप बदलने में माहिर था अत: विष्णु भगवान हनुमानजी को आशीर्वाद दिया, साथ ही इच्छानुसार वायुगमन की शक्ति के साथ गरुड़-मुख, भय उत्पन्न करने वाला नरसिम्ह-मुख , हायग्रीव मुख ज्ञान प्राप्त करने के लिए तथा वराह मुख सुख व समृद्धि के लिए था |पार्वती जी ने उन्हें कमल पुष्प एवं यम-धर्मराज ने उन्हें पाश नामक अस्त्र प्रदान किया – यह आशीर्वाद एवं इन सबकी शक्तियों के साथ हनुमान जी मरियल पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे| तभी से उनके इस पंचमुखी स्वरूप को भी मान्यता प्राप्त हुई |


पंचमुखी हनुमान जी के पाँच मुख इस प्रकार हैं
१) श्री वराह ( उत्तर दिशा की तरफ मुख )
२) श्री नरसिम्हा ( दक्षिण दिशा की तरफ मुख )
३) श्री गरुण ( पश्चिम दिशा की तरफ मुख )
४ ) श्री हयग्रीव ( आकाश दिशा की तरफ मुख )
५) श्री हनुमान ( पूर्व दिशा की तरफ मुख )


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Tuesday, 9 February 2016

8 holiest names of Lord Shiva in Hindi

भगवान शिव के ये आठ रूप, इन्ही रूपों की होती हैं शिव प्रतिमाएँ





भगवान शिव के उन 8 रूपों के बारे में जिन रूपों की भगवान शिव की प्रतिमाएँ बनी होती हैं । हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान शिव, इस विश्व में आठ अलग-अलग रूपों में हैं । वे आठ रूप हैं – शर्व, रूद्र, उग्र, भीम, ईशान, पशुपति, भव और महादेव । इन आठ रूपों को ध्यान में रखते हुए, शिव मूरत भी आठ प्रकार कि होती हैं । प्रत्येक रूप और उससे जुड़ी मूर्ती का विवरण नीचे है ।



1. शर्व : इस रूप में भगवान शिव पूरे जगत को धारण करते हैं और इसलिए शर्व रूप को पृथ्वीमयी मूर्ती से दिखाया जाता है । ये रूप भक्तों को सांसारिक दुखों से बचाकर रखता है ।

2. रूद्र : इस रूप में शिव को अत्यंत ओजस्वी माना जाता है जिसमें विश्व कि समस्त ऊर्जा केन्द्रित है । ‘रूद्र’ का अर्थ है ‘भयानक’ । इस रूप में भगवान जगत में फैली दुष्टता पर नियंत्रण रखते हैं ।

3. उग्र : वायु रूप में शिव को उग्र नाम से जाना जाता है । इसमें प्रभु सभी जीवों का पालन-पोषण करते हैं । शिव का तांडव नृत्य, उग्र रूप में ही आता है और इस रूप में मूर्ति को औग्री भी कहा जाता है ।

4. भीम : ये शिव की आकाशरूपी मूर्ती का नाम है जिसकी अराधना से तामसी गुणों का नाश होता है । इस ही रूप में शिव के देह पर भस्म, जटाजूट, नागों की माला होती है और उन्हें बाघ की खाल पर बैठा दिखाया जाता है ।

5. ईशान : ये सूर्य रुपी मूरत विश्व को प्रकाशित करती है । इस रूप में शिव को ज्ञान देने वाला माना गया है ।

6. पशुपति : दुर्जन व्यक्तियों का नाश कर विश्व को उनसे मुक्त करने का भार भगवान के इस रूप पर है । इस रूप में प्रभु सभी जीवों के रक्षक बताए गए हैं ।

7. भव : इस रूप में शिव जल से युक्त होते हैं और वे जगत को प्राणशक्ति प्रदान करते हैं । शिव को भव के रूप में पूरे संसार का पर्याय माना है ।

8. महादेव : चन्द्र रूप में शिव की मूरत को महादेव कहा गया है । महादेव नाम का अर्थ देवों के देव होता है। यानी सारे देवताओं में सबसे विलक्षण स्वरूप व शक्तियों के स्वामी शिव ही हैं।

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Monday, 8 February 2016

Shakumbhari devi history in hindi

            शाकम्भरी देवी दुर्गा के अवतारों में एक



शाकम्भरी देवी दुर्गा के अवतारों में एक हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से रक्तदंतिका,भीमा, भ्रामरी, शताक्षी तथा शाकंभरी प्रसिद्ध हैं। देश भर में मां शाकंभरी के तीन शक्तिपीठ हैं

पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां के नाम से प्रसिद्ध है।


दूसरा स्थान राजस्थान में ही सांभर जिले के समीप शाकंभर के नाम से स्थित है और तीसरा उत्तरप्रदेश में सहारनपुर से 42 किलोमीटर दूर कस्बा बेहट से शाकंभरी देवी का मंदिर 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।



