Friday, 16 October 2015

many benefits of chanting with bath

                  स्नान के साथ मंत्र जाप करने से मिलता है लाभ





गंगा के तट पर पानी में लगातार डुबकियां लगाता इंसान क्या सोचता है? शायद वह यही सोचता है कि यही वो मार्ग है जो उसे जीवन समाप्त होने के बाद मोक्ष पाने में सहायक होगा। यह मार्ग उसके जीवन-मरण के चक्र को खत्म कर उसे संसार के जंजाल से बाहर निकालने में मदद कर सकेगा।

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मनुष्य की आत्मा कभी नहीं मरती, बल्कि कुछ समय के पश्चात वह किसी अन्य शरीर का हिस्सा बनने के लिए पुनर्जन्म लेती है। और यदि कोई मनुष्य जीवन-मरण के इस जंजाल से बचना चाहता है तो वह ‘मोक्ष’ की कामना करता है।

मोक्ष उस आत्मा को बार-बार जन्म लेने से रोकता है। हिन्दू धर्म में गंगा स्नान मोक्ष पाने का एक मार्ग है। भगवान शिव की जटाओं से निकली मां गंगा बेहद पवित्र मानी जाती हैं। लेकिन केवल गंगा में जाकर दो-चार बार डुबकी लगाने से ही मोक्ष का मार्ग नहीं पाया जा सकता।

हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ‘स्नान’ एक अहम कार्य है। यदि यह अध्यात्मिक नियमों के अनुसार किया जाए तो ही फलदायी होता है। इसके अनुसार स्नान करने का सही समय सुबह 4 बजे का है जिसे ‘ब्रह्म मुहूर्तम्’ कहा जाता है।
वेदों के अनुसार अविवाहित इंसान को दिन में एक बार, शादीशुदा को दो बार तथा एक ऋषि एवं संत-महात्मा को दिन में तीन बार स्नान करना चाहिए।

वैज्ञानिक दृष्टि से स्नान करने से शारीरिक मल का नाश होता है, जिससे व्यक्ति तरो-ताजा महसूस करता है। अपने शरीर को स्वच्छ बनाए रखना बेहद जरूरी है क्योंकि अस्वच्छ तन रोगों को आमंत्रित करता है। लेकिन आत्मा को स्वच्छ बनाने के लिए धार्मिक रूप से स्नान करना जरूरी है।

हिन्दू पुराणों में अहम गरुड़ पुराण द्वारा भी स्नानम का महत्त्व समझाया गया है। कहते हैं पानी एक ऐसी वस्तु है जो शरीर पर पड़ते ही अपने साथ शरीर की सारी अशुद्धियों को बहा ले जाती है। यह मनुष्य को पवित्र करती है।

लेकिन किस प्रकार के पानी में स्नान किया जाए यह भी एक अहम बिन्दु है। हिंदू विधानों के अनुसार तालाब के पानी में, वर्षा के पानी में या फिर नदी के पानी में स्नान करना लाभकारी सिद्ध होता है। यह पानी आपके शरीर के साथ आपके मन एवं मस्तिष्क को भी पवित्र बनाता है।

लेकिन स्नान के साथ यदि मंत्र का जाप भी किया जाए तो स्नान का फल कई गुणा अधिक बढ़ जाता है। शास्त्रों में शामिल किए गए ‘स्नानम मंत्र’ का जाप अत्यंत लाभकारी है। इस मंत्र का यदि पूर्ण मन से ध्यान लगाकर जाप जाए तो यह शारीरिक एवं अन्य सभी अशुद्धियों को साफ करता है।

शास्त्रों के अनुसार वर्णित ‘’स्नान मंत्र’ है - ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभंतर: शुचि:।। इस मंत्र का अर्थ है - कोई भी मनुष्य जो पवित्र हो, अपवित्र हो या किसी भी स्थिति को प्राप्त क्यों न हो, जो भगवान पुण्डरीकाक्ष का स्मरण करता है, वह बाहर-भीतर से पवित्र हो जाता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष पवित्र करें।

हिन्दू धर्म में पुण्डरीकाक्ष भगवान विष्णु का उल्लेख करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। भगवान विष्णु ही जल के देवता हैं तथा यदि कोई उनका जाप करते हुए स्नान करता है तो विष्णु उसे सभी संसारिक पापों से मुक्त कर देते हैं।

भगवान विष्णु के साथ उस व्यक्ति को विष्णु की पत्नी मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिलता है। धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने से व्यक्ति के जीवन में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आती।

नियमित रूप से स्नान करने के बाद हिन्दू धर्म में पुरोहित द्वारा व्यक्ति के हाथों में गंगा जल अर्पित किया जाता है, जिसे मंत्र का जाप करते हुए ही ग्रहण करना चाहिए।

भारत में अहम हिन्दू त्यौहारों पर गंगा स्नान का महत्व है। खासतौर पर विभिन्न मेले तथा उत्सवों में स्नान करने के लिए भक्तों की बड़ी भीड़ एकत्रित होती है। इस दौरान सभी अपने पापों की मुक्ति के लिए विधिपूर्वक स्नान करते हैं।

हिन्दू धर्म के अलावा बौद्ध धर्म में भी स्नान का महत्वपूर्ण स्थान है। बौद्ध धर्म में किसी भी पवित्र कार्य को करने से पहले स्नान करना जरूरी है। बौद्ध धर्म में भी स्नान करने के लिए कुछ नियम कानून बनाए गए हैं।

इस धर्म के भिक्षु स्नान करने के लिए केवल पानी का ही इस्तेमाल कर सकते हैं। यानी कि शरीर को साफ करने के लिए वे केवल अपने हाथों का प्रयोग कर सकते है क्योंकि हाथों के अलावा स्नान करते समय किसी भी अन्य वस्तु का प्रयोग करना बौद्ध धर्म में वर्जित माना गया है।


यदि कोई बौद्ध भिक्षु किसी शारीरिक पीड़ा (उदाहरण के लिए किसी प्रकार का त्वचा संक्रमण) से ग्रस्त है जिसके लिए उसे किसी वस्तु का प्रयोग करके उसे खत्म करना होगा, तो वह केवल मलक या फिर मगरमच्छ के दांतों से बने पीठ खुजाऊ वस्तु का प्रयोग कर सकते हैं।


                                                                www.sanatanpath.com

                                                                         facebook

                                                                         Twitter




No comments: