Tuesday, 28 June 2016

Swimming Lessons for kids on youtube

How To Dive Correctly Into The River !!


Watch Indian Kids Talent At Narmada River and learn, How To Learn Swimming Faster . This Swimming video shows The Best dive into water.



Backflip video youtube ( How to make a backflip in the water)

This video shows backflip competition in the river . These water diver kids showing backflip tricks in water .If you want to learn all steps of water diving and backflip , watch and try all these steps of back flip in the water .



The Best Water Diving Tricks (Best diving board tricks)



Narmada the holy river of India ,Near River Narmada , These kids are "The best water divers in the world" . This video showsue us "THE MOST AMAZING WATER DIVING KIDS" . These Kids are "The best swimmer kids in the world" . In this video these kids are teaching , How to jump in water without holding nose . hats off to these swimmer kids to teach us water safety jump .








Friday, 6 May 2016

Bull with big horns in India at Mahakal city Ujjain

नंदी भगवान आज भी हैं इस अनोखे बैल के रूप में महाकाल की नगरी में, जानें अभी


                                                                  Nandi Bull at Ujjain city

मध्यप्रदेश के उज्जैन में शिप्रा के तट के निकट भगवान शिव ‘महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग’ के रूप में विराजमान हैं। उज्जैन मे महाकाल मंदिर के पास एक विशाल बैल दिखाई देता है। इस बैल के सिंग अति विशाल और दुर्लब हैं, यह बैल दिखने मे तो डरावना लगता है किंतु यह बड़ा ही शांत है. लोग इस बैल को नंदी भगवान का रूप समझ कर पूझते है और लोग इस नंदी देव को अपने हांतों से रोटी भी खिलाते हैं ।


                                                                    Biggest Bull in India

उज्जैन  के लोगो से पता चला की ये नंदी बैल बहुत समय से महाकाल मंदिर के पास है पहले ये और तगड़ा हुआ करता था पर अब कमज़ोर दिखाई देने लगा है । अब आप सोचिए की पहले ये और तगड़ा था तो कैसा दिखता होगा। तो जब आप उज्जैन जाएँ तो महाकाल मंदिर के बाहर या आस-पास साक्षात नंदी बैल के दर्शन करना ना भूलें। आप इस अदभुत बैल या ये कहें की आज के इस नंदी बैल को रोटी खिला कर आशीर्वाद भी पा सकते हैं ।

Nandi bull video -

https://www.youtube.com/watch?v=P5HIxdcpal0












Sunday, 24 April 2016

Black Orlov Diamond Is Eye of Brahma in Hindi

ब्लैक ओर्लोव डायमंड कहलाने वाला ये हीरा भगवान ब्रह्मा की आंख कहा जाता है , जो चोरी हो विदेश गया 


                                                             Black Orlov Diamond Curse

ब्लैक ओर्लोव डायमंड दुनिया भर में ऐसे कई गहने एवं रत्न में से हैं, जो मनुष्य के लिए श्राप के समान हैं। इन सभी रत्नों में से एक है ‘भगवान ब्रह्मा की आंख’ कहलाने वाला ब्लैक ओर्लोव डायमंड।

कहते हैं ये हीरा पुडुचेरी के एक मंदिर से चोरी हुआ था, जहां इसे ब्रह्मा जी की मूर्ति से निकाला गया।इसे ब्रह्मा की तीसरी आंख के रूप में मूर्ति में लगाया गया था।

यही कारण है कि इसे ब्रह्मा की आंख कहा जाता है। मंदिर से हीरे को चुराने के बाद चोरों ने इसे किसी तरह से यूरोप पहुंचा दिया ।

इसे कई लोगों ने अपने पास रखा, लेकिन जिसके पास भी यह हीरा गया वह उसे लंबे समय तक नहीं रख सका। क्योंकि इस हीरे को जो भी अपने पास रखता, उसकी अकाल मौत हो जाती थी।

इस हीरे को अपने पास सबसे पहले 1932 में जे डब्ल्यू पेरिस ने किसी अमेरिकी व्यक्ति से खरीदा था। उसने इस हीरे को अपने पास काफी समय तक रखा लेकिन एक दिन खबर आई कि उसने न्यूयॉर्क की एक बिल्डिंग से कूदकर आत्महत्या कर ली।