कथा  -  पुराणिक कथा के अनुसार शाकुम्भरा देवी ने 100 वर्षो तक तप किया था और महिने के अंत में एक बार शाकाहारी भोजन कर तप किया था । ऐसी निर्जीव जगह जहाँ पर सौ वर्ष तक पानी भी नहीं था। वहाँ पर पेड़ और पौधे उत्पन्न हो गये। यहाँ पर साधु-सन्त माता का चमत्कार देखने के लिये आये। और उन्हें शाकहारी भोजन दिया गया इसका तात्पर्य यह था कि माता केवल शाकहारी भोजन का भोग ग्रहण करती है और इस घटना के बाद से माता का नाम शाकम्भरी माता पड़ा। पुराणिक कथा के अनुसार यहाँ पर शंकराचार्य आये और तपस्या की थी। शाकम्भरी देवी तीन देवी ब्रह्मीदेवी, भीमादेवी और शीतलादेवी का शक्तिरूप है ।

1-पहला प्रमुख श्री शाकम्भरी माता मन्दिर, गाँव सकराय सीकर (राजस्थान) सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां पहला प्रमुख राजस्थान से सीकर जिले में उदयपुर वाटी के पास सकराय मां के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव अपने भाइयों व परिजनों का युद्ध में वध (गोत्र हत्या) के पाप से मुक्ति पाने के लिए अरावली की पहाडिय़ों में रुके। युधिष्ठिर ने पूजा अर्चना के लिए देवी मां शर्करा की स्थापना की थी। वही अब शाकंभरी तीर्थ है। श्री शाकम्भरी माता गाँव सकराय यह आस्था केन्द्र सुरम्य घाटियों के बीच बना शेखावटी प्रदेश के सीकर जिले में यह मंदिर स्थित है। यह मंदिर सीकर से 56 किमी. दूर अरावली की हरी वादीयों में बसा है। झुंझनूँ जिले के उदयपुरवाटी के समीप है। यह मंदिर उदयपुरवाटी गाँव से 16 किमी. पर है। यहाँ के आम्रकुंज, स्वच्छ जल का झरना आने वाले व्यक्ति का मन मोहित करते हैं। इस शक्तिपीठ पर आरंभ से ही नाथ संप्रदाय वर्चस्व रहा है जो आज तक भी है। यहाँ देवी शंकरा, गणपति तथा धन स्वामी कुबेर की प्राचीन प्रतिमाएँ स्थापित हैं

बेहट शाकंभरी देवी का इतिहास -

कस्बा बेहट से शाकंभरी देवी का मंदिर 15 किलोमीटर शाकंभरी देवी के मंदिर में माता शाकंभरी के दाईं ओर भीमा और भ्रामरी और बाईं और शीताक्षी देवी प्रतितिष्ठितहै। भारत की शिवालिक पर्वत श्रेणी में माता श्री शाकंभरी देवी का प्रख्यात तीर्थस्थल है। दुर्गा पुराण में वर्णित 51 शक्तिपीठों में से एक शाकंभरी सिद्धपीठ जिले के शिवालिक वन प्रभाग के आरक्षित वन क्षेत्र में स्थित है। यहां की पहाड़ियों पर पंच महादेव व भगवान विष्णु के प्राचीन मंदिर भी स्थित हैं। इस पावन तीर्थ के आसपास गौतम ऋषि की गुफा, बाण गंगा व प्रेतसीला आदि पवित्र स्थल स्थापित हैं। यहां वर्ष में तीन मेले लगते हैं, जिसमें शारदीय नवरात्र मेला अहम है। शिवालिक घाटी में माता शाकंभरी आदि शक्ति के रूप में विराजमान हैं। गर्भगृह में माता शाकंभरी, भीमा, भ्रांबरी व शताक्षी देवियों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मान्यता है कि सिद्धपीठ पर शीश नवाने वाले भक्त सर्व सुख संपन्न हो जाते हैं। यह भी मान्यता है कि मां भगवती सूक्ष्म शरीर में इसी स्थान पर वास करती हैं। जब भक्तगण श्रद्धा पूर्व मां की आराधना करते हैं तो करुणामयी मां शाकंभरी स्थूल शरीर में प्रकट होकर भक्तों के कष्ट हरती हैं

