Tuesday, 13 October 2015

how kaliyuga started in hindi

             धरती पर कैसे आया कलियुग

 

पुराणों में चार युगों के विषय में बताया गया है, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। कलियुग को छोड़ दिया जाए तो तीनों ही युगों की अपनी-अपनी खासियत रही। परंतु कलियुग में खासियत जैसा तो कुछ नहीं दिखता, चारो ओर अहंकार, प्रतिशोध, लालच और आतंक ही दिखाई देता है। कलियुग को एक श्राप कहा जाता है, जिसे हर मौजूदा इंसान भुगत रहा है। हां, तकनीक का अत्याधिक विकास भी इसी युग में हुआ परंतु क्या केवल एक इसी बात के लिए हम हजारों नकारात्मक स्थितियों को नजरअंदाज कर पाएंगे? शायद ही कोई व्यक्ति इस सवाल का जवाब ‘हां’ में देगा।

क्या हमने कभी इस बात की ओर ध्यान दिया है कि ऐसा क्या कारण रहा होगा जिसके चलते कलियुग को धरती पर आना पड़ा? वह ना सिर्फ आया बल्कि यहां आकर यहीं का हो गया, तो आखिर क्या रहस्य है कलियुग के धरती पर आगमन के पीछे? चलिए आज हम आपको इसी रहस्य से अवगत करवाते हैं जो कलियुग के धरती आगमन के पीछे छिपा है।

महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने अपनी पुस्तक “आर्यभट्टियम” में इस बात का उल्लेख किया है कि जब वह 23 वर्ष के थे तब कलियुग का 3600वां वर्ष चल रहा था। आंकड़ों के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म 476 ईसवीं में हुआ था। गणना की जाए तो कलियुग का आरंभ 3102 ईसापूर्व हो चुका था।

लेकिन ये कलियुग धरती पर आया कैसे? इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा विद्यमान है जो पांडवों के महाप्रयाण से जुड़ी है।

बात तब की है जब धर्मराज युधिष्ठिर अपना पूरा राजपाट परीक्षित को सौंपकर अन्य पांडवों और द्रौपदी समेत महाप्रयाण हेतु हिमालय की ओर निकल गए थे। उन दिनों स्वयं धर्म, बैल का रूप लेकर गाय के रूप में बैठी पृथ्वी देवी से सरस्वती नदी के किनारे मिले। गाय रूपी पृथ्वी के नयन आंसुओं से भरे हुए थे, उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे।

पृथ्वी को दुखी देख धर्म ने उनसे उनकी परेशानी का कारण पूछा। धर्म ने कहा “देवी! तुम ये देख कर तो नहीं रो रही कि मेरा बस एक पैर है? या तुम इस बात से दुखी हो कि अब तुम्हारे ऊपर बुरी ताकतों का शासन होगा?

इस सवाल पर पृथ्वी देवी बोलीं “हे धर्म, तुम तो सब कुछ जानते हो, ऐसे में मेरे दुख का कारण पूछने से क्या लाभ”? सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, सन्तोष, त्याग, शास्त्र विचार, ज्ञान, वैराग्य, शौर्य, तेज, ऐश्वर्य, कान्ति, कौशल, स्वतंत्रता, निर्भीकता, कोमलता, धैर्य, साहस, उत्साह, कीर्ति, आस्तिकता, स्थिरता, गौरव, अहंकारहीनता आदि गुणों के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण के स्वधाम जाने की वजह से कलियुग ने मुझ पर कब्जा कर लिया है। पहले भगवान कृष्ण के चरण मुझ पर पड़ते थे, जिसकी वजह से मैं खुद को सौभाग्यशाली मानती थी, परंतु अब ऐसा नहीं है, अब मेरा सौभाग्य समाप्त हो गया है।

धर्म और पृथ्वी आपस में बात कर ही रहे थे कि इतने में असुर रूपी कलियुग वहां आ पहुंचा और बैल और गाय रूपी धर्म और पृथ्वी को मारने लगा। राजा परीक्षित वहां से गुजर रहे थे, जब उन्होंने यह दृश्य अपनी आंखों से देखा तो कलियुग पर बहुत क्रोधित हुए। अपने धनुष पर बाण रखते हुए राजा परीक्षित ने कलियुग से कहा “दुष्ट, पापी! तू कौन है? इन निरीह गाय तथा बैल को क्यों सता रहा है? तू महान अपराधी है। तेरा अपराध क्षमा योग्य नहीं है, तेरा वध निश्चित है।“