इसके बाद रूस की राजकुमारियों लिओनिला गैलिस्टाइन और नादिया वाइजिन ओर्लो ने भी इसे खरीदा था। और उन दोनों ने भी वर्ष 1940 में एक ऊंची बिल्डिंग से कूदकर जान दे दी। दोनों राजकुमारियों का हीरे से संबंध होने के कारण ही इसका नाम ब्लैक ओर्लोव पड़ा।

इसके बाद इसे चार्ल्स एफ. विंसन ने खरीदा और इस हीरे का खौफनाक असर कम करने के लिए इसे तीन हिस्सों में कटवाकर तरशवाया। इसके बाद उन्होंने इसे 108 हीरों के गुच्छों के साथ हार में जड़वा दिया।

बाद में इसे 2004 में अमेरिका से पेंसिलवेनिया के हीरा व्यापारी डेनिस पेट्मिजास ने खरीद लिया। उसने इस हीरे को कई प्रदर्शनियों का हिस्सा भी बनाया। कहते हैं आज भी यह हीरा बेहद भयानक असर देता है इसलिए कोई भी इसे बिना दस्ताने पहने हाथ नहीं लगाता।









Friday, 22 April 2016

cursed diamonds in history in hindi

भारत से चोरी किए गये ये सभी बेशक़ीमती हीरे हर बार विनाशकारी साबित होते हैं !


                                                             cursed diamonds in history

कभी सोचा है कि जो हीरा किसी की खूबसूरती को उभारने के लिए धारण किए जाता हैं, वही हीरा उसके लिए अभिशाप भी बन सकते हैं , केवल एक हार किसी की जान ले सकता है यह बेहद अचंभित करने वाली बात है। लेकिन यह महज मनगढ़ंत कहानियां नहीं हैं।

कोहिनूर हीरा - 

कोहिनूर हीरा एक समय पर भारत की शान हुआ करता था जिसे अंग्रेज भारत से दूर लंदन ले गए थे। लेकिन इसके पीछे की कहानी बहुत कम लोग जानते हैं।

दरअसल कोहिनूर अपनी सुंदरता के साथ-साथ व्यक्ति का बुरा नसीब एवं मौत भी लेकर आता है। यह हीरा उसे धारण करने वाले को धीरे-धीरे बर्बाद करके मौत के अंधेरे तक ले जाता है। 

वर्तमान आंध्र-प्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित एक खदान में से यह बेशकीमती हीरा खोजा गया था। लेकिन बाबरनामा में उल्लेखित वर्णन के मुताबिक यह हीरा सबसे पहले सन 1294 में ग्वालियर के एक अनाम राजा के पास देखा गया था।

कहा जाता है कि यह हीरा जिस भी पुरुष राजा के पास रहता, उसके लिए श्राप बन जाता। एक-एक करके इस हीरे ने अनेकों राजा-महाराजाओं के शासन को बर्बाद किया। आखिरी बार यह हीरा पंजाब के राजा रणजीत सिंह के पास पाया गया था।

इसे धारण करने के कुछ ही समय बाद राजा की मृत्यु हो गई। इसका असर इतना गहरा था कि राजा की मृत्यु के बाद उसके पुत्र गद्दी पर बैठ ना सके। 

बाद में यह हीरा अंग्रेजों के हाथ लग गया। तब तक अंग्रेज समझ चुके थे कि यदि यह हीरा किसी पुरुष द्वारा धारण किया जाए तो श्रापित साबित होता है। 

इसीलिए 1936 में इस हीरे को किंग जॉर्ज षष्टम की पत्नी क्वीन एलिजाबेथ के क्राउन में जड़वा दिया गया और तब से लेकर अब तक यह हीरा ब्रिटिश राजघराने की महिलाओं के ही सिर की शोभा बढ़ा रहा है। यही कारण है कि आज यह भारतीय हीरा अपने देश से मीलों दूर विदेशी देश की शान बढ़ा रहा है।