भूरादेव मंदिर -

देवताओं ने माता से वेदों की प्राप्ति की, ताकि सृष्टि का संचालन सुचारु रूप से चल सके। अंबे भवानी की जय-जयकार सुनकर मां का एक परम भक्त भूरादेव भी अपने पांच साथियों चंगल, मंगल, रोड़ा, झोड़ा व मानसिंह सहित वहां आ पहुंचा। उसने भी माता की अराधना गाई। अब मां ने देवताओं से पूछा कि वे कैसे उनका कल्याण करें ! इस प्रकार मां के नेतृत्व में देवताओं ने फिर से राक्षसों पर आक्रमण कर दिया। युद्ध भूमि में भूरादेव और उसके साथियों ने दानवों में खलबली मचा दी। इस बीच दानवों के सेनापति शुम्भ निशुम्भ का भी संहार हो गया। ऐसा होने पर रक्तबीज नामक दैत्य ने मारकाट मचाते हुए भूरादेव व कई देवताओं का वध कर दिया। रक्तबीज के रक्त की जितनी बंूदें धरती पर गिरतीं उतने ही और राक्षस प्रकट हो जाते थे। तब मां ने महाकाली का रूप धर कर घोर गर्जना द्वारा युद्ध भूमि में कंपन उत्पन्न कर दिया। डर के मारे असुर भागने लगे। 

मां काली ने रक्तबीज को पकड़ कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। उसके रक्त को धरती पर गिरने से पूर्व ही मां ने चूस लिया। इस प्रकार रक्तबीज का अंत हो गया। जनश्रुति यह है कि, अब शेर पर सवार होकर मां युध्द भूमि का निरीक्षण करने लगीं। तभी मां को भूरादेव का शव दिखाई दिया। 

मां ने संजीवनी विद्या के प्रयोग से उसे जीवित कर दिया तथा उसकी वीरता व भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि जो भी भक्त मेरे दर्शन हेतु आएंगे वे पहले भूरादेव के दर्शन करेंगे। तभी उनकी यात्रा पूर्ण मानी जाएगी। मेरे दर्शन से पूर्व जो भक्त भूरादेव के दर्शन नहीं करेगा, उसकी यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाएगी।

इस प्रकार देवताओं को अभयदान देकर मां शाकुम्भरी नाम से यहां स्थापित हो गईं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश व आसपास के कई प्रदेशों के निवासियों में माता को कुल देवी के रूप में पूजा जाता है। परिवार के हर शुभ कार्य के समय यहां आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। लोग धन धान्य व अन्य चढ़ावे लेकर यहां मनौतियां मांगने आते हैं। उनका अटूट विश्वास है कि माता उनके परिवार को भरपूर प्यार व खुशहाली प्रदान करेंगी। 

हर मास की अष्टमी व चौदस को श्रद्धालु यहां आते हैं। स्थान-स्थान पर भोजन बनाकर माता के भंडारे लगाए जाते हैं। माता के मंदिर के इर्द-गिर्द कई अन्य मंदिर भी हैं। मुख्य मंदिर से एक किमी पहले भूरादेव मंदिर है, जहां श्रद्धालु प्रथम पूजा करते हैं। मुख्य मंदिर के निकट वीर खेत के नाम से प्रसिद्ध मैदान है। 

इसके बारे में मान्यता है कि माता शक्ति ने यहां महासुर दुर्गम सहित कई दैत्यों का वध किया था, तभी मां जगद्जननी दुर्गा कहलाई। सिद्धपीठ परिक्षेत्र में पहाडि़यों पर एक ओर छिन्नमस्ता देवी व कुछ फर्लाग दूर माता रक्तिदंतिका देवी के भव्य मंदिर हैं। इस पंचकोसी क्षेत्र में पांच स्वयं भू: शिवलिंग हैं, जिसके दर्शन मात्र से ही चारों धाम की यात्रा का पुण्य प्राप्त होने की मान्यता है।

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Sunday, 7 February 2016

how old is the hindu religion?

हिन्दू सभ्यता यहां सदियों पहले भी मौजूद थी




हिन्दू धर्म में मंदिरों का बड़ा ही महत्व है, इन मंदिरों में लोग अपने-अपने देवताओं की उपासना करते हैं. पर ऐसा नहीं है कि ये मंदिर केवल भारत, नेपाल आदि तक ही फैले हैं, बल्कि देश के बाहर भी इन मंदिरों का इतिहास फैला हुआ है. किसी समय हिन्दू धर्म ने अपनी जड़ें यूरोप से लेकर एशिया तक फ़ैला रखी थी, जिसके प्रमाण आज भी मिलते हैं.

आज हम आपको विश्व की ऐसी ही जगहों के बारे में बता रहे हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि यहां कभी हिन्दू मंदिर हुआ करते थे.

1. वेटिकेन में कभी शिव मंदिर हुआ करता था?

सभी धर्म एक ही धर्म का हिस्सा हैं, जिसका प्रमुख वैदिक धर्म है. इतिहासकार पी.एन.ओक इसे समझाते हुए कहते है कि वेटिकेन शब्द संस्कृत के वाटिका से लिया गया है, और “Christianity” शब्द कृष्ण नीति से. और आगे वो कहते हैं कि अब्राहिम भी ब्रह्मा का ही एक विकसित रूप है. उदाहरण के लिए खुद ही इस फोटो को गौर से देखिये जिसमे आपको चर्च का एरिया एक शिव लिंग की तरह नज़र आएगा.




