क्या आप जानते हैं भगवान शिव से जुड़े ऎसे रहस्य ?
परमेश्वर शिव त्रिकाल दृष्टा, त्रिनेत्र, आशुतोष, अवढरदानी, जगतपिता आदि अनेक नामों से जानें जाते हैं। भगवान शिव जितने रहस्यमयी हैं, उनकी वेश-भूषा व उनसे जुड़े तथ्य उतने ही विचित्र हैं। क्या आप जानते हैं भगवान शिव हाथ में डमरू क्यों रखते हैं, उन्होंने गले में सर्पो का हार क्यों धारण किया है,और उनके तीन नेत्र क्यों हैं ?
जानिए भगवान शिव से जुड़े ऎसे ही कुछ रहस्य।
त्रिनेत्र
शिव के तीन नेत्र हैं। यूं तो उन्होंने पूरा ब्र±मांड रचा है लेकिन वे समय के भी रचयिता हैं और काल से भी परे हैं। वे नेत्रों से भूत, भविष्य और वर्तमान को प्रत्यक्ष देख सकते हैं। जगत की आंखें जिस सत्य का दर्शन नहीं कर सकतीं, वह सत्य शिव के नेत्रों से कभी ओझल नहीं हो सकता, क्योंकि वह उन्हीं की एक रचना है।
सर्प
भगवान शिव गले में सर्पो का हार धारण करते हैं। सामान्यत: देवगण पुष्पों का हार पहनते हैं लेकिन शिव उनसे न्यारे हैं। सर्प धारण करने का अर्थ है जिन्हें संसार पसंद नहीं करता, भगवान शिव उसे भी गले से लगाते हैं। उनके मन में हर जीव के लिए प्रेम है। फिर चाहे वह सर्प ही क्यों न हो।
डमरू
शिव जितने महान योगी हैं, उतने ही संगीत के भी ज्ञाता हैं। शिव के डमरू से निकली ध्वनि के माध्यम से ही संस्कृत के व्याकरण की रचना हुई है। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी और ज्ञान-विज्ञान का आधार है। इस प्रकार शिव के डमरू से ही विज्ञान, तकनीकी, चिकित्सा विज्ञान, सभ्यता और संस्कृति का उदय हुआ है।
त्रिशूल
शिव एक हाथ से भक्तों को वरदान देते हैं तो दूसरे से दुष्टों को दंड भी देते हैं। इसीलिए वे त्रिशूल धारण करते हैं। उन्होंने कई असुरों का इससे संहार किया है। वास्तव में त्रिशूल के तीनों शूल मनुष्य के जीवन से तीन प्रकार के पाप (भौतिक, दैहिक, दैविक) नष्ट कर उसे सुखमय बनाते हैं।
नंदी
भगवान शिव इस पर सवारी करते हैं और यह अपने स्वामी को अत्यंत प्रिय है। यूं तो नंदी के अनेक अर्थ हैं जो भगवान शिव के दयालु व शीघ्र प्रसन्न होने के बारे में बताते हैं, लेकिन इसका सबसे गहन अर्थ नंदी के चरणों से जुड़ा है। नंदी के चार चरण हैं जिनसे यह भगवान शिव को एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर यात्रा करवाता है। ये चारों चरण मनुष्य जीवन की चार अवस्थाओं (ब्र±मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ व संन्यास) और चार पुरूषार्थो (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) के प्रतीक हैं। भगवान शिव के पूजन से ये सुख और सफलता देते हैं।
भस्म
शिव अपने तन पर भस्म रमाते हैं। इससे सिद्ध होता है कि मनुष्य का जन्म शिव की कृपा से ही होता है और अंत में वह शिव में ही समा जाता है। भस्म का तात्पर्य संसार के नाशवान होने और शिव के ही अमर होने का प्रतीक है।
चंद्रमा
शिव के श्ृंगार को और सुंदर बनाता है उनके मस्तक पर विराजमान चंद्रमा। ज्योतिष में चंद्रमा मन का कारक है और यह नए विचारों को उत्पन्न करता है। नियंत्रण और सदुपयोग से मन मनुष्य को प्रगति की ओर लेकर जाता है तो अनियंत्रण से पतन की ओर। शिव ने इसे मस्तक पर धारण किया है। इसका मतलब है, उनका मन पर पूरा नियंत्रण है। स्वयं के मन पर भी और संसार के मन पर भी।
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