दिल्ली पर्पल सैफायर - 

द दिल्ली पर्पल सैफायर नाम से मशहूर यह हीरा आज से वर्षों पहले 1857 के विद्रोह के समय इंद्र के एक मंदिर से चुराया गया था। 

हीरा मंदिर से चुरा तो लिया गया लेकिन भगवान इंद्र का प्रकोप इस हीरे पर है, यह कोई नहीं जानता था। कहते हैं यह हीरा एक घुड़सवार कर्नल डब्ल्यू फेरिस द्वारा लंदन ले जाया गया था। 

यह हीरा उसे कैसे मिला यह कोई नहीं जानता। इसके बाद यह हीरा एडवर्ड नामक एक लेखक के पास पहुंच गया। कहते हैं कि कुछ ही समय में हीरे ने एडवर्ड की ज़िंदगी पर असर दिखाया और वह दिवालिया हो गया।

बाद में एडवर्ड ने इस हीरे को सात तरह के डिब्बों में विभिन्न चीजों से घेर कर हमेशा के लिए बंद कर दिया और उस पर लिख दिया ‘जो भी इस हीरे को खोलेगा, वह इसे खोलने से पहले यह चेतावनी जरूर पढ़ ले। 

मेरी इस डिब्बे को खोलने वाले को एक ही सलाह है कि कृपया हीरे को बाहर निकालने के बाद समुद्र में फेंक दे’। आज के समय में यह हीरा लंदन के ‘नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम’ में प्रदर्शित किया गया है।

होप डायमंड -

श्रापित हीरों की कतार में होप डायमंड का नाम भी काफी मशहूर है। होप डायमंड नाम का यह खूबसूरत हीरा 45 कैरेट का है और अपने आप में अदभुत है।

कहते हैं यह हीरा आंध्र प्रदेश के ही गोलकुंडा खानों में पाया गया था। यह हीरा श्रीराम की पत्नी मां सीता की मूर्ति की आंख से चुराया गया था। कहते हैं कि इस हीरे को भी एक श्राप ने घेर रखा है।

यह हीरा जिस भी राजा के पास गया, इसने उसे बर्बाद कर के रख दिया। इस हीरे को धारण करने वाला शख्स दुर्घटना का शिकार हो जाता है। फिलहाल यह हीरा स्मिथसोनियन संग्रहालय में है।

ब्लैक ओर्लोव डायमंड - 

दुनिया भर में ऐसे कई गहने एवं रत्न हैं, जो मनुष्य के लिए श्राप के समान हैं। इन सभी रत्नों में से एक है ‘भगवान ब्रह्मा की आंख’ कहलाने वाला ब्लैक ओर्लोव डायमंड। 

कहते हैं ये हीरा पुडुचेरी के एक मंदिर से चोरी हुआ था, जहां इसे ब्रह्मा जी की मूर्ति से निकाला गया।इसे ब्रह्मा की तीसरी आंख के रूप में मूर्ति में लगाया गया था। 

यही कारण है कि इसे ब्रह्मा की आंख कहा जाता है। मंदिर से हीरे को चुराने के बाद चोरों ने इसे किसी तरह से यूरोप पहुंचा दिया । 

इसे कई लोगों ने अपने पास रखा, लेकिन जिसके पास भी यह हीरा गया वह उसे लंबे समय तक नहीं रख सका। क्योंकि इस हीरे को जो भी अपने पास रखता, उसकी अकाल मौत हो जाती थी। 

इस हीरे को अपने पास सबसे पहले 1932 में जे डब्ल्यू पेरिस ने किसी अमेरिकी व्यक्ति से खरीदा था। उसने इस हीरे को अपने पास काफी समय तक रखा लेकिन एक दिन खबर आई कि उसने न्यूयॉर्क की एक बिल्डिंग से कूदकर आत्महत्या कर ली।

इसके बाद रूस की राजकुमारियों लिओनिला गैलिस्टाइन और नादिया वाइजिन ओर्लो ने भी इसे खरीदा था। और उन दोनों ने भी वर्ष 1940 में एक ऊंची बिल्डिंग से कूदकर जान दे दी। दोनों राजकुमारियों का हीरे से संबंध होने के कारण ही इसका नाम ब्लैक ओर्लोव पड़ा।