क्या वेटिकेन सच में शिव मंदिर था – फोटो को देखने पर नज़र आता है जो की शिव के माथे के तिलक की तीन रेखाओं के जैसा लगता है. वेटिकेन खुद वाटिका से आया है इसका मतलब यह है कि यहां भी कभी वैदिक केंद्र हुआ करते थे. 


खुदाई के दौरान यहां से एक शिव लिंग भी प्राप्त हुआ है जिसे रोम के संग्रहालय में रखा गया है. यह शिव लिंग रोम के ही एक और संग्रहालय Gregorian Etruscan Museum में रखा हुआ है.

2. कंबोडिया का विलुप्त हो चुका हिन्दू सम्राज्य

कंबोडिया में घूमने पर आप पाएंगे कि यहां पर बड़ी संख्या में हिन्दू और बौद्ध मंदिर हैं, जो इस बात की गवाही देते हैं कि कभी यहां भी हिन्दू धर्म का प्रभाव था. Siem Reap को इस देश का दिल कहा जाता है. यहां भी दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर अंकोर वाट है, जिसका इतिहास लगभग 900 साल पुराना है.

विलुप्त मन्दिर कंबोडिया — यह मंदिर लगभग 1 स्क्वेयर मील क्षेत्रफल में फ़ैला हुआ है. यहां की दीवारों पर पर छपे चित्र और उकेरी गई मूर्तियां हिन्दू धर्म के गौरवशाली इतिहास की कहानी को बयां करती हैं. यह मंदिर तो नष्ट हो चुका है पर इसकी वास्तुकला और ख़ूबसूरती को अभी भी संरक्षित करके रखा गया है. साक्ष्यों से इस बात का पता चलता है कि इस मंदिर में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती रही थी.

3. हरप्पा का 5000 साल पुराना शिव लिंग –

1940 में खुदाई के दौरान Archaeologist M.S. Vats को एक शिव लिंग मिला जो लगभग 5000 पुराना है. इसके अलावा और भी कई ऐसी ही चीज़े मिली हैं, जिन्हें इसी काल का बताया जाता है.

4. मिस्र में प्राचीन तमिल बह्रामी लिपि –

मिस्र के Quseir-al-Qadim में खुदाई के दौरान एक टूटा हुआ जार मिला, जिसे पहली शताब्दी के आस-पास का बताया जाता है और जिस पर तमिल ब्राह्मी में कुछ लिखा हुआ है. ब्रिटेन के एक इतिहासकार का कहना है कि ये बर्तन भारत में बने हुए है.

5. ओमान में तमिल बह्रमी लिपि –

ओमन के खोर-रोरी इलाके में हाल ही में एक प्राचीन घड़े का टूटा हुआ अंश मिला है, जिस पर प्राचीन बह्रमी भाषा में लिखा हुआ है और इसका अनुमान भी पहली शताब्दी के आस-पास का ही लगाया जाता है. इससे इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि प्राचीन समय से ही भारत के व्यापार की पहुंच काफ़ी दूर-दूर तक थी.

6. बाली में बहुत बड़ा प्राचीन मंदिर –

बाली में एक इमारत के निर्माण की खुदाई के दौरान मजदूरों को मंदिर के कुछ अंश मिले जिसके बाद यह खबर बाली के ऐतिहासिक संरक्षण विभाग को दी गई जिसने खुदाई करने पर एक विशाल हिन्दू इमारत को पाया, जो कभी हिन्दू धर्म का केंद्र रहा होगा.

शोधकर्ताओं का मानना है कि जहां आज इन्डोनेशिन इस्लामिक यूनिवर्सिटी है वहां कभी हिन्दू देवी-देवताओं का मंदिर हुआ करता था, जिसमे शिव और गणेश की पूजा की जाती थी. यहां से एक एतिहासिक शिव लिंग भी मिला है.

7. हनुमान और उनके साम्राज्य का रहस्य –

सेंट्रल अमेरिका के Mosquitia में शोधकर्ता चार्ल्स लिन्द्बेर्ग ने एक ऐसी जगह की खोज की है जिसका नाम उन्होंने La Ciudad Blanca दिया है जिसका स्पेनिश में मतलब ‘The White City’ होता है, जहां के स्थानीय लोग बंदरो की मूर्तियों की पूजा करते हैं. चार्ल्स का मानना है कि यह वही खो चुकी जगह है जहां कभी हनुमान का साम्राज्य हुआ करता था.

8. क्या देवताओं की भी पनाहगाह थी?

एक अमेरिकन एडवेंचरर ने लिम्बर्ग की खोज के आधार पर गुम हो चुके ‘Lost City Of Monkey God’ की तलाश में निकले. 1940 में उन्हें इसमें सफ़लता भी मिली पर उसके बारे में मीडिया को बताने से एक दिन पहले ही एक कार दुर्घटना में उनकी मौत हो गई और यह राज़ एक राज़ ही बनकर रह गया.