राजा परीक्षित ने बैल के स्वरूप में धर्म और गाय के स्वरूप में पृथ्वी देवी को पहचान लिया। परीक्षित राजा ने उनसे कहा “हे वृषभ! आप धर्म के मर्म को भली-भांति जानते हैं। इसलिए आप किसी के विषय में गलत ना कहते हुए अपने ऊपर अत्याचार करने वाले का नाम भी नहीं बता रहे हैं”। हे धर्म! सतयुग में आपके तप, पवित्रता, दया और सत्य चार चरण थे। त्रेता में तीन चरण रह गये, द्वापर में दो ही रह गये और अब इस दुष्ट कलियुग के कारण आपका एक ही चरण रह गया है। पृथ्वी देवी भी इसी बात से दुखी हैं”।

इतना कहते ही राजा परीक्षित ने अपनी तलवार निकाली और कलियुग को मारने के लिए आगे बढ़े। राजा परीक्षित का क्रोध देखकर कलियुग कांपने लगा। कलियुग भयभीत होकर अपने राजसी वेष को उतार कर राजा परीक्षित के चरणों में गिर गया और क्षमा याचना करने लगा। राजा परीक्षित ने शरण में आए हुए कलियुग को मारना उचित न समझा और उससे कहा “हे कलियुग! तू मेरे शरण में आ गया है इसलिए मैं तुझे जीवनदान दे रहा हूं। किन्तु अधर्म, पाप, झूठ, चोरी, कपट, दरिद्रता आदि अनेक उपद्रवों का मूल कारण केवल तू ही है। तू मेरे राज्य से अभी निकल जा और फिर कभी लौटकर मत आना”।

परीक्षित की बात को सुनकर कलियुग ने कहा कि पूरी पृथ्वी पर आपका निवास है, पृथ्वी पर ऐसा कोई भी स्थान नहीं है जहां आपका राज्य ना हो, ऐसे में मुझे रहने के लिए स्थान प्रदान करें”।

कलियुग के ये कहने पर राजा परीक्षित सोच ने किचार कर कहा “झूठ, द्यूत, मद्यपान, परस्त्रीगमन और हिंसा, इन चार स्थानों में असत्य, मद, काम और क्रोध का निवास होता है। तू इन चार स्थानों पर रह सकता है। परंतु इस पर कलियुग बोला - "हे राजन, ये चार स्थान मेरे रहने के लिए अपर्याप्त है, अन्य जगह भी प्रदान कीजिए मुझे”। इस मांग पर राजा परीक्षित ने उसे स्वर्ण के रूप में पांचवां स्थान प्रदान किया। स्वर्ण रूपी स्थान मिलते ही कलियुग ने राजा परीक्षित के सोने के मुकुट में वास कर लिया। कलियुग इन स्थानों के मिल जाने से प्रत्यक्षतः तो वहाँ से चला गया किन्तु कुछ दूर जाने के बाद अदृश्य रूप में वापस आकर राजा परीक्षित के स्वर्ण मुकुट में निवास करने लगा।

मार्कण्डेय पुराण में कलियुग की कुछ विशेषताओं का उल्लेख पहले ही किया जा चुका था। जिसके अनुसार कलियुग के दौरान शासक, जनता पर मनमाने ढंग से शासन करेंगे, मनचाहे ढंग से उन पर कर थोपेंगे। शासक, अपने राज्य में अध्यात्म की जगह भय का प्रसार करेंगे, वह स्वयं एक बहुत बड़ा खतरा बन जाएंगे।

बड़ी संख्या में पलायन शुरू हो जाएगा, लोग सस्ते खाद्य पदार्थ और सुविधाओं की तलाश में अपने घरों को छोड़कर जाने के लिए मजबूर होंगे।

धर्म को नजरअंदाज कर दिया जाएगा और लालच, सत्ता, पैसा, सभी के मस्तिष्क में प्रबल रूप से विद्यमान रहेगा। लोग बिना किसी पश्चाताप के अपराधी बनकर लोगों की हत्या करेंगे। ‘संभोग’ जिन्दगी की सबसे बड़ी जरूरत बन जाएगी।

लोग बहुत आसानी से कसम खाएंगे और उसे तोड़ देंगे, वचनों का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। लोग मदिरा और अन्य नशीले पदार्थों की चपेट में आ जाएंगे। गुरुओं का सम्मान करने की परंपरा समाप्त हो जाएगी।

ब्राह्मण ज्ञानी नहीं रहेंगे, क्षत्रियों का साहस खो जाएगा और वैश्य अपने व्यवसाय में ईमानदार नहीं रह जाएंगे। पाप अपने चरम पर होगा। यह सब तो हो ही रहा है। मजबूरी या मर्जी, हमने कलियुग को घर करने का मौका दे ही दिया है।



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