इसके बाद इसे चार्ल्स एफ. विंसन ने खरीदा और इस हीरे का खौफनाक असर कम करने के लिए इसे तीन हिस्सों में कटवाकर तरशवाया। इसके बाद उन्होंने इसे 108 हीरों के गुच्छों के साथ हार में जड़वा दिया। 

बाद में इसे 2004 में अमेरिका से पेंसिलवेनिया के हीरा व्यापारी डेनिस पेट्मिजास ने खरीद लिया। उसने इस हीरे को कई प्रदर्शनियों का हिस्सा भी बनाया। कहते हैं आज भी यह हीरा बेहद भयानक असर देता है इसलिए कोई भी इसे बिना दस्ताने पहने हाथ नहीं लगाता।









Tuesday, 19 April 2016

why we put sindoor on hanuman ji

हनुमान जी को क्यों चढ़ाते हैं सिन्दूर का चोला ? इसके पीछे का कारण जानें अभी !



हिन्दू धर्म में सिन्दूर के महत्त्व से भला कौन परिचित नहीं है ? एक विवाहित स्त्री के लिए सिन्दूर न केवल उसके विवाहित होने का प्रमाण है बल्कि एक प्रकार से गहना है । पूजा-पाठ में भी सिन्दूर की ख़ास एहमियत है। 
जहाँ अक्सर सभी देवी-देवताओं को सिन्दूर का तिलक लगाया जाता है, हनुमान जी को सिन्दूर का चोला चढ़ाया जाता है । इसके पीछे एक कारण है जिसका वर्णन रामचरितमानस में है ।

चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके जब श्री राम, सीता और लक्ष्मण के साथ वापस अयोध्या आए तो एक दिन हनुमान ने माता सीता को अपनी मांग में सिन्दूर लगाते देखा । 

एक वानर के लिए ये कुछ अजब सी चीज़ थी तो उन्होंने माता सीता से सिन्दूर के बारे में पूछा । माता सीता ने कहा कि सिन्दूर लगाने से उन्हें श्री राम का स्नेह प्राप्त होगा और इस तरह ये सौभाग्य का प्रतीक है । 

अब हनुमान तो ठहरे राम भक्त और ऊपर से अत्यंत भोले, तो उन्होंने अपने पूरे शरीर को सिन्दूर से रंग लिया यह सोचकर कि यदि वे सिर्फ माँग नहीं बल्कि पूरे शरीर पर सिन्दूर लगा लेंगे तो उन्हें भगवान् राम का ख़ूब प्रेम प्राप्त होगा और उनके स्वामी कि उम्र भी लम्बी होगी । 

हनुमान इसी अवस्था में सभा में चले गए । श्री राम ने जब हनुमान को सिन्दूर से रंगा देखा तो उन्होंने हनुमान से इसका कारण पूछा । हनुमान ने भी बेझिझक कह दिया कि उन्होंने ये सिर्फ भगवान् राम का स्नेह प्राप्त करने के लिए किया था । 

उस वक्त राम इतने प्रसन्न हुए कि हनुमान को गले लगा लिया। बस तभी से हनुमान को प्रसन्न करने के लिए उनकी मूरत को सिन्दूर से रंगा जाता है । इससे हनुमान का तेज और बढ़ जाता है और भक्तों में आस्था बढ़ जाती है ।



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Thursday, 14 April 2016

Peepal Tree Health Benefits in Hindi

पीपल के पेड़ के औषधीय गुण और उपयोग, जाने अभी!

                                                                   Peepal Tree Benefits

पीपल का पेड़ औषधि का खजाना माना गया है। इस खजाने में हमारे शरीर को निरोग बनाने की कई प्राकृतिक नुस्खे मौजूद हैं। पीपल वृक्ष भारतीय उपमहाद्वीप के मूल निवासी है। यह भी रूप में अच्छी तरह से तिब्बत और चीन में देखा जा सकता है।

यह 30 मीटर की दूरी पर ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है, जो एक बड़े सदाबहार पेड़ है। पेड़ के तने व्यास में ऊपर से 3 मीटर की दूरी पर हो सकता है। पत्तियों हृदयाकार के हैं और फल 1 सेमी, जो छोटे अंजीर हैं।