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Saturday, 6 February 2016

makar sankranti in hindi

                   ह‌िन्दू धर्म में है मकर संक्रांत‌ि





मकर संक्रांति हिंदू धर्म का प्रमुख त्यौहार है। यह पर्व पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब इस संक्रांति को मनाया जाता है।


यह त्यौहार अधिकतर जनवरी माह की चौदह तारीख को मनाया जाता है। कभी-कभी यह त्यौहार बारह, तेरह या पंद्रह को भी हो सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सूर्य कब धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन से सूर्य की उत्तरायण गति आरंभ होती है और इसी कारण इसको उत्तरायणी भी कहते हैं।

मकर संक्रांति से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं।

कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाया करते हैं। शनिदेव चूंकि मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।

मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा उनसे मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।

महाभारत काल के महान योद्धा भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था।

इस त्यौहार को अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति को तमिलनाडु में पोंगल के रूप में तो आंध्रप्रदेश, कर्नाटक व केरला में यह पर्व केवल संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।

इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।

यशोदा जी ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था तब सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। कहा जाता है तभी से मकर संक्रांति व्रत का प्रचलन हुआ।


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Thursday, 4 February 2016

आदिकाल से हिंदू सभ्यता अनवरत सारे संसार मे चली आ रही हॅ




हिन्दू धर्म में मंदिरों का बड़ा ही महत्व है, इन मंदिरों में लोग अपने-अपने देवताओं की उपासना करते हैं. पर ऐसा नहीं है कि ये मंदिर केवल भारत, नेपाल आदि तक ही फैले हैं, बल्कि देश के बाहर भी इन मंदिरों का इतिहास फैला हुआ है. 



किसी समय हिन्दू धर्म ने अपनी जड़ें यूरोप से लेकर एशिया तक फ़ैला रखी थी, जिसके प्रमाण आज भी मिलते हैं.



वेटिकेन में कभी शिव मंदिर हुआ करता था?

सभी धर्म एक ही धर्म का हिस्सा हैं, जिसका प्रमुख वैदिक धर्म है. इतिहासकार पी.एन.ओक इसे समझाते हुए कहते है कि वेटिकेन शब्द संस्कृत के वाटिका से लिया गया है, और “Christianity” शब्द कृष्ण नीति से. और आगे वो कहते हैं कि अब्राहिम भी ब्रह्मा का ही एक विकसित रूप है. उदाहरण के लिए खुद ही इस फोटो को गौर से देखिये जिसमे आपकोचर्च का एरिया एक शिवलिंग की तरह नज़र आएगा.
क्या वेटिकेन सच में शिव मंदिर था.



इन फोटोज़ को देखने पर एक tripod सा नज़र आता है जो की शिव के माथे के तिलक की तीन रेखाओं के जैसा लगता है. वेटिकेन खुद वाटिका से आया है इसका मतलब यह है कि यहां भी कभी वैदिक केंद्र हुआ करते थे. खुदाई के दौरान यहां से एक शिव लिंग भी प्राप्त हुआ है जिसे रोम के संग्रहालय में रखा गया


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क्यों चढ़ाते हैं बजरंगबली को सिन्दूर?




हिन्दू धर्म में सिन्दूर के महत्त्व से भला कौन परिचित नहीं है ? एक विवाहित स्त्री के लिए सिन्दूर न केवल उसके विवाहित होने का प्रमाण है बल्कि एक प्रकार से गहना है । पूजा-पाठ में भी सिन्दूर की ख़ास एहमियत है । जहाँ अक्सर सभी देवी-देवताओं को सिन्दूर का तिलक लगाया जाता है, हनुमान जी को सिन्दूर का चोला चढ़ाया जाता है । इसके पीछे एक कारण है जिसका वर्णन रामचरितमानस में है ।



कहा जाता है कि चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके जब श्री राम, सीता और लक्ष्मण के साथ वापस अयोध्या आए तो एक दिन हनुमान ने माता सीता को अपनी मांग में सिन्दूर लगाते देखा । एक वानर के लिए ये कुछ अजब सी चीज़ थी तो उन्होंने माता सीता से सिन्दूर के बारे में पूछा । माता सीता ने कहा कि सिन्दूर लगाने से उन्हें श्री राम का स्नेह प्राप्त होगा और इस तरह ये सौभाग्य का प्रतीक है । अब हनुमान तो ठहरे राम भक्त और ऊपर से अत्यंत भोले, तो उन्होंने अपने पूरे शरीर को सिन्दूर से रंग लिया यह सोचकर कि यदि वे सिर्फ माँग नहीं बल्कि पूरे शरीर पर सिन्दूर लगा लेंगे तो उन्हें भगवान् राम का ख़ूब प्रेम प्राप्त होगा और उनके स्वामी कि उम्र भी लम्बी होगी । हनुमान इसी अवस्था में सभा में चले गए ।



श्री राम ने जब हनुमान को सिन्दूर से रंगा देखा तो उन्होंने हनुमान से इसका कारण पूछा । हनुमान ने भी बेझिझक कह दिया कि उन्होंने ये सिर्फ भगवान् राम का स्नेह प्राप्त करने के लिए किया था । उस वक्त राम इतने प्रसन्न हुए कि हनुमान को गले लगा लिया। बस तभी से हनुमान को प्रसन्न करने के लिए उनकी मूरत को सिन्दूर से रंगा जाता है । इससे हनुमान का तेज और बढ़ जाता है और भक्तों में आस्था बढ़ जाती है ।

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Wednesday, 3 February 2016

इनकों करने से जीवन में बनी रहती है शनि की कृपा



हिंदू धर्म में कष्टों से मुक्ति पाने के लिए सूर्य पुत्र शनिदेव की पूजा की जाती है। यदि किसी की राशि में शनि की साढ़ेसाती या ढय्या चल रही हैं तो शनि को प्रसन्न करने के लिए ज्योतिष शास्त्र में कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। शास्त्रों में शनिदेव को व्यक्ति के भाग्य संवारने वाला माना गया है। यह भी मान्यता है कि शनि को शांत करने से मनुष्य जीवन को कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस लेख में आपको बताएंगे ऐसे टोटके जिनको करने से आप जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।

शनिवार की रात में रक्त चंदन से अनार की कलम से ‘ऊं हृीं’ को भोजपत्र पर लिखकर नित्य पूजा करने से विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है। यह टोटका पढ़ाई करने वाले बच्चों के लिए सबसे फायदेमंद होता है।
शनिवार को काले कुत्ते, काली गाय को रोटी और काली चिड़िया को दाना डालने से जीवन की रुकावटें दूर होती हैं। यह भी मान्यता है कि शनिवार को तेल से बने पदार्थ भिखारी को खिलाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।
किसी भी एक शनिवार को शाम के वक्त अपनी लंबाई के बराबर लाल रेशमी धागा नाप लें। अब इसे जल से धोकर आम के पत्ते पर लपेट दे। इस पत्ते और लपेटे हुए रेशमी धागे को अपनी मनोकामना का ध्यान करते हुए बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इसे मनोकामना पूर्ति होती है।

शनि की साढ़ेसाती और ढय्या या अन्य कोई शनि दोष हो तो प्रत्येक शनिवार को किसी भी पीपल के पेड़ के नीचे दोनों हाथों से स्पर्श करें। स्पर्श करने के साथ पीपल के पेड़ की सात परिक्रमा करें और ‘ऊं शं शनैश्चराय नम:’ का जप करें।

शनि को मनाने के लिए हनुमान जी की पूजा करना भी अच्छा उपाय है। प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को हनुमान चालीसा का पाठ करें। हनुमान जी के दर्शन और उनकी भक्ति करने से शनि के सभी दोष समाप्त होते हैं। ऐसा करने से आप विपरीत परिस्थिति से आसानी से निकल आते हैं।

शनिवार को शाम (दिन छिपते) के समय पीपल के पेड़ के नीचे चौमुखा दीपक जलाने से धन, वैभव और यश में वृद्धि होती है। नौकरी पेशा व्यक्ति की ऑफिस में स्थिति अच्छी होती है। वहीं व्यापार वाले के बिजनेस में भी वृद्धि होती है।

शनिवार के दिन किसी भी चीज के बुरे फल को दूर करने के लिए काली चीजों जैसे उड़द की दाल, काला कपड़ा, काले तिल और काले चने को किसी गरीब को दान देने से शनिदेव की कृपा बनी रहती है।
शनिवार के दिन काले कुत्तों को सरसों का तेल लगी हुई रोटी खिलौने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। शनिदेव के प्रसन्न होने से जीवन में खुशहाली बनी रहती है। शनिवार के दिन काले वस्त्र धारण करने से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और उस दिन होने वाले काम में सफलता मिलती है।

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Tuesday, 2 February 2016

क्या है गुप्त नवरात्रि



हिन्दू धर्म में नवरात्र मां दुर्गा की साधना के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। नवरात्र के दौरान साधक विभिन्न तंत्र विद्याएं सीखने के लिए मां भगवती की विशेष पूजा करते हैं। तंत्र साधना आदि के लिए गुप्त नवरात्र बेहद विशेष माने जाते हैं। आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इस नवरात्रि के बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी होती है।
गुप्त नवरात्रि का महत्त्व
देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।
गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।



गुप्त नवरात्रि की प्रमुख देवियां
गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं।
गुप्त नवरात्र पूजा विधि
मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
दुर्गा के कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र
माँ दुर्गा के लोक कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र
१॰ बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये
“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥” (अ॰१२,श्लो॰१३)

