भगवान शिव पंचमुखी मुखी रूप मे
विभिन्न रूपों में भगवानशिव देवाधिदेव हैं। वे आशुतोष हैं- भक्तों पर शीघ्र
प्रसन्न हो जाने वाले। यहां उनके कुछ रूपों का वर्णन प्रस्तुत है जिनकी
निष्ठापूर्वक पूजा उपासना से कामनाएं पूरी होती हैं और पाप से मुक्ति मिलती
है।
भगवान अर्धनारीश्वर शिव के इस रूप का एक भाग नर अर्थात शिव का और एक
भाग नारी अर्थात माता पार्वती का है। दोनों का रूप स्पष्ट रूप से एक ही
प्रतिमा में व्याप्त है। एक के ही पूजन से जगत्पिता शिव और जगन्माता
पार्वती के पूजन का फल प्राप्त हो जाता है।
पंचमुख शिव भगवान के इस रूप में
पांच मुख हैं। इनमें पहला मुख उध्र्वमुख है जिसका रंग हल्का लाल है। दूसरा
पूर्व मुख है जिसका रंग पीला है। तीसरा दक्षिण मुख है जिसका रंग नीला है।
चैथा पश्चिम मुख है जिस का रंग भूरा है। और पांचवां उत्तर मुख है जिस का
रंग पूर्ण लाल है।
इन सभी मुखों के ऊपर मुकुट में चंद्रमा सुशोभित हैं। इस
संपूर्ण मुख मंडल से एक अद्भुत आभा फूटती है। पशुपति शिव भगवान के इस रूप
को पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाता है। नेपाल की राजधानी काठमांडू में इस
रूप का विश्व में सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिर है।
भगवान के इस रूप में सूर्य,
चंद्रमा व अग्नि को तीनों नेत्रों में स्थान मिला है। महामृत्युंजय शिव
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, भगवान का यह रूप मृत्यु को भी हराने वाला है।
उनके इस रूप का ध्यान कर मृत्यु को भी जीता जा सकता है।
इस रूप का एक
विशेष मंत्र है जिसके सवा लाख जप करने या करवाने से असाध्य रोगों से मुक्ति
प्राप्त होती है तथा अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। नील कंठ भगवान के इस
रूप में भगवान का कंठ अर्थात गला नीले रंग का है। एक बार भगवान शिव ने
विषपान कर लिया था जिससे उन का समस्त कंठ नीला हो गया।
इसीलिए उनका यह
विग्रह नीलकंठ कहलाया। भगवान के इस रूप में उनके मुख में अत्यधिक तेज
व्याप्त है जिसकी किसी तेज से तुलना नही के जा सकती !
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