पीपल का पेड़ भगवान विष्णु को समर्पित है और हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे पवित्र वृक्ष है। पीपल के कई औषधीय गुण है और यह विभिन्न संक्रमण, घावों के उपचार के इलाज के प्रजनन क्षमता में सुधार और विषाक्तता के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है।

पीपल पेड़ भारत में पूजा जाता है। आयुर्वेद में पीपल का हर भाग जैसे तना, पत्ते, छाल और फल सभी चिकित्सा में काम आते हैं, इनसे कई गंभीर रोगों का इलाज संभव है ।

पीपल के औषधीय उपयोग :-


1.  पीपल की ताजी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी होती है ।

2.  इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुषत्व में वृद्धि होती है ।

3.  यदि किसी व्यक्ति को सांप ने काट लिया हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच 3-4 बार पिलाएं, विष का प्रभाव कम होगा ।

4  इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है ।

5  पीलिया होने पर इसके 3-4 नए पत्तों के रस को मिश्री मिलाकर शरबत पिलाएं।

6.  इसके पके फलों के चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से वाणी में सुधार होता है ।

7.  पीपल के ताजे पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता है ।

8  इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आंख में लगाने से आंख का दर्द ठीक हो जाता है ।

9.  हाथ-पांव कटने-फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाएं. इससे फटने वाली जगह धीरे-धीरे भर जाएगी ।

10. चोट के घावों को जल्दी भरने के लिए पीपल के पत्तों को गर्म कर लें और चोट की वजह से होने वाले घावों पर लगा दें।

11. पीपल के पांच पत्तों को दूध में उबालकर चीनी या खांड डालकर दिन में दो बार, सुबह-शाम पीने से जुकाम, खांसी और दमा में बहुत आराम होता है ।

12. दमा के रोगीयों के लिए पीपल एक महत्वपूर्ण दवा का काम करता है। पीपल के पेड़ की छाल के अंदर के हिस्से को निकाल लें और इसे सुखा लें। सूखने के बाद इसका बारीक चूर्ण बना लें और पानी के साथ दमा रोगी को दें।

13. दाद और खाज दूर करने के लिए पीपल के 4 पत्तों को चबाकर सेवन करें। यदि एैसा नहीं कर सकते हो तो पीपल के पेड़ की छाल का काढ़ा बना लें और इसे दाद व खुजली वाली जगह पर लगाएं।

14 .पीपल की जड़ों को काट लें और उसे पानी में अच्छे से भिगोकर इसका पेस्ट बना लें। और इस पेस्ट को नियमित चेहरे पर लगाएं। झुर्रियों को खत्म करने के लिए पीपल एक अहम भूमिका निभाता है। यह बढ़ती हुई उम्र की वजह से चेहरे पर झुर्रियां रोक देता है।

15 .दांतों की बदबू, दांतों का हिलना और मसूड़ों का दर्द व सड़न को दूर करने के लिए 2 ग्राम काली मिर्च, 10 ग्राम पीपल की छाल और कत्था को बारीक पीसकर उसका पाउडर बना लें। और इससे दांतों को साफ करें। आपको इन रोगों से मुक्ति मिलेगी।

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Tuesday, 12 April 2016

Mahabharat Proof in Hindi

महाभारत सत्य था , ये प्रमाण साबित करते हैं कि महाभारत काल्पनिक नहीं है !



सनातन पथ इन्फो ब्लॉग आज आपको बताने जा रहा है की महाभारत की हर घटना सच क्यो है और महाभारत को कथा या कल्पना कहने वाले झूठे हैं या अज्ञानी हैं । महाभारत की कथा पूरी दुनिया को हैरानी में डालती है। न केवल हिंदुस्तानी बल्कि विदेशी भी इससे बेहद प्रभावित हैं। फिर भी ये एक सवाल उठता है कि इसे वास्तविक इतिहास समझा जाए या फिर कल्पना ?