अर्थ :- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
२॰ बन्दी को जेल से छुड़ाने हेतु
“राज्ञा क्रुद्धेन चाज्ञप्तो वध्यो बन्धगतोऽपि वा।
आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे।।” (अ॰१२, श्लो॰२७)
३॰ सब प्रकार के कल्याण के लिये
“सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१०)
अर्थ :- नारायणी! तुम सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।
४॰ दारिद्र्य-दु:खादिनाश के लिये
“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता॥” (अ॰४,श्लो॰१७)
अर्थ :- माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दु:ख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दया‌र्द्र रहता हो।
४॰ वित्त, समृद्धि, वैभव एवं दर्शन हेतु
“यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महेश्वरि।।
संस्मृता संस्मृता त्वं नो हिंसेथाः परमापदः।
यश्च मर्त्यः स्तवैरेभिस्त्वां स्तोष्यत्यमलानने।।
तस्य वित्तर्द्धिविभवैर्धनदारादिसम्पदाम्।
वृद्धयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथाः सर्वदाम्बिके।। (अ॰४, श्लो॰३५,३६,३७)
५॰ समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये
“विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति :॥” (अ॰११, श्लो॰६)
अर्थ :- देवि! सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे एवं परा वाणी हो।
६॰ शास्त्रार्थ विजय हेतु
“विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपेष्वाद्येषु च का त्वदन्या।
ममत्वगर्तेऽति महान्धकारे, विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम्।।” (अ॰११, श्लो॰ ३१)
७॰ संतान प्राप्ति हेतु
“नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भ सम्भवा।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी” (अ॰११, श्लो॰४२)
८॰ अचानक आये हुए संकट को दूर करने हेतु
“ॐ इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति।
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्ॐ।।” (अ॰११, श्लो॰५५)
९॰ रक्षा पाने के लिये
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥
अर्थ :- देवि! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें।
१०॰ शक्ति प्राप्ति के लिये
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥
अर्थ :- तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है।
११॰ प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥
अर्थ :- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियों की पूजनीया परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो।
१२॰ विविध उपद्रवों से बचने के लिये
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्॥
अर्थ :- जहाँ राक्षस, जहाँ भयंकर विषवाले सर्प, जहाँ शत्रु, जहाँ लुटेरों की सेना और जहाँ दावानल हो, वहाँ तथा समुद्र के बीच में भी साथ रहकर तुम विश्व की रक्षा करती हो।
१३॰ बाधा शान्ति के लिये
“सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥” (अ॰११, श्लो॰३८)
अर्थ :- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।
१४॰ सर्वविध अभ्युदय के लिये
ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्ग:।
धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥
अर्थ :- सदा अभ्युदय प्रदान करनेवाली आप जिन पर प्रसन्न रहती हैं, वे ही देश में सम्मानित हैं, उन्हीं को धन और यश की प्राप्ति होती है, उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने हृष्ट-पुष्ट स्त्री, पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं।
१५॰ सुलक्षणा पत्‍‌नी की प्राप्ति के लिये
पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥
अर्थ :- मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्‍‌नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारनेवाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।
१६॰ आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
अर्थ :- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।
१७॰ महामारी नाश के लिये
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
अर्थ :- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।
१८॰ रोग नाश के लिये
“रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥” (अ॰११, श्लो॰ २९)
अर्थ :- देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाञ्छित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।
१९॰ विपत्ति नाश के लिये
“शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१२)
अर्थ :- शरण में आये हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है।
२०॰ पाप नाश के लिये
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥
अर्थ :- देवि! जो अपनी ध्वनि से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके दैत्यों के तेज नष्ट किये देता है, वह तुम्हारा घण्टा हमलोगों की पापों से उसी प्रकार रक्षा करे, जैसे माता अपने पुत्रों की बुरे कर्मो से रक्षा करती है।
१७॰ भय नाश के लिये
“सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।
पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥ ” (अ॰११, श्लो॰ २४,२५,२६)

अर्थ :- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्ति यों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है। कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है।

