Wednesday 10 February 2016

Why should we worship Panchmukhi Hanuman

हनुमान जी के पंचमुखी हनुमान बनने की कहानी





रामायण में वर्णित एक कथा के अनुसार श्री राम-रावण युद्ध के समय एक समय ऐसा आया जब रावण को अपनी सहायता के लिए अपने भाई अहिरावण की सहायता की आवश्यकता आन पड़ी ।

अहिरावण तंत्र-मंत्र का प्रकांड पंडित एवं मां भवानी का अनन्य भक्त था । वह अपने भाई रावण के सहायता के लिए प्रस्तुत था । उसने रावण को सुझाव दिया कि यदि श्रीराम एवं लक्ष्मण का ही अपहरण कर लिया जाए तो युद्ध तो स्वत: ही समाप्त हो जाएगा।

उसने अपनी माया से सुग्रीव का भेष बना कर राम और लक्षमण के विश्राम स्थल पर पहुच कर सोने की अवस्था में ही राम और लक्ष्मण को पातळ लोक बलि चढ़ाने के लिए ले गया ! शिविर में जब राम और लक्ष्मण नहीं मिले तो जी उनकी खोज करते २ पातळ पुरी पहुचे ! द्वार पर रक्षक के रूप में मकरध्वज (जिसका आधा शरीर मगर का तथा आधा वानर का ) से युद्ध कर और उसे हराकर जब वह पातालपुरी के महल में पहुंचे तो श्रीराम एवं लक्ष्मण जी को बंधक-अवस्था में पाया।



वहां पञ्च दिशाओं में पांच दीपक जल रहे थे और मां भवानी के सम्मुख श्रीराम एवं लक्ष्मण की बलि देने की पूरी तैयारी हो चुकी थी । तभी आकाश वाणी हुई कि अहिरावण का अंत करना है तो इन पांच दीपकों को एक साथ एक ही समय में बुझाना होगा। यह रहस्य ज्ञात होते ही हनुमान जी ने पंचमुखी हनुमान का रूप धारण किया।

उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिम्ह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। इन पांच मुखों को धारण कर उन्होंने एक साथ सारे दीपकों को बुझाकर अहिरावण का अंत किया और श्रीराम-लक्ष्मण को मुक्त किया।

माता सीता का पता लगाने जा रहे हनुमान जी का स्वेद एक मछली ने ग्रहण कर लिया और जिससे गर्भ धारण कर मकरध्वज को जन्म दिया था अत: मकरध्वज हनुमान जी का पुत्र है, ऐसा जानकर श्री राम ने मकरध्वज को पातालपुरी का राज्य सौंप दिया। हे की जब मरियल नाम का दानव भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र चुराता हे और ये बात जब हनुमान को पता लगती हे तो वो संकल्प लेते हे की वो चक्र पुनः प्राप्त कर भगवान विष्णु को सौप देंगे |

मरियल दानव इच्छाअनुसार रूप बदलने में माहिर था अत: विष्णु भगवान हनुमानजी को आशीर्वाद दिया, साथ ही इच्छानुसार वायुगमन की शक्ति के साथ गरुड़-मुख, भय उत्पन्न करने वाला नरसिम्ह-मुख , हायग्रीव मुख ज्ञान प्राप्त करने के लिए तथा वराह मुख सुख व समृद्धि के लिए था |पार्वती जी ने उन्हें कमल पुष्प एवं यम-धर्मराज ने उन्हें पाश नामक अस्त्र प्रदान किया – यह आशीर्वाद एवं इन सबकी शक्तियों के साथ हनुमान जी मरियल पर विजय प्राप्त करने में सफल रहे| तभी से उनके इस पंचमुखी स्वरूप को भी मान्यता प्राप्त हुई |


पंचमुखी हनुमान जी के पाँच मुख इस प्रकार हैं
१) श्री वराह ( उत्तर दिशा की तरफ मुख )
२) श्री नरसिम्हा ( दक्षिण दिशा की तरफ मुख )
३) श्री गरुण ( पश्चिम दिशा की तरफ मुख )
४ ) श्री हयग्रीव ( आकाश दिशा की तरफ मुख )
५) श्री हनुमान ( पूर्व दिशा की तरफ मुख )


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