महाभारत को इतिहास या कल्पना में से एक मानने के अपने-अपने तर्क हैं। फिर भी इसके विशुद्ध इतिहास होने के पीछे कई ऐसे तर्क मौज़ूद हैं, जिन पर गौर करना चाहिए।

जहां तक हमारा स्वयं का मानना है कि महाभारत की घटना कुरुक्षेत्र की समरभूमि पर अवश्य घटित हुई और आधुनिक पुरातत्वशास्त्री भी इस तथ्य से इनकार नहीं कर पा रहे हैं। 

यहां तक कि कई वैज्ञानिक शोधों ने इस बात को ही अधिक प्रमाणित किया है कि महाभारत की घटना एक सच्चाई है न कि कोई मिथक या कथा।

ये जानना आवश्यक है कि आखिर कौन से ऐसे तथ्य हैं जो महाभारत को इतिहास सिद्ध करते हैं। आज हम इसी मुद्दे के विस्तार में जाना चाहेंगे  : - 

कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश महाभारत युद्ध के दौरान दिया था, जिसमे कलयुग (जिसे आज का वक़्त कहा जाता है) का सारा बखान है. आज जो घटित हो रहा है वो गीता में पहले से लिखा है, ये कोई काल्पनिक घटना नहीं हो सकती ।

महाभारत के एक महत्वपूर्ण पात्र जरासंध थे, जिसका वध भीम के हाथों हुआ था. जरासंध मगध देश का राजा थे. पुरातत्व विभाग को बिहार के एक जिले राजगीर में जरासंध का अखाड़ा मिला है, जहां भीम ने उसे मौत के घाट उतारा था. आज पर्यटकों के बीच ये आकर्षण का केंद्र है ।

महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ था. हरियाणा के इस जिले में वो मैदान आज भी है जहां ये युद्ध हुआ था. कहा जाता है कि युद्ध में बहे खून की वजह से यहां की मिट्टी का रंग लाल हुआ था. आज भी वहां की मिट्टी का रंग लाल है ।

Mahabharat Real Proof - video


दुष्यंत और शकुंतला के बेटे भरत के नाम पर भारत देश का नाम पड़ा और भरत के वंश का विवरण महाभारत में है. पांडु और धृतराष्ट इन्हीं के वंशज हैं. भारत देश का होना ही महाभारत का सबसे बड़ा प्रमाण है ।

रामायण और महाभारत दो अलग-अलग वक़्त में दो अलग-अगल लोगों द्वारा लिखी गई है और दोनों किताबों में लिखी गई बात के कई प्रमाण मिले हैं. अगर ये किताबें काल्पनिक होतीं तो इन दोनों किताबों में इतनी समानता नहीं होतीं ।

महाभारत को कल्पना सिद्ध करने के पीछे सबसे पहला सवाल इसकी काव्यात्मक शैली को लेकर उठाया जाता है। कहा जाता है कि ऐसी शैली में कोई इतिहास कैसे लिखा जा सकता है जबकि ऐतिहासिक वृत्तांत के लिए गद्यात्मक शैली होना जरूरी है। महाभारत को कल्पना सिद्ध करने के लिए ये सबसे ज्यादा गलत तर्क है।

भारतीय साहित्य की प्राचीनता वैदिक युगीन साहित्य तक मानी जाएगी। वेदों की ऋचाएं स्वयं मंत्रोक्त व काव्यात्मक गेय शैली में रची गईं, जिनमें भौतिक जीवन के अनेकानेक आवश्यक उपांगों को व्याख्यायित किया गया है। 

सांसारिक जीवन की नश्वरता की बजाय जीवन को जीवंतता से जीने के लिए वेद कई आयाम को उद्घाटित करते हैं। अनेक प्राकृतिक शक्तियों की उपासना भी इसी दृष्टिकोण का महत्वपूर्ण भाग है।

हम कल्हण की राजतरंगिणि को देखें तो ये बात प्रमाणित हो जाती है। तत्कालीन भारतीय इतिहास का निर्माण गेय काव्यात्मक शैली में ही किया जाता था और सल्तनत युगीन भारत से पद्यात्मक की बजाय गद्यात्मक शैली में ऐतिहासिक रचनाएं की जाने लगीं। 

तुर्क और यूरोपियन इतिहासकार गद्य शैली में ही इतिहास लिखते थे तो महाभारत की ऐतिहासिकता को केवल इस बात से नकार देना न्यायसंगत नहीं होगा।