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Monday, 1 February 2016

मा दुर्गा के चमत्कारी 108 नाम

आइये जाने मा दुर्गा के चमत्कारी 108 नामो के स्मरण से जीवन की हर बाधाओ से मुक्ति



सति
साध्वी
भवप्रीता
भवानी
भवमोचिनी
आर्य
दुर्गा
जया
अद्या
त्रिनेत्रा
शूलधारिणी
पिनाकधारिणी
चित्रा
चंद्रघंटा
महातपा
मन:
बुद्धि
अहंकारा
चित्तरूपा
चिता:
चिति
सर्वमन्त्रमयी
सत्ता
स्त्यानन्दस्वरूपिनी
अनंता
भवानी
भाव्या
भव्या
अभव्या
सद्गति
शाम्भवी
देवमाता
चिंता
रत्नप्रिया
सर्वविद्या
दक्षकन्या
दक्षयज्ञविनाशिनी
अपर्णा
अनेकवर्णा
पाटला
पाटलवती
पट्टाम्बरापरिधाना
कलामंजीरारंजिनी
अमेया
विक्रमा
क्रूरा
सुंदरी
सुरसुन्दरी
वनदुर्गा
मातंगी
मातंगमुनिपूजिता
ब्राह्मी
महेश्वरी
ऐन्द्री
कौमारी
वैष्णवी
चामुंडा
वाराही
लक्ष्मी
परुषाकृति
विमिलौत्त्कार्शिनी
ज्ञाना
क्रिया
नित्या
बुद्धिदा
बहुला
बहुलप्रेमा
सर्ववाहनवाहना
निशुम्भशुम्भहननी
महिषासुरमर्दिनी
मधुकैटभहन्त्री
चंडमुंडविनाशिनी
सर्वासुरविनाशा
सर्वादानवघातिनी
सर्वाशास्त्रमयी
सत्या
सर्वास्त्रधारिणी
अनेकशस्त्रहस्ता
अनेकास्त्रधारनी
कुमारी
एककन्या
किशोरी
युवती
यति
अप्रौढा
प्रौढा
वृद्धमाता
बलप्रदा
महोदरी
मुक्तकेशी
घोररूपा
महाबला
अग्निज्वाला
रौद्रमुखी
कालरात्रि
तपस्विनी
नारायणी
भद्रकाली
विष्णुमाया
जलोदरी
शिवदूती
कराली
अनंता
परमेश्वरी
कात्यानी
सावित्र
प्रत्यक्षा
ब्रह्मवादिनी  

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क्या हैं अघोरियों से जुड़े रहस्य

अघोरियों से जुड़े रहस्य



अघोरियों का जीवन जितना कठिन है, उतना ही रहस्यमयी भी। अघोरियों की साधना विधि सबसे ज्यादा रहस्यमयी है। उनकी अपनी शैली, अपना विधान है, अपनी अलग विधियां हैं। अघोरी उसे कहते हैं जो घोर नहीं हो। यानी बहुत सरल और सहज हो।
अघोरी हर चीज को समान भाव से देखते हैं। वे सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खा सकते हैं, जितना स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जा सकता है। अघोरियों की दुनिया निराली है। वे जिस पर प्रसन्न हो जाएं, उसे सब कुछ दे देते हैं।
अघोरी गाय का मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजें खाते हैं। मानव गंदगी से लेकर मुर्दे का मांस तक। अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है, इसलिए वे श्मशान में रहना ही ज्यादा पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र फलदायक होता है।
श्मशान में आमतौर पर लोग जाते नहीं, इसीलिए साधना में विघ्न पड़ने का कोई प्रश्न नहीं उठता। उनके मन से अच्छे-बुरे का भाव निकल जाता है। अघोरियों के बारे में कई बातें प्रसिद्ध हैं, जैसे वे बहुत ही हठी होते हैं। अगर किसी बात पर अड़ जाएं तो उसे पूरा किए बगैर नहीं छोड़ते।
गुस्सा हो जाएं तो किसी भी हद तक जा सकते हैं। अधिकांश अघोरियों की आंखें लाल होती हैं, जैसे वो गुस्से में हों, लेकिन उनका मन उतना ही शांत भी होता है। काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी गले में धातु की बनी नरमुंड की माला पहनते हैं।



अघोरी अक्सर श्मशानों में ही अपनी कुटिया बनाते हैं। वहां एक धूनी जलती रहती है। जानवरों में वो सिर्फ कुत्ता पालना पसंद करते हैं। उनके साथ उनके शिष्य रहते हैं। अघोरी अपनी बात के बहुत पक्के होते हैं। वे अगर किसी से कोई बात कह दें तो उसे जरूर पूरा करते हैं।
अघोरी तीन तरह की साधना करते हैं। शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना। शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है।
बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पांव है। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है।
शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना। इसमें आम परिवारजन भी शामिल हो सकते हैं। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।



बहुत कम लोग जानते हैं कि अघोरियों की साधना में इतना बल होता है कि वो मुर्दे से भी बात कर सकते हैं। ये बातें पढ़ने-सुनने में भले ही अजीब लगें, लेकिन इन्हें पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता। उनकी साधना को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती।
अघोरी अमूमन आम दुनिया से कटे होते हैं। वे अपने-आप में मस्त रहने वाले, दिन में अधिकांश समय सोने वाले और रात में श्मशान में साधना करने वाले होते हैं। वे आम लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते।

वे अधिकांश समय अपना सिद्ध मंत्र ही जाप करते रहते हैं। आज भी ऐसे अघोरी और तंत्र साधक हैं, जो पराशक्तियों को अपने वश में कर सकते हैं। दुनिया में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं, जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है। ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) का श्मशान, त्र्यम्बेक्शवर (नासिक) और उज्जैन का चक्रतीर्थ श्मशान।

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