Sunday, 20 March 2016

Why Do We Pour Water on Shivling in hindi

सूर्य और शिवलिंग को जल चढ़ाने के पीछे छिपा है गहरा विज्ञान



आप देखेंगे कि कई ऐसी मान्यताएं केवल परंपरा के नाम पर निभाई जाती हैं किंतु यदि उनकी गहराई से छानबीन की जाए तो उनके पीछे छिपी वैज्ञानिकता को समझा जा सकता है।

हमारी लगभग सारी धार्मिक मान्यताएं कहीं न कहीं किसी साइंटिफ़िक रीजन की वजह से बनी हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि सूर्यदेव या शिवलिंग को जल चढ़ाने के पीछे प्योर साइंटिफ़िक रीजन हैं.

हम सूर्य को जल देने की बात करें तो इसके पीछे छिपा है रंगों का विज्ञान। हमारी बॉडी में रंगों का बैलेंस बिगड़ने से कई रोगों के शिकार होने का खतरा होता है। मॉर्निंग में सूर्यदेव को जल चढ़ाने से शरीर में ये रंग संतुलित हो जाते हैं, जिससे बॉडी में रज़िस्टेंस भी बढ़ता है। 


इसके अलावा सूर्य नमस्कार की योगमुद्रा से कॉंसंट्रेशन भी बढ़ता है और रीढ़ की हड्डी में आई प्रॉब्लम सहित कई बीमारियां अपने आप दूर हो जाती हैं। इससे आंखों की समस्या भी दूर होती है। इसके अलावा रेग्यूलर जल चढ़ाने से नेचर का बैलेंस भी बना रहता है क्योंकि यही जल, वेपोरेट होकर सही समय पर बारिश में योगदान देता है।



अगर हम सूर्यदेव को जल चढ़ाने की पूरी क्रियाविधि को ध्यान से देखें तो हमें कुछ बातें स्पष्ट होंगी। ताम्र पात्र में जल भरकर सूर्योदय के पश्चात सूर्य नमस्कार की विशिष्ट योग मुद्रा में जल की धार सिर से चार इंच ऊपर से स्लो मोशन में गिराते हुए जल की धार में से ही सूर्य की प्रकाश रश्मियों को एकाग्रता से देखा जाता है।


इसका लाभ ये है कि आंखों व शरीर को एंटी बैटीरियल डोज मिलने के साथ तरावट भी मिलती है और लंबी अवधि तक उनमें समस्या नहीं उत्पन्न होती। सूर्य नमस्कार की मुद्रा की अगर बात करें तो ये भी अपने आप में कई रोगों का इलाज़ है। इससे मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ने के साथ शारीरिक संतुलन सधता है और रीढ़ की हड्डियों मं विकार नहीं उत्पन्न होते।

अगर हम कुछ और गहराई में उतरें तो हमें पता चलेगा कि रंगों का ये विज्ञान ज्योतिष शास्त्र व रत्न विज्ञान के साथ कहीं अधिक जुड़ता है। रंगों के आधार पर ही रत्नों का चयन किया जाता है, जो अपने-अपने विशेष स्पेक्ट्रम और तरंग दैर्ध्य के अनुसार विशेष ग्रहों को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं। किसी भी ग्रह की निगेटिव एनर्जी को विशेष रंग के प्रयोग से परावर्तित या अपवर्तित किया जा सकता है।

अब हम बात करते हैं शिवलिंग पर जल सहित, भांग, धतूरा, बेलपत्र आदि चढ़ाने की। आपको जानकर हैरानी होगी कि शिवलिंग खुद में न्यूक्लियर रिएक्टर का सबसे बड़ा सिम्बल है। इसकी पौराणिक कथा तो ब्रह्मा और विष्णु के बीच एक शर्त से जुड़ी है। शिवलिंग ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधि है। जितने भी ज्योतिर्लिंग हैं, उनके आसपास सर्वाधिक न्यूक्लियर सक्रियता पाई जाती है।

यही कारण है कि शिवलिंग की तप्तता को शांत रखने के लिए उन पर जल सहित बेलपत्र, धतूरा जैसे रेडियो धर्मिता को अवशोषित करने वाले पदार्थों को चढ़ाया जाता है।


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