इसके बाद आते हैं वंशावलियों का विस्तारपूर्वक वर्णन तथा महाभारत व इससे पहले रची गई रामायण के कई पात्रों के समान होने के आश्चर्यजनक साम्य पर। ये कोई मात्र संयोग नहीं हो सकता कि वेदव्यास ने उस समय की दुनिया और भारतवर्ष के अनेक सम्राटों व उनकी राजधानियों और राज्यों का सविस्तार उल्लेख किया। 



कुरुक्षेत्र के युद्ध में जिस तरह हज़ारों राजाओं ने अपनी विशाल सेनाओं के साथ भाग लिया तथा अंतिम रूप से कुछ चुनिंदा योद्धा ही बचे उससे इस महायुद्ध की भयावहता का अनुमान लगाया जा सकता है।

यदि ये केवल काल्पनिक उपक्रम होता तो कथानक को सशक्त बनाने के लिए महज़ कुछ ही पात्रों की आवश्यकता होती किंतु एक इतिहासकार ऐसा नहीं कर सकता है। उसे तो तत्कालीन घटना का पूरा-पूरा विवरण देना होता है ताकि कहीं भी वास्तविक घटना से अन्याय न हो सके। 

वेदव्यास ने महायुद्ध के पूर्व और पश्चात की सभी घटनाओं को उकेरने की कोशिश की जिससे इसकी ऐतिहासिकता पर सवाल न उठ सके। इसके अलावा महाभारत में तत्कालीन ग्रह-नक्षत्रों व उनकी स्थितियों सहित शुभ लग्न-मुहूर्त आदि का वर्णन भी मिलता है। 

आखिर ऐसा क्यों किया गया होगा ये सोचने का विषय है। अगर महाभारत केवल काल्पनिक रचना होती तो ऐसा प्रयास करने का अर्थ क्या था? कहीं न कहीं ये बात इसकी ऐतिहासिकता को साबित करती नज़र आती हैं। तत्कालीन परिस्थितियों में कौन से ग्रह-नक्षत्र आदि किस अवस्था में थे, इसका ज़िक्र केवल इतिहास में होता है।

उस समय के कई महानगरों का उल्लेख जैसे द्वारका, इंद्रप्रस्थ आदि का उल्लेख भी अनैतिहासिक नहीं है। ये बात आधुनिक खोजों के द्वारा पूर्णतया प्रमाणित हो चुकी है महाभारत कालीन द्वारका का अस्तित्व था इसके अतिरिक्त कंबोज, गांधार, इंद्रप्रस्थ, हस्तिनापुर आदि का भी वास्तविक समीकरण स्थापित किया जा चुका है।

कुछ ऐसे आधार हैं जिनके लिए इसे पूर्णतया काल्पनिक रचना करार दिया जाता है। जैसे तत्कालीन परिस्थितियों में अत्याधुनिक विनाशक शस्त्रों के प्रयोग सहित दिव्यदृष्टि आदि का वर्णन। ये कहना युक्तिसंगत नहीं होगा कि उस समय ऐसी तकनीक कैसे हो सकती थी ।

किंतु जरा विचार कीजिए कि क्या इतनी उन्नत तकनीक की उपलब्धता के बिना उसकी कल्पना उस काल में संभव हो सकती थी? अवश्य नहीं, ऐसा केवल तभी संभव था जबकि ऐसी तकनीकें मौज़ूद रही हों किंतु इस विनाशक युद्ध के पश्चात सभ्यता और नगरीकरण का पतन अवश्यंभावी था और जो कि हुआ भी.

स्वयं वेदव्यास ने इस महान रचना के लिए “इतिहास” शब्द का ज़िक्र किया। अगर ये केवल कवि कल्पना मात्र होती तो वेदव्यास ऐसा क्यों करते? ध्यान दें महाभारत के सभी श्लोक इसकी ऐतिहासिकता को सिद्ध करते नज़र आते हैं क्योंकि इनमें जिस तरह से घटनाओं व चरित्रों सहित कई स्थानों का उल्लेख है, वे केवल एक ऐतिहासिक विवरण में ही संभव है !!

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